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हल्के युद्धक विमान तेजस की उड़ान केवल घटना भर नहीं बल्कि भारतीय रक्षा क्षेत्र की बढ़ती शक्ति की आहट है. तोपखाने, मिसाइल और पनडुब्बी के क्षेत्र में भी देश छू रहा नए आयाम
शशांक द्विवेदी/ आदित्य भारद्वाज
किसी भी देश का स्वाभिमान उसकी सैन्य ताकत पर टिका होता है। शक्ति संपन्न देश कहलाने के लिए जितना महत्व सैन्य क्षमताओं का होता है, उतना ही महत्व है अपनी जरूरत के हथियारों को स्वयं बनाने की क्षमता का। आज जमीन हो, आसमान या फिर समुद्र, हमारी सेना हर मोर्चे पर हर चुनौती से निपटने को तैयार दिखती है। हाल ही में स्वदेशी तकनीक से निर्मित हल्के लड़ाकू विमान 'तेजस' को भारतीय वायुसेना के बेड़े में शामिल किया गया है। इससे भारत की सैन्य ताकत को नया बल मिला है। आज एशिया उपमहाद्वीप में भारत एक बड़ी ताकत के रूप में उभर रहा है और रक्षा क्षेत्र में अपने बूते अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर रहा है। भारतीय वायुसेना को विश्व की सबसे ताकतवर वायुसेनाओं में गिना जाता है। भारत के पास विश्व की दूसरी सबसे बड़ी सेना है जिसमें 13 लाख सैनिक हैं। जबकि भारतीय वायुसेना में 1,20,000 वायुसैनिक हैं। दुनिया का सबसे बड़ा लड़ाकू विमान सी-17 ग्लोबमास्टर भी भारतीय वायुसेना का हिस्सा है जिसे भारत ने अमेरिका से खरीदा है। भारतीय वायुसेना के जंगी बेड़े में सुखोई, मिराज, जगुआर, मिग-29 और मिग-27 जैसे तकरीबन 2,000 लड़ाकू विमान हैं।
तेजस में खास क्या है? भारत में निर्मित तेजस 1,350 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से आसमान का सीना चीर सकता है। यह दुनिया के सबसे बेहतरीन लड़ाकू विमानों को टक्कर देने की हैसियत रखता है। सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी 'हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल)' ने इस लड़ाकू विमान का निर्माण किया है। इसके साथ ही स्वदेशी लड़ाकू विमान का भारत का सपना 30 साल की मेहनत के बाद पूरा हो सका है। तेजस की तुलना फ्रांस के 'मिराज 2000', अमेरिका के एफ-16 और स्वीडन के ग्रिपेन से की जा रही है।
फिलहाल यह विमान दो साल बेंगलुरू में रहेंगे, फिर इन्हें तमिलनाडु भेज दिया जाएगा। गत 17 मई को तेजस में अपनी पहली उड़ान भरने वाले वायुसेनाध्यक्ष एयर चीफ मार्शल अरूप राहा ने इसके सेना में शामिल होने को बहुत महत्वपूर्ण घटना बताया। वायुसेना का कहना है, ''इस वित्तीय वर्ष में कुल छह विमान और अगले वित्तीय वर्ष में करीब आठ विमान जंगी बेड़े में शामिल किए जाने की योजना है। तेजस अगले साल से वायुसेना की रणनीतियों का हिस्सा होगा। इसे अग्रिम एयरबेस पर भी तैनात किया जाएगा।'' सभी स्क्वाड्रनों में कुल 20 तेजस विमान शामिल किए जाएंगे, जिसमें चार आरक्षित रहेंगे। ये हल्के लड़ाकू विमान (लाइट कॉम्बेट एयरक्राफ्ट एलसीए) पुराने पड़ चुके मिग-21 की जगह लेंगे। यहां तक कि नई 45-स्क्वाड्रन को वही 'फ्लाइंग डैगर्स' नाम दिया गया है जो मिग-21 स्क्वाड्रन का था । अगले साल यानी 2017 तक इस स्क्वाड्रन में करीब 16 लड़ाकू विमान शामिल हो जायेंगे। वायुसेना एचएएल से 120 तेजस खरीदेगी। विशेषज्ञों के मुताबिक, एक विमान की कीमत करीब ढाई सौ करोड़ रुपए है।
अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा विशेषज्ञ एश्ले टेलिस का मानना है, ''अगर भारत दक्षिण एशिया में स्थिरता और रणनीतिक संतुलन चाहता है तो इसके लिए हवाई क्षमता बढ़ाना काफी अहम है।'' टेलिस की रिपोर्ट 'ट्रबल्स: दे कम इन बटालियंस-द मेनिफेस्टेशन ट्रावेल्स ऑफ द इंडियन एयरफोर्स' में भारतीय वायुसेना की वर्तमान स्थिति का लेखा-जोखा पेश किया गया है। इसके अनुसार कुछ पैमानों पर भारत की हवाई क्षमता अपर्याप्त है जिसे तत्काल बढ़ाने की जरूरत है। टेलिस के अनुसार, ''2027 तक भारत की 42-42 स्क्वाड्रन यानी 750-800 लड़ाकू जेट रखने की इच्छा दमदार है लेकिन इस लक्ष्य को हासिल करने में काफी मुश्किलें हैं। भारत के रक्षा बजट में कई गंभीर रुकावटें हैं। इसके चलते खरीद में देरी होती है। साथ ही स्वदेशी तकनीक से एयरक्राफ्ट निर्माण की गति भी अभी बहुत धीमी है जिसे बढ़ाना पड़ेगा। तभी हम रक्षा क्षेत्र में बाहरी चुनौतियों का सामना कर पाएंगे।''
आहट अरिहंत की
हाल ही में वायुसेना मेें शामिल हुए तेजस के साथ ही, आने वाले कुछ महीनों में भारत की पहली स्वदेशी परमाणु पनडुब्बी आइएनएस अरिहंत भी नौसेना को सौंप दी जाएगी। अरिहंत के सभी परीक्षण कर लिए गए हैं और वे सभी कामयाब रहे हैं। अप्रैल में बंगाल की खाड़ी में देश में निर्मित अरिहंत पनडुब्बी से परमाणु हथियारों को ले जाने में सक्षम के-4 मिसाइल का परीक्षण किया गया था जो बेहद सफल रहा था। जल्दी ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अरिहंत का लोकार्पण किया जाएगा। अरिहंत को भारत के वैज्ञानिकों ने 20 वर्षों की कड़ी मेहनत के बाद बनाया है। इस पनडुब्बी पर 12 कम दूरी तक मार करने वाली के-15 मिसाइलें और 4 लंबी दूरी तक मार करने वाली बालिस्टिक मिसाइल के-4 तैनात की जा सकती हैं। कम दूरी तक पहंुच वाली वाली मिसाइल 700 किलोमीटर तक मार कर सकती है, जबकि लंबी दूरी की मिसाइल में 3500 किलोमीटर तक मौजूद दुश्मन का खात्मा करने की क्षमता है। 15,000 करोड़ रुपए की लागत से तैयार अरिहंत का वजन 6,000 टन, लंबाई 367 फीट व चौड़ाई 49 फीट है। यह समुद्र के अंदर से ही परमाणु हथियारों से लैस मिसाइल छोड़ने की क्षमता रखती है।
अरिहंत अभी भारतीय नौसेना को नहीं मिली है लेकिन भारतीय नौसेना किसी भी तरह की चुनौती का सामना करने में सक्षम है। भारत के पास करीब 200 युद्धपोत हैं जो समुद्र में दुश्मन की कमर तोड़ सकते हैं। भारतीय नौसेना के पास 15 पनडुब्बियां हैं। इनमें आइएनएस चक्र परमाणु पनडुब्बी भारतीय नौसेना की बड़ी ताकत है। आइएनएस चक्र को भारत ने रूस से 10 साल के लिए लीज पर लिया है। अरिहंत के साथ और भी 6 और पनडुब्बियां भारतीय नौसेना में शामिल होने वाली हैं।
मारक मिसाइल शक्ति
इसके अलावा भारतीय सेना के पास ब्रह्मोस, अग्नि, पृथ्वी, आकाश, नाग जैसी आधुनिक मिसाइलें हैं जो दुश्मन के छक्के छुड़ाने के लिए पर्याप्त हैं।
ब्रह्मोस को भारत और रूस ने मिलकर तैयार किया है जिसे पनडुब्बी, जहाज, लड़ाकू विमान या फिर जमीन से भी दागा जा सकता है। इसे दुनिया की सबसे तेज क्रूज मिसाइल माना जाता है। भारत की अग्नि मिसाइल इंटरकॉन्टिकल बैलेस्टिक मिसाइल है जिसकी मारक क्षमता 8,000 किलोमीटर तक है। इसके अलावा इज्रायल के सहयोग से तैयार की गई बराक-8 मिसाइल भारतीय सेना की अहम ताकत है। यह जमीन से हवा में लंबी दूरी तक मार करने में सक्षम है।
भारतीय थल सेना का लोहा हर कोई मानता है। थल सेना की ताकत की बात करें तो हमारे पास 6,000 टैंक हैं जिनमें 4,000 आर्म्ड कैरियर और बीएमपी मशीनें हैं। 1971 के युद्ध में भारतीय सेना के टैंकों ने जबरदस्त प्रदर्शन किया था। जिस-जिस इलाके में टैंक जाते थे पाकिस्तानी फौज वहां से मोर्चा छोड़कर भाग खड़ी होती थी। इसके अलावा भारतीय सेना के पास 7,000 तोपें हैं। इन तोपों में वे बोफर्स तोप भी शामिल हैं जिन्होंने 1999 के कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी घुसपैठियों और सैनिकों पर इतने गोले बरसाए कि दुश्मन के दांत खट्टे हो गए थे। जल्द ही भारतीय सेना को एक गन धनुष भी मिलने वाली है जिसका निर्माण आयुध कारखानों में शुरू हो गया है।
उल्लेखनीय है कि भारत के अपने रक्षा उद्योग के अभी भी ठीक से गति न पकड़ने की वजह से भारत को 65 फीसद से ज्यादा रक्षा उपकरणों की आपूर्ति विदेशों से करनी
पड़ती हैं।
सरकारी मदद से चलने वाले शोध संस्थान 'इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस' का आकलन है कि यूपीए सरकार के दौरान 2007 से 2011 के बीच भारत ने अपनी जरूरत के 75 फीसदी हथियारों का आयात किया। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसा नहीं है कि देश में रक्षा उद्योग विकसित करने की कोशिश नहीं हुई। लेकिन सरकारी क्षेत्र में होने की वजह से घरेलू रक्षा उद्योग उतना पनप नहीं पाया है। सुधार के लिए सरकार एक के बाद एक कमेटियां जरूर गठित करती रही है लेकिन कमेटियों की सिफारिशें पर ध्यान कभी नहीं दिया गया।'' उल्लेखनीय है कि 2002-2006 के मुकाबले यूपीए के कार्यकाल (2004-2014) में भारत में हथियारों का आयात 38 फीसद बढ़ा।
यूपीए कार्यकाल में रक्षा उपकरणों के घरेलू उत्पादन की योजनाएं तो बहुत बनीं, लेकिन उनका क्रियान्वयन समय पर नहीं हो पाया और लागत बढ़ती गई। वर्तमान केंद्र सरकार का मानना है कि डीआरडीओ (डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट आर्गनाइजेशन) के साढ़े सात हजार से ज्यादा वैज्ञानिकों में वह बौद्धिक प्रतिभा है जो इस संस्थान को रक्षा निर्माण का 'हब' बना सकती है।
तेजस का पुरखा एच.एफ.-24
रक्षा विशेषज्ञ विंग कमांडर (से.नि.) प्रफुल्ल बख्शी बताते हैं, ''तेजस को पहला हल्का लड़ाकू विमान कहा जा रहा है जो शायद सही नहीं है। सबसे पहला हल्का लड़ाकू विमान, जिसका डिजाइन भारत ने तैयार किया था, वह एच.एफ-24 था जिसे हिन्दुस्तान एयरनोटिक्स लिमिटेड ने बनाया था। इसने 1971 के भारत-पकिस्तान युद्ध में भी भाग लिया था। 12 वर्षों तक यह वायुसेना का हिस्सा रहा, बाद में इसे बाहर कर दिया गया। हालांकि इस विमान में जो इंजन लगा था वह जर्मनी का था। अभी हमने तेजस बनाया है, इसमें भी इसमें भी कुछ पुर्जे व तकनीक बाहर के हैं। लेकिन काफी हद तक इसमें स्वदेशी पुर्जों का प्रयोग किया गया है।'' वे आगे कहते हैं, ''हमें तकनीक के मामले में आत्मनिर्भर होना होगा। जब तक देश का निजी उद्योग इस क्षेत्र में आगे नहीं आएगा तब तक ऐसा होना संभव नहीं है। देश के बड़े औद्योगिक घरानों को इस क्षेत्र में आगे बढ़कर निवेश करने की जरूरत है। वर्तमान सरकार मेक इन इंडिया व तकनीक स्थानांतरण जैसे जो प्रयास कर रही है, उसके अच्छे परिणाम हमें भविष्य में देखने को मिलेंगे।''
नौसेना क्षेत्र में आत्मनिर्भरता
रक्षा विशेषज्ञ एडमिरल (से.नि.) शेखर सिन्हा का कहना है, ''नौसेना के क्षेत्र में हम करीब 30-40 वर्ष से भारत में ही अपनी जरूरत के हथियार-उपकरणों का निर्माण कर रहे हैं। युद्धपोत की बात करें तो हमने सबसे पहले ब्रिटेन से लियंडर क्लास डिजाइन खरीदा था। इसके बाद हमने देश का सबसे पहला युद्धपोत नीलगिरि बनाया। इस पोत में 70 प्रतिशत से ज्यादा भारतीय तकनीक थी। कुछ चीजें ऐसी हैं जो हम नहीं बनाते हैं, जैसे गैस टरबाइन इंजन, युद्धपोत पर तैनात होने वाली लंबी दूरी तक मार करने वाली बंदूकें इत्यादि। लेकिन फिर भी नौसेना के क्षेत्र में हम बहुत हद तक आत्मनिर्भर हैं।'' एडमिरल सिन्हा कहते हैं, ''वर्तमान सरकार मेक इन इंडिया के तहत जो अभियान चला रही है उसका दीर्घकाल में हमें बहुत फायदा होगा। लघु, सूक्ष्म और मध्यम उद्योगों में जब रक्षा उपकरणों से संबंधित पुर्जे बनने लगेंगे तो एक समय आएगा कि रक्षा क्षेत्र में हम शत प्रतिशत निर्माण करने लगेंगे।''
बहरहाल स्वदेशी निर्माण के मंत्र को पहचानते हुए सरकार ने देश में विश्वस्तरीय हथियारों और उपकरणों का निर्माण करने का मन बना लिया है और इस उपेक्षित क्षेत्र के महत्व को पहचाना है। तेजस तथा अरिहंत तो उसकी एक झलक मात्र हैं। आने वाले वक्त में सेना के तीनों अंग पूरी तरह अपने देश में बने आधुनिक तकनीक से निर्मित और दुश्मन के दांत खट्टे करने में समर्थ हथियारों से लैस होंगे, इसमें जरा भी शंका नहीं है।
यह राष्ट्रीय गौरव का क्षण है जब देश में विकसित तेजस लड़ाकू विमान को भारतीय वायुसेना में शामिल किया गया है। तेजस के कारण हमारी हवाई ताकत नई ऊंचाइयों को छुएगी।
— मनोहर पर्रिकर, रक्षा मंत्री
अर्जुन मार्क-2
भारतीय सेना का मुख्य युद्धक टैंक है। तीसरी पीढ़ी का यह टैंक हर तरह की परिस्थिति में दुश्मन पर घातक वार कर सकता है। इससे मिसाइलें भी दागी जा सकती हैं।
आइएनएस चक्र
इस पनडुब्बी को भारत ने रूस से दस साल के लिए लीज पर लिया है। इसे अब तक की सबसे तेज पनडुब्बी कहा जाता है।
अग्नि – 5
अग्नि की मारक क्षमता 5000 किलोमीटर है। परमाणु हथियारों को ले जाने में सक्षम।
यह भारत की पहली स्वदेशी-अंतरमहाद्वीपीय (इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल) मिसाइल है। अत्याधुनिक तकनीक से बनी 17 मीटर लंबी और दो मीटर चौड़ी अग्नि मिसाइल परमाणु हथियारों से लैस होकर 1 टन पेलोड ले जाने में सक्षम है।
सुखोई-30
भारतीय वायुसेना के पास मौजूद अभी तक का सबसे शानदार लड़ाकू विमान है। यह 2100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ सकता है। इसमें 30 एमएम की गन के साथ हवा से हवा, हवा से जमीन पर मार करने वाली मिसाइलें लगी हुई हैं। इसमें कई तरह के बम फिट किए जा सकते हैं।
आईएनएस विक्रमादित्य
विक्रमादित्य भारतीय नौसेना का एक बड़ा हथियार है। इस विमानवाहक पोत की लंबाई 283.5 मीटर है। इसे समुद्र पर तैरता छोटा शहर कहा जाता है। यह 45 हजार टन वजन का भारी-भरकम जहाज है। इस पर 36 लड़ाकू विमान तैनात किए जा सकते हैं।
आइएनएस कोलकाता
आइएनएस कोलकाता भारत का सबसे बड़ा हमलावर जहाज है। 16 अगस्त , 2014 में इसके भारतीय नौसेना में शामिल होने के बाद भारत का दबदबा बहुत बढ़ा है। इस पर इस्रायल के सहयोग से बनीं बराक मिसाइलें लगी हैं जो एक बार लक्ष्य तय करने पर उसे तबाह करके ही छोड़ती हैं।
1920 किलोमीटर प्रति घंटे की अधिकतम रफ्तार से उड़ने की ताकत
50 हजार फीट की ऊंचाई तक उड़ान भरने की क्षमता
तेजस की चुनौतियां
दरअसल, बेंगलुरू में शुरुआती संचालन मंजूरी के लिए जिस तेजस लड़ाकू विमान ने उड़ान भरी है, वह तय योजना के मुताबिक सभी प्रणालियों से लैस नहीं था। शुरुआती मंजूरी के बाद तेजस के समय ये कुछ चुनौतियां हैं:-
6560किलोग्राम वजन
ब्रेक गियर का गरम होना
एक बड़ी चुनौती इसके ब्रेकिंग सिस्टम का सुधार है। फिलहाल तेजस के ब्रेक गियर में गरम हो जाने की समस्या है जिससे या तो इसकी तापमान सहने की क्षमता बढ़ा कर या मिग विमानों की तर्ज पर कूलिंग सिस्टम लगा कर दूर किया जाना है।
हमले की दिशा को बदलना
सीधी लड़ाई में कलाबाजियों और हवा में गोता मारने के लिहाज से तेजस के हमले का कोण भी 22 डिग्री से 24 डिग्री किया जाना है, ताकि विमानों की आमने-सामने की लड़ाई में पायलट बेफिक्र हो कर दुश्मन को छकाते हुए निशाना साध सके।
हवा में ईंधन भरने की प्रणाली
आज कोई भी लड़ाकू विमान हवा में ईंधन भरने की क्षमता के बगैर सबसे बेहतरीन होने का दावा नहीं कर सकता, न ही वह लंबे वक्त तक लंबी दूरी तक हवाई ऑपरेशन ही अंजाम दे सकता है। यही वजह है कि तेजस को हवा में ही ईंधन भरने की प्रणाली से लैस किया जाना है। तेजस के लिए ब्रिटिश कंपनी कोबहम की प्रणाली चुनी गई है, जिसे इसके सिस्टम से जोड़ा जाना है। हालांकि भारत अपने जैगुआर और अवॉक्स विमानों में इस प्रणाली को फिट कर चुका है, लिहाजा उसके पास इन्हें लगाने की तकनीक है।
मिसाइल प्रणाली
तेजस के लिए इस्रायल की बनी दो तरह की मिसाइल प्रणालियों की पहचान की गई है। पहली मिसाइल डर्बी व दूसरी पेयथन मिसाइलें हैं। 150 किलोग्राम की हवा से हवा में मार करने वाली इन मिसाइलों की रेंज करीब 70 किलो मीटर है। इन्हें एक पेचीदा प्रणाली के जरिए फायर किया जाता है, जिसे विमान से जोड़ा जाना चुनौतीपूर्ण होता है।
क्यों खास है तेजस
तेजस एकल इंजन व हल्के वजन वाला बहुत सी भूमिकाओं को निभाने में सक्षम सुपरसोनिक लड़ाकू विमान है। इसे पहले लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट के नाम से जाना जाता था जिसे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने तेजस नाम दिया था। तेजस 4.5 जेनरेशन का विमान है, जो कि हर ऊंचाई पर सुपरसोनिक क्षमता से लैस हैं। तेजस इंटीग्रेटेड तकनीक के चलते हवा में बहुत देर तक एक स्थान पर स्थिर रह सकता है। इसमें मल्टी मोड रडार लगा है, जबकि यह सुपरसोनिक 1920 किलोमीटर प्रति घंटे की अधिकतम रफ्तार से उड़ने की क्षमता रखता है। आज के दौर में तेजस दुनिया का सबसे हल्का और छोटा लड़ाकू विमान है जो अपनी रफ्तार और सटीकता के लिए जाना जाता है। इसमें सभी प्रकार की मिसाइल से हमला करने की क्षमता है। यह 50 हजार फीट की ऊंचाई तक उड़ान भर सकता है। तेजस के विंग्स 8.20 मीटर चौड़े , लंबाई 13.20 मीटर, ऊंचाई 4.40 मीटर और वजन 6560 किलोग्राम है। विशेषज्ञों के अनुसार तेजस पाकिस्तान और चीन द्वारा संयुक्त रूप से विकसित और निर्मित जेएफ-17 विमान से बेहतर है क्योंकि इसका अधिकांश निर्माण ऐसे मिश्रण से हुआ है जो इसे हल्का और बहुत दक्ष बनाता है।
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