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राजस्थान में विद्यालयी शिक्षा के पाठ्क्रम को लेकर जो हो-हल्ला मचाया जा रहा है वह बेबुनियाद है। पाठ्यसामग्री में समय के साथ कुछ बदलाव होने जरूरी हैं
आदित्य भारद्वाज
आठवीं में पढ़ने वाला रोहन हिंदी की किताब में राजस्थानी लोक कथा 'हुंकार की कलंगी' पढ़ रहा है। जब उसकी बहन ने आठवीं पास की थी तब यह अध्याय उसकी पुस्तक में नहीं था। 'हुंकार की कलंगी' कहानी प्रसिद्ध राजस्थानी लेखिका दिवंगत रानी लक्ष्मीकुमारी चूंडावत द्वारा लिखी गई है। इस लोककथा में मेवाड़ क्षेत्र की एक छोटी-सी रियासत कोसीथल की ठकुराइन की वीरता का बखान किया गया है कि कैसे राणा का आदेश मिलने के बाद वे पुरुष वेश में युद्ध में शामिल हुईं और वीरता से लड़ीं। पिछले साल तक इस कहानी की जगह निर्मल वर्मा की कहानी 'बाज और सांप' पढ़ाई जाती थी। कहानी अच्छी थी लेकिन उसमें राजस्थानी संस्कृति और राजस्थान के नायकों के बारे में जानकारी का अभाव था। इसी तरह कक्षा आठ की हिंदी की पुस्तक में 'हमारा संविधान' नाम का अध्याय है, जिसमें भारत के संविधान के बारे में जानकारी दी गई है। पूर्व में इस अध्याय का नाम 'भारत का संविधान था' और इसमें भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का फोटो भी था। लेकिन इस बार शासन द्वारा पाठ्य पुस्तकों में जो बदलाव किए गए उसमें इस अध्याय का नाम बदल दिया गया और पंडित नेहरू का फोटो हटा दिया गया। लेकिन जानकार कहते हैं कि इसके अलावा जानकारी जस की तस है।
जो भी बदलाव किये गये हैं वह समयानुकूल हैं। पाठ्यक्रम में ऐसा कुछ नहीं बदला गया है जिससे किसी को आपत्ति हो। यदि राजस्थान के गौरवमय इतिहास व महापुरुषों के बारे में कुछ जोड़ा गया है तो गलत क्या है। प्रो. बनवारी लाल नाटिया
राजस्थान की भाजपा सरकार ने जान-बूझकर पाठ्यक्रम में बदलाव किया है। जहां तक नेहरू जी की बात है, उन्हें पुस्तकों में उतना स्थान नहीं दिया गया, जितना दिया जाना चाहिए। डॉ. अर्चना शर्मा, मीडिया प्रभारी, राजस्थान, कांग्रेस
वर्तमान भाजपा सरकार ने राजस्थान के स्कूली पाठयक्रम को सरल व अधिक बोधगम्य बनाने के लिए पाठ्यपुस्तकों में कई तरह के बदलाव किए हैं। कांग्रेस इस मुद्दे को लेकर राजनीति पर उतर आई है और उसके नेता सीधे तौर पर भाजपा पर तल्ख टिप्पणी कर रहे हैं। कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा अपने हिसाब से पाठ्य पुस्तकों में चीजों को जोड़ रही है जो बिल्कुल गलत है। भाजपा शुरू से ही शिक्षा का भगवाकरण करने पर आमादा रही है। कांग्रेस का कहना है कि पाठ्य पुस्तकों में पंडित नेहरू व उनके द्वारा देशहित में किए गए अमूल्य योगदान को कमतर आंका गया है। उनके बारे में दी गई जानकारी को पाठ्य पुस्तकों से हटा लिया गया है या फिर सीमित कर दिया गया है, जो गलत है।
राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले के सरदूल शहर में स्थित राजकीय कन्या महाविद्यालय के सेवानिवृत्त प्राचार्य व शिक्षाविद् प्रो. बनवारी लाल नाटिया कहते हैं, ''कांग्रेसी शिक्षा का भगवाकरण करने के नाम पर पाठ्यक्रम में बदलाव को लेकर जो हो-हल्ला कर रहे हैं वह निरर्थक है जबकि नेहरू जी के नाम को पाठ्यक्रम से नहीं हटाया गया। पहले छठी से 12वीं तक की पाठ्यपुस्तकों में 170 स्थानों पर नेहरू जी का नाम था। इसे 17 स्थानों पर किया गया।'' प्रो. नाटिया कहते हैं, ''राजस्थान के स्कूलों के नवीन पाठ्यक्रम में राजा राममोहन राय, स्वामी दयानंद सरस्वती, स्वामी रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद जैसे समाज सुधारकों, अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध का बिगुल फूंकने वाले क्रांतिकारियों में मंगल पांडे, नाना साहेब, तात्या टोपे, कुंअर सिंह के बारे में जानकारियां जोड़ी गई हैं, जो सराहनीय कार्य है। हम इन लोगों के बलिदानों और कार्यों को नहीं भुला सकते। हमारे बच्चे अपने देश और परंपरा के नायकों के बारे में जानें, यही शिक्षा का उद्देश्य होता है। इसके अलावा स्थानीय संस्कृति व यहां से जुड़ाव रखने वाली चीजों को भी पाठ्यक्रम में महत्व दिया गया है। इसलिए पाठ्यक्रम मेें बाप्पा रावल, पृथ्वीराज चौहान, महाराणा सांगा, मीरा बाई, पन्ना धाय, वीर दुर्गादास राठौड़ के बारे में जानकारियां जोड़ी गई हैं। मुझे नहीं लगता, इसमें कुछ गलत बात हुई है। हमारे बच्चों को किसी एक का इतिहास या उसके बारे में नहीं जानना है बल्कि अधिक से अधिक लोगों के बारे में जानना है। ऐसे में केवल नेहरू जी के नाम को लेकर बिना मतलब का आंदोलन खड़ा करना सिर्फ राजनीति करना है।''
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2009 में जब राजस्थान में कांग्रेस सरकार थी तब स्कूलों के पाठ्यक्रम में भारी बदलाव किया गया था। पाठ्य पुस्तकों में आर्यों के मूल स्थान भारत, तथा वैदिक संस्कृति के बारे में जो जानकारियां थीं उसे पुस्तकों से हटा दिया गया था। उदाहरण के तौर पर हिंदू दर्शन में भगवान राम एवं श्रीकृष्ण के अवतार ने भारतीय जनजीवन को सर्वाधिक प्रभावित किया है, लेकिन कांग्रेस काल में जब पाठ्यक्रम की समीक्षा की गई तो तथाकथित समीक्षकों ने कहा कि राम और कृष्ण तो महाकाव्यों के पात्र हैं और एक समुदाय के आराध्यदेव हो सकते हैं। इस समीक्षा के बाद भगवान राम और कृष्ण के बारे में पाठ्यक्रम से चीजों को हटा दिया गया। कक्षा 9 में संस्कृत के अध्याय 15 को कांगे्रस काल में इसलिए हटा दिया गया क्योंकि इसमें ये पंक्तियां थीं- 'हिन्दू जनैक्यम् हिन्दू जनैक्यम्, हिन्दू जनानां भारतीयानां, संस्कृत भवनस्य उन्नतं शिखरम्, हिन्दू जनैक्यम् अस्ति।' इसका शाब्दिक अर्थ है कि संस्कृत के साहित्य का जो उन्नत शिखर है वह हिंदुओं यानी भारतीयों की एकता का आधार है। अध्याय 18 'दुर्व्यसनम मृत्युद्वारम्' को यह कहकर हटा दिया गया क्योंकि इसमें अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों व धनाढ्य वर्ग की आलोचना है। इसी तरह कक्षा 10 में अध्याय-4 में वीर सावरकर की राष्ट्र की परिभाषा को यह कहकर हटा दिया गया कि 'पितृभूमि और पुण्यभूमि आधारित राष्ट्र परिभाषा की आलोचना होती रही है तथा यह परिभाषा हिटलर की पुस्तक से प्रभावित है।' इस तरह अध्याय 11 'वीर सावरकर' व अध्याय 12 'कुंभ मेला' को कांग्रेस के कार्यकाल में पाठ्यपुस्तकों से हटा दिया गया। इसी तरह कक्षा 11 की संस्कृत की पुस्तक में अध्याय-13 'चन्द्र गुप्त:' को केवल इसलिए हटा दिया गया क्योंकि इसमें चंद्र्रगुप्त के चरित्र चित्रण में पंडित दीनदयाल उपाध्याय के नाम से लिखी पुस्तक का आधार लिया गया था। इसको हटाने के लिए जो तर्क दिया गया, वह यह कि संघ पृष्ठभूमि में पं. दीनदयाल उपाध्याय का उल्लेख किया जाता है। इसलिए इस अध्याय को हटा दिया गया। कांग्रेस के शासनकाल के दौरान कक्षा 11 की राजनीति विज्ञान की पुस्तक के अध्याय 11 में क्रांतिकारियों का वर्णन था जिसे हटा दिया गया। तथाकथित समीक्षकों ने इसके लिए तर्क दिया कि पुस्तक में अध्याय योजना और उसका वर्गीकरण रा.स्व.संघ के विशेष प्रयोजन को सिद्ध करता है। इसके माध्यम से सावरकर को भगतसिंह जैसे विराट व्यक्तित्व से जोड़ा जाना विकृत मानसिकता का प्रतीक है? कोर अध्याय 14 में पंडित दीनदयाल उपाध्याय के 'एकात्म मानव दर्शन' के आधार पर राजनीतिक चिंतन का वर्णन था, इसे भी हटा दिया गया। कक्षा 9 में महाराणा प्रताप के अध्याय में से 'हिन्दूपति' को सांप्रदायिक विद्वेष फैलने की आशंका का आधार बनाकर हटा दिया गया। इसी तरह शायद ही कोई ऐसा विषय था जिसमें कांग्रेस के शासनकाल के दौरान संशोधन नहीं किया गया।
राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी की उपाध्यक्ष व मीडिया प्रभारी डॉ. अर्चना शर्मा का कहना है, ''भाजपा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एजेंडे पर काम कर रही है। वह स्कूली पाठ्यक्रम में बदलाव करके उसका भगवाकरण करना चाहती है ताकि वह सत्ता में बनी रहे। जहां तक नेहरू जी की बात है तो उनके योगदान को पूरी तरह नकारा गया है।'' गवर्नमेंट पीजी कॉलेज अजमेर में प्राचार्य रहे दुर्गा प्रसाद अग्रवाल कहते हैं, ''पाठ्यक्रम में जो परिवर्तन हुआ है, वह सकारात्मक है। जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में जिन लोगों ने उत्कृ़ष्ट कार्य किए हैं, उनकी बच्चों को जानकारी होनी चाहिए। इस बार जो पाठ्यक्रम लागू हुआ है, उसमें ऐसी जानकारी देने का काम हुआ है। पहले राजस्थान के पाठ्यक्रम में स्वामी विवेकानंद के बारे में काफी जानकारी दी गई थी जिसे कांग्रेस सरकार ने सीमित कर दिया था। वीर सावरकर के बारे में कुछ पढ़ाया नहीं जाता था। राजस्थान के स्कूली पाठ्यक्रम में इस बार उनके बारे में चीजें शामिल की गई हैं।'' बहरहाल, राजस्थान सरकार के स्कूल पाठ्यक्रम में बदलाव को लेकर चाहे जो भी राजनीति की जा रही है लेकिन छात्र और परिजनों को इसमें अखरने वाली बात नजर नहीं आती। पुरखों को राजनीतिक चश्मे से न देखा जाए तो यह सबके लिए अच्छी बात होगी कि जो भी बदलाव किए गए, वे सकारात्मक नजर आते हैं। ऐसा नहीं लगता कि किसी दुर्भावना या द्वेष के चलते पाठ्यक्रम में बदलाव किया गया है। ल्ल
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