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रणदीप हुड्डा एक अत्यंत प्रतिभाशाली कलाकार हैं। फिल्मी शब्दावली में कहें तो वे 'चरित्र की खाल में घुस जाने' के लिए मशहूर हैं। ओमंग कुमार की बायोपिक 'सरबजीत' के लिए उन्होंने 28 दिनों में 18 किलो वजन कम किया़ ऐश्वर्य राय और ऋचा चड्ढा वाली इस फिल्म में सरबजीत का किरदार निभा कर रणदीप खूब वाहवाही बटोर रहे हैं। उनसे हुईं संक्षिप्त बातचीत के अंश-
सरबजीत के रोल के लिए आपने काफी मेहनत की?
इस फिल्म की शूटिंग की शुरुआत में मेरा वजन 94 किलो था। वजन कम करना हमारे लिए मुश्किल नहीं होता, क्योंकि ट्रेनर होते हैं जो आपको वजन कम करना बताते हैं। लेेकिन बॉडी के मसल्स को खत्म करना बड़ा मुश्किल काम होता है। मुझे सबसे पहले फिल्म के उस हिस्से को फिल्माना था जब सरबजीत अपने गांव में एक हट्टा-कट्टा पहलवान था। इसके बाद मुझे धीरे-धीरे अपना वजन कम करना था। कम होते वजन वाले दृश्य तब के लिए थे, जब सरबजीत का मेरा किरदार पाकिस्तानी जेल में बंद था। मुझसे कहा गया कि तुझे हड्डियों का ढांचा भर दिखना है। इसके लिए मैंने अपनी बहन डॉक्टर अंजलि हुड्डा सांगवान की मदद ली। खाने पर पूरी तरह से नियंत्रण किया। कई बार भूख से मुझे नींद तक नहीं आती थी। एक स्थिति ऐसी आई कि चलने फिरने में भी दिक्कत होने लगी। लगता था कि चलूंगा तो गिर जाऊंगा।
हर फिल्म के लिए आप इतनी मेहनत तो नहीं करते होंगे?
मेरे लिए फिल्में सिर्फ पैसे बनाने का जरिया नहीं हैं। मुझे लगता है कि मैं हर फिल्म से कुछ न कुछ सीखता हूं। हर चरित्र मुझे सिखाता है, खास कर सरबजीत जैसे चरित्र जिससे आप शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक तौर पर जुड़ जाते हैं।
क्या यह आपकी सबसे अधिक चुनौती वाली भूमिका थी ?
शायद हां। जैसा कि मैंने कहा कि मेरे लिए हर रोल महत्वपूर्ण है लेकिन कुछ अत्यंत चुनौतीपूर्ण होते हैं। सरबजीत की बहन दलबीर कौर और उनके परिवार के संघर्ष की कहानी मीडिया में खूब प्रचारित हुई लेकिन उसके जीवन के उन 23 वषार्ें की कहानी, जो उन्होंने पाकिस्तानी जेलों में बिताये, के बारे में बहुत कम जानकारी हैं।
मेरे पास देखने के लिए उनकी सिर्फ एक तस्वीर, 1 मिनट का कबूलनामे जैसा एक वीडियो और कुछ पत्र थे। वीडियो देखकर साफ लगता है कि फिल्माने से पहले उन्हें नशे का डोज दिया गया होगा। सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि मैं किस आधार पर उनकी भूमिका निभाऊं ? फिर मैंने सोचा कि यही तो असली चुनौती है किसी अभिनेता के लिए। मैंने सरबजीत की बहन और उनके परिवार वालों के साथ काफी वक्त बिताया। उनके दर्द को समझा। उनके संघर्ष को नजदीक से जाना।
सरबजीत पर उपलब्ध दस्तावेजों की इस कमी से आप कैसे निपटे?
एक काल्पनिक चरित्र को निभाते हुए आप कई बार कई तरीके के प्रयोग करते हैं। निर्देशक भी आपको इसकी छूट देता है। लेकिन एक वास्तविक चरित्र को निभाते हुए यह छूट नहीं होती़ आपको फिल्म की पटकथा के हिसाब से चलना पड़ता है।
देखिये, फिल्म के लिए अपने शरीर में बदलाव लाना उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना खुद को उस चरित्र में ढालना जिसने अपने जीवन के 18 साल पकिस्तान की जेल में बिताये और वह भी गलत आरोपों में फंसाए जाने के बाद। उसके दिल और दिमाग में क्या चलता होगा? उसे अपनी पत्नी, बच्चे और बहन जब याद आती होगी तो कैसा लगता होगा? इस डर के साथ जीना कि कभी भी मौत आ सकती है, कैसा लगता है? इन सवालों के जवाब मैंने खुद तलाशे और अपने अभिनय में पिरोने की कोशिश की।
सरबजीत की भूमिका कैसे मिली?
मैंने सरबजीत के बारे में दो-एक खबरें देखी थीं टीवी पर। फिर किसी ने मुझे एक अखबार की कतरन लाकर दी जिसमें सरबजीत की बहन दलबीर कौर और उनके बच्चों ने इच्छा जताई थी कि अगर उस पर फिल्म बने तो मैं ही उनका किरदार निभाऊं । मुझे तब तक पता नहीं था कि उनके जीवन पर एक फिल्म बन रही है। फिर कुछ दिनों बाद कुमार ने संपर्क किया। मेरे लिए बड़ा सम्मान यही है कि दलबीर चाहती हैं कि जब उनका देहांत हो तो मैं उन्हें कंधा दूं।
फिल्म के बाक्स ऑफिस पर परफॉर्मेंस से खुश हैं?
मैं किसी फिल्म को इसलिए नहीं चुनता हूं कि वह कमर्शियल हैं या नहीं। या वह बाक्स अफिस पर चलेगी या नहीं। मेरे लिए रोल चुनौतीपूर्ण होना चाहिए। सरबजीत के लिए हां करते हुए भी मैंने यह नहीं सोचा कि इस फिल्म का बाक्स ऑफिस नतीजा कैसा होगा। यह भी नहीं सोचा कि फिल्म के निर्देशक ओमंग कुमार हैं जिन्होंने प्रियंका चोपड़ा को लेकर 'मेरी कॉम' फिल्म बनाई थी जो सुपर हिट रही।
किस तरह के रोल करना चाहते हैं ?
नई कहानियां सामने आनी चाहिए़ नए माहौल और सेटिंग्स को फिल्मों में दिखना चाहिए। मुंबई में माफिया और गैंगस्टर वाली फिल्मों की अति हो गई है। हालांकि मैं हर कहानी और सेटिंग में फिट होना चाहता हूं। मैं इस मामले में थोडा लालची और स्वार्थी हूं।
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