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भारत और ईरान के संबंध करीब 2000 साल पुराने हैं। 'ईरान' का अर्थ है-आयोंर् का स्थान। संस्कृत और पारसियों की भाषा अवेस्ता में बहुत समानता थी जो छठी शताब्दी तक बरकरार रही। अरब आक्रमण के बाद वहां की लिपि बदल गई, पर आज भी फारसी और हिंदी के कई शब्द समान हैं। वहीं फारसी का उर्दू पर गहरा प्रभाव पड़ा।
प्रधानमंत्री मोदी की ईरान यात्रा ऐतिहासिक रही, क्योंकि आज अफगानिस्तान- पाकिस्तान के भू-राजनीतिक परिदृश्य बदल रहे हैं। अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की प्रस्तावित वापसी से हालात ज्यादा अनिश्चित हो रहे हैं। यहां स्थिरता बढ़ाने में भारत और ईरान की भूमिका अहम है। आईएसआईएस के उदय से भी परस्पर सहयोग की जरूरत बढ़ी है। प्रधानमंत्री की यात्रा ऐसे समय पर हुई है जब ईरान से प्रतिबंध हटने के बाद दूसरे देश तत्परता से उसके साथ अपने रिश्ते बेहतर करने लगे हैं। चीन तो प्रतिबंध के दौरान भी जुड़ा था। उसने हाल में देश के पूर्वी भाग से उत्तरी ईरान तक रेलवे लाइन बिछाई है और वह चाबहार में एक रिफाइनरी बना रहा है। स्विस राष्ट्रपति ने हाल में ईरान का दौरा किया। राष्ट्रपति रूहानी ने पेरिस और रोम की यात्रा की। ब्रिटेन ने तो राजनयिक रिश्ते बहाल होने से पहले ही ब्रिटेन-ईरान व्यापार परिषद का गठन कर दिया था। भारत और ईरान का रिश्ता हमेशा कायम था, अब इसे प्रगाढ़ करने की जरूरत है।
प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा के दौरान दो अहम समझौते हुए। पहला, चाबहार बंदरगाह के विस्तार में भारत की भागीदारी संबंधी अनुबंध जो मई, 2015 में नितिन गडकरी की यात्रा में हुए समझौता ज्ञापन पर आधारित था। दूसरा, भारत, ईरान और अफगानिस्तान के बीच त्रिपक्षीय परिवहन और पारगमन संबंधी समझौता। इनके शीघ्र कार्यान्वयन से पारगमन मार्ग के लिए अफगानिस्तान की पाकिस्तान पर निर्भरता कम हो जाएगी। समझौतों के दौरान अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अहमद गनी की मौजूदगी तीनों देशों के समन्वित हितों की प्रतीक है।
राष्ट्रपति रूहानी के अनुसार इस परिवहन और पारगमन समझौते में दूसरे देश भी शामिल हो सकते हैं। मोदी ने भी बहिष्कार की जगह सम्मिलित करने की नीति पर जो दिया, क्योंकि क्षेत्रीय संपर्क बढ़ने का फायदा क्षेत्र के सभी देशों को मिलेगा। चाबहार बंदरगाह से भारत को अफगानिस्तान जाने का सबसे छोटा भू-मार्ग मिलेगा। भारत ने वहां जरांज- डेलाराम सड़क बनाई है जो जहेदान के पास ईरानी सीमा मिलाप से जुड़ती है। मिलाप-जहेदान और चाबहार के बीच रेल संपर्क नहीं है। इनके बीच रेलवे लाइन से संपर्क बढ़ेगा।
प्रधानमंत्री ने यात्रा के दौरान 1़ 6 अरब डालर की लागत से चाबहार-जहेदान रेल संपर्क बनाने के समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। अगर यह रेलवे लाइन उत्तर में मशद तक बढ़ा दी जाए तो भारतीय निर्यातकों के लिए मध्य एशिया तक पहुंचना आसान हो जाएगा। चाबहार मुक्त व्यापार क्षेत्र निवेश के रास्ते भी खोलेगा। ईरान यूरिया संयंत्र की स्थापना के लिए सस्ती गैस दे ही रहा है। इससे भारत का सब्सिडी बोझ कम होगा। अगर ईरान ने ईथेन गैस दी तो वहां पेट्रो रसायन क्षेत्र में पर्याप्त भारतीय निवेश संभव है। गैस की कम कीमत के कारण बिजली की ज्यादा खपत वाले उद्योग लगाने की दृष्टि से भी ईरान आकर्षक विकल्प है। नाल्को ने चाबहार में एल्युमिनियम संयंत्र लगाने के लिए समझौता किया है।
अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण ट्रांजिट कॉरिडोर (आईएनएसटीसी) से रूस और सीआईएस देशों तक हमारी पहुंच बनेगी। यह मार्ग दक्षिण में बंदार अब्बास बंदरगाह से लेकर उत्तर में कैस्पियन सागर के बंदरगाहों और भू-पारगमन सीमाओं को जोड़ता है। कैस्पियन सागर के दूसरी तरफ एक विकसित रेल नेटवर्क पहले से मौजूद है जिसका इस्तेमाल संयुक्त अरब अमीरात, रूस, कजाकिस्तान और चीन प्रतिबंध के दौरान भी कर रहे थे। कजाकिस्तान ने ईरान होते हुए गेहूं निर्यात के लिए अमीराबाद बंदरगाह विकसित किया। उत्तर में कैस्पियन सागर के सभी ईरानी बंदरगाह सड़क मार्ग से दक्षिण में बंदर अब्बास बंदरगाह से जुड़े हैं। अमीराबा बंदरगाह और बंदार अब्बास रेल से जुड़े हैं। कजाकिस्तान से तुर्कमेनिस्तान होते हुए ईरान तक की रेल लाइन का तीनों देशों के राष्ट्रपतियों ने दिसंबर 2014 में उद्घाटन किया था जो तुर्कमेनिस्तान-ईरान सीमा पर इंचेबेरुन से ईरान में प्रवेश करती है। भारतीय निर्यात के लिए इस मार्ग का परीक्षण भी किया गया था। मोदी की यात्रा से भारत का निर्यात बढ़ेगा। आठ करोड़ की आबादी वाला ईरान प्रतिबंधों के खत्म होने के बाद भारतीय निर्यात के लिए आकर्षक स्थल है। मोदी तेहरान में गुरुद्वारे गए। भारत में भी बड़ी संख्या में ईरानी रहते हैं। कौम शिया मजहबी अध्ययन का बड़ा केंद्र है जहां भारत से बड़ी संख्या में शिया छात्र पढ़ने आते हैं। निश्चित ही प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा ने ईरान से हमारे रिश्तों को नई दिशा दी है। -डी. पी. श्रीवास्तव
(लेखक ईरान में भारतीय राजदूत रहे हैं)
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