जम्मू-कश्मीर में पिछले कुछ दिनों से सुदूर म्यांमार और बांगलादेश से हजारों की संख्या में रोहिंग्या मुसलमान बसाए जा रहे हैं, जो चिंता का विषय है। पंडितों की वापसी पर आंखें तरेरने वाले अलगाववादियों ने इन विदेशियों के लिए पलक-पांवड़े बिछाए हैं
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जम्मू-कश्मीर में पिछले कुछ दिनों से सुदूर म्यांमार और बांगलादेश से हजारों की संख्या में रोहिंग्या मुसलमान बसाए जा रहे हैं, जो चिंता का विषय है। पंडितों की वापसी पर आंखें तरेरने वाले अलगाववादियों ने इन विदेशियों के लिए पलक-पांवड़े बिछाए हैं

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Jun 27, 2016, 12:00 am IST
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अब घाटी में भी रोहिंग्या!

दिंनाक: 27 Jun 2016 14:54:51

जन सुरक्षा  कानून के तहत अब तक 10 रोहिंग्या मुसलमानों  को  निरुद्ध भी किया गया

 

पहले से ही कई जटिलताओं से जूझ रहे जम्मू-कश्मीर में एक नई समस्या उभर रही है। हजारों की संख्या में विदेशियों की बसाहट ने राज्य की जनसांख्यिकीय और सुरक्षा चिंताओं को बढ़ा दिया है। राज्य में आकर बस रहे इन विदेशियों में पाकिस्तानी और बांगलादेशी नागरिकों के अलावा बड़ी संख्या रोहिंग्या मुसलमानों की है।
तथ्य यह भी है कि बहुत से उग्रवादी जो कई वर्ष पूर्व सीमापार आतंकी प्रशिक्षण प्राप्त करने और शस्त्र लाने में लगे थे, उनमें से कई नेपाल तथा अन्य मार्गों से कश्मीर वापस पहुंच रहे हैं। वे अपने साथ पाकिस्तानी पत्नियां और बच्चे भी साथ ला रहे हैं। इनकी संख्या सैकड़ों में है। उनकी नागरिकता क्या हो, यह प्रश्न भी राज्य के सामाजिक और राजनैतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन रहा है।
एक अनुमान के अनुसार लगभग 20,000 म्यांमारी मुसलमान राज्य के कई संवेदनशील इलाकों में आ बसे हैं। सरकारी तौर पर इन रोहिंग्या मुसलमानों की संख्या 13,400 बताई गई है। इससे पूर्व 2013 में प्रो. चमनलाल गुप्ता के एक प्रश्न के उत्तर में सरकार ने यह संख्या 1,621 बताई थी। अर्थात् सरकारी रूप में भी यह माना जा रहा है कि विदेशी नागरिकों की घुसपैठ बढ़ रही है किन्तु बड़ा प्रश्न यह है कि हजारों मील दूर म्यांमार और बांगलादेश के सीमांत क्षेत्रों से इन विदेशियों को जम्मू-कश्मीर कौन ला रहा है और उन्हें इस संवेदनशील राज्य में लाने का अभिप्राय क्या है।
घाटी भले इस मुद्दे पर खामोश दिखे लेकिन जम्मू में आम लोगों की राय मुखर है। हालांकि लोग अपना नाम प्रकाशित नहीं कराना चाहते किन्तु यहां यह आमराय है कि इन विदेशी तत्वों की न केवल घुसपैठ को बढ़ावा दिया जा रहा है बल्कि राज्य में आकर बसने वाले विदेशी लगातार कट्टरपंथियों के संपर्क और प्रभाव में भी हैं। सूत्रों के अनुसार जमात-ए-इस्लामी की श्रीनगर शाखा के कुछ प्रमुख कार्यकर्ता इन विभिन्न ठिकानों पर कई प्रकार की सहायता उपलब्ध करवाने के अतिरिक्त रोहिंग्या मुसलमानों के बच्चों की मजहबी शिक्षा के लिए मदरसे भी खोल रहे हैं। जिन ठिकानों पर ये विदेशी आकर जम रहे हैं, उनके नाम भी बदले जा रहे हैं। एक ऐसी बस्ती का नाम हम्जा कॉलोनी रखा गया है।
उल्लेखनीय है कि जम्मू-कश्मीर में हम्जा शब्द को लश्कर-ए-तैयबा और वहाबी प्रसार के साथ जोड़कर देखा जाता रहा है। घाटी में मारे गए कई लश्कर कमांडरों के नाम में 'हम्जा' जुड़ा था। पहले ये विदेशी राज्य के बाहरी क्षेत्रों में रहने लगे थे। अब समाचार है कि बहुत से रोहिंग्या कारगिल, लेह तथा बारामुला के अत्यंत संवेदनशील क्षेत्रों तक आ बसे हैं। ऐसे भी समाचार हैं कि पाक अधिकृत कश्मीर के छम्ब सैक्टर और अन्य भागों में भी बड़ी संख्या में ऐसे विदेशी बसे हैं।
जम्मू-कश्मीर में इन विदेशियों की उपस्थिति संबंधी प्रश्न जब गत दिनों उभरा तो नेशनल कॉन्फ्रेंस के एक सदस्य ने यह कह डाला कि सभी गैर-राज्यीय तत्वों को एक ही रूप में देखा जाना चाहिए जिस पर भाजपा ने कड़ी आपत्ति जताई। किन्तु यह एक बड़ा प्रश्न बन रहा है कि इन विदेशी नागरिकों का क्या  किया जाए    
    ल्ल प्रतिनिधि

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