'बढ़ा है सैनिकों का मनोबल'
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सरकार के दो वर्ष पूरे हुए हैं। इस दौरान रक्षाक्षेत्र में क्या उपलब्धियां रहीं?
रक्षा क्षेत्र बहुत बड़ा है। इसके बारे में बहुत कुछ ऐसा है जो लिखा जा सकता है और बहुत कुछ ऐसा है जो नहीं लिखा जा सकता। उपलब्धियों की दृष्टि से देखा जाए तो इसके तीन पहलू हैं। पहला है सुरक्षा को लेकर सोच में बदलाव। दूसरा है उचित सैन्य तैयारी और तीसरा निर्णय प्रक्रिया में तेजी। सीमा पर बहुत सारी समस्याएं रहती हैं। ऐसा नहीं कि सारी समस्याएं सुलझ गई हैं। लेकिन हमने कोशिश की है कि समस्याएं जहां हैं उनका वहीं पर समाधान हो। यदि राइफल की, मशीनगन की, गोलियों की कमी है या फिर बुलेट प्रूफ जैकेट की कमी है तो सीमा पर तैनात सैन्य अधिकारी उसे अपने हिसाब से खरीद सकते हैं। पहले उत्तरी कमान को 10 करोड़ रु. तक की सैन्य सामग्री खरीदने का अधिकार था। हमने इसे बढ़ाकर 50 करोड़ तक कर दिया है।
हालांकि, रक्षा क्षेत्र समग्रता में देखने वाला क्षेत्र है किन्तु पद संभालते वक्त प्राथमिकताएं क्या थीं?
हमारा सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य था सीमा की सुरक्षा करना। उसमें पहले काफी कमियां थीं। गोला बारूद की स्थिति ठीक नहीं थी। सीमा पर हमारा तंत्र उतना बेहतर नहीं था। उसे सही करने का पहले का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा था। उदाहरण के तौर पर 2006 से उत्तरपूर्व भारत में अग्रिम हवाई पट्टी बनाने का काम प्रस्तावित था। उस पर काम नहीं चल रहा था। हमने पूरे मामले को सुलझाया और सात में से छह हवाई पट्टियों का काम पूरा कर दिया। दौलतबेग ओल्डी भारत और चीन की सीमा पर समानांतर रास्ता है। अपनी सैन्य क्षमता बढ़ाने के लिहाज से वह रास्ता बनाना आवश्यक था। 12 साल से मामला लटक रहा था मैंने वहां के अधिकारियों को विशेष शक्तियां दी हैं, क्योंकि अभी आधा रास्ता बंद है। निर्माण के लिए 2017 तक पूरा रास्ता बंद होगा। अभी वहां चलकर जाना पड़ता है लेकिन निर्माण के बाद वहां टैंक जा सकते हैं, जीप जा सकती है। इसके अलावा हमने सैन्य उपकरणों की खरीद में गुणवत्ता बढ़ाई और खर्चे कम किए हैं।
सेना में अफसरों की कमी बार-बार सुनाई देती है, इस पर क्या कहेंगे?
थोड़ी कमी है, लेकिन ऐसा नहीं है कि हमारे पास अफसर कम हैं। अफसरों की कमी का मुद्दा ज्यादा अफसर स्वीकृत करने के कारण है। पिछले 10 साल में अफसरों की संख्या 42 हजार से 49 हजार हो गई है। पिछले दो-तीन वर्ष से यह संख्या हर वर्ष 500-600 बढ़ रही है। अधिकारियों को प्रशिक्षण देने की एक प्रकिया होती है। सैन्य अकादमियों की ट्रेनिंग देने की क्षमताओं में बढ़ोतरी की जा रही है। वायुसेना में अफसरों की कोई कमी नहीं है। नौसेना में थोड़ी कमी है, वह भी बहुत जल्दी पूरी हो जाएगी।
भारत की सेना संख्याबल के लिहाज से पर्याप्त है। लेकिन हथियारों के बारे में हमारी स्थिति कैसी है?
अगर पिछले 2 साल को देखें तो आपको कहीं सुनाई नहीं देगा कि सेना के पास ठंड में काम करने वाले उपकरण, बंदूक, गोलियों और मोटार्र आदि की कमी है। हमने बुलेट पू्रफ जैकेट के लिए पहले ही आदेश कर दिया था। 50 हजार बुलेट पू्रफ जैकेट खरीदे जा चुके हैं। 50 हजार के लिए हमने और बोला है। हम आगे 1 लाख 86 हजार बुलेट प्रूफ जैकेट का नियमित अनुबंध भी करने वाले हैं। बड़े व युद्ध के समय काम आने वाले हथियारों की बात करें तो 1984 में बोफर्स तोप खरीदे जाने के बाद पिछले 33 सालों में हमने तोपखाने के लिए कोई खरीद नहीं की है। अब हमने जिस तोप को सबसे पहली स्वीकृति दी है उसका नाम धनुष है। वह आर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड में बन रही है। इस तोप का परीक्षण पोकरण में किया जा चुका है। हम गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं कर रहे हैं। 2017 तक धनुष का पूरा रेजीमेंट आ जाएगा। हल्के लड़ाकू विमानों की योजना पिछले 33 सालों से लटकी थी। इतने वर्ष बाद योजना को पूरा करने के लिए हमने सभी एजेंसियों को 16-17 बार एक जगह बैठाया और उनकी जो भी दिक्कतें थीं उनका समाधान किया। अगले वर्ष से मिग-21 थोड़ा-थोड़ा करके बाहर होने वाले हैं। इसलिए हम हल्के युद्धक विमानों (एलसीए) की योजना आगे बढ़ा रहे हैं। पिछली सरकार ने 10 वर्ष तक कुछ भी नहीं किया। इस वित्तीय वर्ष में हमारी योजना है कि विश्वस्तरीय विमानों का निर्माण भारत में होने लगेे। पनडुब्बी की बात करें तो पहली विश्वस्तरीय पनडुब्बी पानी में उतार दी गई है। एक और पनडुब्बी मिलने वाली है.. यह सिलसिला चलेगा। सीमा पर तैनात सैनिकों का मनोबल निश्चित रूप से बढ़ा है।
यह तो संसाधनों की बात हुई, सोच के स्तर पर क्या बदलाव हुआ?
पहले आतंकी हमला होने पर सैनिकों की सोच रक्षात्मक होती थी लेकिन हमने स्पष्ट कहा कि यदि कोई आतंकी सीमा पार करके आता है तो बिना अपने लोगों को खोए सीधे उसे खत्म करने की कार्रवाई करें। यदि कोई समस्या आती है तो मुझसे सीधी बात की जाए। हमने सेना को अधिकार दिए हैं जिससे सेना का मनोबल बढ़ा है। नतीजा यह हुआ कि अब ऐसी बहुत कम खबरें आती हैं कि हमारे जवान सीमा पर शहीद हुए हुए हों। ज्यादातर खबरें ऐसी होती हैं कि हमारे जवानों ने आतंकियों को मार गिराया हो। सीमा पर घुसपैठ लगभग बंद है। यदि ऐसी कोशिश होती भी है तो आतंकी मारे जाते हैं।
यानी इसे निर्णय में तेजी और प्रबंधन की कुशलता का दौर कहेंगे?
जी। मैं एक साधारण सी बात बोलता हूं, पहले जो हमारे विमान या हेलीकॉप्टर थे उनका रखरखाव बेहतर तरीके से नहीं होता था। नतीजतन यदि 100 हेलीकॉप्टर हैं तो उनमें से 45 या 46 ही प्रयोग लायक होते थे। एक बार खरीदे जाने के बाद उनकी सर्विस सही तरह से नहीं होती थी। हमने उनकी बेहतर सर्विस का प्रावधान किया है। हमने सही तरीके से प्रबंधन किया इसलिए आज हमारे विमान और हेलीकाप्टर बेहतर स्थिति में हैं। कंटोनमेंट बोर्ड में बहुत से झगड़े थे, जैसे कई जगह सेना की जमीन पर अवैध कब्जा था। उसमें से काफी जमीन हमने वापस ले ली है। कई मामलों में ऐसा होता था कि पुल बनना है, लेकिन वह सेना के इलाके से होकर जाना है तो उसके लिए सेना जमीन नहीं देती थी। ऐसे बहुत से मामले हमने सुलझाए हैं। इसके अलावा हमने सैनिकों के कल्याण के भी बहुत से कार्य किए हैं।
आपने जब पद संभाला था तब अधिग्रहण और खरीद एक प्रमुख मुद्दा था। इसका आपने कैसे निदान किया?
ये मुद्दा आज भी बना हुआ है। कई अड़चनें थीं इसमें, खासकर इसलिए भी क्योंकि कोई तय प्रक्रिया नहीं थी, या थी तो बहुत जटिल थी। कई मौकों पर तो अधिग्रहण प्रक्रिया से जुड़े लोग जमीनी सचाई से परिचित नहीं थे। मैंने जब पदभार संभाला था, तब 329 एक्सेप्टेंस ऑफ नेसेसिटी (एओएन) 10 साल से लटके पड़े थे। उनमें से करीब 88 तो अप्रासंगिक हो चुके थे, जिनको बलों द्वारा ही निरस्त किया जा चुका था। उनमें से 120 अधिग्रहण पारित किए गए हैं जबकि 10 नए आदेश जारी किए गए हैं। इस तरह, हमने गत 2 साल में 17,0000 करोड़ से ज्यादा के अनुबंध जारी किए हैं। हम प्रक्रियाओं को सरल बनाने में जुटे हुए हैं।
सेना की रक्षा खरीद नीति में तकनीक का हस्तांतरण कितना होगा?
हमारा इच्छा है कि रक्षा उपकरण भारत में बनें। हमारा पूरा प्रयास है कि जो भी रक्षा उपकरण हम बना सकते हैं उन्हें बाहर से न खरीदें। स्वदेशी को पूरी प्राथमिकता दी जाएगी। यदि किसी कारण हमें कुछ खरीदना भी पड़ा तो उसे यहां बनाने के आदेश भी दिए जाएंगे। सैन्य क्षेत्र में हमारी प्राथमिकता देश में बनाई जाने वाली चीजों की है। यदि कोई बाहर से आकर हमारे देश में इन्हें बनाए तो भी कोई नुकसान नहीं है। इससे रोजगार भी बढ़ेंगे और भी कई लाभ होंगे। देश में सैन्य उपकरण बनाने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि कल अगर युद्ध जैसी स्थिति पैदा हो जाती है तो हमारे पास अपने बनाए उपकरण पर्याप्त मात्रा में होंगे। हम किसी का मुंह नहीं देखेंगे।
हथियारों और गोलाबारूद के अलावा राष्ट्रीय सुरक्षा को आप कैसे देखते हैं?
यह महत्वपूर्ण प्रश्न है। देखिए, खाद्य सुरक्षा के मामले में हम पूरी तरह आत्मनिर्भर है। ऊर्जा सुरक्षा के मामले में कुछ चीजों की जरूरत है। यहां केवल बिजली की बात नहीं हो रही बल्कि पेट्रोलियम पदार्थों की भी बात है। पेट्रोलियम उत्पाद यदि हमारे यहां नहीं मिलते हैं तो कम से हम उसका भंडारण करके रखना चाहिए। इस सबको जोड़ते हुए ही राष्ट्रीय सुरक्षा की बात आती है। राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खाद्य और ऊर्जा की दृष्टि से भी मजबूत और सुरक्षित रहना जरूरी है।
तेजस का आना और अरिहंत की आहट एक नए युग की शुरुआत है?
हां, इसे नए युग की शुरुआत कह सकते हैं। हिन्दुस्तान एयरनॉटिक्स लिमिटेड से हमें तीसरा विमान जुलाई में मिल रहा है। वे दो-दो महीने में एक विमान देंगे। अगले वर्ष आठ विमान हमें मिल जाएंगे। इसके बाद और आठ उससे अगले साल मिलेंगे। तेजस का आदेश हमने पिछले वर्ष दिया था, उसकी आपूर्ति शुरू हो चुकी है। तेजस का 1-ए विमान वर्ष 2018 में आ जाएगा।
भाजपा नीत राजग सरकार से लोगों की अपेक्षाओं और सरकार के कामकाज पर इसके दबाव को कैसे देखते हैं?
हम जोरदार तरीके से काम कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को यदि आगे 10-15 साल पद पर रहने का मौका मिला तो देश निश्चित ही विकसित देशों की श्रेणी में खड़ा होगा। महज पांच वर्ष में देश को विकसित नहीं किया जा सकता, इसके लिए कम से कम 10 से 15 वर्ष का समय चाहिए।
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