|
नई दिल्ली। 17 जून को उत्तराखंड के केदारनाथ में 2013 में आई प्राकृतिक आपदा के तीसरे साल पर मावलंकर सभागार में हुतात्माओं की स्मृति में श्रद्धांजलि व विचार गोष्ठी आयोजित की गई। अखिल भारतीय उत्तराखंड आपदा पीडि़त मंच द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत ने श्रद्घांजलि अर्पित करते हुए कहा कि जिन कारणों से इतने सारे श्रद्घालु उस आपदा में मारे गए, उन कारणों पर विचार कर उनसे सीख लेने की आवश्यकता है। हमारा समाज सदियों से हिमालय की गोद में फलता-फूलता रहा है। वहां पहले भी प्राकृतिक आपदाएं आती रही हैं, परन्तु मन को इतने गहरे उद्वेलित करने वाला कोई प्रसंग किसी प्राकृतिक आपदा में इससे पूर्व नहीं मिलता।
श्री भागवत ने कहा कि ऐसी भौगोलिक स्थिति होने पर भी इतने वषोंर् तक वहां लगातार समाज का जीवन चलता रहा, हमने ऐसी कौन-सी विधा हमने अपनाई जिसके कारण ऐसा हुआ। हिमालय का भूगोल तो पहले से वही है, नया पर्वत है, बढ़ रहा है, इसलिए वहां मिट्टी खिसकती है। वहां पर मनुष्यों की बस्ती रहीं, फलीं-फूलीं और वह हमारी यात्रा का स्थान बन गया। हमारी तपस्या का स्थान बन गया, हमारी देवभूमि बन गया।
श्री भागवत ने कहा कि विकास की हमारी परम्परागत दृष्टि संपूर्ण सृष्टि के चैतन्य को मानती है। नदियों की स्वच्छता हमारे यहां कभी सरकारी नीति का विषय नहीं रही, बल्कि स्थानीय स्तर पर यहां समाज तथा व्यक्तियों ने स्वयं अपने लिए नदियों को स्वच्छ रखने के नियम तय कर रखे थे। प्रकृति के प्रति हमने अपनी मर्यादा को लांघा तो मनुष्य के अस्तित्व को खतरा उत्पन्न हो गया, यह वैश्विक सच है। विज्ञान की भी मर्यादा है, अध्यात्म की भी मर्यादा है।
उत्तराखण्ड की त्रासदी का स्मरण करने के बाद उन सबका निदान मर्यादाओं को जानकर इन नीतियों के निर्माण में हो। हम मर्यादा, विज्ञान और पुरातन ज्ञान के साथ समन्वय साध कर चलें। उस त्रासदी में हमसे विदा हुए हमारे समाज के आत्मजनों को यह सच्ची
श्रद्घांजलि होगी।
समारोह की अध्यक्षता कर रहे पूर्व केन्द्रीय मंत्री, भाजपा मार्गदर्शक मंडल के सदस्य एवं सांसद डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि जिन कारणों से उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदा आई उनको ठीक करने में कितना समय और लगेगा, यह बताना कठिन है। भारत अगर हमारी माता है तो हिमालय हमारा पिता है, जो उत्तरी ध्रुव से आने वाली बर्फीली हवाओं से हमें बचाता है।
हिमालय को बचाने के लिए आधुनिक परिप्रेक्ष्य में क्या किया जाए, इस पर विचार कर ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। हिमालय का प्रबंधन मैदानी क्षेत्रों की तरह नहीं किया जा सकता। हिमालय भारी मशीनों, बड़ी-बड़ी सड़कों का बोझ नहीं सह सकता। तीर्थयात्रा के लिए अस्थायी निर्माण तथा सीमा की सुरक्षा के लिए आवश्यक सड़कें ही बनानी चाहिए।
केंद्रीय वाणिज्य मंत्री डॉ. निर्मला सीतारमन ने कहा कि उत्तराखंड गर्मियों की छुट्टी के लिए 'हिल स्टेशन' मात्र नहीं बल्कि एक धार्मिक स्थान है, इसे ध्यान में रखकर वहां विकास के लिए नई नीति व नियम बनाए जाने चाहिए।
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री व हरिद्वार से सांसद डॉ़ रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि केदारनाथ की त्रासदी में लापता हुए सभी तीर्थयात्रियों का पता नहीं चला है। ऐसी त्रासदी से बचने के लिए हिमालय के लिए अलग से मंत्रालय बनना चाहिए।
केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि 150 करोड़ रुपये की सहायता से हिमालय पर अध्ययन होगा। हिमालय के पारिस्थितिकी तंत्र को समझकर रोजगार और पर्यटन को देखते हुए नीति बनेगी़ पूर्व थल सेनाध्यक्ष तथा केंद्रीय विदेश राज्यमंत्री जनरल वी़के़ सिंह ने कहा कि यह श्रद्घांजलि दिवस हम सबके लिए स्वयंसेवकों से सीख लेने का दिन है कि ऐसे समय में क्या करना चाहिए, कैसे सहयोग किया जाए।
दंडीस्वामी श्री जीतेन्द्र स्वामी ने कहा कि तीथांर्टन को पर्यटन के रूप में देखने का नतीजा दैवीय आपदा के रूप में केदारनाथ, पशुपतिनाथ और महाकालेश्वर में देखने को मिला है।
परिवार सहित इस आपदा के भुक्तभोगी बक्सर के सांसद श्री अश्विनी कुमार चौबे ने कहा कि ऐसी प्राकृतिक आपदा में क्या होना चाहिए, इस पर विचार होना चाहिए। सरकार की ओर से वहां कोई व्यवस्था नहीं थी। रा.स्व. संघ के स्वयंसेवकों ने विद्याभारती के विद्यालयों में शरण देकर हमारे जैसे सैकड़ों तीर्थयात्रियों को बचाया। आज भी राज्य सरकार ने राहत और पुनर्वास का कोई प्रभावी काम नहीं दिखाया है।
कार्यक्रम में रा.स्व.संघ के सहसरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल, सांसद विजय गोयल, सत्यपाल सिंह, उदितराज और राजेन्द्र अग्रवाल आदि उपस्थित थे। इस अवसर पर श्री अश्विनी कुमार चौबे द्वारा लिखित पुस्तक 'त्रिनेत्र' का विमोचन भी किया गया। -प्रतिनिधि
टिप्पणियाँ