शासन द्वारा समाज में धर्म के प्रति भ्रांतियों का निर्माण
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शासन द्वारा समाज में धर्म के प्रति भ्रांतियों का निर्माण

by
Jun 6, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 06 Jun 2016 15:11:43

 

हिन्दू संस्कृति तथा सभ्यता पर चतुर्दिक आघात

निज प्रतिनिधि द्वारा। 

नागपुर। ''हिन्दू समाज की आत्मविस्मृति की अवस्था होने  के कारण स्वदेश बांधव ही उसके साथ निस्संकोच खिलवाड़ कर रहे हैं एवं कानून बनाकर उसमें ऐसे परिवर्तन लाने का जबर्दस्ती प्रयत्न कर रहे हैं।'' ये शब्द राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदाशिवराव गोलवलकर (श्री गुरुजी) ने समारोप-समारोह में भाषण करते हुए कहे।

प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी आयोजित शिविर के एक मास के कार्यक्रम में देश के प्रत्येक भाग से संघ स्वयंसेवक पूर्णत: अपने ही व्यय पर भाग लेनेे आए थे।

समारोप-समारोह का यह कार्यक्रम रेशमबाग संघ-स्थान पर नगर के प्रतिष्ठित शल्य-चिकित्सक डॉ. दि.गो. मुकादम की अध्यक्षता में हुआ। संघ शिविर में शारीरिक शिक्षण के साथ ही संघ की तत्व-प्रणाली तथा संघ-कार्य के संबंध में भाषण, चर्चाओं के कार्यक्रम नित्य होते थे। समारोप-समारोह के अवसर पर गणवेशधारी चुस्त एवं प्रफुल्लचित स्वयंसेवकों ने लगभग  घंटे तक विविध  प्रकार के शारीरिक कार्यक्रमों के प्रभावी प्रदर्शन किए।

सांघिक गीत एवं, तब रजलो माथे माता, के अत्यंत आल्हाददायक एकाकी गीत के उपरान्त शिविर के सर्वाधिकारी श्री कार्नेटकर ने जनता को शिविर के एवं जिस संघ कार्य की सहायता के लिए यह शिविर लगाया गया था, उस संघ-कार्य के उद्देश्य पर प्रकाश डाला। आपने कहा कि संघ इस देश को हिन्दू-राष्ट्र मानता है एवं आपसी फूट एवं स्वार्थ के कारण पतन के गर्त में पड़े अपने इस समाज को अनुशासन, प्रेम, एकता एवं देशभक्ति के धागे में बांधकर उसे शक्तिशाली, गौरवपूर्ण एवं वैभव-संपन्न बनाना चाहता है। आपने कहा कि इस उद्देश्य को ध्यान में रख ही संघ ने अपने दैनंदिन कार्य का आयोजन किया है।

एक सैनिक की दु:खद कहानी

देश-भक्ति के पुरस्कार- स्वरूप पागलखाने की सैर

नेहरू जी और काटजू ने भी कोई सुनवाई नहीं की

निज प्रतिनिधि द्वारा। 

पूना:यदि  आपको विश्वास न हो कि किसी व्यक्ति को उसकी देशभक्ति के अपराध में पागलखाने भी भेजा जा सकता है तो भारतीय आर्डनैन्स कोर्प्स (युद्ध-सामग्री सेना) के भूतपूर्व जमादार की कहानी सुनिए।

श्री गुरुदत्त ईसर, देहू रोड, पूना के सेंट्रल आर्डनैन्स डिपो में जमादार के पद पर काम करते थे। मार्च, 1952 में उन्होंने आर्डनैन्स के मास्टर जनरल की सेवा में गुप्त रूप से एक रिपोर्ट भेजी कि अन्य सामग्री के अतिरिक्त लाखों रुपए की कीमत के 300 टन मोटर पुर्जों का गोलमाल किया गया है। ये पुर्जे मरम्मत के लिए रखे हुए थे।

पांच महीने पश्चात दक्षिणी कमान के आर्डनैन्स अध्यक्ष द्वारा देहू रोड स्थित डिपो के कमांडिंग अफसर को आदेश दिया गया कि मामले की जांच की जाए। सबसे आश्चर्य की बात यह रही कि जांच को फाइलों में बन्द करके रख दिया गया और अपराधी अथवा आरोपक में से किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। लेकिन इसके पश्चात श्री ईसर पर एक के बाद दूसरी और इस  प्रकार 25 बार चार्जशीट (आरोप) लगाई गई, किन्तु आरोपियों के विरुद्ध एक बार भी कार्रवाई नहीं की गई। इस प्रकार एक ऐसे व्यक्ति को, जिसके विरुद्ध कोई अपराध सिद्ध नहीं किया जा सकता था, परेशान करने का सुन्दर ढंग ढूंढ निकाला गया।

खैर, किसी प्रकार उक्त जमादार को डेढ़ वर्ष तक चलने दिया गया। परन्तु बाद में उसे पागलखाने भेज दिया गया। किन्तु दुर्भाग्य से  पागलखाने के डाक्टर अधिकारियों से सहमत न हो सके और उन्होंने स्वस्थ व्यक्ति को पागलखाने में रखना उपयुक्त नहीं समझा। परिणामत: उक्त जमादार को पुन: ड्यूटी पर लौटा दिया गया।

अफसरों ने चिढ़कर उसे सैनिक न्यायालय के हवाले कर दिया, और बर्खास्त कर दिया।

बर्खास्त होने के बाद उसने प्रधानमंत्री पं. नेहरू तथा सुरक्षा मंत्री डॉ. काटजू से भेंट करने का कई बार प्रयास किया, किन्तु इसमें उसे सफलता प्राप्त न हो सकी। देशभक्ति और ईमानदारी का कितना सुन्दर पुरस्कार है।

दिशाबोध

कम्युनिस्टों को अलग-थलग करना जरूरी

''राष्ट्रद्रोही कम्युनिस्टों को अलग-थलग करना राष्ट्रहित की दृष्टि से आवश्यक है। …गांव-गांव जाकर समाज में आशा एवं विश्वास का निर्माण करने के लिए हमें अग्रसर होना चाहिए। यह बात हमें जनता को समझानी पड़ेगी कि राष्ट्रद्रोही लोग पंडित नेहरू को च्यांग काई शेक बनाने का षड्यंत्र कर रहे हैं और ऐसी घोषणा करनी पड़ेगी कि चीन के उस दुर्भाग्यपूर्ण इतिहास की पुनरावृत्ति हम इस भारतभूमि में कदापि नहीं होने देंगे। हमारे सम्मुख पन्ना दाई का आदर्श है। उसने उदय सिंह के प्राण बचाने के लिए अपने ह्दय पर पत्थर रखकर अपने पुत्र की बलि चढ़ा दी थी। उत्तराधिकार के रूप में प्राप्त राष्ट्र की अस्मिता, अखंडता और विश्वभर में सर्वश्रेष्ठ भारतीय संस्कृति एवं जीवनदर्शन के संरक्षण के लिए हम कोई भी बलिदान करने के लिए सदैव कटिबद्ध हैं। ''

—पं. दीनदयाल उपाध्याय

(पं. दीनदयाल उपाध्याय विचार-दर्शन, खण्ड-1, पृष्ठ संख्या-15-16)

 

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