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अक्सर समाज में एक ऐसा वर्ग होता है, जो महिलाओं को कमजोर और लाचार मानता है। वह समझता है कि महिलाएं कठिन काम नहीं कर सकतीं। ऐसे लोगों को मध्य प्रदेश के देवास जिले के कन्नौद ब्लॉक के पानपाट को देखना चाहिए। इन महिलाओं के अथक परिश्रम ने जो कर दिखाया, उसे देखकर हैरानी होती है। क्योंकि इन महिलाओं ने एक गांव की ही नहीं बल्कि कई गांवों की तस्वीर बदलकर रख दी है। कभी पानपाट की महिलाएं मीलों पैदल चलकर पानी ढोकर लाती थीं। पर अब ऐसा बिल्कुल नहीं है। इस सबका श्रेय 70 वर्षीया काली बाई को जाता है। चेहरे पर झुर्रियां पड़ गई हैं पर हौसले में कोई कमी नहीं आई है। इसी क्षेत्र में है एक एनजीओ, विभावरी जो महिलाओं के साथ अन्य क्षेत्रों में भी काम करता है। विभावरी के निदेशक डॉ. सुनील चतुर्वेदी बताते हैं, ''पानपाट में वर्षों पहले पानी की बहुत बड़ी समस्या थी। यहां जलस्तर काफी नीचे था। पानी की समस्या पर कई बार जनप्रतिनिधियों को यहां के बंजारा समुदाय ने ध्यान दिलाया पर समस्या का समाधान नहीं हुआ। सरकारें आईं और चली गईं पर गांव की तस्वीर जस की तस ही रही। नेताओं ने बहुत वादे किये पर हुआ कुछ नहीं। गर्मियां आते ही यह समस्या विकराल रूप ले लेती है और पानी बहुत नीचे चला जाता है। गांव की महिलाएं सिर पर घड़ा रखकर कई-कई किलोमीटर से पानी लाने पर मजबूर होती हैं। असल में इस समस्या से सबसे ज्यादा परेशानी गांव की महिलाओं को थी। एक दिन इस सबसे तंग आकर 11 महिलाओं ने अपना एक समूह बनाया। इसे देखकर मर्दों ने उनकी हंसी भी उड़ाई। पर उन्होंने इसे अनदेखा किया। महिलाओं ने घर की दहलीज से निकलकर गंेती-फावड़ा उठाकर एक बड़ा तालाब खोद डाला। इसे खोदने में करीब दो महीने लगे। इस दौरान गांव की कई महिलाओं का उत्साह देखते ही बनता था।'' वे कहते हैं,''असल में पठारी क्षेत्र और नीचे काली चट्टान होने के कारण पानी रोकना या भूजल स्तर बढ़ाना इतना आसान काम नहीं था। पर जहां दृढ़ संकल्प हो वहां कुछ भी असंभव नहीं। इन अनपढ़ समझी जाने वाली महिलाओं ने पानी रोकने की तकनीक सीखी, समझी उसे साकार किया। इस काम में इन्हें राजीव गांधी जलग्रहण मिशन से भी सहायता मिली। गांव का पानी गांव में कैसे रुके, महिलाओं ने इसके गुर सीखे। इन महिलाओं ने पानपाट से 17 किमी. की एक जलयात्रा भी निकाली जिसका उद्देश्य था कि जो काम पानी के लिए उन्होंने किया, वह दूसरे गांव के लोग भी करें। इस आन्दोलन के बाद पुरुषों ने भी कंधे से कंधा मिलाकर पूर्ण सहयोग दिया। इसका परिणाम है कि आज इस इलाके में सैकड़ों जल संरचनाएं दिखाई देती हैं। हाल ही में इनके द्वारा बड़े तालाब एवं खेतों में छोटे-छोटे तालाब, श्रृंखलाबद्ध चेकडैम जैसी कई संरचनाएं बनाई गई हैं।'' इस पूरे कार्य में प्रमुख भूमिका निभाने वाली काली बाई कहती हैं, ''महिलाएं 4 किमी. की दूरी पर स्थिति वाडवेल्डी गांव के कुएं से पानी लाती थीं। गर्मी में सिर पर मटका लेकर पानी लाना कठिन काम था। यानी उनका पूरा दिन पानी ढोने में ही निकलता था। एक दिन हम लोगों ने तय किया कि गांव में जो पानी की समस्या है, उसे सुलझा कर ही दम लेंगे और यही किया। सभी महिलाएं इस काम में लगीं और गांव के चारों ओर तालाब खोदे। इसमें समय लगा। जब पुरुषों ने काम करते देखा तो उन्होंने भी इसमें सहयोग देना शुरू किया। इसका परिणाम यह हुआ कि गांव के चारों ओर तालाब खुद गए। इन तालाबों में वर्षा के पानी का संचय होने लगा। साथ ही चारों तरफ तालाब होने से पानी का जलस्तर 500 फुट से 250 के आस-पास आ गया है, जिसके कारण अब काफी हद तक पानी की समस्या का समाधान हो गया है।'' अश्वनी मिश्र
एक नजर काम पर
स्थान: देवास जिले से 125 किमी. की दूरी पर है कन्नौद ब्लाक का पानपाट गांव
काम: महिलाओं ने अकेले लगकर गांवों मे चारों तरफ तालाब खोदकर वर्षा के पानी का संचय किया।
विशेषता: महिलाओं द्वारा बड़े तालाब एवं खेतों में छोटे- छोटे तालाब, श्रृंखलाबद्ध चेकडैम जैसी कई संरचनाएं बनाई गईं।
हम सभी लोग कई–कई किलोमीटर दूर से पानी लाते थे। भीषण गर्मी में सिर पर मटका लेकर पानी लाना बेहद कठिन काम था। पर गांव की महिलाओं ने जो जज्बा दिखाया, उसने इस समस्या से छुटकारा दिला दिया है। — काली बाई, पानपाट
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