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अंदमान-निकोबार स्थित सेल्युलर जेल में सावरकर पट्टिका और 'वीर सावरकार ज्योत' को पुन: स्थापित करके राजग सरकार ने देश के स्वातंत्र्य वीरों के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रदर्शित की है
आलोक गोस्वामी
28 मई का दिन अंदमान-निकोबार के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित हो चुका है। इसी दिन उस महान स्वतंत्रता सेनानी की जन्म जयंती होती है जिसका नाम भर लेने से रग-रग में एक अद्भुत ऊर्जा का संचार होता मालूूम देता है। विनायक दामोदर सावरकर। भारत की आजादी की लड़ाई का वह अप्रतिम योद्धा जिसके जिक्र मात्र से अंग्रेज हुक्मरानों का रोम-रोम सिहर उठता था, अंग्रेज वकीलों की दलीलें धरी रह जाती थीं और अंग्रेज जजों को सजा सुनाते हुए कपकपी छूटती थी। ऐसे भयभीत रहती थी ब्रितानी सरकार सावरकर से कि उनको दुनिया के इतिहास में असाधारण रूप से एक साथ दो आजीवन कारावास की सजा सुनाकर कालापानी भेज दिया गया था। काला पानी यानी अंदमान की वह सेल्युलर जेल जिसकी बेरहम यातनाओं के किस्से तक रोंगटे खड़े कर देते थे। और उसमें भी सावरकर को जेलर डेविड बैरी ने फांसीघर के ठीक ऊपर वाली कोठरी में कैद किया था ताकि उसका खौफ उन पर दिन-रात हावी रहे, वे टूटें, अंग्रेजों के मुखबिर बन जाएं, उनकी जी-हुजूरी बजाएं। लेकिन सावरकर जिस फौलाद के बने थे, अंग्रेज कभी उसका पार न पा सके। जेलर की कठोर से कठोर यातनाएं सहीं, पर जबान पर भारत माता की जय और वंदेमातरम के नारे ही रहे।
ऐसे उत्कट भारतभक्त की स्मृति को नमन करते हुए पूर्ववर्ती अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने सेल्युलर जेल को एक राष्ट्रीय तीर्थ मानते हुए वहां कुछ सराहनीय प्रयास किए थे। जैसे जेल के मुख्य द्वार के अंदर कदम रखते ही एक सुन्दर छतरी की छाया में सावरकर के कथन को धातु की पट्टिका पर गुदवाकर लगवाया था, इंडियन ऑयल फाउंडेशन के तत्वावधान में एक सतत जलने वाली ज्योति प्रज्वलित की थी। यह मई, 2004 की बात है। उससे पहले मई, 2002 में पोर्ट ब्लेयर हवाईअड्डे का नाम वीर सावरकर अंतरराष्ट्रीय विमानपत्तन किया गया था। तत्कालीन गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी स्वयं उस कार्यक्रम में उपस्थित थे। मुझे भी कार्यक्रम में भाग लेने का सौभाग्य मिला था। कितने भावुक पल थे वे। पोर्ट ब्लेयर की तमाम जनता के अलावा प्रतिष्ठित जन थे तो मुम्बई से विनायक सावरकर के सुपुत्र श्री विश्वास सावरकर अपनी पत्नी और दोनों बेटियों के साथ आए थे। वीर सावरकर पर फिल्म बनाने वाले सावरकर-भक्त मशहूर संगीत निर्देशक सुधीर फड़के अपनी सारी हारी-बीमारी भुलाकर वहां मौजूद थे। गद्गद् हो उठे थे सब। कृतज्ञता के भाव के साथ खुशी के आंसू छलक आए थे सबकी आंखों में।
राजग सरकार के उस कदम को उसके बाद बनी कांग्रेस नीत मनमोहन सरकार ने सत्ता में आते ही बड़े तैश में आकर निरस्त कर दिया। सावरकर के उद्धरण वाली पट्टिका हटा ली गई। स्वातंत्र्य समर के उस विलक्षण योद्धा के प्रति स्तरहीन शब्द इस्तेमाल किए तत्कालीन पेट्रोलियम मंत्री मणि शंकर अय्यर ने। ऐसा दिखाया जैसे सावरकर कोई स्वतंत्रता सेनानी थे ही नहीं। उनके लिए तो नेहरू और गांधी के अलावा भारत के लिए समर्पित कोई और हो ही नहीं सकता।
इसके विरुद्ध प्रचण्ड आंदोलन छेड़ा था भाजपा और पूर्व स्वतंत्रता सेनानियों ने। वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज के नेतृत्व में भारत के संसदीय इतिहास में शायद पहली बार 150 सांसद और 50 विधायक मणि शंकर के उस अभारतीय कदम के खिलाफ पोर्ट ब्लेयर में इकट्ठे हुए थे और उप राज्यपाल को ज्ञापन सौंपकर मांग की थी कि मनमोहन सरकार स्वतंत्रता सेनानियों का सम्मान करते हुए सावरकर पट्टिका को वापस सेल्युलर जेल में उसी स्थान पर लगाए जहां यह लगाई गई थी। उन पलों का साक्षी होने का भी मुझे सौभाग्य मिला। लेकिन जैसी अपेक्षा थी, बहरी सरकार के कानों पर जूं तक न रेंगी।
समय बदला। केन्द्र में नरेन्द्र मोदी सरकार आई। इसके बाद भाजपा और शिवसेना की ओर से संसद में यह विषय ही नहीं उठाया गया बल्कि वहां अविलम्ब सावरकर पट्टिका लगाने और सावरकर ज्योत को फिर से स्थापित करने की मांग जोर पकड़ती गई। अटल सरकार में पेट्रोलियम मंत्री रहे उत्तर प्रदेश के राज्यपाल श्री राम नाईक ने 2015 में विशेष प्रयास किए। उनका कहना था कि सावरकर के उद्धरण वाली पट्टिका को हटाना कांग्रेस का स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति उपेक्षापूर्ण रवैया ही दर्शाता है। ये राम नाईक ही थे जिन्होंने 2015 में सावरकर पट्टिका वापस उसी स्थान पर लगवाई और उस क्रांति तीर्थ की गरिमा को और बढ़ाया। और इस 28 मई को सावरकर की 133वीं जन्म जयंती के मौके पर मोदी सरकार की ओर से सावरकर ज्योत एक बार फिर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के हाथों पावन ज्योति के साथ प्रज्वलित की गई। इंडियन ऑयल फाउंडेशन की ओर से यह काम हाथ में लिया गया है। पेट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान, उप राज्यपाल ले. जनरल ए. के. सिंह, स्थानीय सांसद बिष्णु पद रे और राज्य भाजपा अध्यक्ष विशाल जौली भी इस मौके पर उपस्थित थे। कार्यक्रम में अमित शाह ने स्वतंत्रता संग्राम में सावरकर के योगदान का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि आज हम जो कुछ भी हैं, अपने स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान की बदौलत हैं। सावरकर ने दलितों, पिछड़ों के उद्धार के लिए भी संघर्ष किया था। ले. जनरल ए. के. सिंह ने सावरकार को ऐसा द्रष्टा बताया जिन्होंने सेल्युलर जेल में बंद कैदियों के दिलों में स्वतंत्रता की लौ जलाई थी। इसमें संदेह नहीं है कि राष्ट्रीय स्मारक या कहें स्वातंत्र्य तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध सेल्युलर जेल के अहाते में स्थापित यह अखण्ड ज्योति आने वाली पाीढि़यों को राष्ट्र भक्ति की प्रेरणा
देती रहेगी।
सावरकर एक व्यक्ति नहीं विचार थे, जिन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों को उत्कट देशभक्ति की प्रेरणा दी थी। कुछ लोग सावरकर जी के कथनों को तोड़-मरोड़कर उनके योगदान को कमतर करने की कोशिश करते हैं, लेकिन उनके जैसा महान देशभक्त और विचारक कोई दूसरा नहीं है।
-अमित शाह, अध्यक्ष, भाजपा
अंदमान एक पुण्य स्थान है, एक तीर्थ है। केन्द्र की पूर्व संप्रग सरकार ने सावरकर जी जैसी विभूति को छोटा बनाने का प्रयास किया था। उसी मानसिकता के चलते सावरकर पट्टिका हटाई गई थी।
-धर्मेन्द्र प्रधान, केन्द्रीय पेट्रोलियम और गैस राज्यमंत्री
क्या है इंडियन ऑयल फाउंडेशन
सेल्युलर जेल में सावरकर ज्योत के रखरखाव की जिम्मेदारी लेने वाली इंडियन ऑयल फाउंडेशन इंडियन ऑयल कार्पोरेशन द्वारा स्थापित गैर लाभकारी संस्था है जो भारत के यादगार प्राचीन स्मारकों की सुरक्षा, संरक्षण और संवर्द्धन का काम करती है। फाउंडेशन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग और भारत के संस्कृति मंत्रालय के राष्ट्रीय संस्कृति कोष के साथ मिलकर काम करती है। सेल्युलर जेल के अलावा फाउंडेशन जिन प्रमुख स्मारकों, भवनों में काम कर रही है, वे हैं-कोणार्क का सूर्य मंदिर (उड़ीसा), खजुराहो मंदिर समूह (मध्य प्रदेश), कोल्हुआ, वैशाली (बिहार), कान्हेरी गुफाएं (महाराष्ट्र) और भोगानंदीश्वर मंदिर (कर्नाटक)। इनके अलावा पांच अन्य परियोजनाएं भी चिन्हित की गई हैं, जो इस प्रकार हैं-कर्नाटक में हम्पी, आंध्र प्रदेश का गोलकुंडा किला, राजस्थान का चित्तौड़गड़ किला, गुजरात में रानी की वाव और उत्तर प्रदेश में लखनऊ रेजीडेंसी।
''कांग्रेस को देश के स्वातंत्र्य समर का इतिहास तक नहीं मालूम''
पाञ्चजन्य ने अंदमान-निकोबार से लोकसभा सांसद श्री बिष्णु पद रे से कांग्रेस द्वारा पूर्व में सावरकर के उद्धरण वाली पट्टिका हटाने, स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान और बलिदान को झुठलाने और अंदमान-निकोबार की जनता के मन में पट्टिका और ज्योत को पुन: स्थापित करने पर उभरी भावनाओं के संदर्भ में बातचीत की। उस वार्ता में उनके द्वारा व्यक्त विचार इस प्रकार हैं-
पूर्व संप्रग सरकार में पेट्रोलियम मंत्री रहे मणिशंकर अय्यर ने सेल्युलर जेल में लगी सावरकर पट्टिका हटाकर यह सिद्ध किया था कि उन्हें देश के स्वतंत्रता सेनानियों, खासकर वीर सावरकर के बारे में जानकारी नहीं है। सावरकर के उद्धरण वाली पट्टिका को हटाकर कांग्रेसियों ने अपनी असहिष्णुता ही उजागर की थी। उसके बाद सितम्बर 2004 में भाजपा की वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज के नेतृत्व में 150 सांसदों ने पोर्ट ब्लेयर में इसके विरोध में सत्याग्रह करके कहा था कि वीर सावरकर का अपमान सहन नहीं किया जाएगा। संप्रग सरकार ने जो पट्टिका हटाई है, उसे फिर से लगाया जाए। लेकिन कांग्रेस को बात समझ नहीं आई। उसके बाद उत्तर प्रदेश के राज्यपाल श्री राम नाईक ने हटाई गई पट्टिका की स्थापना के लिए काफी प्रयास किया। उनके उन प्रयासों का ही परिणाम है कि अब फिर से पट्टिका लगी और सावरकर ज्योत पुन: प्रज्वलित हुई है। इससे अंदमान की धरती का गौरव बढ़ा है।
सोनिया गांधी और राहुल गांधी बताएं कि कांग्रेस के कौन से नेता ने दोगुने आजीवन कारावास की सजा भोगी थी? कम से कम इनको तो भारत के इतिहास की जानकारी होनी चाहिए। कांग्रेस ने नेहरू-गांधी नाम के सहारे ही सत्ता चलाई थी। उनके अलावा इनको भारत की आजादी में किसी का योगदान दिखाई नहीं देता। सेल्युलर जेल को कांग्रेस सरकार ने राष्ट्रीय स्मारक तक घोषित नहीं किया था। यह तो जब मोरारजी देसाई की सरकार बनी, तब इस जेल को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया गया था।
दिलचस्प बात यह है कि अभी संपन्न ज्योत अनावरण के कार्यक्रम में अनेक स्थानीय मुस्लिम कांग्रेसी नेता मौजूद थे। यहां अंदमान के प्रतिष्ठित मुस्लिम नागरिकों ने कहा है कि यह बहुत अच्छा काम हुआ है। स्थानीय लोग मोदी सरकार के इस कदम से खुश हैं।
इसमें संदेह नहीं कि यह पट्टिका और अखण्ड ज्योत यहां आने वाले देशवासियों
को सावरकर की बलिदानी गाथा की
याद दिलाएगी।
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