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संगमग्राम माधवन
1340-1425 ई.
संगमग्राम माधवन उन महानतम वैज्ञानिकों में से एक हैं जिन्हें हम भुला बैठे हैं। उन्होंने ही आधुनिक गणित के आधारभूत सिद्धांतों की नींव रखी थी। दरअसल, कैल्कुलस और आधुनिक गणितीय आकलन से जुड़े सिद्धांतों के विकास के बाद गणित के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं
केरल के संगमग्राम नगर के निवासी माधव महान गणितज्ञ और खगोलविद् थे। उन्हें खगोल शास्त्र और गणित की केरल शाखा का जनक माना जाता है। उनके रचे गणित के सिद्धांतों पर दुनिया भर में आज भी काम हो रहा है।
महत्वपूर्ण योगदान
इनफिनिट सीरीज: साइन (ज्या), कोसाइन (कोज्या) और आर्कटैनजेंट (चाप स्पर्शज्या) के ट्रिगनॉमीट्रिक फंक्शन की इनफीनिट सीरीज़
पाइ के विस्तार की इनफीनिट सीरीज यानी माधव-लिबनिज़ सीरीज
कैलकुलस के अवयव जैसे विभेदीकरण, सम्मिलन, नॉन-लिनियर इक्वेशंस के हल की विधियां
माधव के योगदान का न्यायसंगत आकलन यह है कि उन्होंने आधुनिक शास्त्रीय विश्लेषण की तरफ निर्णयात्मकता के साथ कदम बढ़ाया।
—एडमंड एफ. रॉबर्टसन, सेंट एंड्र्यूज़ विवि में गणित के पूर्व प्रोफेसर
उपयोग
ल्ल कैल्कुलस इनफीनिट सीरीज़ पर माधव के शोध के आधार पर बना भौतिकी, एक्चुरिअल साइंस, कंप्यूटर साइंस, स्टैटिस्टिक्स, इंजीनियरिंग, अर्थशास्त्र, व्यवसाय, चिकित्सा, जनगणना आदि में प्रयोग होता है। कॉफी की मशीन, ऑटोमैटिक एयरकंडीशनर, औद्योगिक कंट्रोल सिस्टम्स, पानी के जहाज, प्रक्षेपास्त्रों जैसे बहुविध उपकरणों-उत्पादों में इसका प्रयोग हुआ है।
हम भारतवासी विगत एक सहस्राब्दी से भी अधिक समय से मन में कुछ हीनभावनाएं पाले बैठे हैं, जिसका कारण था पहले मुस्लिम आक्रांताओं की गुलामी, फिर बाद के समय में पुर्तगाली और डच, फ्रांसीसी व ब्रिटिश साम्राज्यवाद की गुलामी! इतने लंबे समय की दासता के कारण हमारे लोगों में बौद्धिक गुलामी घर कर चुकी थी। और तो और, अंग्रेजी राज के समय नौकरशाह तैयार करने वाली शिक्षा-प्रणाली को लागू करने के बाद से हमें अक्सर यह याद दिलाया जाता रहा कि हमारे भीतर वैज्ञानिक ज्ञान-समझ का अभाव है और हम सपेरे और जादू-टोने व अंधविश्वासों का प्रसार करने वालों से अधिक कुछ नहीं। दरअसल, विदेशी शासकों ने हमारी जनता को पूरी तरह से हतोत्साहित करने के लिए बहुत सोचे-समझे तरीके से यह रणनीति तैयार की थी। अपने प्रयास में वे सफल भी रहे। नतीजा, हम अपने उन पूर्वजों को भुला बैठे जो विज्ञान, विशेषकर गणित, शारीरिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, परमाणुु विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान, खगोलशास्त्र, अभियांत्रिकी और कई अन्य विषयों में पारंगत थे!
संगमग्राम माधवन उन महानतम वैज्ञानिकों में से एक हैं जिन्हें हम भुला बैठे हैं। उन्होंने ही आधुनिक गणित के आधारभूत सिद्धांतों की नींव रखी थी। दरअसल, कैल्कुलस और आधुनिक गणितीय आकलन से जुड़े सिद्धांतों के विकास के बाद गणित के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं। आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि यह यूरोपियन नवजागरण काल की देन है। आइजक न्यूटन (1642-1727), लेनिटास (1646-1716) एवं जेम्स ग्रिगोरी (1638-1675) को आधुनिक गणितीय सिद्धांतों का जनक समझा जाता है। वहीं प्राचीन गणित को यूक्लिडीय वंशक्रम और मिथकों एवं आर्कमिडीज के किस्सों से जोड़कर देखा जाता है। वे सब यूनानी झुकाव वाले हैं। हाल में सेडिंग बर्ग की 'वैदिक ओरिजन ऑफ ज्योमेट्री' ने इस क्षेत्र पर नए सिरे से रोशनी डाली है। 'द ओरिजिन ऑफ मेथेमेटिक्स' (यूनिवर्सिटी प्रेस ऑफ अमेरिका द्वारा प्रकाशित) के प्रकाशन के बाद पुरानी सोच को नई दिशा मिली है। देश में कई स्थानों पर चल रहे उत्खनन और आधुनिक विज्ञान के आधार पर धारणाएंं तथा खगोल व प्राकृतिक विज्ञान के साक्ष्य विज्ञान, खासकर गणित के गैर-यूरोपीय मूल्यों को सामने लाते हैं।
केरल के त्रिशूर जिले के इरिंजलाक्कुडा में 14वीं सदी में रहे गणितज्ञ व खगोलशास्त्र के जाने-माने विद्वान संगमग्राम माधवन को वैश्विक प्रसिद्धि व पहचान मिली है। माधवन गुरु-शिष्य परंपरा से आए थे और जोहान्स कैप्लर व कोपरनिकस के कालखंड से करीब 200 वर्ष पूर्व उन्होंने ब्रह्मांड के संबंध में अपने अध्ययन सामने रखे थे। हालांकि उन सिद्धांतों को स्थापित करने का श्रेय विदेशी वैज्ञानिकों कैप्लर व कोपरनिकस को दिया जाता है। माधवन के परवर्ती वैज्ञानिकों ने जो वैज्ञानिक ज्ञान प्रतिपादित किया उसका सेहरा न्यूटन, लिबनिज़ और जेम्स ग्रिगोरी के सिर बांधा जाता है।
दरअसल, 1825 में रॉयल एशियाटिक सोसाइटी द्वारा प्रकाशित एक विज्ञान पत्रिका में ब्रिटिश लेखक चार्ल्स विश ने पहली बार माधवन के बारे में जानकारी दुनिया के सामने रखी। परंतु उस समय लोगों का ध्यान इस ओर नहीं गया। उसके 100 वर्ष बाद, प्रो. के़ वी़ शर्मा एवं सी़ राजगोपाल ने केरल की गणित परंपरा की ओर विज्ञान के इतिहासकारों का ध्यान दिलाया। इसके बाद मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी के मानद प्रोफेसर तथा मूलत: केरल के डॉ. जॉर्ज जीवर्गर्ीस जोसफ ने इस संदर्भ में मौजूदा अभियान को गति दी। अब गैर-यूरोपीय गणितीय विज्ञान के अन्वेषण के डॉ. जोसफ के प्रयास केरल की गणितीय विरासत के वैश्विक प्रसार को सामने ला सकते हैं। परंतु अभी खुद केरलवासी इसके बारे में ज्यादा नहीं जानते। यह स्कूल या विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों या किसी शोध अध्ययन में कहीं नहीं दिखाई देता।
भारतीय गणितीय परंपरा 1200 ईसा पूर्व से 8वीं सदी तक बिना रुके चली। केरल में यह परंपरा माधवन (1340-1425) से शुरू होकर शंकर वर्मा (1774-1839) तक रही। जब नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला एवं कागी जैसे प्राचीन भारतीय विश्वविद्यालयों को अनगिनत राजनीतिक व सामाजिक चुनौतियों से जूझना पड़ा, और जब विजयनगर साम्राज्य पतनोन्मुख था, उस समय बौद्धिकों की गतिविधियां केरल में केन्द्रित हो गई थीं। देश के इस हिस्से में स्थायी, शांत एवं स्थिर वातावरण था। अनेक प्रमुख मंदिरों के जरिए कोझिकोड के समरिन वंश (समूथिरी राजा) ने विद्वानों को तमाम तरह का प्रोत्साहन दिया था।
दरअसल, उस समय यूरोपीय झुकाव वाले वैज्ञानिक इतने ताकतवर थे कि उन्होंने भारतीय गणितीय धाराओं को सामने नहीं आने दिया। चार्ल्स विश का उपरोक्त आलेख मालाबार के कोलतुनाडु के युवराज और शंकर वर्मन (1774-1839) के प्रयासों के फलस्वरूप लिखा और प्रकाशित किया गया था। शंकर वर्मन वंश के मित्र और स्वयं एक गणितज्ञ थे। परंतु तात्कालिक साम्राज्यवादी एजेंडा में फिट न बैठने के कारण उस आलेख को नजरअंदाज कर दिया गया।
'निष्पक्षता' जैसा शब्द उस समय के यूरोपीय विद्वानों के शब्दकोष से ही नदारद था। ब्रह्मस्फुट सिद्धांत के विषय में 19वीं सदी के एक प्रमुख विद्वान बेंटले का मत, उस समय के यूरोपियनों की सोच का स्पष्ट उदाहरण है। सिद्धांत के अंग्रेजी अनुवाद पर यह प्रतिक्रिया थी, ''यह एक और धोखा है। मैं उन्हें जानता हूं। इस फर्जी प्रक्रिया का मकसद है अकबर के एक समकालीन, वराहमिहिर को प्राचीन भारत का विद्वान घोषित करना।'' हैरानी नहीं कि बेंटले वराहमिहिर (505-587 ई़ं) और अकबर (1542-1605 ई़) के जीवनकाल में अंतर से अनजान थे।
उनकी मंशा स्पष्ट थी। वे यह स्थापित करना चाहते थे कि उनके अधीन आने वाले देश में अपनी संपदा पर गौरव महसूस करने जैसा कुछ नहीं है। शंकर वर्मन ने संगमग्राम माधवन द्वारा शुरू किए और 300 वर्ष तक चले अध्ययन और शोध के बारे में दुनिया को बताने की कोशिश की थी। केरल के गणितीय स्वर्ण युग की शुरुआत ही माधवन ने की थी। माना जाता है कि इरिंजलाकुड्डा के निकट के कोदंगल्लूर में उन दिनों शिक्षा एवं छात्रवृत्ति की परंपरा से माधवन की प्रतिभा को प्रोत्साहन मिला होगा। निकटवर्ती महोदयपुरम के तारामंडल एवं आर्यभट्ट के जीवन इतिहास से उन्हें प्रेरणा मिली होगी। के़ वी़ शर्मा के अनुसार गोलवदम, मध्यमनायनपराक्रम, महानज्ञानपराक्रम, लग्नपराक्रनम, वेनवरोहम, स्पुटचंद्रपति, अग्निथ ग्रहचर, चंद्रवक्यनी आदि माधवन से ही संबंधित हैं। परंतु सच यह है कि इस बारे में अभी आवश्यक शोध होने बाकी हैं। उपरोक्त सिद्धांतों में 'वेनवारोहम' ही माधवन की एकमात्र प्रकाशित पुस्तक है। इसका प्रकाशन एक गैर-सरकारी संस्था 'स्वदेशी शास्त्र प्रस्थानम' ने किया था, जो विज्ञान भारती की केरल इकाई है। माधवन के कार्यों के संकेत उनके शिष्यों की पुस्तकों में मिल जाते हैं।
देश के वैज्ञानिक पुनरुत्थान हेतु जरूरी है कि संगमग्राम माधवन की उपलब्धियों को गुमनामी के अंधेरों से निकाला जाए। आइजक न्यूटन, लेनिटास एवं जेम्स ग्रिगोरी के नामों से हमारा शैक्षणिक वर्ग भली-भांति परिचित है, जबकि हकीकत में उन्होंने माधवन के सिद्धांतों का 200-300 साल बाद इस्तेमाल किया। लेकिन दुर्भाग्यवश माधवन अपनी ही जन्मभूमि में अनजान हैं! इसमें सुधार के लिए 'शिक्षा बचाओ आंदोलन' ने माधव गणित केंद्र की स्थापना की है।
गणित को अनोखी विधि से पढ़ाने के माधवन के तरीके को जयेष्ठदेवन ने कैल्कुलस की अपनी पुस्तक में प्रस्तुत किया है। यह पुस्तक है 'युक्ति भाषा' (मलयालम में)। वेनवरोहम का तीसरा श्लोक स्वयं माधवन का उल्लेख करता है, जिसके बाद उनके गृहस्थान, त्रिशूर जिले के इरिंजलाक्कुडा का पता चला था। शिक्षा बचाओ आंदोलन राष्ट्रीय गणित दिवस, 22 दिसंबर को इरिंजलाक्कुडा में पिछले तीन वर्ष से भारतीय गणित सम्मेलनम् एवं माधवन स्मृति अभिनंदन एवं वृत्ति का आयोजन कर रहा है। प्रतिवर्ष अधिकाधिक लोग माधवन के बारे में जानकारी प्राप्त करने हेतु वहां पहुंचते हैं।
ए. विनोद मास्टर (टी़ सतीशन से बातचीत के आधार पर)
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