खुलती परतों से सहमी कांग्रेस
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खुलती परतों से सहमी कांग्रेस

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Jun 6, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 06 Jun 2016 12:28:23

 

15 मई, 2016
आवरण कथा 'सहमे सूरमा' से स्पष्ट है कि अगस्ता वेस्टलैंड हेलिकॉप्टर घोटाले की खुलती कहानियां कांग्रेस की परतंे खोलने का काम कर रही हैं। आज जब उसके काले कारनामों का पता चल रहा है तो वह हो-हल्ला मचाकार अपने आपको निर्दोष साबित करने का अभियान चला रही है। तभी आम जनता सवाल कर रही है कि आखिर इतने घोटालों के बाद भी वह किस मुंह से अपने आपको दूध का धुला बता रही है, घोटालों पर जब-जब कांग्रेस घिरती है तो वह ऐसा माहौल तैयार करती है कि जैसे वह राजनीतिक साजिश लगे। कांग्रेस की बेचैनी सब कुछ बयां कर रही है।
—प्रदीप सोनकर, सरगुजा (छ.ग.)

ङ्म बोफोर्स से लेकर अगस्ता वेस्टलैंड जैसे घोटाले में सिर्फ एक ही राष्ट्रीय पार्टी द्वारा अरबों के वारे-न्यारे किए गए। आज जब पोल-पट्टी खुल रही है तो कांग्रेस और उसके नेता शोर मचा रहे हैं। कांग्रेस के खुलते कारनामों से देश की जनता का विश्वास उसके ऊपर से उठ गया है। जनता ने क्या कांग्रेस को सत्ता इसीलिए सौंपी थी कि वह इस तरह के घोटाले करके देश को चूना लगाये? आज जब पकड़े गए हैं तो सियासी ड्रामेबाजी कर रहे हैं।
—हरिहर सिंह चौहान, इन्दौर (म.प्र.)
ङ्म कांग्रेस पार्टी का घोटालों से पुराना संबंध रहा है, जो यूपीए-2 तक जारी रहा। यूपीए सरकार में हुए घोटाले के कारण ही उसे 2014 के लोकसभा चुनाव में मुंह की खानी पड़ी थी। ऐसा लगता है कि एक दिन ऐसा आयेगा जब यह कथन सत्य साबित होगा-कांग्रेस मुक्त भारत।
—उमेदु लाल उमंग, पटूड़ी (उत्तराखंड)

ङ्म कांग्रेस इशरत जहां केस में पहले से ही बुरी तरह फंसी थी। देश को यह भी सचाई पता चल गई कि उसने ही इशरत जहां के प्रति सहानुभूति दिखाई और जमकर वोट बैंक की राजनीति की। जब इसकी परतें खुलीं तो पी. चिदम्बरम को जवाब देते नहीं बन रहा है। लेकिन ठीक इसके बाद अगस्ता वेस्टलंैड घोटाले में कांग्रेस और उसके नेताओं की संलिप्तता ने उसके चाल-चरित्र और चेहरे से परदा उठाकर रख दिया। कहावत प्रसिद्ध है-बकरे की अम्मा कब तक खैर मनायेगी। पहले चोरी, ऊपर से सीना जोरी।
—मूलचंद अग्रवाल, कोरबा (छ.ग.)

ङ्म अगस्ता वेस्टलैंड हेलिकॉप्टर घोटाले की खुलती कहानियां कांग्रेस यानी गांधी परिवार के ्रलिए किसी संकट से कम नहीं हैं। इटली की अदालत के निर्णय ने सोनिया-राहुल को मुसीबत में डाला है। इस बदनामी को दबाने के लिए वह सड़कों पर निकल कर हो हल्ला कर रही हैं। रक्षा सौदों में घूस कांग्रेस की घृणित मानसिकता को उजागर करती है। बोफोर्स घोटाले को अभी देश भूला नहीं था कि अगस्ता वेस्टलैंड ने उसे और कंलकित कर दिया।
—अनूप कोशियारी, ईमेल से

गर्व है इन पर
रपट 'बेटी नहीं रही बोझ' (8 मई, 2016)' बहुत प्रेरणादायक है। रपट को पढ़कर बड़ा गर्व होता है कि आज के समय ऐसी बेटियां हैं जो अपने गांव और माटी से जुड़ी हैं। भोपाल के अब्दुल्ला बरखेड़ी गांव की सरपंच भक्ति शर्मा अपने गांव को संवारने में लगी हुई हैं। आज जब एक ओर ग्राम पंचायतों में भ्रष्टाचार का बोलबाला है, उस समय भक्ति शर्मा ने पूरी निष्पक्षता और पारदर्शिता से सभी के लिए एक मिसाल कायम की है। गर्व है ऐसी बेटियों पर।
—राकेश सोनकर, बहराइच (उ.प्र.)

ङ्म आज एक तरफ लोग ग्रामीण क्षेत्रों में इसलिए सरपंच बनते हैं कि थोड़ा नाम हो जाए और सरपंच बनकर कुछ कमा लिया जाए। ऐसे ढेरों उदाहरण भरे पड़े हैं जहां के प्रधानों पर गबन और भ्रष्टाचार के मामले चल रहे हैं। लेकिन एक तरफ भक्ति शर्मा जैसी बेटियां भी हैं जो सरपंच बनकर गांव को सभी सुख-सुविधाओं से संपन्न देखना चाहती हंै। बड़ी खुशी होती है कि इतने कम दिन में उन्होंने इतना काम कर दिया। अमेरिका से आकर अपने गांव के लिए काम करना, उनकी अपने लोगों और अपने गांव के प्रति निष्ठा को दर्शाता है।
—दिशा ठाकुर, भोपाल (म.प्र.)

ङ्म अनुकरणीय गांव की रपट अच्छी लगी। ऐसी रपट आज के युवाओं को प्रेरणा देती हैं और उनको हौसला देती हैं जो सरकार की ओर आसरा लगाये रहते हैं। बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो बिना किसी सरकारी मदद के आगे बढ़ते हैं और लोगों के सामने प्रेरणा बनने का काम करते हैं। ऐसे लोग मुसीबतों से लड़ते हैं,उनका सामना करते हैं और मिसाल बनकर उभरते हैं।
—छैल बिहारी शर्मा, छाता (उ.प्र.)

मनों में भरता जहर
लेख 'समाज तोड़ता जिहादी-वाम आरडीएक्स(8 मई, 2016)' उनकी हकीकत को सामने लाता है, जो दवे पांव समाज तोड़ने का काम करते हैं। आज देश के विभिन्न शिक्षण संस्थानों में राष्ट्रविरोधी तत्व अनर्गल प्रलाप कर रहे हैं। सवाल उठता है कि आखिर उनके मनों में इस तरह का जहर किसने भरा? देश के विभिन्न शिक्षा संस्थानों में वामपंथी राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को अंजाम देने में लगे हुए हैं। इस काम में उनका साथ इन्हीं शिक्षा संस्थानों के प्रोफेसर देते हैं जो पूरी तरह से देशविरोधी मानसिकता से ग्रस्त हैं। हाल ही में जेएनयू इसका उदाहरण हैं, जहां के कई प्रोफेसरों ने देशविरोधी छात्रों का खुलकर समर्थन किया।
—संजय जायसवाल, झांसी (उ.प्र.)

ङ्म देश का प्रत्येक व्यक्ति सेना का सदैव सम्मान करता रहा है। जब-जब उस पर आंच आई या किसी ने उसके खिलाफ कुछ बोला है तो देश की जनता ने उसको करारा जवाब दिया है। लेकिन इस समय जेएनयू के वामपंथी छात्र इतने मुखर हो गए हैं कि वे खुलेआम सेना की आलोचना करने से नहीं चूक रहे हैं। मेरा इन सभी से एक ही सवाल है कि वे बताएं कि कितनी बार वे देश की सीमाओं पर गए हैं जहां जवान विषम से विषम परिस्थितियों में रहकर अपने देश की सेवा करता है। शायद इसका उत्तर होगा एक बार भी नहीं हैं। क्या इन वामपंथियों से जुगाली ही हो पाती है? ये सभी सरकार से मिलने वाली सब्सिडी पर पलते हैं और भारत के टुकड़े करने की बात करते हैं।
—शिवानंद चंचल, मुजफ्फरपुर (बिहार)

तिलमिलाते वामपंथी

देश में 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद सत्ता परिवर्तन हुआ है। तब से आश्चर्यजनक रूप से हिन्दू समाज को वर्ग के आधार पर तोड़ने की प्रकृति घटिया स्तर पर पहुंची है। हिन्दुओं के प्रति विष बमन बढ़ा है। देश, सेना, धार्मिक स्थलों, भारतीय संस्कृति को बदनाम करने का ऐसा लगता है एक अभियान ही चल पड़ा हो। लेख 'समाज तोड़ता जिहादी वाम-आदडीएक्स (8 मई, 2016)' में तथ्यों के साथ इनके कारनामे दर्शाये गए हैं। मोदी सरकार आने के बाद से वामपंथियों और सेकुलरों का एक ही काम रह गया है कि केन्द्र सरकार को किसी भी तरह बदनाम करो। सत्तर वर्षों के साम्यवाद की क्रान्ति से रूस मुक्त हो चुका है। साम्यवाद हर जगह नकारा साबित हो रहा है लेकिन भारत में कुछ लोग इसे बढ़ाने में लगे हुए हैं। कुछ समय की घटनाओं पर गौर करें तो देखने में आता है न इनके द्वारा और न ही इनके कार्यकर्ताओं द्वारा देशहित में कभी कोई काम किया गया। जब भी दिखा तो विकास के काम में रोड़ा अटकाना, देश-समाज को तोड़न और देश के विरोध में बात करने वालों से हमदर्दी दिखाना। वैसे तो ये मुस्लिम और ईसाइयों पर हुए हमलों की घटनाओं पर आसमान सिर पर उठा लेते हैं, लेकिन जब इनके ही शासन वाले राज्य में भाजपा और संघ कार्यकर्ताओं की हत्या इनके ही कार्यकर्ताओं द्वारा की जाती है तो इनका मुंह सिल जाता है। असल में वोट बैंक की राजनीति और ईसाई मत से प्रभावित होने के कारण यह चाहते हैं कि हिन्दू अपने ही देश में शरणार्थी बन जाएं। आज इनका दर्द यह है कि मोदी सरकार के आने के बाद से इनकी दुकानें बंद हो चुकी है जो कुछ बची रह गई हैं वह बंद होने की कगार पर हैं। बस इसी से ये सब तिलमिलाये हुए हैं।
—धर्मेश कुमार, 2160, हाथीपुर कोठार, लखीमपुर खीरी (उ.प्र.)

डूबती नैया
कांग्रेस से मुक्ति का, चला बड़ा अभियान
राहुल जी ने थाम ली, इसकी स्वयं कमान।
इसकी स्वयं कमान, काम को पूर्ण करेंगे
तब मम्मी की गोदी में आराम करेंगे।
कह 'प्रशांत' उनकी नौका पर जो बैठेगा
कांग्रेस के साथ-साथ वह भी डूबेगा॥
—प्रशांत

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