|
असीम कुमार मित्र
बंगाल में इस समय 7 मुसलमान मंत्री हैं। यह संख्या अब तक के हिसाब से सबसे अधिक है। इसके पहले सबसे ज्यादा 3-4 मुस्लिम मंत्री प. बंगाल की मंत्रिपरिषद में थे। साथ ही यह जानकारी भी लोगों को होनी चाहिए कि तृणमूल कांग्रेस ने इस बार जितने मुस्लिम उम्मीदवार खड़े किये थे, उनमें से 50 प्रतिशत को ही जीत प्राप्त हुई है। इस सिलसिले में सबसे ज्यादा उल्लेखनीय बात यह है कि 2011 की तुलना में इस बार राज्य में मुस्लिम विधायकों की संख्या कम हो गई है। 2011 में प. बंगाल में मुस्लिम विधायकों की संख्या 59 थी जबकि 2016 के विधानसभा में यह संख्या 3 कम होकर 56 हो गई है। परंतु इस बार के चुनाव के संदर्भ में यह 3 की संख्या भी बहुत महत्वपूर्ण बन गई है। इसके पीछे जो कारण हैं, आमतौर पर, वे प्रचार माध्यमों में सही रूप में नहीं आ पाए हैं। यद्यपि यह बात भलीभांति सबको पता है कि इस बार के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विकास लहर को आम मतदाता भी स्पष्ट रूप से महसूस कर रहे थे। यही कारण है कि भाजपा को काफी सफलता प्राप्त हुई है। 2013 में हुए विधानसभा उपचुनाव में भाजपा को एक सीट हासिल हुई थी। 2016 में ये सीटें बढ़कर तीन हो गई हैं। चुनाव नतीजों को देखते हुए यह आकलन करना कठिन नहीं है कि भाजपा को कम से कम आठ और सीटें मिल सकती थीं। स्पष्ट था कि माकपा-कांग्रेस के एकजुट होने के कारण भाजपा को इन सीटों का नुकसान हुआ।
इस चुनाव में भाजपा को प्राप्त मतों में जो बढ़ोतरी हुई है वह देखने लायक है। गत 2011 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को जहां लगभग चार प्रतिशत वोट मिले थे, वहां इस बार 10.2 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए हैं जो कि अपने आप में इस बात का प्रमाण है कि इस चुनाव में भी भाजपा ने अपना रंग दिखाया जो कि आम लोगों के लिए अचानक उपस्थित हुआ संयोग है। यह हां, बात सही है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस व वामपंथियों के विरुद्ध लहर और भी जोरदार थी और यही कारण था कि इस राज्य में भाजपा को 17.2 प्रतिशत वोट मिले, 3 लोकसभा सीटों पर उसकी जीत हुई थी तथा 23 विधानसभा क्षेत्र में उसे पहला स्थान मिला था। इसमें कोई दो राय नहीं कि संागठनिक दुर्बलता के चलते भाजपा अपना वह स्थान बरकरार नहीं रख पाई। परंतु यह भी सही है कि विधानसभा चुनाव का संदर्भ लोकसभा चुनाव से बिलकुल अलग होता है। फिर भी भाजपा के मतों में बढ़ोतरी इस बात को पुष्ट करती है कि प. बंगाल राज्य भाजपा संगठन पहले से मजबूत हुआ है तथा भाजपा भविष्य में एक मजबूत विकल्प के रूप में मतदाताओं के जेहन में जरूर रहेगी।
अगर ऐसा नहीं होता तो राज्य विधानसभा में मुसलमान विधायकों की संख्या 59 से कम 56 पर न आती। यह जानकारी होना आवश्यक है कि राज्य के मतदाताओं की कुल संख्या के प्रतिशत में मुसलमानों की संख्या 28 प्रतिशत है। इससे ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि इन मतों की बदौलत राज्य की कुल 294 विधानसभा सीटों में से 125 सीटों का भाग्य मुस्लिम वोटों से ही निर्धारित होता था। उदाहरण के तौर पर देखें तो सन् 2006 के विधानसभा चुनाव में मुसलमानों द्वारा आमतौर पर माकपा नेतृत्व वाले वाममोर्चे को समर्थन देने के कारण उन 125 सीटों में से 102 सीट पर वाममोर्चे को जीत हासिल हुई। और फिर 2011 तथा 2016 के विधानसभा चुनाव में वाममोर्चे को उन सीटों में से एक भी सीट प्राप्त नहीं हुई। ये सब सीटें तृणमूल कांग्रेस को ही प्राप्त हुईं।
तृणमूल कांग्रेस को यह भी पता था कि प. बंगाल के लगभग दस जिलों में मुसलमान बहुसंख्यक हो गए हैं। इन जिलों में ऐसे भी स्थान हैं जहां मुसलमानों की संख्या लगभग 90 प्रतिशत तक हो रही है। इस परिस्थिति को मद्देनजर रखकर ही सुश्री ममता बनर्जी मुस्लिम महिलाओं के समान पोशाक पहनकर चुनाव प्रचार करने के लिए जाती थीं- आमतौर पर 'अब्बा' 'अम्मी' कहना उनकी शैली बन गया। 'सलाम आलेकुम' आदि तो वे पहले से ही बोलती रहीं। इस बार चुनाव जीतने के बाद उन्होंने शपथ भी ली तो केवल ईश्वर के नाम पर नहीं बल्कि ईश्वर-अल्लाह दोनों के नाम पर ली। सभी नये मुसलमान विधायकों ने केवल अल्लाह के नाम पर ही शपथ ली।
उल्लेखनीय बात यह है कि ममता को यहां सबसे ज्यादा समर्थन मिल रहा है, तो जमीयतउल मुजाहिदीन बंगलादेश (जेएमबी) से भी और यही कारण है कि बंगलादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना शपथ ग्रहण समारोह में आने का निमंत्रण मिलने पर भी नहीं आईं क्योंकि वे अपने देश में जेएमबी के विरुद्ध लड़ाई के चलते अभी तक 50 लोगों को फांसी पर लटका चुकी हैं। ल्ल
प. बंगाल में मुस्लिमबहुल क्षेत्र
स्थान जिला संख्या (प्रतिशत में)
भगवानगोला मुर्शिदाबाद 86. 35
रतुजा मालदा 77. 00
जलंगी मुर्शिदाबाद 8. 000
हरिश्चन्द्रपुर मालदा 72. 61
चांचल मालदा 70.00
नहाटी बीरभूम 68.03
करीमपुर नादिया 59.00
कैनिंग (पूर्व) द. 24 परगना 63.50
कान्दि मुर्शिदाबाद 58.86
चापड़ा नादिया 58.00
टिप्पणियाँ