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अंक संदर्भ-14 फरवरी, 2016
आवरण कथा 'आस्था और अधिकार' से स्पष्ट है कि महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो रही हैं। बीते दिनों शनि शिंगणापुर मंदिर में महिलाओं ने अपने हक के लिए आवाज बुलंद की। ऐसा नहीं है कि सिर्फ हिन्दू धर्म में ही महिलाएं देहरी पार करके अपने अधिकारों के लिए लड़ रही हैं, बल्कि अन्य मत-पंथों में भी महिलाओं ने वर्षों से चली आ रही रूढि़वादी प्रथाओं के खिलाफ आवाज उठाई है। अब महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित रखना दुर्भाग्यपूर्ण है। यह कहना कि महिलाओं के छूने से भगवान अपवित्र हो जाते हैं, झूठा और मिथ्या प्रचार है।
—कृष्ण वोहरा, सिरसा(हरियाणा)
ङ्म मंदिर में महिलाओं को पूजा से रोकना अन्याय है। पुरुष और महिला दोनों ही भगवान की रचना हैंं। दोनों में ही भगवान का अंश है। तृप्ति देसाई ने महिलाओं के अधिकारों के लिए जो संघर्ष किया, वह बिल्कुल ठीक है। अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करना भी चाहिए, वह भी भगवान के दर पर हो तो और भी। आज महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं। सेना और पुलिस में भी वे शीर्षस्थ स्थानों पर पहुंच गई हैं। महिला सशक्तिकरण के दौर में महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित करना अपराध है।
—कमलेश ओझा, पुष्पविहार (नई दिल्ली)
सेकुलर लबादा
'खतरनाक खेल' (24 जनवरी, 2016) रपट अच्छी लगी। पश्चिम बंगाल के मालदा में कट्टरवादियों ने जमकर उत्पात मचाया। इससे न केवल उनके दुस्साहस का पता चला बल्कि राज्य की कानून-व्यवस्था की भी पोल खुल गई। लाखों की उन्मादी भीड़ आगजनी करे, वाहन जलाये, हिन्दुओं की धन-संपत्ति लूटे, जान लेने पर आमादा हो जाए और शासन-प्रशासन मौन रहे, क्यों? यह न केवल आश्चर्यजनक है, बल्कि शर्मनाक भी है। इतनी बड़ी घटना होने के बाद भी सेकुलर दल, तथाकथित बुद्धिजीवी और अपने को निष्पक्ष कहने वाला मीडिया खामोश रहा। दादरी पर घडि़याली आंसू बहाने वालों की टोली मालदा की घटना पर बेशर्मी का लबादा ओढ़कर पंथ निरेपक्षता की माला जपने लगी। देश की जनता को ऐसे नेताओं के चाल-चरित्र और चेहरों को समझना होगा।
—मनोहर मंजुल, प.निमाड़ (म.प्र.)
ङ्म मालदा ही नहीं, पूरे पश्चिम बंगाल में हिन्दुओं के विरुद्ध षड्यंत्र रचा जा रहा है। ऐसे लोगों को राज्य की ममता सरकार का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन प्राप्त है। बंगाल में आए दिन हिन्दुओं को प्रताडि़त करने के समाचार प्रकाशित होते रहते हैं। पर किसी भी सेकुलर दल का ध्यान इस ओर नहीं जाता। कोई भी हिन्दुओं के दु:ख-दर्द से मतलब नहीं रखता। आखिर हिन्दुओं के दु:ख पर ये लोग अनदेखी क्यों करते हैं? क्या हिन्दुओं का दर्द दर्द नहीं है? कुछ भी हो, मालदा पर इनकी चुप्पी इनके चरित्र पर प्रश्नचिन्ह लगा देती है।
—राममोहन चन्द्रवंशी, हरदा (म.प्र.)
ङ्म दादरी के अखलाक की हत्या देश ही नहीं, विश्व पटल पर छा जाती है। पर पुणे में सावन की क्रूर हत्या का संज्ञान लेना न तो मीडिया के लिए कोई विषय बनता है और न ही सेकुलर नेताओं के लिए। जिन तीन मुसलमानों ने वंचित समाज के सावन राठौड़ को पेट्रोल पिलाकर जिंदा जलाया उसके लिए बौद्धिक जगत और मानवाधिकार आयोग ने आवाज क्यों नहीं उठाई? किसी छोटी सी घटना पर जिस तरह मीडिया शोर मचाकर माहौल को संवेदनशील बना देता है, वही मीडिया सावन की हत्या को नजरअंदाज कर देता है। ऐसे घोर भेदभाव से मीडिया की निष्पक्षता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा होता है। अखलाक और सावन की हत्या पर एक नजरिया होना हमारे लोकतंत्र के लिए अत्यावश्यक है। ऐसी संवेदनशीलता से ही राष्ट्र मजबूत होगा।
—रमेश कुमार वर्मा, विदिशा (म.प्र.)
एकतरफा विरोध का रवैया
'पूर्वाग्रह से दूर हो संघ को समझें प्रगतिशील इतिहासकार' (3 जनवरी, 2016) लेख में सेकुलर इतिहासकारों को करारा जवाब दिया गया है। रा.स्व.संघ को बिना समझे ये सेकुलर कुछ भी बोलते रहते हैं और विभिन्न प्रचार माध्यमों का सहारा लेकर देश को गुमराह करते हैं। पर इस लेख ने इनकी हकीकत उजागर कर दी है। रा.स्व.संघ आज देश में हिन्दू जागरण का काम कर रहा है। उसके तैयार किए लाखों स्वयंसेवक भारत माता की रक्षा के लिए हरदम तैयार रहते हैं। पर शायद इन प्रगतिशील लेखकों को संघ का यह रूप कभी नहीं दिखाई देता। वे केवल पूर्वाग्रह से प्रेरित होकर संघ विरोध का सुर आलापते रहते हैं।
—सुहासिनी किरनी, गोलीगुडा (तेलंगाना)
झूठे हमदर्द
रपट 'दरार का ओवैसी करार' (7 फरवरी, 2016) से एक बात तो जरूर स्पष्ट हो गई कि सेकुलर दलों को रोहित वेमुला की मौत से कोई दु:ख और संवेदना नहीं है, बल्कि वेमुला के बहाने उनको केन्द्र सरकार को घेरने का एक मुद्दा मिल गया। इसलिए ओवैसी, राहुल और केजरीवाल ने इसे भुनाने में देर नहीं की। इन लोगों ने दलित-मुस्लिम का शिगूफा छेड़कर समाज को बांटने की हर कोशिश की। ये सभी नेता पिछले कुछ समय से इस कार्य में लगे थे जबकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वेमुला की मौत पर अपनी संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि भारतमाता ने अपना एक सपूत खो दिया है। फिर भी ओवैसी और राहुल उस छात्र की मौत पर सियासी रोटियां सेक रहे हैं। अगर ये नेता रोहित जैसे वंचित छात्रों के इतने ही हमदर्द हैं तो ऐसे छात्रों की जिंदा रहते सुध क्यों नहीं लेते?
—हरिओम जोशी, भिण्ड (म.प्र.)
ङ्म रोहित जैसे अनेक छात्र पढ़ने की उम्र में ओवैसी जैसे नेताओं की संगत में आकर गोमांस खाने की वकालत करते हैं, महिषासुर दिवस मनाते हैं और हद तो तब हो जाती है जब वे आतंकी याकूब मेमन की फांसी के विरोध में आन्दोलन करते हंै। क्या इन बातों का दलितों के हित से कोई सरोकार है? ये सेकुलर नेताओं की चाल है। इसे समाज को समझना होगा नहीं तो हजारों रोहित इन सेकुलरों की चाल में फंसकर मौत को गले लगाते रहेंगे।
—सरल कश्यप, गोंडा (उ.प्र.)
फाइलों से निकलेगा सच?
संपादकीय 'सच का सामना' (7 फरवरी, 2016) अच्छा लगा। संपादकीय में उठाए गए कुछ तीखे सवालों से लोगों को जरूर कष्ट हुआ होगा। लेकिन इन लोगों को छोड़ दिया जाए तो करोड़ों लोग नेताजी की फाइलों के सार्वजनिक होने से खुश हैं। हालांकि कुछ राजनीतिक दल इन फाइलों के सार्वजनिक होने के बाद घबराए हुए हैं। इसके अनेक कारण हैं। इन फाइलों में जो वर्षों से सच दबा आ रहा है, वह अब उनका दम फुलाने वाला है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जनभावना का सम्मान करते हुए नेताजी की फाइलों को देश को सौंपा है। इसके लिए देश उनका आभारी है।
—देशबंधु, उत्तम नगर(नई दिल्ली)
ङ्म प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नेताजी से संबंधित फाइलों को सार्वजनिक करके सच की पारदर्शिता जगजाहिर की है। लोगों की अपेक्षा और उम्मीद को इससे बल मिला है । देश अरसे से प्रतीक्षा कर रहा है कि सुभाष चन्द्र बोस की मौत कैसे हुई थी? इन फाइलों के सार्वजनिक होने से एक आस जरूर जगी है। देश के नागरिकों की अपेक्षा रहेगी कि इसी प्रकार दिवंगत लाल बहादुर शास्त्री की मौत का भी खुलासा हो क्योंकि शास्त्री जी की मौत की गुत्थी नेताजी की मौत की तरह आज तक अनसुलझी है।
—डॉ. जसवंत सिंह, कटवारिया सराय (नई दिल्ली)
देश के अंदर, देश के दुश्मन
रपट 'लड़ाई लाल आतंक से' (31 जनवरी, 2016) से यह बात स्पष्ट है कि भारत ही ऐसा देश है जिसके दुश्मन उसकी सीमाओं के बाहर कम और अंदर ज्यादा हैं। इतिहास में ऐसे हजारों उदाहरण भरे पड़े हैं जब हम ऐसे जयचंदों के कारण हारे हैं। आजकल कुछ सेकुलर नेता इन्हीं जयचंदों की शक्ल में हैं। ये अपने स्वार्थ के लिए देश तोड़ने की बात करने और ऐसे लोगों को मदद करने से नहीं हिचकते। हमारा समाज बहकावे में बहुत जल्दी आ जाता है जबकि हम यह नहीं समझ पाते कि इनका हमारे दु:ख-दर्द से कोई मतलब नहीं, ये सिर्फ राजनीति करना जानते हैं।
—अश्वनी जांगड़ा, रोहतक (हरियाणा)
भारत तो हिन्दू राष्ट्र ही है!
पिछले दिनों समाजवादी पार्टी के नेता और मंत्री आजम खान ने यह बयान दिया था कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी दोनों मिलकर भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की साजिश रच रहे हैं। ऐसा नहीं है कि उनका यह पहला नासमझी भरा बयान है। वे पहले भी इस तरह के नासमझी भरे बयान देते रहे हैं और मीडिया की सुर्खियां बटोरते रहे हैं। आजम को पता नहीं, इतिहास-भूगोल का कुछ ज्ञान है भी कि नहीं, या फिर वे सिर्फ सुर्खियों में बने रहने के लिए ऐसे बयान देते हैं? उन्हें भारत के इतिहास को पढ़ना चाहिए। यहां की संस्कृति का अध्ययन करना चाहिए। इसके बाद उन्हें पता चल जाएगा कि भारत सदैव से हिन्दू राष्ट्र रहा है, उसे बनाने की कोई आवश्यकता नहीं है। इस्लाम की उम्र ही अभी करीब 1400 की है, जबकि भारत सदियों पुराना राष्ट्र है। आठवीं सदी में इस्लाम के यहां आने से पहले सिर्फ सनातन धर्म का ही ध्वज फहराता था। लेकिन जब भारत में अन्य मत-पंथों का आना शुरू हुआ तो उन्होंने हिन्दुओं को प्रताडि़त करना शुरू कर दिया। यहां की संस्कृति नष्ट की। आस्था केन्द्रों पर चोट की। सनातन विचार को दूषित करने की भरसक कोशिश की। ऐसा नहीं है कि उनका यह प्रयास थमा हो, आज भी वे भारत की संस्कृति को नष्ट करने के लिए नई-नई करतूतें करते रहते हैं। कुछ हद तक वे अपने प्रयास में सफल भी हुए हैं। भारत से अलग होकर बने पाकिस्तान और बंगलादेश इसका उदाहरण हैं। भारत के जिस हिस्से में इन विदेशी पंथों का प्रभाव बढ़ता गया, वही हिस्सा भारत से अलगाव की मांग करने लगा। जो लोग कहते हैं कि भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की साजिश रची जा रही है, उन्हें राष्ट्र और राज्य (स्टेट) का अंतर समझना चाहिए। आजम खान अगर भारत के इतिहास को ठीक ढंग से पढ़ लेंगे तो शायद अभी वे जो राग आलाप रहे हैं, उसके बाद नहीं आलापेंगे।
—डॉ. सुशील गुप्त
शालीमार गार्डन कॉलोनी, बेहट बस स्टैंड, सहारनपुर(उ.प्र.)
मुंहतोड़ जवाब
स्मृति ईरानी ने दिये, जो मुंहतोड़ जवाब
कांग्रेसजन चुप हुए, उतरे सभी नकाब।
उतरे सभी नकाब, रंग इस तरह जमाया
राहुल माया ज्योति, सभी ने मुंह लटकाया।
कह 'प्रशांत' था रौद्र रूप जैसे रणचंडी
शांत हो गयी संसद, जो थी हल्ला मंडी॥
—प्रशांत
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