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भारतीय हॉकी दशकों तक विश्व में शीर्ष स्थान पर रही है लेकिन हाल के वर्षों में इसमें बड़ी गिरावट देखी गई है। कुछ ही दिन बाद रियो ओलम्पिक है। भारतीय पुरुष हॉकी टीम उसी की तैयारियों के लिए कमर कस रही है। रियो ओलम्पिक में हमारी टीम की संभावना और अन्य मुद्दों पर भारतीय पुरुष हॉकी टीम के कप्तान सरदार सिंह से बातचीत की निशांत कुमार आजाद ने।
ल्ल हॉकी में हमारा स्वर्णिम अतीत रहा है। 1928 से 1980 के बीच भारत ने 8 ओलम्पिक स्वर्ण पदक जीते लेकिन उसके बाद कभी हमें एक पदक भी नहीं मिला। इस गिरावट के पीछे क्या कारण हैं?
इस खेल पर कृत्रिम घास यानी एस्ट्रो टर्फ और खेल के नियमों में बदलाव का प्रभाव पड़ा है। जबसे इस खेल में एस्ट्रो टर्फ की शुरुआत हुई है, तब से हॉकी में तकनीक की बजाए शारीरिक कौशल अहम हो गया है। बेशक, अब हमारी टीम ने यह लय भी हासिल कर ली है और इसमें पर्याप्त सुधार भी कर लिया है। आज हमारी राष्ट्रीय टीम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पूरे जोश-खरोश और उत्साह से प्रतियोगिताओं में भाग ले रही है।
हाल में संपन्न अजलानशाह कप में टीम ने अच्छा प्रदर्शन किया। भारत ने पाकिस्तान को अच्छे अंतर से हराया। लेकिन दुर्भाग्य से टीम फाइनल में ऑस्ट्रेलिया से हार गई। ओलम्पिक में मुकाबला और भी कठिन होगा। ऐसे में रियो ओलम्पिक में कितनी तैयारी के साथ उतरा जाएगा?
मुझे लगता है कि हम ईपोह से ट्रॉफी जीत कर आएंगे। मुझे पूरा भरोसा है कि टीम की क्षमता और दमखम के बल पर हम अच्छा प्रदर्शन करेंगे। हमारे पास बेशक पूरी ताकत नहीं थी, फिर भी हमने टूर्नामेंट में प्रभावी खेल खेला। 2014 में एशियाई खेलों से ही हमने अपनी टीम में निरंतर सुधार की बदाौलत स्वर्णपदक जीता है। जहां तक रियो की तैयारियों की बात है तो हम कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।
यह साल ओलम्पिक का है। इस कारण खेल पर सबकी बारीक नजर रहेगी। इससे यह भी सुनिश्चित होगा कि खेल को ऊंचाई पर ले जाने के लिए यही सही समय है। पूरी टीम मेहनत के साथ प्रशिक्षण में लगी है। सब इस प्रयास में हैं कि हम स्वयं को फिट रख सकें। 'गैप' को भरने पर विशेष ध्यान दें। चैम्पियंस ट्रॉफी और रियो ओलम्पिक बहुत बड़ी प्रतियोगिताएं हैं और हमें इनके लिए टीम को उतना ही सशक्त बनाना पड़ेगा।
रियो ओलम्पिक में टीम में प्रमुख खिलाड़ी कौन-कौन होंगे?
रियो ओलम्पिक में हमारी टीम में अनुभवी खिलाड़ी पी.आर. श्रीजेश, आकाशदीप सिंह मनप्रीत सिंह, रूपेन्द्रपाल सिंह, एस.वी. सुनील और आर.वी. रघुनाथन आदि होंगे।
2012 में लंदन ओलम्पिक में भारतीय हॉकी टीम प्रभावी खेल नहीं दिखा पाई थी? रियो ओलम्पिक में भारतीय टीम के लिए पदक जीतने का कितना मौका होगा?
हम सबका सामूहिक लक्ष्य होगा रियो ओलम्पिक में पदक प्राप्त करना। इसके लिए टीम के प्रत्येक सदस्य को आने वाले टूर्नामेंट, विशेषकर रियो ओलम्पिक के लिए विशेष प्रयास करना है। अजलानशाह कप में हमारे पास एक अनुभवी टीम थी। हमने अच्छा प्रदर्शन भी किया। जून में लंदन में होने वाली चैम्पियंस ट्रॉफी में हमारे पास इन अंतरालों को भरने का आखिरी अवसर होगा। मैं आने वाली प्रतियोगिताओं पर पूरा ध्यान लगा रहा हूं कि कैसे हम स्वयं को और आगे ले जाएं। हम पूरी तरह से अपने खेल, विशेषकर रियो ओलम्पिक में टीम के प्रदर्शन पर ही ध्यान दे रहे हैं।
पिछले कुछ समय से पेनल्टी कॉर्नर को गोल में न बदल पाना भारतीय हॉकी टीम के लिए चिंता का विषय रहा है। इसमें सुधार के लिए टीम ने कौन-सी विशेष तैयारी की है?
हम अपने कमजोर पक्ष के बारे में बहुत सजग हैं। प्रयास कर रहे हैं कि हम पेनल्टी कॉर्नर को गोल में बदलने की भारतीय टीम की पुरानी क्षमता को वापस ला सकें। हमारे कोच इन सब विषयों पर बहुत जोर देकर सभी प्रकार का प्रशिक्षण दे रहे हैं। नई रणनीति और अलग-अलग व्यूह रचना बनाकर हम अपने विपक्षियों के सामने ज्यादा मौके लेना चाहते हैं। हम 'स्ट्राइकिंग सर्कल' में अधिक से अधिक 'शार्ट कार्नर' लेना चाहेंगे और हर 'पेनल्टी कॉर्नर' को गोल में बदलना चाहेंगे।
हमारी टीम का विदेशी कोच के साथ बुरा अनुभव रहा है? पिछले छह वर्षो में हमने पांच कोच बदले हैं। वर्तमान कोच को आप किस रूप में देखते हैं? कोच रॉयलेंट ऑल्टमंस का टीम के साथ किस प्रकार का जुड़ाव है?
रॉयलेंट ऑल्टमंस एक शानदार कोच हैं, जो खेल के सूक्ष्म जानकार हैं। मैं पूरे आत्मविश्वास के साथ कह सकता हूं कि टीम सही दिशा में काम कर रही है और हम उनकी देख-रेख में आने वाले टूर्नामेंट में 100 फीसदी जीत का प्रयास करेंगे। वे हमारी संस्कृति के अच्छे जानकार हैं, 3-4 वर्षों से हमारे साथ रह रहे हैं। वे हमें अच्छी तरह से जानते हैं और दोस्ताना माहौल में हमें सब कुछ सिखाते हैं।
आप हॉकी इंडिया लीग (एचआईएल) को किस रूप में देखते हैं? क्या यह लीग हॉकी के लिए नई प्रतिभा को खोजने में सहायक सिद्ध हुई है? पाकिस्तान के खिलाड़ी इसका हिस्सा नहीं हैं। आपको नहीं लगता कि पाकिस्तान के खिलाडि़यों को भी एचआईएल खेलने की अनुमति मिलनी चाहिए?
वास्तव में भारत में हॉकी के विकास के लिए एचआईएल एक बड़ा मंच है जो देशी-विदेशी खिलाडि़यों की प्रतिभा निखारने में प्रभावी भूमिका निभा सकता है। एचआईएल के 4 सफल आयोजनों ने निस्संदेह विश्वभर में हॉकी को लोकप्रिय बना दिया है। यह न सिर्फ विश्व की उम्दा प्रतिभाओं को साथ ला रही है बल्कि भविष्य की प्रतिभाओं को उनके आदर्श नायकों के साथ उसी मंच पर हिस्सेदारी का अवसर भी दे रही है। हॉकी इंडिया लीग ने हमें कई अच्छे खिलाड़ी दिए हैं जिनमें से कई आज भारतीय खेल प्राधिकरण केन्द्र, बेंगलूरू में राष्ट्रीय शिविर में प्रशिक्षण ले रहे हैं और एफआईएच चैम्पियंस ट्रॉफी और रियो ओलम्पिक में भाग लेने की दौड़ में हैं। मुझे नहीं लगता कि किसी भी टीम को खेलने का अवसर नहीं दिया जाना चाहिए। हम हमेशा सब चीजों से ऊपर प्रतिभा और कौशल को स्वीकारते हैं और इसे एकता और खेल भावना से लेते हैं।
आपने अपने कैरियर में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। कोई यादगार क्षण हमारे साथ बांटना चाहेंगे?
हम जब भी कोई पदक जीतते हैं और भारत के झंडे को ऊंचा लहराते देखते हैं तो उस समय गौरव का अनुभव होता है। मुझे 2010 का राष्ट्रमंडल खेल का मैच याद आता है। जब हम इंग्लैण्ड के साथ 3-0 से पीछे थे और मैच हार रहे थे। मैं उस समय भारतीय दर्शकों के मुुरझाते चेहरों को देख रहा था, फाइनल क्वार्टर के केवल 3 मिनट बचे थे। उसी क्षण टीम ने चमत्कारिक वापसी की और हमने 'पेनल्टी स्ट्रोक' से मैच जीत लिया। वह घटना आज भी मेरे दिमाग में इतनी ताजा है जैसे कल की ही बात हो।
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