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देश में बिजली की कमी को दूर करने और शहरों की तस्वीर बदलने के लिए जरूरी है कि पारंपरिक तरीकों से हटकर कुछ किया जाए। कूड़े से बिजली बनाने की योजनाएं इस दिशा में कारगर सद्धि हो सकती हैं।
डॉ. सुभाष चंद्रा
देश में बिजली की कमी है। हर साल खासकर गर्मियों में बिजली की कमी की खबरें सभी अखबारों और टीवी चैनल में प्रमुखता से छपती या फिर दिखाई जाती हैं। लेकिन इस सबके बावजूद स्थितियों में बहुत बदलाव नहीं आया है। ऐसे में जरूरत इस बात की भी है कि जो पारंपरिक तरीके हैं, बिजली बनाने के उनसे अलग हटके भी कुछ किया जाए। जिससे न सर्फि बिजली मिले और प्रदूषण को भी कम किया जा सके और इसके लिए कूड़े से बिजली क्यों न बनाई जाए। यह विचार मुझे तब आया जब कुछ साल पहले मैं दल्लिी से गाजियाबाद जा रहा था और दल्लिी सीमा पर कूड़े का बड़ा सा पहाड़ दिखाई दिया। यहां से गुजरते हुए एक दुगंर्ध का एहसास भी हुआ।
कूड़े के पहाड़ दल्लिी और बाकी दूसरे बड़े शहरों में आसानी से नजर आते हैं। दरअसल ये जो कूड़ा है, उसका इस्तेमाल अगर ठीक से नहीं होगा तो यह हवा के साथ-साथ पानी को भी प्रदूषित कर देगा। इसके बारे में जब वस्तिार से मैंने लोगों से बात की और जानकारी इक्ठठी की तो पता चला कि देश में कूड़े से बिजली बनाने की बातें हो रही हैं।
कई छोटी कंपनियों ने इस तरफ के संयंत्र लगाने की सोची या कुछ ने लगाया भी लेकिन वे सफल नहीं हो सके। मैंने इसकी और जानकारी ली तो पता चला कि सबसे बड़ी परेशानी तकनीक की है। जिस तकनीक का इस्तेमाल भारतीय कंपनियां कूड़े से बिजली बनाने के लिए कर रही हैं, उसमें न तो कूड़े का ठीक से नस्तिारण हो पा रहा है और न ही बिजली का उत्पादन कुल मिलाकर संयंत्र ठीक से चल नहीं पा रहा था। ऐसे में जरूरत थी कि दुनिया मे जो भी सबसे बेहतर तकनीक उपलब्ध है, उसको भारत में लाया जाए।
जब हमने इसके लिए अपनी एक कंपनी को लगाया तो पता चला कि जापान की तकनीक बेहतर है। फिर हिताची से बात की गई और जबलपुर संयंत्र की नींव रखी गई। जब इस प्लांट की बात चल रही थी तो मेरी सबसे बड़ी चिंता यह थी कि ये न सर्फि कूड़े से बिजली बनाए बल्कि इलाके में रहने वाले लोगों को प्रदूषण कम करके बेहतर हवा पानी की उपलब्धता भी बढ़ाए। इसलिए जब ये प्लांट तैयार हो रहा था तो हमने इसको यूरोपीय मानकों के साथ बनाने को कहा। इस संयंत्र में जिस तकनीक का इस्तेमाल हुआ है, उसमें जगह की जरूरत काफी कम होती है। इस प्लांट से जबलपुर में जगह की काफी बचत हुई है। यह काफी दिलचस्प बात है कि जबलपुर जैसे शहर में साल का करीब दो लाख टन कूड़ा पैदा होता है।
स्थानीय नगर निगम इस कूड़े को एकत्र करता है। हर साल इस कूड़े को रखने के लिए निगम को करीब चार हेक्टेयर से ज्यादा जमीन की जरूरत होती थी। लेकिन इस प्लांट के चालू होने के बाद इस सारे कूड़े से साल में 11़5 मेगावाट बिजली बनाई जाएगी। न तो जगह की समस्या होगी और शहर को अपनी बिजली भी मिलेगी। इस तरह की योजनाओं से हम अपने शहरों को और बेहतर बना सकते हैं। कुल मिलाकर देश में सालाना करीब 5़.5 करोड़ टन कूड़ा शहरों में निकल रहा है, जो कि 2020 तक 10 करोड़ टन तक पहुंच सकता है। जबकि देश में कूड़े से बिजली बनाने की जो क्षमता फिलहाल है, वह करीब 1700 मेगावाट है। यानी इस पूरे कचरे को हम बिजली के रूप में बदल सकते हैं।
बस जरूरत है कि इस काम को तेजी से पूरा किया जाए। फिलहाल हम देश के करीब 15 शहरों में इस
तरह के संयंत्र लगाने की प्रक्रिया में हैं।
उम्मीद है कि जब ये संयंत्र चालू हो जाएंगे तो इनके जरिए से शहरों की तस्वीर जरूर साफ होगी।
(लेखक जबलपुर स्थित कचरे से ऊर्जा बनाने वाली कंपनी के संस्थापक और जी मीडिया समूह के चेयरमैन हैं)
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