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उज्जैन में संपन्न सिंहस्थ कुंभ चिंतन, अपनी भव्यता और आयोजन की तैयारी-हर दृष्टि से बेजोड़ रहा
महेश शर्मा
शनिवार 21 मई वैशाख पूर्णिमा पर ऐतिहासिक शाही स्नान के साथ ही उज्जैन में सिंहस्थ महाकुंभ का समापन हो गया। इस दिन देश-विदेश के 80 लाख से अधिक लोगों ने मोक्षदायिनी क्षिप्रा में डुबकी लगाई। 22 अप्रैल को पहले शाही स्नान के साथ आरंभ हुए सिंहस्थ में एक माह में करीब पांच करोड़ श्रद्घालु उज्जैन आए। इस दौरान प्रकृति ने त्यौरियां चढ़ाकर जैसे श्रद्घालुओं की परीक्षा लेनी चाही, पहले बारिश, आंधी-तूफान और अंतिम दौर में भीषण गर्मी जिसमें लगातार 45 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान रहा लेकिन जैसा कि जूना अखाड़े के आचार्य महामण्डलेश्वर अवधेशानंद गिरि महाराज कहते हैं ''प्रतिकूलताओं पर आस्था भारी पड़ी।''
मध्यप्रदेश सरकार ने चार वर्ष पूर्व ही सिंहस्थ की तैयारी शुरू कर दी थी। उसने अनेक पुल और सड़कें बनवाईं लेकिन जब 5 मई को आंधी-तूफान के साथ बारिश ने तबाही मचाई तो ऐसा लगा जैसे तमाम इंतजाम धरे रह जाएंगे। मंगलनाथ क्षेत्र में बड़े-बड़े पण्डाल और उनके भव्य द्वार धराशायी हो गए, शिविरों में पानी भर गया और लोग सिर छिपाने के लिए जगह ढूंढने लगे, इस दिन सात लोग काल कवलित हो गए। इसी दिन 118 किमी. की नगर परिक्रमा कर शहर में लौटने वाले 10 लाख से अधिक पंचकोशी यात्रियों का भी प्रवेश हुआ। आमतौर पर ये सड़क और नदी तट पर ही रात्रि विश्राम करते हैं और अगले दिन अमावस पर स्नान कर अपने गंतव्य को लौटते हैं लेकिन बारिश और कीचड़ से इनके सामने आश्रय ढूंढने की चुनौती खड़ी हो गई। बारिश से अन्न क्षेत्रों पर असर पड़ा। ऐसे स्थिति में प्रशासन ने तो व्यवस्था की ही लेकिन उज्जैनवासियों ने अपनी उदारता और सेवाभावना का परिचय देते हुए न सिर्फ अपने घरों के दरवाजे उनके लिए खोल दिए बल्कि जिससे जो बना, वह भोजन तैयार कर पंचकोशी यात्रियों की ओर दौड़ पड़ा।
प्रशासन ने ताबड़तोड़ व्यवस्था कर मेले को व्यवस्थित रखने का प्रयास किया लेकिन 9 मई को शाही स्नान के दिन शाम को बारिश ने चुनौती खड़ी कर दी। इस बार दत्त अखाड़ा क्षेत्र में तेज हवाओं का असर रहा लेकिन मौसम विभाग की चेतावनी के कारण तैयारी पूरी थी इसलिए जानो-माल का विशेष नुक्सान नहीं हुआ। इसके बाद तो मेले में भीड़ बढ़ने का क्रम शुरू हो गया जो 21 मई की रात तक चलता रहा। पहले शाही स्नान और मेले के शुरुआती सप्ताह में अपेक्षा के अनुरूप लोगों के न पहुंचने पर चिंतित मेला प्रशासन भीड़ देखकर प्रसन्नचित्त दिखा।
मुख्यमंत्री चौहान ने अपने कुछ विश्वस्त अधिकारियों को भोपाल से भेजा और प्रभारी मंत्री भूपेन्द्र सिंह ने उज्जैन में ही डेरा डाल दिया। उज्जैन क्षेत्र में महानिदेशक का प्रभार संभालने वाले वी़ मधुकुमार कहते हैं ''इस शहर की इतनी क्षमता नहीं है कि इतनी भीड़ को एक साथ संभाले, इतने वाहनों को एक साथ जगह दे इसलिए थोड़ी-बहुत परेशानी तो हुई लेकिन फिर भी हमने पूरी मेहनत से मेले की व्यवस्था को संभाला।'' शाही स्नानों के दौरान आम जनता किसी तरह की परेशानी न हो और अव्यवस्था का माहौल न पनपे, बनें के लिए मेला प्रशासन ने साधु संन्यासियों के स्नान की जगह रामघाट पर रात 12 बजे से ही श्रद्धालुओं के स्नान को प्रतिबंधित कर दिया। सामान्यजन को दोपहर 1 बजे बाद ही वहां प्रवेश दिया गया।
बहरहाल अंतिम शाही स्नान के लिए दो दिन पहले से ही भीड़ उमड़ने लगी और ऐसा लगा जैसे हर रास्ता नदी की ओर जा रहा हो। हालांकि राजस्थान से आ रही गरम हवाओं के कारण तापमान 45 डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुंच गया था लेकिन हर गली लोगों के हुजूम से भरी पड़ी थी। शाही स्नान के दिन तो गली-गली में उज्जैनवासियों ने न सिर्फ ठंडा पानी, शरबत बल्कि नाश्ते और खाने के स्टॉल लगाकर श्रद्घालुओं की आव-भगत। मुस्लिम बहुल बस्तियों में अनेक मुस्लिम परिवारों ने अपने-अपने घर के बाहर जैसे बन पड़ा, लोगों की सेवा की। कहीं घरों के बाहर टेबल लगाकर पानी के घड़े रखे हुए थे तो कहीं टंकीभर शरबत बनाकर लोगों का इस्तकबाल किया। गीत-संगीत के बीच सेवाकार्य करते हुए उन्होंने इसे एक महिमामह उत्सव का रूप दे दिया जिसे लम्बे समय तक याद रखा जाएगा ल्ल
याद रहेंगी ये बातें
पहली बार जैन साध्वी रही चंदनप्रभा नन्दन गिरि जूना अखाड़े में महामण्डलेश्वर बनाई गईं।
पहली बार अणुव्रत महासमिति के माध्यम से जैन मुनियों ने भी मेला क्षेत्र में शिविर लगाया।
पहली बार जैन मुनि डॉ़ प्रणाम सागर ने मेला क्षेत्र में ही केश लोचन समारोह किया।
पहली बार अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने 9 मई के शाही स्नान पर अखाड़ों का स्नान 6 बजे के स्थान पर तड़के ब्रह्ममुहूर्त में शुरू कराया।
अंतिम शाही स्नान पर 21 मई को इतिहास में पहली बार वैष्णव तथा शैव साधुओं ने एक साथ तड़के 4 बजे स्नान शुरू कर दिए जिससे सामान्य श्रद्धालुओं को प्रतीक्षा न करनी पड़े और ज्यादा से ज्यादा श्रद्घालु मुख्य घाटों पर स्नान कर सकें।
उज्जैनवासियों के जज्बे को सलाम, 'अतिथि देवोभव' के सूत्र को ध्यान में रखकर लोगों ने बाहर से आनेवाले श्रद्घालुओं की, जो सेवा की वह लम्बे समय तक याद रखी जाएगी।
—शिवराज सिंह चौहान, मुख्यमंत्री, मध्य प्रदेश
क्षिप्रा को देखकर लगा ही नहीं कि यह वही क्षिप्रा है जिसे हम सदैव देखते हैं, स्नान के लिए स्वच्छ जल उपलब्ध था। छह सात करोड़ लोग एक ही स्थान पर एकत्रित हुए लेकिन सब कुछ पूरी तरह व्यवस्थित रहा। स्नान करने के दौरान श्रद्धालुओं को किसी तरह की परेशानी नहीं हुई। सरकार की ओर से दुरुस्त व्यवस्था थी। स्वच्छ वातावरण और इसके साथ ही विचारों को परिष्कृत करने का अवसर भी। यह कुंभ निश्चित रूप से श्रेष्ठ व्यवस्था के लिए याद किया जाएगा और देश के अन्य तीर्थों में भी कुंभ के आयोजन में इन मान बिंदुओं का अनुकरण किया जाएगा।
—राजेश तिवारी, श्रद्धालु
मैं पिछले दो-तीन कुंभों में यहां स्नान करने आया लेकिन इस बार का कुंभ व्यवस्था के नाते अकल्पनीय है। योजनाबद्ध तरीके से क्षिप्रा के दोनों ओर इतनी अधिक जगह निकाली गई जो श्रद्धालुओं के लिए एक बड़ा अचरज है। इतने बड़े घाट, इतनी सफाई और कई श्रद्धालुओं द्वारा एक साथ स्नान किए जाने के बाद भी अवयव्स्था का लेशमात्र दर्शन नहीं हुआ। शाही स्नान में भी किसी तरह की अव्यवस्था नहीं दिखी। नर्मदा के पानी के कारण जहां क्षिप्रा का जल का स्वच्छ बना रहा, वहीं गंदे पानी की निकासी की विशेष व्यवस्था थी। चाहे पार्किंग हो या कानून व्यवस्था, सब आध्यात्मिक रंग में रंगा हुआ दिखा। विचारकुंभ भी अपने आप में अद्वितीय था जहां विदेशों के विशेषज्ञों ने अपनी बात रखी।
— श्याम, श्रद्धालु
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