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कुरुक्षेत्र राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह भैयाजी जोशी ने कहा कि गीता में प्रारंभ का शब्द धर्म है और अंतिम शब्द मर्म है। हम सब एक ही चैतन्य से निकले हैं, तो फिर संघर्ष क्यों? गीता के इसी तत्व के आधार में विश्व को एक मंच पर लाने की ताकत है, जो विश्व में शांति का आधार बनेगा। श्रीमद्भगवद्गीता के तत्व को समझने वालों की संख्या पर्याप्त है, परंतु उसका अनुसरण करने वालों की संख्या बढ़ानी होगी। अत: गीता को आत्मसात करना ही जीवन है। उन्होंने कहा कि महाभारत का युद्घ धर्म और अधर्म इन दो शक्तियों के बीच का संघर्ष था। इसी युद्घ में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपना दायित्व बोध करवाने का काम किया है। आज पूरी दुनिया अर्जुन रूपी विषाद रोग से ग्रस्त है और उस रोग से मुक्ति का रास्ता कृष्ण उपचार यानी श्रीमद्भगवद्गीता है। आज जिस तरह से दुनिया में निराशा व विषाद का माहौल है, ऐसे में श्रीमद्भगवद्गीता के तत्व ज्ञान की आवश्यकता है। गीता में मनुष्य के मन बुद्धि में से निराशा निकालने का सामर्थ्य है। श्रीमद्भगवद्गीता विश्व का मार्गदर्शन करने वाला ग्रंथ है। भारत दुनिया में एक मार्गदर्शक की भूमिका निभाए, इसके लिए गीता को प्रत्येक व्यक्ति को अपने आचरण में अपनाना जरूरी है। श्रीमद्भगवद्गीता हमें प्रेरणा देती है। एक आदर्श व्यक्ति बनने के लिए प्रेरित करती है। आत्मज्ञान पैदा करती है और एक दूसरे से जुड़ना सिखाती है। इस सद्भाव व समरसता से ही हम दुनिया को सही दिशा में चलने के लिए प्रेरित कर सकते हैं और विश्व को एक मंच पर ला सकते हैं।
सरकार्यवाह भैयाजी जोशी कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में गीता जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि गीता प्रत्येक व्यक्ति को यह याद दिलाती है कि हमारा देश, समाज व राष्ट्र के प्रति धर्म क्या है। गीता कोई धार्मिक व पौराणिक ग्रंथ न होकर सार्वभौमिक, सार्वकालिक व सार्वत्रिक ग्रंथ है। दुनिया में शान्ति के प्रयासों के लिए मानव समूह को गीता के मार्ग पर चलना पड़ेगा। हमें अपने व्यक्तिगत जीवन में भी अहंकार व अपेक्षाओं से मुक्त होना होगा। अहंकार व अपेक्षाएं ही सभी समस्याओं की जड़ हैं। श्रीमद्भगवद्गीता मानसिक विकृतियों को दूर करती है। भारत के पास क्षमताओं का अपार भंडार है। श्री भैयाजी जोशी ने सभी का आह्वान किया कि हम अपने जीवन में गीता को अपनाएं और उसे अपने आचरण में लाएं। जीवन को जीने का यही सबसे बेहतर तरीका है।
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के ऑडिटोरियम हॉल में शुक्रवार को संस्कृत, पालि एवं प्राकृत विभाग तथा संस्कृत एवं प्राच्य विद्या संस्थान की ओर से आयोजित एकदिवसीय अन्तरराष्ट्रीय संगोष्ठी में देश व दुनियाभर से आए विद्वानों ने श्रीमद्भगवद्गीता के सूत्रों की अंग्रेजी, संस्कृत, हिंदी, उर्दू व फारसी में व्याख्या की।
रा.स्व. संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य इन्द्रेश कुमार ने कहा कि सम्मान व समरसता का रास्ता श्रीमद्भगवद्गीता से निकलता है। गीता सभी प्रकार की चुनौतियों से निकलने का रास्ता दिखाती है. गीता ने दुनिया को आलोकित किया है। यह निर्विवाद, सर्वमान्य व लोक कल्याणकारी महान ग्रंथ है।
बीकानेर से आए स्वामी संवित सोमगिरी महाराज ने कुरुक्षेत्र की लोक संस्कृति को नमन करते हुए कहा कि श्रीमद्भगवद्गीता की सार्वभौम प्रासंगिकता के विषय में हम तभी कुछ समझ सकते हैं, अगर हम एक शिष्य व शिशु का भाव जीवन में रखते हैं। कृष्ण को जानने के लिए व श्रीमद्भगवद्गीता को समझने के लिए शास्त्र के प्रति श्रद्घा होना जरूरी है। गीता वेदों का सार है। गीता में जीवन का व्यावहारिक दर्शन है। श्रीमद्भगवद्गीता ब्रह्म विद्या, योगविद्या व शास्त्र विद्या है। जीवन को समझने के लिए श्रीमद्भगवद्गीता का अध्ययन जरूरी है। जीवन में कर्मयोग का संदेश सबसे महत्वपूर्ण है। कर्मयोग के लिए श्रीमद्भगवद्गीता को आचरण में लाना
जरूरी है। – प्रतिनिधि
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