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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में राजग सरकार ने दो वर्ष पूरे किए हैं। सरकार गांव, गरीब और किसानों के कल्याण पर विशेष ध्यान दे रही है। इससे सीधा जुड़ा है कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय, जिसे पिछले 70 साल से उपेक्षित ही रखा गया था। कृषि मंत्री श्री राधामोहन सिंह ने न केवल खेती-किसानी पर ध्यान देते हुए देश का अन्न भंडार भरने की चिंता की है, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि किसान हित से जुड़ीं योजनाओं का लाभ सीधे किसानों तक पहुंचे। आगे के कार्यों और किसानों की खुशहाली के लिए बनने वाले कार्यक्रमों की जानकारी के लिए अरुण कुमार सिंह ने श्री राधामोहन सिंह से बातचीत की, जिसके प्रमुख अंश यहां प्रस्तुत हैं-
किसानों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए क्या कदम उठाए हैं आपके मंत्रालय ने?
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में वर्तमान केन्द्र सरकार गांव, गरीब और किसानों के लिए समर्पित है। इन्हें ध्यान में रखते हुए मेरे मंत्रालय ने कृषि के क्षेत्र में अनेक कार्यक्रमों और योजनाओं की शुरुआत की है। जैसे प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, प्रधानमंत्री सिंचाई योजना, मोबाइल एप की शुरुआत, राष्ट्रीय कृषि बाजार आदि। इन सबके परिणाम भी दिखने लगे हैं। कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री सिंचाई योजना शुरू की गई। इसके तहत किसानों को राज्य सरकारों के जरिए सिंचाई की बेहतर सुविधाएं दी जा रही हैं। इसके साथ ही भूजल के संसाधनों का संरक्षण किया जा रहा है, ज्यादा कुएं और तालाब बनाए जाने का काम चल रहा है। इसके लिए बजटीय आवंटन भी बढ़ाया गया है। अलग से नाबार्ड के सहयोग से 20,000 करोड़ का प्रारंभिक कोष बनाया गया। इसके साथ ही बड़ी और मध्यम श्रेणी की वे 89 परियोजनाएं, जो वर्षों से लंबित थीं, उनका भी 30 प्रतिशत काम हो चुका है। सिंचाई की बड़ी परियोजनाओं पर भी तेजी से काम चल रहा है। कृषि लागत कम करने के लिए भी काम किया गया।
कृषि लागत का बड़ा हिस्सा खाद से जुड़ा है, क्या इसमें भी सुधार हुआ?
रसायनिक खाद या कहिए यूरिया की किल्लत इस सरकार के आने से पहले रहती थी, अब नहीं है। आपको पता होगा कि यूरिया खाद को लेकर संसद में हर वर्ष हंगामा होता था। किसानों को कालाबाजार में भी यूरिया नहीं मिलती थी, क्योंकि बनने के साथ ही 30 प्रतिशत यूरिया केमिकल फैक्ट्रियों में चली जाती थी। इसके लिए सरकार हजारों करोड़ रुपए की सब्सिडी देती थी, लेकिन किसान को लाभ नहीं मिलता था। हमारी सरकार ने पहले ही वर्ष में यूरिया को नीम लेपित किया। इसका फायदा यह हुआ कि 2015-16 में यूरिया की कोई कमी नहीं हुई। कहीं किसान पर लाठी नहीं चली, संसद में भी इस मुद्दे पर किसी ने हंगामा नहीं किया। नीम लेपित होने से यूरिया का दुरुपयोग रुका। इसी तरह पहले जिस किसान को 100 किलो यूरिया की जरूरत होती थी उसका काम 80 किलो में ही हो जा रहा है। इससे किसान की लागत कम हुई। किसानों को यह पता नहीं है कि उनकी जमीन पर कितनी खाद लगेगी, कौन सी दवा लगेगी। इसके लिए किसानों को सॉयल हेल्थ कार्ड दिया जा रहा है। मार्च, 2016 तक दो करोड़ किसानों को सॉयल हेल्थ कार्ड दिए जा चुके हैं। 2017 तक पांच करोड़ किसानों को यह कार्ड देने का लक्ष्य रखा गया है। इससे भी किसानों की लागत कम होगी।
जैविक खेती को और बढ़ावा मिले, इसके लिए क्या कुछ कदम
उठाए गए हैं?
इसके लिए परंपरागत कृषि विकास योजना चलाई गई है। इसमें किसानों को प्रति एकड़ 20,000 रु. की मदद दी जाती है। इस क्षेत्र में सभी राज्य अच्छा काम कर रहे हैं, लेकिन सिक्किम में पूरी तरह से जैविक खेती होने लगी है। जैविक खेती के लिए पहली बार योजना बनाई गई। इसके लिए राज्यों को मदद दी गई। मुझे खुशी है कि राज्यों ने 50-50 एकड़ के लगभग 8,000 समूह भी बना लिए हैं। मनरेगा के तहत जैविक खाद के उत्पादन के लिए 10 लाख कम्पोस्ट गड्ढों का निर्माण किया जाएगा। इस तरह लागत कम करने और उत्पादन बढ़ाने के लिए अनेक काम हुए हैं।
किसान को उसकी फसल का उचित दाम मिले, इसके लिए क्या किया जा रहा है?
किसानों को उनकी उपज का अच्छा मूल्य दिलाने के लिए राष्ट्रीय कृषि बाजार शुरू किया गया। इसके लिए 17 राज्यों ने अपने नियमों में बदलाव किया। वन ई ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म के लिए एक साफ्टवेयर भी शुरू किया गया। इससे 14 अप्रैल से अब तक आठ राज्यों की 21 मंडियां जुड़ भी चुकी हैं। इसके साथ हम मार्च, 2018 तक देश की 585 बड़ी मंडियों को जोड़ देंगे। अगर राज्यों का अच्छा सहयोग मिलेगा तो 2017 में ही यह काम पूरा हो जाएगा। इससे किसान आसानी से अपनी उपज सही दाम पर बेच सकते हैं।
किसानों पर प्राकृतिक आपदा की मार पड़ती रहती है। क्या आपदा कोष में राशि बढ़ाई गई है, ताकि किसानों को कुछ हद तक राहत मिले?
हमने आपदा मानकों में बदलाव किया है। पहले आपदा से प्रभावित किसानों को 50 प्रतिशत नुकसान पर राहत मिलती थी, अब 30 प्रतिशत नुकसान पर ही राहत मिलती है। आपदा में मृत्यु होने पर पहले 1,50,000 रु. मिलते थे, अब उसे 4,00000 रु. किया गया है। राज्य आपदा कोष में पहले 33,000 करोड़ रु. दिया जाता था, उसे लगभग दुगुना करके 61,000 करोड़ रु. किया गया है। राष्ट्रीय आपदा कोष की राशि भी बढ़ाई गई।
प्राकृतिक आपदा की स्थिति में फसल योजना तो पहले भी थी, ऐसा क्या बदला गया?
पहले भी फसल बीमा योजना थी। उसमें किसानों को प्रीमियम ज्यादा देना पड़ता था और भुगतान की सीमा (कैपिंग) भी थी। पूरी फसल के नुकसान पर ही मुआवजा दिया जाता था। अलग-अलग राज्यों और जिलों में अलग-अलग फसलों के लिए प्रीमियम की दरें अलग-अलग थीं। अब ऐसा नहीं होता। प्रधानमंत्री ने खुद इसके लिए पहल की और इसके बाद प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना शुरू की गई। यह योजना इस खरीफ से लागू हो रही है। इसमें देशभर की रबी फसलों के लिए प्रीमियम की दर डेढ़ प्रतिशत और खरीफ फसलों के लिए दो प्रतिशत रखी गई है। भुगतान की सीमा भी खत्म कर दी गई है। जितना नुकसान होगा, उसका मुआवजा दिया जाएगा। पहले नियम था कि कटाई के बाद यदि फसल खेत पर रह जाती थी और प्राकृतिक आपदा से खराब हो जाती थी तो मुआवजा नहीं मिलता था। अब यह नियम बना दिया गया है कि कटी हुई फसल 14 दिन तक ख्ेात पर रह जाती है और इस बीच में वह प्राकृतिक आपदा से नष्ट हो जाती है तो पूरा मुआवजा मिलेगा। यह भी तय किया गया है कि किसी भी किसान को एक महीने के अंदर मुआवजा दिया जाए। मतलब आजादी के बाद किसानों के कल्याण के लिए सबसे बड़ी योजना शुरू की गई है।
माना जाता है कि खेती अब किसान के लिए मुनाफे का सौदा नहीं रही। इस स्थिति को कैसे संभालेंगे?
राष्ट्रीय कृषि मंडी का निर्माण किया जा रहा है। इसके साथ ही पशु पालन, डेयरी, मुर्गीपालन, मधुमक्खी पालन, मछली पालन आदि पर हमने विशेष जोर दिया है। मेरे मंत्रालय के प्रयासों का ही परिणाम है कि देश में इस समय दूध का रिकॉर्ड उत्पादन हो रहा है। इस वर्ष दूध की वृद्धि दर 12 प्रतिशत है। आपको बता दें कि दूध के उत्पादन में पिछले 10 वर्ष की औसत वार्षिक वृद्धि दर विश्व में 2.2 प्रतिशत रही है, जबकि भारत में 4.5 प्रतिशत। मछली और अंडों का उत्पादन भी बढ़ा है। राष्ट्रीय वानिकी कार्यक्रम भी चलाया गया है। इसके अंतर्गत किसान अपने खेत की मेड़ों पर पेड़ लगा सकते हैं। इससे उनकी आमदनी बढ़ेगी। प्रधानमंत्री का लक्ष्य है हर खेत तक पानी पहंुचाना और हर किसान के आंगन में खुशियां लाना। मेरा मंत्रालय इसी लक्ष्य को प्राप्त करने में लगा है।
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