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किन्नर अखाड़े के माध्यम से किन्नरों ने सनातन धर्म की वापसी की ओर कदम बढ़ा दिए हैं। इस वर्ष के सिंहस्थ कुंभ में एक शिविर भी आयोजित हो रहा है, जहां उन्हें बताया जाएगा कि वे मूलत : सनातनधर्मी हैंर्
उज्जैन में इस वर्ष 22 अप्रैल से 21 मई तक होने वाले सिंहस्थ महाकुंभ के लिए तैयारी युद्धस्तर पर जारी है। जगह-जगह शिविर निर्माण के लिए भूमिपूजन हो रहे हैं। इसी क्रम में 13 फरवरी को किन्नर अखाड़े ने प्रशासन द्वारा आवंटित स्थान पर भूमिपूजन किया। देशभर के किन्नरों ने पिछले अक्तूबर में उज्जैन में ही अखाड़े का गठन किया था। इस अखाड़े के गठन ने समाज में एक नई बहस को जन्म दे दिया है, क्योंकि आमतौर पर किन्नरों को इस्लामिक परम्पराओं का पालन करने वाला समझा जाता है, हालांकि उनके नाम हिन्दू ही होते हैं।
यदि वे सनातन धर्म में आस्था रखकर धर्मसम्मत कार्य करते हैं तो हमें कोई आपत्ति नहीं, लेकिन पेशवाई और शाही स्नान सिर्फ मान्यता प्राप्त 13 अखाड़ों का ही होगा।
—महन्त नरेन्द्र गिरि
अध्यक्ष, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद्
अखाड़े का गठन उन लोगों की भावनाओं का प्रकटीकरण है, जिन्हें अब से पहले कोई मंच ही उपलब्ध नहीं था। अब वे अनकही घुटन से मुक्ति पा सकेंगे।
—ऋषि अजय दास, संरक्षक, किन्नर अखाड़ा
किन्नरों के लिए सिर्फ नाच-गाना ही विकल्प नहीं है और न ही हम मजाक के पात्र हैं। हम भी धर्म के रास्ते पर चल सकते हैं और डर कर जी रहे अपने साथियों को धर्म की ओर प्र्रवृत्त कर सकते हैं।
—कमला बुआ, संस्थपाक, किन्नर अखाड़ा
मध्य प्रदेश के सागर की महापौर रही कमला बुआ, अमरावती में जन्मे तथा उज्जैन को कर्मस्थली बनाने वाले ऋषि अजय दास, मुम्बई की मशहूर नृत्यांगना तथा किन्नर गुरु लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी और गौरी सावंत किन्नर अखाड़े के संस्थापक हैं। ऋषि अजय दास इसके संरक्षक हैं, जबकि कमला बुआ को अखण्ड महामण्डलेश्वर की पदवी दी गई है। कमला बुआ कहती हैं, ''हमें भी मोक्ष प्राप्ति की लालसा है, हमारी भी सनातन धर्म में आस्था है, इसलिए हमने यह रास्ता अपनाया।'' हालांकि किन्नर अखाड़े के गठन के साथ ही इसका विरोध भी शुरू हो गया। इसे परम्परा के विरुद्ध बताया गया। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद् के अध्यक्ष महन्त नरेन्द्र गिरि कहते हैं, ''परम्परा से 13 अखाड़ों को ही मान्यता है, किसी 14 वें अखाड़े को मान्यता नहीं दी जाएगी।'' इस पर कमला बुआ का कहना है, ''हमें मान्यता की परवाह नहीं है, हमें किसी को पहचान देने की जरूरत नहीं है, क्योंकि हम लोग तो जन्मजात साधु हैं। आशीर्वाद देने का अधिकार हमें ईश्वर ने प्रदान किया है।'' अखाड़े द्वारा दस दिशाओं में दस पीठाधीश्वर भी नियुक्त किए जा रहे हैं, जिनमें से छह नियुक्त कर दिए गए हैं।
नासिक कुंभ के दौरान महिला अखाड़े को लेकर विवाद हुआ था और इसके गठन की आवश्यकता पर सवाल उठाए गए थे, इसी तरह के सवाल किन्नर अखाड़े के गठन पर उठ रहे हैं, क्योंकि अतीत में अखाड़ों को संन्यासियों का संगठन जरूर बनाया गया। कालान्तर में मुस्लिम आक्रमण के समय हिन्दू धर्म तथा धर्मावलम्बियों की रक्षा के लिए शास्त्रों के साथ शस्त्र धारण करना भी अखाड़ों के लिए आवश्यक हो गया। वर्तमान में अखाड़ों का उद्देश्य धर्म प्रचार, आध्यात्मिक चिंतन-मनन तथा शास्त्र पठन समझा जाता है। कमला बुआ कहती हैं, ''हम भी तो धर्म प्रचार करना चाहते हैं, हम अपने समुदाय को नई दिशा देकर ज्ञान मार्ग की ओर प्रवृत्त करना चाहते हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि हम इन्हें सनातन धर्म के रास्ते पर चलने का विकल्प देना चाहते हैं।'' कमला की इसी बात को विस्तार देते हुए ऋषि अजय दास कहते हैं, ''सचाई यह है कि किसी भी धर्म से संबंध रखने वाला बच्चा जब किन्नरों के डेरे में पहुंचाया जाता है तो नाम उसका जो भी हो, धर्म उसका कुछ भी हो उसे डेरे के गुरु का कहना मानना होता है और डेरे के गुरु इस्लामिक परम्परा से ही होेते हैं। इस तरह किसी भी किन्नर को डेरे में इस्लामिक तौर तरीके ही अपनाने पड़ते हैं।'' कई जगह किन्नर गुरु धर्म परिवर्तन हेतु दबाव डालते हैं। कमला कहती हैं, ''हमें गुरु बनाने में कोई परेशानी नहींे है, लेकिन हमारा जन्म जिस धर्म में हुआ, हम उसे क्यों बदलें?'' अखाडे़ के गठन के पीछे यह एक महत्वपूर्ण कारक है।
देश में अब तक किन्नरों की आधिकारिक जनगणना नहीं हुई है, लेकिन लॉक्टोपस लॉ जर्नल के अनुसार भारत में किन्नरों की आबादी करीब 40 लाख है। इंडियन जर्नल ऑफ इन्डोक्रायनोलॉजी एंड मेटाबोलिज्म यह संख्या 50 से 60 लाख तक बताता है। हालांकि अजय दास के अनुमान से यह आंकड़ा 20 लाख होना चाहिए। इस आबादी का 75 प्रतिशत किन्नर समुदाय हिन्दू धर्म से संबंध रखता है, लेकिन ये इस्लामिक परम्परा के अधीन गद्दी पर आसीन गुरु से बंधे हैं। बताया जाता है कि मुगल शासन काल में दो प्रमुख किन्नर गुरु थे। हिन्दू धर्म से संबंध रखने वाले किन्नर गंगाराम दादा के चेले थे, जबकि मुस्लिम किन्नर जमाल गुरु के चेले थे। चूंकि मुस्लिम शासन में जमाल गुरु का प्रभाव ज्यादा था इसलिए दबाव डालकर हिन्दू किन्नरों को भी मुस्लिम मत अपनाने पर मजबूर किया गया और गंगाराम को खत्म करा दिया गया। उसी परम्परा में आज तक गुरु गद्दी पर इस्लामिक मान्यताओं का प्रभाव है। किन्नर भले ही साड़ी पहनें, माथे पर बिंदी लगाएं, लेकिन वे नमाजी होते हैं, ये ताजि़ए निकालते हैं और कई तो उत्तर प्रदेश के सोनम सिंह यादव की तरह हज करने भी जाते हैं। ऋषि अजय दास इसे बहुत गंभीर मसला बताते हुए कहते हैं, ''अखाड़े का गठन उन लोगों की भावनाओं का प्रकटीकरण है, जिन्हें अब से पहले कोई मंच ही उपलब्ध नहीं था। इस मंच के माध्यम से वे अनकही घुटन से मुक्ति पा सकेंगे।''
अखाड़े की स्थापना की एक अन्य वजह समाज से सम्मान प्राप्त करने का जरिया तलाश करना भी रही। दास कहते हैं, ''इतिहास गवाह है कि विगत 4,000 वर्ष से भारत वर्ष में किन्नरों का सम्मानजनक स्थान रहा है। वही खोया सम्मान पाने का एक उपक्रम है अखाड़ा। आज समाज प्रतिष्ठा नहीं दे रहा, जबकि सवार्ेच्च न्यायालय किन्नरों को प्रतिष्ठा दे रहा है।''
कमला भी कहती हैं, ''किन्नरों के लिए सिर्फ नाच-गाना ही एकमात्र विकल्प नहीं है और न ही हम सिर्फ मजाक के पात्र हैं, जिन्हें तिरस्कृत नजरों से देखा जाए। हम भी धर्म के रास्ते पर चल सकते हैं और डर कर जी रहे अपने साथियों को धर्म की ओर प्र्रवृत्त कर जागृति फैला सकते हैं।'' महन्त नरेन्द्र गिरि कहते हैं, ''कोई भी संस्था कुंभ में शिविर के लिए भूखण्ड प्राप्त कर सकती है, यदि वे सनातन धर्म में आस्था रखकर धर्मसम्मत कार्य करते हैं तो यह अच्छी बात है, हमें कोई आपत्ति नहीं, लेकिन पेशवाई और शाही स्नान सिर्फ मान्यता प्राप्त 13 अखाड़ों का ही होगा।''
सिंहस्थ प्राधिकरण के अध्यक्ष दिवाकर नातू कहते हैं, ''अखाड़े की मान्यता या पेशवाई जैसे मसलों से हमारा कोई संंबंध नहीं, लेकिन हमने देखा कि किन्नर एकजुट होना चाहते हैं, वषार्ें से भटकते हुए अपने साथियों को सनातन धर्म के रास्ते पर लाना चाहते हैं तो यह अच्छी बात है इसलिए प्रशासन ने उन्हें शिविर हेेतु भूखण्ड उपलब्ध कराया।'' बहरहाल, किन्नर अखाड़े के संस्थापकों के लिए राह आसान नहीं है। उन्हें लम्बी दूरी तय करनी है। अपने क्रियाकलापों से उन्हें यह भी सिद्ध करना होगा कि मुक्ति, मोक्ष की यह छटपटाहट आध्यात्मिक कारणों से है, सांसारिक वजहों से नहीं।
महेश शर्मा , उज्जैन से
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