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पाठकों के पत्र : चुनौतियों से दो-चार मीडिया

by
Jun 13, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 13 Jun 2016 14:15:44

आवरण कथा 'खबर सच है' से स्पष्ट है कि चौथा स्तंभ एक आईना होता है, जिसकी यह जिम्मेदारी होती है कि वह जनता की सभी समस्याओं को सामने लाए और अंतिम स्तर तक उनकी समस्याओं के निस्तारण के लिए प्रयास करे। वर्तमान में मीडिया का एक वर्ग ऐसा है, जो सिर्फ और सिर्फ नकारात्मक खबरों को प्राथमिकता देता है और पूर्वाग्रह से प्रेरित होकर सरकार के खिलाफ माहौल तैयार करता है। मीडिया को सकारात्मकता की ओर बढ़ना होगा, तभी उसकी छवि जो आज धूमिल हो चुकी है, सुधर सकेगी।
—हरिहर सिंह चौहान, मेल से

*    मीडिया का काम देश को गलत कामों से रूबरू कराना और अच्छे कामों को जनता तक पहुंचाना होता है। लेकिन मीडिया इसके उलट काम कर रहा है।  वह सियासतदानों की हाथ की कठपुतली जैसा बनकर रह गया है। वे जैसे उसे नचाते हैं, वह वैसे नाचता है। पहले के समय पत्रकारिता बड़ा ही गौरवपूर्ण और एक प्रभावशाली पेशा था। उस समय के पत्रकार न तो सत्ता की सुनते थे और न गलत कार्यों को अपना मूक समर्थन देते थे। उनका काम सिर्फ सच को समाज के सामने लाना था। शायद फिर से लोग ऐसी ही पत्रकारिता की चाह में हैं, जहां सिर्फ और सिर्फ सच हो और कुछ नहीं।
—नारायण कोठारी, मेल से
इस अंक में कई वरिष्ठ पत्रकारों के विचारों को पढ़ने का अवसर मिला। भारत मेें पत्रकारिता के जनक, विचारक, समाज सुधारक राष्ट्रभावना से ओतप्रोत तथा महामना मालवीय जी और रवीन्द्रनाथ ठाकुर के निकट सहयोगी रामानंद चट्टोपाध्याय जी का भी 150वां जन्म दिवस था। मुझे नहीं पता, कितने पत्रकार व बुद्धिजीवी उनके व्यक्तित्व-कृतित्व से            परिचित हैं।  
—महेशचन्द्र चट्टोपाध्याय, इलाहाबाद (उ.प्र.)   

*    लोकतांत्रिक व्यवस्था के चार स्तंभ होते हैं। मीडिया भी इनमें से एक है। लेकिन कभी-कभी लगता है कि मीडिया अपने रास्ते से भ्रमित हो गया है। उसके काम में बुनियादी कमी देखने को मिल रही है। टी.वी. चैनलों पर प्राइम टाइम में खबरों पर विश्लेषण कम, तू-तू मैं-मैं ज्यादा दिखाई देती है। दिल्ली से बाहर की खबरों को मीडिया में स्थान ही नहीं मिलता, मिलता भी है तो नाम मात्र का। कुछ मीडिया घराने दलों की कठपुतली बन गए हैं। वे उनकी ही खबरों को रात-दिन परोसते हैं। मीडिया को चाहिए कि वह अपनी छवि में परिवर्तन कर लोकतंत्र के मजबूत स्तंभों को गरिमा प्रदान करे।
—रामसुखदास राठौर, नासिक (महाराष्ट्र)

*    आज पत्रकारिता अनेक चुनौतियों का सामना कर रही है। पर आज खबर को छोड़कर अश्लीलता अधिक होती है अखबारों में आपराधिक घटनाएं भरी होती हैं। क्या मीडिया समाज को यही सब दिखाना चाहता है? कभी-कभी तो ऐसा लगता है जैसे अच्छी, सच्ची, समाज को जागरूक और प्रेरणा देने वाली, भरोसा जगाने वाली  खबरों का अकाल पड़   गया है।
—नरेश गौतम, सिहोर,भोपाल (म.प्र.)

अपने अंदर झांकें
रपट 'लड़ाई हक की' (1 मई, 2016) अच्छी लगी। हिन्दू समाज में अगर किसी महिला पर अत्याचार का समाचार आता है तो सेकुलर बिरादरी के लोग आसमान सिर पर उठा लेते हैं और तरह-तरह के आरोप-प्रत्यारोप लगाकर पूरी हिन्दू व्यवस्था पर ही प्रश्न चिह्न खड़ा कर देेते हैं। लेकिन मुस्लिम महिलाओं की बात आते ही मुल्ला-मौलवियों की बोलती बंद हो जाती है। आखिर अपने मजहब की बात आते ही इनका मुंह क्यों सिल जाता है? आज यह किसी से छिपा नहीं है कि इस्लाम में महिलाओं के साथ बहुत ही अत्याचार होता है। बोलने से लेकर कपड़ों तक पर इतनी बंदिश है कि उनके दर्द को उनसे बेहतर कौन समझता है? आखिर इनके दर्द पर कब बोलेंगे सेकुलर?
—रेखा सोलंकी, नागदा (म.प्र.)

*    आज मुस्लिम महिलाओं की आवाज को बुलंद करने का समय है। मजहब की जंजीरों में जकड़ी ये अबला मुल्ला-मौलवियों और फतवेधारियों के कारण अपनी आवाज तक नहीं उठा पा रहीं। पता नहीं कितनी तरह के झंझावात मुस्लिम महिलाओं को आगे बढ़ने से रोकते हैं। आज उन्हें न्याय की दरकार है।
—प्रो. परेश, चंडीगढ़ (हरियाणा)

आखिर क्यों हैं मौन?
रपट 'कन्नूर के कातिल' (8 मई, 2016) उन लोगों पर एक सवाल है जो जेएनयू जैसी देशविरोधी घटनाओं का समर्थन करते हैं। असहिष्णुता का मुद्दा बनाकर पुरस्कार और सम्मान लौटाने वाले केरल में स्वयंसेवकों की हत्याओं पर क्यों मौन साध लेते हैं? आखिर उनकी राजनीति का क्या यही रूप है। अपने को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पैरोकार कहने वालों को शर्म आनी चाहिए। असल में वामपंथी केरल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बढ़ते जनकार्य से परेशान हैं। बस इसीलिए वे स्वयंसेवकों की हत्या कर रहे हैं ताकि स्वयंसेवक डर जाएं। लेकिन संघ के स्वयंसेवक न तो डरने वाले हैं।
—मनोहर मंजुल, प.निमाड़ (म.प्र.)
*    कन्नूर में स्वयंसेवकों पर होते हमले और उनकी हत्याएं व्यथित करने के साथ-साथ आक्रोश दिलाती हैं। केरल में कम्युनिस्टों का असली चेहरा देश के सामने आ रहा है। आज केरल में कार्य कर रहे स्वयंसेवकों को मजबूत और शक्तिशाली होना ही होगा। उन्हें 'शठै: शाठ्यम समाचरेत्' यानी दुष्ट के साथ दुष्टता जैसा व्यवहार करना होगा। अगर हम ऐसा नहीं करेंगे तो  समस्या दिन प्रतिदिन गंभीर होती जाएगी। जो लोग सोचते हैं कि शांति से समस्या का समाधान होगा तो यह भूल है।
—महेशचन्द गंगवाल, अजमेर (राज.)

विकास पथ पर बढ़ते कदम
रपट 'लंबी राह, संकेत शुभ'अच्छी लगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में राजग सरकार के दो वर्ष किसी कीर्तिमान से कम नहीं हैं। हर क्षेत्र में केन्द्र सरकार विकास पथ पर बढ़ी है। चाहे वह जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के साथ गठबंधन करके कश्मीर का विकास करने की बात हो, प्राकृतिक आपदाओं में कुशल प्रबंधन करना हो, इराक, सीरिया और लीबिया से भारतवंशियों की सुरक्षित वापसी हो, सभी पर सरकार खरी उतरी है। पूर्वोत्तर में पहली बार भाजपा की सरकार, ईरान के साथ चाबहार बंदरगाह के निर्माण में भारत सरकार का सहयोग, यह सब राजग सरकार के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है।
—बी.एल.सचदेवा, आईएनए बाजार (नई दिल्ली)

*    लोकसभा चुनाव में देश की जनता ने कांग्र्रेस और उसके भ्रष्टाचारों से आजिज आकर नरेन्द्र मोदी सरकार को चुना था। जनता को आशा थी कि भाजपा सरकार सत्ता में आएगी तो देश में जो भ्रष्टाचार का माहौल है, और जो विकास की गाड़ी रुकी है, वह सब ठीक हो जाएगा। जनता की आशाएं ठीक निकलीं और  मोदी सरकार ने उन पर खरा उतरने के लिए दिन-रात एक कर दिया। आज उसका परिणाम दिखाई दे रहा है।
—डॉ. उमेश मित्तल, सहारनपुर (उ.प्र.)

*    राजनीति से सत्ता। सत्ता से काला धन। काले धन से फिर से सत्ता प्राप्ति का एक आकर्षक चक्र आजादी के बाद से भारतीय राजनीति में चल रहा था जिसका आदर्श रोल मॉडल तथाकथित प्रतिष्ठित गांधी परिवार रहा। पं.नेहरू के कार्यकाल में सेना के लिए जीप खरीद घूसकांड, राजीव गांधी के काल में बोफोर्स घोटाला आदि  कुछ उदाहरण चर्चा के लिए काफी हैं। संप्रग सरकार ने देश पर 10 साल तक राज किया और जनता ने देखा कि कैसे कांग्रेस और उसके सहयोगियों ने देश लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ी।  मोदी सरकार के आने के बाद आज जनता को राहत मिली है। महंगाई से लेकर भ्रष्टाचार तक विकास से लेकर विदेश नीति तक सभी जगह पर मोदी सरकार ने ऊंचाइयों को छुआ है।
—छगनलाल बोहरा, उदयपुर(राज.)   

 *    तुष्टीकरण के नाम पर हिन्दुओं के अपमान की परंपरा जो वर्षों से चली आ रही थी, दो साल में उस पर लगाम लगी है। इशरत जहां केस में कांग्रेस पूरी तरह से फंस गई है तो वह केन्द्र सरकार और नरेन्द्र मोदी के खिलाफ दुष्प्रचार कर रही है। विकास हो रहा है, देश आगे बढ़ रहा है, विदेशों में भारत की साख बढ़ी है।
                 -हरिहर सिंह चौहान, इंदौर (म.प्र.)

गंभीर चेतावनी
रपट 'तलाश समाधान की' (22 मई, 2016) विश्व में बढ़ रहे मुस्लिम आतंक के कहर की ओर इशारा करती है। आज यूरोप में मजहबी उन्माद बढ़ रहा है। आए दिन किसी न किसी प्रकार की मजहबी घटनाएं प्रकाश में आती ही रहती हैं। लोगों में इसे लेकर जमकर आक्रोश भी है। मुसलमानों की तेजी से बढ़ती हुई आबादी के परिणामस्वरूप यूरोप सभ्यताओं के टकराव की ओर बढ़ रहा है। बढ़ती हुई मुस्लिम आबादी और उससे बढ़ता हुआ कट्टरवाद अन्य देशों के लिए भी गंभीर चेतावनी है।  
     -अश्वनी जांगड़ा, रोहतक (हरियाणा)

 पुरस्कृत पत्र : प्रगति पथ पर भारत
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव को दो वर्ष हो चुके हैं। देश की जनता ने प्रचंड बहुमत से बड़ी आशा के साथ नरेन्द्र मोदी सरकार को चुना। यूपीए सरकार के दस साल के कार्यकाल से जनता परेशान हो गई थी। हर दिन भ्रष्टाचार की खबरें भारत की छवि को धूमिल कर रही थीं। लेकिन राजग सरकार बनने के बाद प्रखर राष्ट्रवाद, विकास व सुशासन के मुद्दे ने इन सभी को पीछे छोड़कर मात्र दो साल में ही कई कीर्तिमान स्थापित किए।  रपट  'लंबी राह, संकेत शुभ' मेंे सरकार के दो साल के कामकाज का बड़े ही अच्छे तरीके से विश्लेषण किया गया है। आज यह किसी से छिपा नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भारत को पुन: विश्व गुरु की पदवी पर आसीन करने के लिए रात-दिन एक किए हुए हैं। विकास और सुशासन पर वह पूरी निष्ठा के साथ कार्य कर रहे हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है।
वैसे किसी के काम के आकलन के लिए दो साल का समय कम ही होता है। जो व्यवस्था सालों से खराब पड़ी हो उसे मात्र दो वर्ष में ठीक कर पाना किसी के लिए संभव नहीं है। मोदी के हाथ में कोई जादू की छड़ी नहीं है। उन्होंने जिस समय सत्ता संभाली थी तब देश की अर्थव्यवस्था रसातल में थी, और भ्रष्टाचार दीमक की तरह देश को चट कर रहा था। लेकिन मोदी जी के प्रधानमंत्री बनते ही विकास का पहिया चल पड़ा। चाहे देश के अंदर विकास की बात हो या विदेश नीति की, भारत ने हर क्षेत्र में प्रगति की है। सबसे बड़ी बात यह कि जो देश हमें कभी तिरछी नजर से देखते थे, वे भी आज न केवल करीब आए हैं बल्कि निरंतर आगे बढ़ते भारत के साथ उन्होंने मित्रता का हाथ बढ़ाया है। आज संपूर्ण विश्व भारत की ओर टकटकी लगाए बड़ी आशा के साथ देख रहा है।
-प्रभाकर, कृष्णराव चिकटे, 2260,प्रगति विहार, खातीबाबा, झांसी (उ.प्र.)

प्रति सप्ताह पुरस्कृत पत्र के रूप में चयनित पत्र को प्रभात प्रकाशन की ओर से 500 रु. की पुस्तकें भेंट की जाएंगी। 

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