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छोटे-छोटे प्रयास समाज को बदलने का काम करते हैं। विवेक इसका अप्रतिम उदाहरण हैं। वे उन बच्चों को शिक्षा देने का काम कर रहे हैं, जिन्होंने स्कूल का दरवाजा तक नहीं देखा
अश्वनी मिश्र
म्र और कक्षा के हिसाब से उसकी गिनती अभी ज्यादा बड़े बच्चों में नहीं होती। वह अपने परिवार में सबसे छोटा है लेकिन उसका हौसला बड़ों से बड़ा है। यह बात है दसवीं के बाद कम्प्यूटर साइंस में डिप्लोमा कर चुके 18 वर्षीय विवेक की।
विवेक कर्नाटक के शिमोगा जिले के रहने वाले हैं। कर्नाटक में वह एक 'ब्लड बैंक' चलाते हैं जिसमें 500 से ज्यादा रक्तदानी जुड़े हैं। शिमोगा सहित पास के जिलों के अस्पतालों को या किसी को भी रक्त की जरूरत होती है तो वह तत्काल विवेक से संपर्क करता है और रक्त देने वाले तत्काल उपलब्ध हो जाते हंै। इसके लिए उन्होंने अपने साथी सुमन की मदद से सभी अस्पतालों, कॉलेजों और सार्वजनिक स्थानों पर बाकायदा अपना पूरा पता और मोबाइल नंबर लिख रखा है, ताकि लोग इसके माध्यम से आसानी से जुड़ सकें। इस कार्य की प्रेरणा के बारे में विवेक बताते हैं,''एक दिन मेरी मां की तबियत खराब हो गई। अस्पताल ले जाने पर डॉक्टरों ने कहा, इनका ऑपरेशन होगा और खून की आवश्यकता है। चूंकि मां का खून बी नेगेटिव था। अस्पताल के ब्लड बैंक में भी इस तरह का खून नहीं था। मैं तीन दिन तक भटकता रहा पर खून नहीं मिला। खैर, किसी तरह से बड़ी मशक्कत के बाद खून मिला और तब जाकर मां का ऑपरेशन हुआ। इस घटना ने मुझे अंदर तक झकझोरा और मैंने निश्चय किया कि कुछ लोगों को जोड़कर खुद ब्लड बैंक बनाऊंगा। ताकि जरूरतमंदों को दर-दर भटकना नहीं पड़ेगा।''
आज विवेक के बनाए ब्लड बैंक में 500 से ज्यादा लोग जुड़े हुए हैं जो किसी भी वक्त रक्त देने के लिए तैयार रहते हैं। विवेक बड़े उत्साह से बताते हैं,''इस छोटे से प्रयास से करीब 500 से 600 लोगों के सफल ऑपरेशन हुए हैं।'' विवेक की कहानी यहीं नहीं रुकती। विवेक के मन में कुछ बड़ा करने की चाह थी। अचानक उसने एक दिन दिल्ली की ओर रुख किया। न रहने का ठिकाना, न कोई जानने वाला, कौन मदद करेगा कुछ पता नहीं। पर विश्वास था कि अच्छा करने निकला हूं तो भगवान मदद जरूर करेगा। ऐसा ही हुआ। विवेक बताते हैं,''मैं दिसंबर, 2015 में दिल्ली पहुंचा। 3 दिन तक नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर ही रहा। इस दौरान मैंने देखा कि स्टेशन के पास की झुग्गी-झोंपड़ी में रहने वाले गरीब बच्चे भीख मांग रहे हैं। पूछने पर पता चला कि इनमें से कोई भी स्कूल नहीं जाता। यह देखकर विचार आया कि क्यंू न ऐसे बच्चे जो शिक्षा से वंचित हैं, उनको शिक्षा दी जाये। यहीं पर मेरी मुलाकात एक सज्जन से हुई जिन्होंने मेरा कार्य जानकर मुझे गुलाबी बाग गुरुद्वारा में ठहरने का इंतजाम कराया। मैं यहां पर दो सप्ताह तक रुका। इस दौरान अधिकतर समय घूमने और जानकारी एकत्रित करने मंे निकलता था। एक दिन मुझे कर्नाटक के ही कुछ युवा साथी मिले। परिचय हुआ। मैंने उन्हें अपने बारे में सब कुछ बताया। साथ ही उन्हें उन गरीब बच्चों के बारे में भी बताया जो शिक्षा के अभाव में दर-दर भटकते हैं। वे सभी मेरी बात से सहमत हुए और उन सभी ने भी निश्चय किया कि मिलकर इस काम को करेंगे।''
विवेक के पिता ड्राइवर हैं। बेहद सामान्य परिवार से आने वाले विवेक का हौसला और सोच बड़ी है। वह भारत के हर एक व्यक्ति को शिक्षित देखना चाहते हैं। विवेक बताते हैं,''दोस्तों ने मुझे मालवीय नगर स्थित अपने कमरे पर ही ठहरने की व्यवस्था कर दी। इस दौरान मैं दिल्ली के 40 स्थानों पर गया व करीब 300 गरीब झोंपड़ पट्टियों, लाल बत्ती पर भीख मांगने वाले बच्चों से मिला और उनके बारे में जाना। इसी बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, झंडेवाला के कार्यालय मंत्री श्री गोपाल आर्य जी से मिलना हुआ। उन्होंने मेरे बारे में सब कुछ जानने के बाद कई अन्य लोगों से मिलवाया। जिससे मुझे काफी सहयोग मिला।''
'सेव चाइल्ड बैगर' नाम से विवेक ने फेसबुक पेज बनाया है, जिस पर सैकड़ों की संख्या में लोग जुड़े हैं। उनके काम को देखकर सोशल मीडिया से कुछ युवा आगे आए और उन्होंने भी इस नेक काम में अपना सहयोग देने की बात कही। सोशल मीडिया से मिले 15 साथी आज एनसीआर में गरीब बच्चों को पढ़ाते हैं। एक साथी ने तो अपना लैपटाप भी दिया है ताकि बच्चों को कम्प्यूटर की शिक्षा दी जा सके। विवेक कहते हैं,''मैंने 2 महीने पहले ही नई दिल्ली के पालिका क्षेत्र में पालिका मैट्रो स्टेशन के पास 2 बच्चों से पढ़ाने की शुरुआत की थी और आज यह संख्या 30-40 हो गई है। आज यहां पर बच्चों के साथ उनके माता-पिता भी पढ़ने के लिए आते हैं। इसके बाद मैंने गाजियाबाद के खोड़ा गांव में अपने साथियों के साथ एक स्कूल खोला। जो सुबह 9 बजे से लेकर 2 बजे तक चलता है। इस समय वहां पर रंजना और सोनू बच्चों को पढ़ा रहे हैं। यहां पर करीब गरीब परिवारों के 100 बच्चे पढ़ने के लिए आते हैं।'' विवेक इस पूरे काम का श्रेय अपने दोस्तों को देते हैं और उनका मानना है कि इनकी बदौलत ही आज मैं इन गरीब बच्चों को शिक्षा दे पा रहा हूं।
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