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-सूर्य प्रकाश सेमवाल-
केदारनाथ धाम में 2013 के जून महीने में आई प्राकृतिक आपदा न केवल देश में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी प्रकृति के रोष का अविस्मरणीय अध्याय है। भगवान शिव के परम धाम में आई इस आकस्मिक आपदा के शिकार असंख्य श्रद्धालु, स्थानीय नागरिक, पुरोहित, व्यवसायी, तथा यात्रा से जुड़े खच्चरों सहित असंख्य पशु भी हुए। विश्व के प्रत्येक संवेदनशील जन को यह घटना दु:खी एवं चिंतित कर गई विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाओं और धार्मिक संगठनों ने विभीषिका के समय दिल खोलकर केदार के दर्द को कम करने के लिए अपना खजाना खोला। केन्द्र सरकार की ओर से भी राज्य को पुनर्निमाण एवं आपदा प्रभावितों के पुनर्वास हेतु पर्याप्त धनराशि मिली, लेकिन आज केदारनाथ में तीर्थयात्रियों की भीड़ और उत्साह तो फिर दिखने लगा है किन्तु राहत और पुनर्वास कार्यों में राज्य सरकार की गति पर स्थानीय लोगों के सवाल भी कम नहीं हैं। इस आपदा के कारणों की तरह इससे प्रभावित हुए लोगों के पुनर्वास व क्षतिपूर्ति पर प्रश्न जस के तस मुंह बाये खड़े हैं। आपदा के कारण एक वर्ष तक केदार यात्रा श्रद्धालुओं के लिए बंद थी और लगभग सवा दो वर्ष बाद यहां श्रद्धालु पहले की तरह उत्साह के साथ दिखने लगे हैं। हजारों की संख्या में लापता लोग उन असंख्य भवनों के मलबे के नीचे से नहीं निकाले गए, प्रभावित परिवारों के लिए सरकारी स्तर पर जो बड़ी-बड़ी घोषणाएं की गई थीं उन पर अमल नहीं हुआ।
अंतरराष्ट्रीय सहायता के साथ केंद्र सरकार के द्वारा जारी की राशि के बावजूद आपदा में मारे गए लोगों की विधवाएं और अनाथ बच्चे प्रकृति की उस क्रूर मार पर आज भी आंसू बहा रहे हैं और भ्रष्टाचार एवं प्रचार में लिप्त राज्य सरकार की बौनी सोच को लानत दे रहे हैं। विडंबना यह है कि जहां 2013 में आपदा के समय राज्य सरकार की तरह कई औद्योगिक घरानों और स्वयंसेवी संस्थाओं ने बढ़-चढ़कर प्रभावित गांवों को गोद लेने और महिलाओं और बच्चों को रोजगार एवं संरक्षण देने की बात कही थी, वे आज नदारद दिख रहे हैं। उत्तरांचल उत्थान परिषद के उपाध्यक्ष श्री प्रेम बड़ाकोटी कहते हैं-साध्वी ऋतंभरा, स्वामी रामदेव और ऐसे कुछ संगठनों का कार्य जरूर दिख रहा है जो इन निराश्रितजनों को जिजीविषा और स्वावलंबन का प्रशिक्षण दे रहे हैं। आपदा के तुरंत बाद यहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत पहुंचे थे। सेवा भारती ने राहत कार्यों में भरपूर सहयोग किया और उस समय रा.स्व.संघ के वरिष्ठ प्रचारक स्व. नित्यानन्द जी की प्रेरणा से उत्तरांचल दैवीय आपदा सहायता समिति ने जो संकल्प लिया था उसे धरातल पर साकार किया जा रहा है।'
दिल्ली उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता मूल रूप से उत्तराखण्ड के रुद्रप्रयाग जिले के दरम्वाड़ी गांव के श्री संजय कुमार शर्मा कहते हैं- 'केदारनाथ का मामला केवल धार्मिक अथवा आध्यात्मिक नहीं है यह पर्यावरण, पारिस्थितिकी और हिमालय एवं गंगा यमुना से जुड़ा, देश की सांस्कृतिक एवं आर्थिक चिंता का विषय है। इससे जुड़े राहत के पुनर्वास व निर्माण के कार्य तेज गति से पूरे होने चाहिए।'
उत्तरांचल दैवीय आपदा सहायता समिति महामंत्री श्री मदन सिंह चौहान कहते हैं कि हमने आपदा के पहले दिन से लेकर आज तक केदार के आपदा पीडि़तों के लिए समिति के माध्यम से यथाशक्ति काम किया है। गुप्तकाशी में 2 करोड़ की लागत से तैयार होने वाला अस्पताल इसी कड़ी में एक है।' कुल मिलाकर आपदा के ये 3 वर्ष इसलिए भी डरावने लगते हैं क्योंकि आए दिन थोड़ी तेज बारिश होने पर उत्तराखंड में बादल फटने और भूस्खलन आदि की घटनाएं लगातार बढ़ ही रही हैं। राज्य सरकार सहित राहत और पुनर्वास में लगे सभी लोगों को गंभीरतापूर्वक इस मानवीय किन्तु पुण्य के कार्य में हृदय से सहभागी होना चाहिए। राज्य सरकार को राजनीति से ऊपर उठकर अपने वादों को पूरा कर दु:खी एवं पीडि़त जनों की वेदना को कम करने का प्रयास करना चाहिए। ल्ल
आपदा के पैकेज का उपयोग नहीं हुआ
केदारनाथ में आई आपदा इस सदी की सबसे त्रासद घटना है और मानवीयभाव के नाते पूरे देश और विश्व ने इसके प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करते हुए पूरी सहानुभूति का भी परिचय दिया। लेकिन आज आपदा के तीन वर्ष बीत जाने के बाद भी लगता है कि हम जहां के तहां खड़े हैं। केदारनाथ की आपदा में जो लोग फंसे थे उस भयानक मलबे और भवनों के अवशेषों के नीचे जो लोग दबे थे उनके कंकाल भी पूरी तरह से नहीं निकाले गए हैं। केदारनाथ घाटी में असमय कालकवलित हुए लोगों के परिजन भी स्वयं को देव और मानव दोनों द्वारा पीडि़त एवं छला हुआ महसूस कर रहे हैं। आपदा प्रभावित परिवारों की विधवा महिलाओं के लिए उत्तराखंड सरकार ने रोजगार देने की बात की थी। वे रोजगार तो दूर दो वक्त के भोजन के लिए भी तरस रही हैं। उत्तराखंड सरकार को भारत सरकार ने छह-सात हजार करोड़ का जो आपदा पैकेज दिया था उसका पूरी तरह से सदुपयोग नहीं हुआ। सड़कें आज भी टूटी-फूटी पड़ी हुई हैं। नदियां बिना पुलों की हैं। लोग अपने प्राण हथेली में रखकर जीवन जीने को मजबूर हैं। प्रभावित परिवारों के लिए राज्य सरकार के स्तर पर कुछ भी ऐसा नहीं हुआ जिसे राहत की श्रेणी में माना जाए। केदारनाथ आपदा के समय से लेकर आज तक राज्य सरकार पूरी तरह से असफल ही रही है।
—डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक, पूर्व मुख्यमंत्री एवं सांसद हरिद्वार
खोखली घोषणाएं व कोरा प्रचार
तीन वर्ष बीत गए केदार की आपदा आए। हजारों यात्रियों स्थानीय लोगों, जाबांज बहादुर सैनिकों, मकानों, दुकानों, होटलों, जंगलों, जानवरों और अरबों की संपदा को नष्ट करने वाली इस आपदा के जख्म आज भी हरे हैं। राज्य की सरकार यहां भी भ्रष्टाचार से बाज नहीं आई। खोखले वादे, घोषणाएं और अब सत्ता से विदाई के समय करोड़ों का प्रचार करके सारी दुनिया को बेवकूफ बनाया जा रहा है। कड़वी सच्चाई यह है कि केदार आपदा के प्रभावितों के साथ अभी तक भी न्याय नहीं हुआ है। — शैला रानी रावत
पूर्व विधायक केदारनाथ विधानसभा क्षेत्र
मुख्यमंत्री की पहली प्राथमिकता है केदार आपदा
उत्तराखंड में आई आपदा पूरे देश के लिए एक बड़ा संकट और चुनौती थी। यह प्रचारित करना कि आपदा के बाद राहत व पुनर्वास के काम नहीं हुए सरासर गलत है। लगभग दो-सवा दो वर्ष से जबसे मुख्यमंत्री हरीश रावत ने राज्य के मुख्यमंत्री का पद संभाला है आपदा राहत व पुनर्वास को उन्होंने सबसे अधिक वरीयता दी है। सड़कों के साथ-साथ केदारनाथ घाटी में प्रभावित परिवारों के कल्याण हेतु सरकार यथाशक्ति काम कर रही है।
आपदा मेंे नष्ट हो गई सड़कें आज इतनी सुंदर हैं कि देश के प्रत्येक राज्य से श्रद्धालु और पयर्टक पहले से भी ज्यादा संख्या में दर्शन करने आ रहे हैं। इस वर्ष रिकॉर्ड आठ से दस लाख लोग अब तक दर्शन कर चुके हैं। राज्य सरकार के निमंत्रण पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी 22 जून को केदारनाथ के दर्शन के लिए आए थे लेकिन मौसम खराब होने के कारण उन्हें लौटना पड़ा।
राष्ट्रपति पुन: सितंबर में दर्शनों के लिए आएंगे। केदारनाथ में जितने प्रभावी और प्रामाणिक कार्य कम समय में और गुणवत्ता के साथ हरीश रावत सरकार ने किए हैं यह किसी और सरकार और नेतृत्व के सामर्थ्य में नहीं था। केदारनाथ अपनी पुरानी चमक और आकर्षण के साथ देश-विदेश के लोगों के लिए कल्याण हेतु केंद्र बन रहा है।
—धीरेंद्र प्रताप, राज्य आंदोलनकारी राज्य मंत्री एवं समन्वयक प्रदेश कांग्रेस
केदारनाथ समस्त
विश्व की धरोहर
11 मार्च 2014 को जब हम छह लोग केदारनाथ पहुंचे तो सोनप्रयाग से केदारनाथ तक 22 किलोमीटर पैदल चले। पूरे रास्ते में न कोई व्यक्ति न कोई पशु और तो और पंछियों की आवाज भी गुम थी। तब मन में यह संकल्प लिया कि परमात्मा ने प्रकृति के माध्यम से जो विनाश किया है वह इसे पुन: सही गति में ले आएगा। तबाही में जो आत्माएं चली गईं वे भी बाबा के केदार को लंबे समय तक उजड़ता हुआ और सूना पड़ा नहीं देखना चाहेंगी।
हमने स्थानीय खच्चर वालों और अपने साथ काम करने वाले स्थानीय एवं नेपाली मजदूरों का उत्साह बढ़ाया उनको केदारघाटी में दोबारा से चहल पहल लाने के लिए शरीरतोड़ श्रम शुरु करने की बात कही और एक समय ऐसा आया कि हमारी टीम के साथ ये सब उत्साही लोग गौरीकुंड से केदारनाथ तक जेसीबी मशीनों को कंधों पर उठाकर ले गए। तीन महीने के अंदर ही 1 हैलीपेड तैयार कर दिया गया। हमने यहां लगभग छह बड़े पुलों का निर्माण कराया। सरस्वती और मंदाकिनी की बदलती धारा को पूर्व स्थिति में लाते हुए जोराबाड़ी की तरफ सेभविष्य में मलबा न आए इसलिए लोहे की मजबूत दीवारें खड़ी कीं।
केदारबाबा के प्रति देश और विश्व के लोगों की आस्था इतनी अधिक है कि तबाही के बाद भी 2015 में 1 लाख 82 हजार श्रद्धालु बाबा के दर्शन करने पहुंचे। वर्ष 2016 में इन 43 दिनों के अंदर 2 लाख 54 हजार से भी अधिक श्रद्धालु केदार पहुंचे हैं। केदारनाथ केवल उत्तराखंड या भारत देश का पावन धाम नहीं बल्कि यह विश्व धरोहर है।
—कर्नल अजय कोठियाल
प्राचार्य, नेहरू पर्वतारोहण संस्थान
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