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राजस्थान में पाठ्यक्रम बदलाव को लेकर विरोधी पक्ष द्वारा की जा रही राजनीति व शिक्षा का भगवाकरण किए जाने के आरोपों पर पाञ्चजन्य संवाददाता आदित्य भारद्वाज ने राजस्थान सरकार में शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी से बातचीत की। प्रस्तुत है उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश:-
पाठ्यक्रम में बदलाव की आवश्यकता आपको क्यों दिखाई दी?
वैसे तो पाठ्यक्रम में परिवर्तन एक निरंतर प्रक्रिया है, लेकिन पहले जो पाठ्यक्रम चल रहा था, उसमें बहुत सारी विसंगतियां थीं। उसमें ऐतिहासिक बातों को सही ढंग से प्रस्तुत नहीं किया गया था। कांग्रेस शासन ने दो बार 1999 में और 2009 में पाठ्यक्रम में इस तरह बदलाव किया कि राष्ट्रीय नेताओं के नाम उन्होंने हटा दिए। उदाहरण के तौर पर वीर सावरकर, श्यामाप्रसाद मुखर्जी, दीन दयाल उपाध्याय से लेकर कुंभ मेला, राम और लक्ष्मण भाई हैं जैसी बहुत सी बातों पर उन्होंने कालिख पोती। इससे लगा कि जो सही जानकारी उसे पाठ्यक्रम में जोड़ा जाना चाहिए इसलिए ऐसा किया। हमने इस वर्ष 10वीं और 12वीं को छोड़कर पहली से लेकर 11वीं तक के पाठ्यक्रम में परिवर्तन किया है। हम अगले वर्ष 10वीं और 12वीं में के पाठ्यक्रम में परिवर्तन करने वाले हैं। हमारे यहां एक प्रक्रिया है इसमें कक्षा एक से लेकर आठ तक तो एसआईईआरटी (स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन एंड रिसर्च इंस्टीटयूट) व कक्षा 9 से 12 तक बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन पाठ्यक्रम में बदलाव करता है। पाठ्यक्रम को युगानुकूल और देशानुकूल बनाने और विद्यार्थियों को गौरवशाली अतीत और भारतीय संस्कृति से अवगत कराने व गुणात्मक सुधार के लिए इसे लेकर परिवर्तन किया।
आपको क्या लगता है कि जो नया पाठ्यक्रम स्कूली छात्रों के लिए तैयार किया गया है, वह शिक्षा की गुणवत्ता व उसका स्तर बढ़ाने में सहायक होगा। यदि हां तो कैसे?
जी बिल्कुल। हमने पाठ्यक्रम में एक चीज ओर जोड़ी कि कक्षा एक से पांच तक के बालकों को हम 75 प्रतिशत राजस्थान के बारे में पढ़ाएंगे और 25 प्रतिशत भारत के बारे में। कक्षा छह से आठ तक 50 प्रतिशत राजस्थान के बारे में और 50 प्रतिशत भारत के बारे में। नवीं के बाद फिर सबकुछ पढ़ाएंगे विदेश नीति व अन्य चीजें जो छात्रों के लिए जरूरी हैं। पाठ्यक्रम को लेकर हमने तीन बिंदुओं को ध्यान में रखा कि पहले छात्र राजस्थान के वीरों और वीरांगनाओं का इतिहास पढ़ें, दूसरा वे भारतीय संस्कृति पर गर्व की अनुभूति करें और तीसरा वे श्रेष्ठ नागरिक और देशभक्त बनें। इन तीनों बातों को ध्यान में रखकर हमने पाठ्यक्रम तैयार किया। ऐसे में निश्चित तौर पर शिक्षा में गुणात्मक सुधार होगा। हमने पाठ्यक्रम में देश के मशहूर वैज्ञानिकों आर्यभट्ट, भास्कराचार्य, डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम आदि के बारे में जानकारी जोड़ी है। कांग्रेस के काल में जो पाठ्यक्रम था उसमें काफी गुणात्मक गलतियां थीं। हमने केवल रटने वाला पाठ्यक्रम तैयार नहीं किया बल्कि ऐसा पाठ्यक्रम तैयार किया है जिसे पढ़कर देश के साथ बालकों का भावनात्मक जुड़ाव हो। जाहिर है कि ऐसा पाठ्यक्रम होगा तो शिक्षा की गुणवत्ता अपने आप बढ़ेगी।
विरोधी पक्षों का आरोप है कि भाजपा सरकार ने पूर्वाग्रह के चलते पाठ्यक्रम में बदलाव किया है। इस पर आपका क्या कहना है?
देखिए, कांग्रेस सरकार ने श्रेष्ठ महापुरुषों के नाम को पाठ्यक्रम से हमेशा विलोपित किया। उन्होंने पाठ्यक्रम से ऐसे महापुरुषों की जानकारी देने वाले कुछ पन्नों को हटवा दिया, कुछ पर स्याही पुतवा दी गई और कुछ के नाम काट दिए, लेकिन हमारी सरकार ने किसी के नाम को न तो काटा, न ही कागजों को फाड़ा। हम जोड़ने में विश्वास करते हैं। विरोधी पक्ष जो भी आरोप लगा रहा है, वह निराधार है। जैसे वे कहते हैं पाठ्यक्रम में नेहरू जी का नाम नहीं है जबकि नेहरू जी का नाम 15 स्थानों पर है। हमारा पाठ्यक्रम सामाजिक समरसता से जुड़ा हुआ है। हमने पाठ्यक्रम में महापुरुषों के बारे में जैसे महात्मा फुले, महर्षि पराशर, कबीर, रसखान, डॉ. आंबेडकर, दुर्गादास राठौड़ आदि को जोड़ा। पहले पाठ्यक्रम में 'अकबर महान' पढ़ाया जाता था। हमने 'प्रताप महान' को जोड़ा। इसके लिए मैं उदाहरण देता हूं 'महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ी क्योंकि अंग्रेज आक्रांता थे। इसलिए इस देश में महात्मा गांधी महान हैं, न कि अंग्रेज। हमारा मानना है कि अकबर एक आक्रांता था और महाराणा प्रताप ने उसकी अधीनता नहीं स्वीकारी व उसके खिलाफ लड़ाई लड़ी इसलिए हमारे देश में महाराणा महान हैं, न कि अकबर महान।'' पुराने पाठ्यक्रम में पढ़ाया जा रहा था कि आजादी की लड़ाई का प्रथम आंदोलन 1885 से शुरू हुआ क्योंकि कांग्रेस की स्थापना इसी वर्ष हुई थी। इसलिए छात्रों को यह पढ़ाया जा रहा था। जबकि सब जानते हैं कि पहली बार आजादी की लड़ाई की शुरुआत 1857 से हुई थी। जब हमने चीजों को सही किया तो उसमें पूर्वाग्रह की बात कहां रह गई?
उन लोगों के लिए आपका क्या कहना है कि जो इसे शिक्षा का भगवाकरण करने का षड्यंत्र कहते हैं?
देखिए, भगवा शब्द को राजनीति प्रेरित शब्द बनाया जा रहा है क्योंकि भगवा का अर्थ है त्याग और समर्पण। मेरे देश के हर नागरिक और बच्चे के अंदर तो पहले से ही त्याग और समर्पण का भाव है। जो लोग इसे भगवाकरण की संज्ञा दे रहे हैं, वह सिर्फ कोरी राजनीति कर रहे हैं। मेरी नजर में यह शिक्षा का भारतीयकरण है। हमने जिस पाठ्यक्रम की शुरुआत की है, वह राष्ट्रीयता से ओतप्रोत पाठ्यक्रम है।
राजस्थान के शिक्षा मंत्री होने के नाते पाठ्यक्रम बदलने के अलावा और शिक्षा में गुणात्मक सुधार के लिए आपने और क्या किया है?
शिक्षा में सुधार के लिए हमने स्कूलों की शैक्षणिक व्यवस्था को सुधारा। छात्रों के अनुपात में शिक्षकों की स्कूलों में तैनाती की। राजस्थान की हर ग्राम पंचायत में एक आदर्श स्कूल की स्थापना की। स्कूलों के समय को केंद्रीय विद्यालयों के बराबर किया। 32,000 नए अध्यापकों की स्कूलों में नियुक्ति की। कक्षा एक से आठ तक परीक्षा नहीं होती थी हमने पांचवीं और आठवीं की परीक्षा फिर से शुरू की। हमने शाला दर्शन और शाला दर्पण दो पोर्टल शुरू किए जिसमें स्कूलों में पढ़ाने वाले सभी शिक्षकों और छात्रों के ब्यौरे को कंप्यूटरीकृत किया। इसके अलावा हमने डिजिटल इंडिया के तहत सारे पाठ्यक्रम को ऑनलाइन कर दिया जो पहले नहीं था। इसके अलावा छात्रों को मिलने वाली छात्रवृत्ति व सरकार द्वारा समय-समय पर चलाई जाने वाले योजनाओं को किताबों के अंतिम पृष्ठ पर छापा ताकि छात्रों को उनके बारे में पूरी जानकारी रहे। पहले जानकारी न होने पर छात्र उनका लाभ नहीं ले पाते थे। इसके अलावा और भी बहुत से कार्य हैं जो हमने शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए किए हैं।
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