आवरण कथा/कैराना : कश्मीर की राह कैराना - घर हुआ पराया
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आवरण कथा/कैराना : कश्मीर की राह कैराना – घर हुआ पराया

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Jun 13, 2016, 12:00 am IST
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दिंनाक: 13 Jun 2016 14:20:10

-अरुण कुमार सिंह / अनिता त्यागी  

यह कोई सीरिया या इराक का इलाका नहीं है, जहां इस्लामिक स्टेट के आतंकियों के कारण लोग पलायन कर रहे हों, बल्कि यह सबसे उपजाऊ , गंगा और यमुना के दोआब की धरती, कैराना का कड़वा सच है। कभी दानवीर कर्ण की नगरी रहा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शामली जनपद का कैराना कस्बा आज दहशतगर्दी और अपराध का गढ़ बन चुका है। इसी का परिणाम है कि यहां के हिंदू खौफनाक हालत में रह रहे हैं। इससे बचने के लिए हिंदुओं ने कैराना से पलायन शुरू कर दिया है। लगभग दो वर्ष पहले कैराना से पलायन कर दिल्ली में आ बसे स्टील व्यापारी मधुसूदन कहते हैं, ''गुंडागर्दी की वजह से कारोबार करना बहुत ही चुनौतीभरा काम हो गया था। आए दिन मुस्लिम अपराधी तत्व रंगदारी की मांग करते थे। नहीं देने पर वे लोग कुछ भी करने के लिए तैयार रहते थे। गुहार लगाने के बावजूद पुलिस उनके विरुद्ध कार्रवाई नहीं  करती थी।''   
मधुसूदन जैसे सैकड़ों हिंदू हैं, जिनकी यही पीड़ा है। अपनी जन्मभूमि और जमे-जमाए कारोबार को बंद कर दूसरी जगह जाने का दर्द इन लोगों के चेहरे पर साफ दिखाई देता है। मुजफ्फरनगर दंगों के बाद यहां से हिंदुओं का पलायन तेजी से बढ़ा। उल्लेखनीय है कि कैराना के सांसद बाबू हुकुम सिंह ने पूरे शामली जनपद को ही आतंकवाद का गढ़ बताते हुए केंद्र सरकार से कार्रवाई की गुहार लगाई है। सरकार ने भी इस मामले को गंभीरता से लिया है। पता चला है कि आई.बी. यह पता लगा रही है कि हिन्दू किन कारणोें से कैराना छोड़ रहे हैं।  
घर छूटा, बस्ती बेगानी
आज कैराना में घुसते ही एक अजीब-सा खालीपन पसरा दिखता है। चारों ओर सूने पड़े व्यापारिक प्रतिष्ठान और घर दुरावस्था की कहानी बयां कर रहे हैं। कई घरों के बाहर 'यह मकान बिकाऊ  है' लिखा है। उजाड़ और बियाबान होते कैराना के पीछे का सच भयावह है। पड़ताल करने पर पता चलता है कि पिछले कुछ वर्षों में पलायन कर चुके हिन्दू परिवारों की संख्या हजारों में है। कैराना के मुहल्ले आर्यपुरी, कायस्थवाड़ा, आलकला, गुंबद, दरबाद खुर्द, लालकुआं, बेगमपुरा, पानीपत रोड आदि से हिंदू पलायन करके हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखंड आदि राज्यों में जाकर बस गए हैं। 2015 में कैराना छोड़कर देहरादून में बसने वाले विक्की कंसल कहते हैं, ''मेरी सेनेट्री की दुकान थी। उधार नहीं देने पर मुस्लिम ग्राहक अड़ते ही नहीं थे, एकजुट होकर लड़ने आ जाते थे, और उधार दे देने पर कभी पैसा नहीं देते थे। ऐसे में कब तक दुकानदारी होती?''
कहानी कब्जे की
आमतौर पर किसी भी खाली मकान या दुकान को खरीदने के लिए स्थानीय लोग आसानी से तैयार हो जाते हैं। लेकिन कैराना में यह सब भी उलट गया है। यहां से पलायन करके जाने वाले लोगों के मकान और दुकान खरीदने के लिए कोई भी  आगे नहीं आ रहा। हां, मुफ्त के कब्जे और खंडहर होते मकानों पर दावेदारी के मामले यहां जरूर मिल जाएंगे।
कैराना के लोगों का कहना है कि इस पलायन के पीछे एक सोची-समझी रणनीति काम कर रही है। स्थानीय निवासी रणजीत सैनी बताते हैं, ''कट्टरवादी उन्माद और मुस्लिम युवाओं के बढ़ते अपराधों से यहां हिंदुओं का जीना मुहाल है। लूटमार, डकैती, हत्या, लड़कियों से छेड़छाड़, बलात्कार की घटनाओं ने हिंदुओं को दहशत में ला दिया। पुलिस और प्रशासनिक मशीनरी में कहीं कोई सुनवाई नहीं होने पर हिंदू परिवारों ने पलायन करना शुरू कर दिया। यह स्थिति कोई एक दिन में नहीं आई, बल्कि इसके पीछे क्षेत्र में सिर्फ इस्लामी फैलाव चाहने वालों की रणनीति है कि कैराना को पूरी तरह हिंदू-विहीन कर दिया जाए। ''
गांवों को भी लगी नजर
निकटवर्ती गांव पंजीठ से भी हिंदू परिवार पलायन करके अन्यत्र बसते जा रहे हैं। गांव निवासी सुरेंद्र सिंह सैनी कहते हैं, ''लड़कियों का घर से निकलना दूभर हो गया है। कोई भी लड़की या महिला सुरक्षित नहीं है। स्कूल से आते-जाते लड़कियों से छेड़छाड़ आम बात है। विरोध करने पर जानलेवा हमले किए जाते हैं। अस्मिता पर आई आंच को कोई कैसे बर्दाश्त कर सकता है? ऐसे माहौल में केवल पलायन ही एकमात्र विकल्प बचता है।'' पंजीठ गांव के ही 20 परिवार पलायन करके दूसरी जगहों पर बस चुके हैं, जबकि कई पलायन करने की तैयारी कर रहे हैं। मजदूरी और खेती करने वाले मोई गांव निवासी शर्मानंद कश्यप और टीलू ने बताया कि उनके गांव से तीन महीने पहले ही तीन लोग गांव छोड़कर चले गए।  कैराना के पास ही स्थित झाड़खेड़ी, तीतरवाड़ा, ऊंचाखेड़ी, रामड़ा, ककौर, मलकपुर गांवों में भी हालात बहुत खराब हैं। यहां पर भी हिंदू और मुस्लिम आबादी का संतुलन बुरी तरह से गड़बड़ा गया है। ये सारे गांव मुस्लिम-बहुल हो चुके हैं और बेलगाम गुंडों के आतंक से हिंदू परिवार डरे हुए हैं। मलकपुर के निवासी अनिल कहते हैं,  हिन्दू पलायन का यह सिलसिला कई वषार्ें से चला आ रहा है। आज तक किसी ने भी इसके कारणों को रोकने की कोशिश नहीं की। वोट बैंक के लालच में सभी नेताओं की जुबान सिली हुई है। मलकपुर के ही सुनील कहते हैं, हर कोई मुसलमान गुंडों के आगे नतमस्तक है। असामाजिक तत्व गांवों में दहशत फैला रहे हैं। इससे तंग आकर लोग अपने घरों पर ताले लगाकर भाग  रहे हैं।
 रंगदारी से परेशान कारोबारी
स्थानीय लोग मानते हैं कि पुलिस और प्रशासन की नाकामी के कारण कैराना आज अपराध और आतंक की नर्सरी बन चुका है। सुनील कहते हैं, ''मुस्लिम गुंडों ने पूरे इलाके की शांति छीन ली है।'' कहने के लिए इसकी शुरुआत 2014 में हुई, लेकिन पलायन की कहानी बहुत पुरानी है। इसके पीछे भय, दहशत और असुरक्षा का बढ़ता माहौल है। बदमाशों ने व्यापारियों से खुलेआम रंगदारी मांगनी शुरू कर दी। रंगदारी नहीं देने पर वे उनको मौत के घाट उतारने से भी नहीं हिचकिचा रहे। 2014 में रंगदारी नहीं देने पर तीन व्यापारियों की हत्या ने पलायन के सिलसिले को तेज किया है। सामाजिक कार्यकर्ता वरुण गोयल बताते हैं, ''2014 में रंगदारी नहीं देने पर बेलगाम बदमाशों ने शिव कुमार, विनोद और राजेंद्र की बेरहमी से हत्या कर दी। इससे व्यापारियों में भय का वातावरण बन गया। व्यापारियों ने अपराधियों की गिरफ्तारी के लिए बाजार बंद करने के साथ ही धरना-प्रदर्शन भी किया, लेकिन पुलिस के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। इससे अपराधियों के हौसले बुलंद हो गए और रंगदारी व लूटपाट का सिलसिला बढ़ता ही चला गया।''
इसी का नतीजा रहा कि पूरा कैराना क्षेत्र आज लूटपाट, अपहरण, हत्या, बलात्कार, डकैती की घटनाओं से थर्रा रहा है। इससे बचने के लिए हिंदू परिवार घरबार छोड़कर दूसरे स्थानों पर जाकर बस रहे हैं। कैराना के व्यापारी जुगमेंद्र गोयल का कहना है, ''यहां के हिंदू परिवार भय के वातावरण में जी रहे हैं। पुलिस से बार-बार गुहार लगाने के बाद भी लोगों को सुरक्षा नहीं मिल रही तो ऐसी जगह पर रहने का क्या फायदा?'' वे भी दूसरे स्थान पर पलायन करने की जुगत में लगे हैं।
मजदूर भी मजबूर
ऐसा नहीं है कि पलायन करने वालों में केवल व्यापारी तबका ही है। हिंदू समाज के अन्य लोग भी परिवार समेत दूसरे स्थानों पर पलायन कर चुके हैं। वहां उन्हें आजीविका के लिए मजदूरी तक करनी पड़ रही है। पंजीठ गांव के रामवीर सैनी ने दो साल पहले गांव छोड़कर उत्तराखंड का रुख किया था। वहां पर रोजगार का कोई साधन नहीं होने पर वे हरिद्वार में मजदूरी करने को विवश हैं। इसी तरह का काम कैराना के सुबोध को करना पड़ रहा है। यहां से किराना की दुकान उजड़ने के बाद से वह दिल्ली में ऑटो चलाने को मजबूर हंै। वंचित और पिछड़े वर्ग के लोगों की हालत बहुत खराब है। क्षेत्र से पलायन करने के बाद भी उनकी मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रहीं। दूसरे स्थानों पर जाने पर उनकी मुसीबत बढ़ती ही जा रही है। ये लोग रंगदारी नहीं, बल्कि बहू-बेटियों की इज्जत की खातिर पलायन करके जा रहे हैं।
प्रशासन को नहीं परवाह
अपराधियों के बुलंद होते हौसलों के पीछे पुलिस की नाकामी के साथ ही राजनीतिक संरक्षण भी अहम है। शामली जिले के भाजपाध्यक्ष पवन तरार कहते हैं, ''कैराना के सत्ताधारी सपा के नेता बदमाशों को बचाने में लगे हुए हैं, उससे हिंदू व्यापारियों को निराशा ही हुई है। ऐसे माहौल में उन्होंने अपनी जान बचाकर जाने में ही भलाई समझी।'' लेकिन प्रशासन को हिंदुओं के पलायन की कोई जानकारी नहीं है। दिलचस्प बात यह है कि जहां क्षेत्र के सांसद पलायन कर गए लोगों की सूची जारी करते हुए स्थिति पर गहरी चिंता जता रहे हैं, वहीं प्रशासन इससे अनभिज्ञ दिखता है। शामली के जिलाधिकारी सुजीत कुमार कहते हैं,''कैराना से लोगों के पलायन करने के पुख्ता प्रमाण नहीं मिले हैं। मेरी जानकारी में कोई मामला नहीं आया है। हालत पर निगाह रखी जा रही है।''
सपा ने बताया सियासी मुद्दा
भाजपा सांसद हुकुम सिंह इस मुद्दे को लेकर पूरी तरह से सामने आ गए हैं।  वे कहते हैं, ''कैराना में कश्मीर दोहराया जा रहा है। जिस प्रकार कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से भागने के लिए मजबूर किया गया, उसी प्रकार कैराना से हिन्दुओं को पलायन के लिए विवश किया जा रहा है। वहां भय और अविश्वास का माहौल है। संज्ञान में आने के बाद भी पुलिस प्रशासन कोई कार्रवाई नहीं कर रहा। पूरा शामली जनपद आतंकवादियों का अड्डा बन गया है। यहां आतंकवादी गतिविधियां तेजी से बढ़ रही हैं। ''
वहीं सपा जिलाध्यक्ष किरणपाल कश्यप कहते हैं, ''भाजपा सांसद को चुनाव नजदीक देखकर यह मुद्दा याद आया है। हिंदू परिवार एकदम से तो पलायन करके गए नहीं, चुनाव निकट देखकर सांसद ने इस मुद्दे को उठाया है। इसमें कोई सचाई नहीं है। चुनावी माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है।'' जबकि बसपा, रालोद और कांग्रेस के नेता इस मुद्दे पर पूरी तरह से चुप्पी साधे हुए हैं।     
बहरहाल, चाहे प्रशासन आंखें मंूदे और चाहे सियासत आरोप-प्रत्यारोप में उलझी रहे, कैराना का दर्द अब सतह पर नजर आता है। मुजफ्फरनगर में कैराना को याद करते मनोज कुमार कहते हैं, 'खाकी की सुस्ती और खादी की वोट नीति ने हमें अपने घरों से दूर कर दिया है। कोई है, जो हमारी खुशियां लौटा सके? ल्ल

मनोज कुमार की आपबीती
लोहा कारोबारी मुकेश कुमार 2015 की शुरुआत में कैराना छोड़ने को मजबूर हुए थे। अब वे मुजफ्फनगर में रह रहे हैं। रंगदारी नहीं देने पर 24 अगस्त, 2014 को उनके सगे भाई राजेन्द्र कुमार और फुफेरे भाई शिव कुमार की दिनदहाड़े हत्या कर दी गई थी।  वे कहते हैं, ''30 नवंबर, 2013 को चार हथियारधारी मुसलमान युवक उनके पास आए और कहा कि एक फोन आएगा, बात कर लेना। दूसरे दिन फोन आया और 10 लाख रुपए की फिरौती मांगी गई। प्रशासन ने मेरे घर पर दो सुरक्षाकर्मियों को तैनात किया, लेकिन कुछ महीने बाद ही उन्हें हटा भी दिया गया। सुरक्षाकर्मियों के हटने के बाद मेरे भाइयों की हत्या कर दी गई। इसके बाद जान बचाने के लिए मुझे वहां से पलायन करना पड़ा।''
मुकेश कुमार के साथ सरकार ने बहुत ही भद्दा मजाक किया। मुआवजे के तौर पर उन्हें सिर्फ एक लाख रुपए का चेक भेजा, जिसे उन्होंने सरकार को ही लौटा दिया। वे कहते हैं, ''हिंदुओं के मरने पर ठीक से मुआवजा भी नहीं दिया जाता है, जबकि किसी मुसलमान के मरने पर लाखों रुपए की बरसात होती है।'' उल्लेखनीय है कि दादरी में अखलाक की हत्या पर राज्य सरकार ने करीब 60 लाख रुपए और कई फ्लैट दिए हैं।

कैराना में कश्मीर दोहराया जा रहा है। जिस प्रकार कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से भागने के लिए मजबूर किया गया, उसी प्रकार कैराना से हिन्दुओं को पलायन के लिए विवश किया जा रहा है। वहां भय और अविश्वास का माहौल है। संज्ञान में आने के बाद भी पुलिस प्रशासन कोई कार्रवाई नहीं कर रहा।
-हुकुम सिंह, सांसद, कैराना 

 

आईएसआई का खतरा
पलायन की इस कहानी के पीछे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का भी हाथ बताया जाता है।  उत्तर प्रदेश सरकार ने केंद्र सरकार के गृह एवं रक्षा मंत्रालयों को सचेत करते हुए जनवरी, 2015 को लिखा था कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ युवा पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के संपर्क में हैं। जून, 2014 में मेरठ से आसिफ की गिरफ्तारी इसका आधार थी। उल्लेखनीय है कि मुजफ्फरनगर, शामली, मेरठ, बागपत, हापुड़, बिजनौर, सहारनपुर, बरेली आदि जनपदों से आईएसआई के कई एजेंट पिछले दिनों पुलिस के हत्थे चढ़ चुके हैं।
डर के सौदागर
कैराना में फैली दहशत के कारोबार को बढ़ाने में नफीस कालिया (जो मारा जा चुका है), मुस्तकीम कग्गा और इकबाल काना (इन दिनों पाकिस्तान में है) का हाथ रहा है। इन दिनों यहां मुकीम काला गिरोह का आतंक है।  छुटभैये बदमाशों से लेकर नामी बदमाशों ने यहां के व्यापारियों को अपना निशाना बनाया। 2014 में इसी गिरोह ने तीन व्यापारियों की हत्या भी की। रंगदारी के साथ ही अपहरण उद्योग भी शामली जनपद में अपनी जड़ें जमा चुका है। 2014 में व्यापारी कन्हैया के ढाई वर्ष के पौत्र शिवा का अपहरण हुआ था। 2,00000 रुपए की फिरौती देने के बाद दो घंटे के भीतर ही वह छूट भी गया, लेकिन इस घटना ने कई व्यापारियों को यहां से जाने को विवश कर दिया। दो स्टांप विक्रेताओं से हुई लूट ने इस सिलसिले को आगे बढ़ाया है।

कभी वैभव के शीर्ष पर रहा है कैराना
इतिहासकार डॉ. के.के. शर्मा का कहना है, ''कैराना दानवीर कर्ण की नगरी के रूप में प्रसिद्ध था। उस समय कैराना का वैभव अपने शीर्ष पर था। यह शिक्षा, साहित्य और कला-शिल्प का केंद्र था। स्वतंत्रता के दौर में भी कैराना सबसे पुरानी तहसील थी। बाद के समय में कैराना विकास की दौड़ में पिछड़ गया और अब आतंक, दहशतगर्दी, अपराध, अशिक्षा का गढ़ बनकर रह गया है।'' यहां के युवा लगातार देशविरोधी गतिविधियों में लिप्त पाए जाते रहे हैं। यमुना नदी का किनारा और हरियाणा सीमा पर स्थित होने के कारण यहां के युवा अवैध हथियारों के कारोबार से जुड़े हुए हैं। पाकिस्तान से आने वाले हथियारों की तस्करी भी आसानी से होती है।

कैराना बनने की राह पर हैं कई गांव
शामली ही नहीं, मुजफ्फरनगर जनपद के भी कई गांवों में हिंदू परिवार संकट में हैं। ऐसे में वे पलायन करके दूसरे स्थानों पर जाने को मजबूर हो रहे हैं। 2013 में पूरे देश को हिला देने वाले मुजफ्फरनगर दंगों के भड़कने के पीछे लड़कियों से छेड़छाड़ ही कारण था। 2013 में कवाल गांव में छेड़छाड़ करने पर सचिन और गौरव ने शाहनवाज की हत्या कर दी थी। इसका बदला लेते हुए मुस्लिम समुदाय के लोगों ने सचिन और गौरव को निर्दयता से मार डाला था। आरोपियों की गिरफ्तारी की बजाय पुलिस उन्हें संरक्षण देने में जुट गई। इसके बाद सात सितंबर, 2013 को महापंचायत से लौटते समय हिंदू समुदाय के लोगों पर मुसलमानों ने सुनियोजित हमला करके कई लोगों को मार डाला। उनकी ट्रैक्टर-ट्रॉलियों को आग लगाकर गंग नहर में डाल दिया। इससे पूरे मुजफ्फरनगर में दंगे भड़क उठे। देखते ही देखते मुजफ्फरनगर के देहात, शामली जनपद, मेरठ, बागपत, बिजनौर में दंगे भड़क उठे। इन दंगों में कई लोग मारे गए। इसके बाद लोगों ने पलायन करना शुरू कर दिया।

अलग-अलग बस रहे हिंदू और मुस्लिम
2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आबादी के पलायन का एक दूसरा पहलू भी सामने आया है। दंगों की मार से बचने के लिए हिंदू और मुस्लिमों ने अपने-अपने बाहुल्य वाले क्षेत्रों की ओर रुख किया और वहीं पर बसते चले गए। दंगों के शिकार हुए मुस्लिम समुदाय के लोगों ने हिंदू बाहुल्य  वाले क्षेत्रों को छोड़कर कैराना और उसके आसपास के क्षेत्रों को अपना नया ठिकाना बनाया। इससे एकाएक यहां पर मुस्लिम आबादी बढ़ती चली गई और हिंदू परिवार अल्पसंख्यक होते गए।
मुस्लिम परिवारों को बसाने में प्रदेश की सपा सरकार ने भी दिल खोलकर खर्च किया। दंगा पीडि़तों को बसाने के नाम पर प्रदेश सरकार ने मुस्लिम परिवारों को पैसा दिया। इससे मुस्लिम परिवारों ने एक साथ भूखंड खरीदकर पूर्णत: मुस्लिम आबादी बसा ली है। इन कॉलोनियों के नाम भी बाकायदा खिदमत कॉलोनी, पाकीजा नगर, खुदाईपुरम आदि रखे गए हैं। इन कॉलोनियों में दंगों के बाद घर छोड़कर भागे लोग ही रह रहे हैं। बहुत से परिवारों ने वन विभाग की जमीन पर कब्जा करके बस्ती बसा ली। वन विभाग के अधिकारी इन कब्जों को हटाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे। नई बसाहट के कारण जिन क्षेत्रों में हिंदू परिवार अल्पसंख्यक हो गए, वहां से वे पलायन करके हिंदू बहुल क्षेत्रों की ओर रुख कर गए। यह सिलसिला अभी भी तेजी से चल रहा है। देहाती और शहरी दोनों क्षेत्रों से पलायन हो रहा है।  मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, बुलंदशहर, मुरादाबाद, बिजनौर आदि शहरों में मुस्लिम बहुल या मिश्रित आबादी में रहने वाले हिंदू परिवार इन क्षेत्रों को छोड़कर सुरक्षित ठिकानों में जा रहे हैं।

कैराना से पलायन करने वाले हिन्दू  परिवार

सर्वश्री ईश्वरचन्द उर्फ बिल्लू, भय कुमार, विजय कुमार, सोनू, अंकुर मित्तल, राकेश उर्फ टीटू हलवाई, राजेन्द्र कुमार, शिवकुमार, मुकेश कुमार, विक्की कंसल, रामअवतार कुचछल, मनीष मित्तल, अनुज मित्तल, संदीप सिमंेट वाले, पुष्पेन्द्र, राहुल, अरविन्द सिंघल, प्रवीण सिंघल, इन्द्रसेन पटवारी, अरविन्द सिंघल, विकास जैन, सुशील कंसल, अमरनाथ गुप्ता, मुकेश गुप्ता, अनिल गुप्ता, सुशील कुमार, मनोज जैन, प्रमोद जैन, रमेश बत्रा, विजय बत्रा, प्रवीण जैन, अमित जैन, अनिल जैन, पवन जैन, नरेन्द्र जैन, पवन कुमार, अंकुश कुमार,  ममतेश शर्मा , शुभम गर्ग , शीशपाल चौहान, हरिगोपाल कुच्छल, कृष्णपाल गोपाल, मुकेश गर्ग, जगदीश सैनी, योगेश सैनी, लोकेश सैनी, सतीश सैनी, संदीप सैनी, संजीव सैनी, अरविन्द सैनी, विक्की सैनी, सुनील सैनी, अनिल सैनी, मांगेराम सैनी, जयपाल कश्यप, लील्लू कश्यप, बाली लोढा, कश्मीरी बत्रा, कवरपाल कश्यप, मुनेश कश्यप, धर्मपाल कश्यप, रामपाल रोड, सुभाष रोड, राजकुमार रोड, भोपाल रोड, राजवीर रोड, राधेश्याम रोड, सोमपाल कश्यप, किसनलाल जाटव, कृष्णलाल जाटव, प्रीतम जाटव, रामस्वरूप जाटव, मुन्भी राम जाटव, पदम जाटव, पप्पू, सुमत प्रसाद, देवीचन्द कश्यप, जग्गो कश्यप, सुरेश धीमान, टिंडाराम, सुनील धीमान, अशोक जैन, विनोद कश्यप, सलेक कश्यप, बाबू कश्यप, सोनू कश्यप, चमन कश्यप, रमेशचन्द जैन, अरुण जैन, नरेन्द्र जैन, अरुण जैन, भूषणलाल गर्ग, मोहलनान गर्ग, राजीव जैन, सुनील जैन, संजीव जैन, प्रवीण जैन, सुमित जैन, अंकित जैन, चन्दूलाल जैन, सोनू जैन, अमोद जैन, जगदीश जैन, राकेश कुमार जैन, चर्चिल जैन, भूषणलाल, प्रवीण गर्ग, संजीव गर्ग, ओमकारस्वरूप भटनागर, संजय भटनागर, विजय जैन, दीपक जैन, राधेश्याम वैश्य, लाला चरणदास, अमित गोयल, प्रमेाद जैन, राजीव जैन, अनंगपाल, लाला गुरूमोज शरण, दिव्य गर्ग, नकली रोड, पालेराम रोड, विरेन्द्र रोड, पोन्ना, राजेन्द्र रोड, श्रवण जाटव, दयाचन्द जाटव, पुष्पेन्द्र जाटव, सतेन्द्र जाटव, बब्लू जाटव, सोनू जाटव, मुकेश जाटव, प्रेम जाटव, राजपाल जाटव, महिपाल जाटव, सतीश जाटव, श्यामा जाटव, ऋषिपाल कश्यप, बनवारी, अर्जुन कुमार, नवीन कुमार, पुन्नालाल, जयपाल सिंह, पुन्नाराम, लोकेश, विनोद धीमान, राधेश्याम धीमान, घनश्याम धीमान, मांगेराम कश्यप, मांगेराम प्रजापत, सोमपाल कश्यप, सतपाल कश्यप, नरेन्द्र, सुरेन्द्र, गोटी, भारत, संसार सिंह, रतन प्रजापत, सुनील प्रजापत, सतीश प्रजापत, सोनू प्रजापत, रोहताश प्रजापत, मांगेरात प्रजापत, सुभाषचन्द्र, जयकुमार धीमान, पोनी, रामनाथ धीमान, पप्पू धीमान, श्यामलाल कश्यप, बीरसिंह कश्यप, परविन्द्र कश्यप, वीरमति वाल्मिकी, श्यामलाल वाल्मिकी, सुभाष जाटव, संजय जाटव, राजपाल शर्मा, प्रेमचन्द शर्मा, सुभाष जाटव, भगवान दास जाटव, बोबी जाटव, इन्द्रपाल जाटव, घनश्याम जाटव, इन्द्रपाल जाटव, रामकिशन जाटव, रोशनलाल जाटव, फूल सिंह जाटव, पप्पू जाटव, शिवकुमार जाटव, विद्या जाटव, विनोद जाटव, रोशनलाल, रमेशचन्द राजू, आनन्द जाटव, मुरारीलाल, सुरेशचन्द, प्रीतम जाटव, मदनलाल, राजपाल, पप्पू, ओमा, राजेश, सुनील, राजकुमार कंसल, अमित कंसल, दीपक कुमार, धर्मपाल कश्यप, विनोद कुमार, सुभाष कुमार, संयज कुच्छल, नरेन्द्र गर्ग, सन्नी गर्ग, विजय कुमार गर्ग, राजेश कुच्छल, पप्पू कुच्छल, टोनी कुच्छल, संदीप गर्ग मण्डावर वाले, बाबूराम, वेदप्रकाश, राकेश, विरेन्द्र कुमार, अमित कुमार, आशीष कुमार, किरणपाल, सुनील, दीपक, पिंटू, मुरली धीमान, राकेश कुमार, प्रीतम, सुबोध जैन, सुशील कुमार, सुनील गर्ग, नीरज गर्ग, प्यारा जाटव, निरंजन, हुकुम, चेतनलाल, रेणू , मानसिंह, कैलाश, राजवीर, चन्द्रपाल, पडन, देवीचन्द कश्यप, सुभाषचन्द , सुम्मत प्रसाद , हरिचन्दन भटनागर, महेश भटनागर, सुरेश भटनागर, राधेश्याम रूहैला, संजय देशपाल रूहैला, ओमपाल कश्यप, ब्रजपाल कश्यप, महेन्द्र काला, मुकेश भटनागर, देवी सिंह रोड, मीर सिंह रोड, विजय कुमार शर्मा, विरेन्द्र रोड, रवि कुमार रोड, पवन कुमार रोड, अनिल कुमार धीमान, अश्वनी शर्मा, राजबाला वर्मा, आलोक सक्सेना, राजेन्द्र शर्मा, अशोक कुमार रोड, अरुण कुमार रोड, मनोज कुमार रेाड, विनित कुमार, सोनू कश्यप, सुक्खा कश्यप, रघुनाथ कश्यप, मोती कश्यप, निहाला कश्यप, किशन सैनी, रामचन्द सैनी, रमेशचन्द्र सैनी, अशोक सैनी, दरियाई सैनी, सेवाराम सैनी, मुकेश सैनी, दोली सैनी, कृष्णपाल, राधेश्याम सैनी, दयाचन्द वाल्मिकी, सलेकी वाल्मिकी, पदम वाल्मिकी, रविन्द्र मित्तल, अचिन मित्तल, मास्टर प्रवीण, ललित कुमार, प्रमोद सिंघल, रजनीश सिंघल, गुड्डू सिंघल, रमेशचन्द, राधेश्याम गर्ग, संजय भाट, मुकेश गुप्ता, कन्हैया सिंघल, आलोक कंसल, प्रद्युम्न मित्तल, पंकज मित्तल, अमित सिंघल, नीरज सिंघल, विजय कुमार, सोहन, विनोद सिंघल, महेश सिंघल, रमेश सिंघल, मनजीत, मास्टर सुरेश चन्द गुप्ता, राजेश शर्मा, सन्तु गोयल, पवन सिंघल, रामकुमार, सुशील, नीरज गोयल, पंकज गोयल, बिट्टू, नीरज, पंकज, नरेश चन्द सिंघल, अशोक कुमार, शिवकुमार, रमित गोयल, विपिन सिंघल, सचिन वर्मा, बोबी गर्ग, अशोक वर्मा, अनिल वर्मा, अशोक वर्मा, रमेश बत्रा, रमन बत्रा, विकास जैन, पुष्पेन्द्र वर्मा, राजेन्द्र वर्मा, डॉ मनोज ढींगरा, डॉ अंशुल, कुलदीप वर्मा, लवकुश सिंघल, मोनू और सतीशचन्द। 

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