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बुरहानपुर में भूजल 600 फीट नीचे जा चुका है। लेकिन लोगों ने तय किया है कि वे पानी के लिए लड़ेंगे नहीं, बल्कि इसे बचाने के लिए मिलकर जुगत लड़ाएंगे, अच्छी बात यह है कि पहल कारगर हो रही है
बंमाडा गांव के किसान राजाराम सागर ने अपने खेत में 8 -10 कुंड बनाये हैं। कुछ और कुंड तैयार किये जा रहे हैं। 135 मीटर लंबे-चौडे़ और लगभग एक मीटर गहरे एक खेत कुंड को बनाने में केवल दो-तीन हजार रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक ऐसे ही एक कुंड को सरकारी अमला 20 हजार रुपये में बनाता। राजाराम उन शुरुआती 10-12 किसानों में से एक हैं, जिन्होंने अपने खेत में कुंड बनाने की पहल की थी।
अनिल सौमित्र, भोपाल से
मध्य प्रदेश का बुरहानपुर जिला एशिया महाद्वीप के उन क्षेत्रों में से है एक है जहां भूजल स्तर सबसे तेज गति से गिर रहा है। पिछले कुछ समय से स्थानीय लोगों ने यहां जल-जागरण अभियान चला रखा है। इस अभियान का असर साफ तौर पर दिखाई देने लगा है। खामनी गांव के किशोर पाटिल कहते हैं, ''लोग जाग चुके हैं। हम सब मिलकर पानी की लड़ाई जीत लेंगे।'' लोगों ने पानी की समस्या को सावधानी और सतर्कता के साथ सुलझाने की कोशिश की है। सोच और संकल्प यह है कि न तो पानी की रेलगाड़ी बुलाने की नौबत आई और न ही पानी की छीना-झपटी रोकने के लिए पुलिस को धारा 144 लगानी पड़ी। गांव के लोग पानी के लिए लड़ नहीं रहे, बल्कि पानी बचाने का प्रयास कर रहे हैं।
जसौंदी की सरपंच शोभाबाई रमेश प्रचंड गर्मी और पानी की किल्लत से दो-दो हाथ करने के लिए तैयार हैं। वे कहती हैं, ''हम पानी की किल्लत और सूखे से पार पा लेंगे।'' बुरहानपुर का तापमान सामान्य से कुछ अधिक ही रहता है। गर्मी के दिनों में निमाड का सबसे ज्यादा तपने वाला क्षेत्र बुरहानपुर ही है। यह मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र का सीमावर्ती क्षेत्र है। बुरहानपुर जिला 15 अगस्त, 2003 को पूर्व निमाड खंडवा से अलग होकर बना है। यह ताप्ती नदी के किनारे स्थित है।
सतपुड़ा के जंगल व ताप्ती एवं उसकी पूरक नदियों वाले इस क्षेत्र में एक ज़माने में भूजल की प्रचुरता थी। आज भी इलाके में बड़ी संख्या में कुएं और बावडि़यां दिखती हैं। बुरहानपुर में भूजल स्तर 600 फुट से नीचे चला गया है, लेकिन यहां के लोगों ने तय किया है कि वे पानी के लिए त्राहि-त्राहि नहीं करेंगे। वे पानी को रोकने-टोकने, घेरने-मोड़ने और थामने का हर-संभव जतन करेंगे।
बुरहानपुर में पानी के लिए हिंसक संघर्ष न हो, किसान आत्महत्या न करें, बच्चे-बूढे़ जलानुशासन का पालन करें, सरकारी अमला पानी बचाने में लोगों का सहयोग करे चिटनीस इस प्रयास में लगी हैं। बुरहानपुर के लोग अपने विधायक के साथ गांव-गांव, मुहल्ले-मुहल्ले जल जागरण फेरी लगा रहे हैं। लोग एक-दूसरे से पानी ज्यादा कमाने और कम खर्च करने की गुहार करते हैं। वे स्कूली बच्चों को पानी का महत्व समझा रहे हैं। मुहिम का असर दिखाई देने लगा है। पानी के साथ किफायत का व्यवहार हो रहा है। पानी की बर्बादी कम हो गई है। किसान पानी के साथ-साथ मिट्टी के संरक्षण के लिए भी चिंतित हैं। वे अपने खेत के लिए मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनवा रहे हैं। पानी, बिजली, खाद और कीटनाशकों के बेतहाशा उपयोग के कारण महंगी और हानि की खेती से उबरने के लिए किसान मिल-बैठकर रास्ता निकालने का प्रयास कर रहे हैं।
बहरहाल, किसानों ने 33 से अधिक गांवों में हजार से अधिक खेत कुंड बनाये हैं। सरकारी अमला ग्रामीणों की मदद से छोटे-बडे़ तालाब बनवा रहा है। किसान आगे बढ़कर खेत-तालाब योजना का लाभ ले रहे हैं। जो तालाब नहीं बना रहे, वे जंगल बचा रहे हैं, पेड़ लगा रहे हैं। किसान स्वयं के खर्च पर भी तालाब बना रहे हैं। बलड़ी, जसौंदी, तारापाटी, चिल्लारा, दापोरा, नाचनखेड़ा, धामनगांव, चापोरा, बहादरपुर, बंभाड़ा, इच्छापुर, शाहपुर, फोफनार, संग्रामपुर, बादखेड़ा, बिरोदा, ठाठर, खामला, भावसा, मगरूल, लोनी, अड़गांव, बड़सिंगी, बख्खारी, बोरगांवखुर्द, हतनूर, खामनी, पातोंडा, मोहद, वारोली, नागुलखेड़ा, मैथा, रायगांव, तुरकगुराड़ा, चांगढ़, चिडि़यापानी, करोली, कालमाटी, हतनूर, भोटा आदि गांवों में विशेषज्ञों द्वारा सायंकालीन किसान संगोष्ठी में कम पानी से खेती और अधिक उपज के लिये न सिर्फ तरकीब बताई जा रही है, बल्कि उन्हें प्रेरित भी किया जा रहा है। पहली बार 600 हेक्टेयर भूमि पर धारवाड़ पद्धति से अरहर की खेती के लिये बुआई की पहल की गई। बुरहानपुर के किसान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के संदेश से भी वाकिफ हैं। मुख्यमंत्री कहते रहे हैं कि किसान भाई भी अच्छे उद्यमी की तरह कार्य करें। किसानों की कृषि ऐसी हो जो पर्यावरण और बाजार की चुनौतियों का सामना कर सके।
शाहपुर क्षेत्र के संतोष सागर, शेख शब्बीर, रमेश महाजन, संतोष धाने और गोकुल बारी सहित कई किसानों ने अपने खेतों में स्वयं के खर्चे से तालाब बनवा कर मिसाल कायम की है। ग्राम बहादरपुर के सरपंच प्रवीण शहाणे कहते हैं, ''लोगों की सजगता ने पानी की किल्लत से बचाया।'' लोग एक-दूसरे को पाइप से गाडि़यां न धोने, नल खुले न छोड़ने और महिलाओं को खुले नल पर कपड़े न धोने की हिदायत देते नजर आते हैं। यहां की महिलायें पुरुषों से दाढ़ी बनाते समय नल की बजाय कप में पानी का उपयोग करने का आग्रह करती हैं। खुले नलों से बहते-रिसते पानी को रोकने के लिए विधायक निधि से बडे़ पैमाने पर टोटियां वितरित की गई हैं। चिटनीस कहती हैं, ''हमने महाराष्ट्र के लातूर से सबक लिया है। हम बुरहानपुर को पानी के मामले में लातूर नहीं बनने देंगे।''
अमरावती और मोहना नदी में रिचार्िंजग के लिए शाहपुर-बुरहानपुर में किया गया प्रयोग प्रदेश के अन्य जिलों के लिए उदाहरण बन गया है। शाहपुर नगर पंचायत के पूर्व अध्यक्ष रामभाऊ सोनवणे ने शाहपुर के सार्वजनिक कुएं को दुरुस्त कराया और 10 हार्सपावर का मोटर पंप लगाकर पानी प्रदान किया। इसी तरह बुरहानपुर के लालबाग, गुलाबगंज, चिंचाला के कुंओं की भी सफाई कराकर बंद पड़े कुंओं को जनोपयोगी बनाने की पहल आज जनआंदोलन का रूप ले चुकी है।
वैसे तो समूचा बुरहानपुर ही सूखे और पानी की कमी से जूझ रहा है, लेकिन करोनिया फाल्या में जल संकट कुछ ज्यादा ही है। यहां लोग सूखी उतावली नदी में गड्ढा खोदकर पानी निकाल रहे हैं, लेकिन वह पानी जरूरत के मुताबिक नहीं है। महिलायें और बच्चे अपना ज्यादातर वक्त पानी खोजने, निकालने और लाने में ही लगाते हैं। इन सबसे से बचने का एक ही उपाय है जनजागरण के जरिए जल संचयन। बुरहानपुर ने शायद अपनी समस्याओं को हल करने की कुंजी तलाश ली है।
'हम चेतेंगे नहीं तो बचेंगे नहीं'
क्षेत्र में जल संचय और समृद्धि के लिए अभियान की अगुआ बुरहानपुर की विधायक अर्चना चिटनीस से पाञ्चजन्य ने बातचीत की। प्रस्तुत हैं प्रमुख अंश-
क्षेत्र में जल के लिए यह जनजागरण कब से चल रहा है?
गत 7-8 वर्षों से पानी के लिये प्रयास कर रहे हैं, एक ही संदेश है- हम चेतेंगे नहीं तो बचेंगे नहीं। पानी, हवा की तरह ही मनुष्य के अस्तित्व के लिये अनिवार्य है। हमें हर हाल में पानी बचाना ही होगा, पानी कमाना ही होगा। हवा, पानी, मिट्टी जीवन का आधार है। भूख मिटानी हो या प्यास बुझानी हो, खेती हो या उद्योग, सब पानी से ही संभव है।
किस-किस तरह के प्रयोग आजमाए जा रहे हैं?
वर्षा-जल के संचयन के लिये विभिन्न क्षेत्रों में छोटे-छोटे बांध और खेत-कुंड बनाये गये हैं। किसान कम पानी, कम लागत और छोटी अवधि वाली फसलों की ओर बढ़ रहे हैं। अरहर की धारवाड़ पद्धति प्रचलित हो रही है। जहां किसान एक वर्ग इंच की भूमि बुआई से नहीं छोड़ता था, वहां इस वर्ष लगभग 800 खेत कुंड अर्थात् 96 हजार वर्गमीटर सतही क्षेत्रफल के खेत कुंड बना चुके हैं। पानी के प्रति समझदारी व जिम्मेदारी को सब जान गए हैं और मान भी रहे हैं। हम अखबार, टीवी और रेडियो के सहारे नहीं, चर्चा, पत्र और रैली के द्वारा सीधे लोगों के बीच जा रहे हैं। मेरे प्रयास और आग्रह पर अमरावती नदी में अस्थायी कुएं और रिचार्िंजग शाफ़्ट जनभागीदारी से खुदवाए गए। इससे जलस्तर बढ़ा। इसका फायदा शाहपुर के किसानों को मिला। शासन ने भी विभिन्न योजनाओं में बुरहानपुर की ताप्ती नदी, मोहना, अमरावती, सूखी सहित अन्य नदियों पर पानी रोकने के करोड़ों रुपए के कामों को स्वीकृति दी।
जल जागरण में किसानों को क्या बताया जाता है?
किसान महंगी और हानि की खेती के कारण हताश हैं। हम विशेषज्ञों के साथ गांव-गांव जाकर किसान संगोष्ठियां कर किसान भाइयों और बहनों के दिलो-दिमाग में यह डालने का प्रयास कर रहे हैं कि कम लागत में भरपूर और सुनिश्चित कमाई कैसे हो सकती है। हम पानी, बिजली, खाद व कीटनाशकों के खर्च को संभालते हुए भी अपनी आमदनी बनाये रखने की तरकीबें मिल-बैठकर निकालते हैं।
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