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अंक संदर्भ- 6, दिसम्बर, 2015
आवरण कथा 'आतंक पर आक्रमण' से स्पष्ट होता है कि पेरिस पर आतंकी हमले के बाद फ्रांस ने जिस तीव्रता से कार्रवाई की वह काबिले तारीफ है। फ्रांस ने आतंकियों को उनकी ही भाषा में जवाब दिया और इस्लामिक स्टेट के ठिकानों को तहस-नहस करके आतंकवादियों की चूले हिला दीं। अन्तरराष्ट्रीय मंच पर भी फ्रांस को सभी देशों का पूरा सहयोग इस कार्य के लिए मिला। साथ ही जिस तरीके से फ्रांसवासियों ने झकझोरने वाली घटना पर एकजुटता का परिचय दिया वह अनुकरणीय है। विश्व के हरेक देश को आतंकी घटनाओं पर इसी तरह की प्रतिक्रिया देनी होगी ताकि फिर से कोई आतंकी सिर उठाने की जुर्रत न करे।
—अश्वनी जागड़ा, महम, रोहतक (हरियाणा)
ङ्म यूं तो कहा जाता है कि आतंकवाद का कोई मजहब नहीं होता है लेकिन प्रत्येक आतंकवादी इस्लाम को मानने वाला ही होता है। कोई भी आतंकी घटना उठाकर देखंेगे तो पाएंगे मुसलमान ही संलिप्त होता है। यह सच है और इसे सहजता से स्वीकारा जाना चाहिए। इस्लाम को अगर शान्ति का संदेश देना ही है तो ऐसे लोगों पर रोक लगानी होगी, जो इस्लाम के बाने का प्रयोग आतंक के लिए करते हैं। आज माहौल यह है कि अगर इनको न रोका गया तो ये मानवता के दुश्मन संपूर्ण समाज के लिए खतरा उत्पन्न कर देंगे। विश्व के सभी देश आतंक के विरुद्ध एकजुटता का परिचय दें क्योंकि बढ़ता प्रभाव सभी के लिए खतरा है। इसलिए इसे रोकना अतिआवश्यक है।
—रूपसिंह सूर्यवंशी, निम्बाहेड़ा (राज.)
ङ्म किसी भी मत और उसके अनुयायियों की सबसे पहली कसौटी होती है-मानवीयता। इसमें वह सभी गुण समाहित हैं,जिनके कारण मानव को अन्य योनियों के मुकाबले श्रेष्ठ माना गया है। मानव में करुणा, प्रेम और अपने मत-पंथ के प्रति श्रद्धा, परोपकार होना ही चाहिए। लेकिन पेरिस में जो हुआ वह मानवता के विरुद्ध था। जिन लोगों ने निरीह लोगों को मौत के घाट उतारा है वे मानव तो नहीं हो सकते हैं।
—राम प्रताप सक्सेना, खटीमा (उत्तराखंड)
ङ्म पेरिस में जिन्होंने भी हमला करके सैकड़ों लोगों को मारा है वे एक ही उद्देश्य लेकर चल रहे हैं कि इस्लाम को जिताना है और दूसरों को मिटाना है। बीच का कोई भी रास्ता उन्हें मान्य नहीं है और वे ऐसा कोई भी रास्ता चाहते भी नहीं हैं। इन कट्टरवादियों का एक ही इलाज है। करारा जवाब। देश-दुनिया को जिहादी आतंक को समझने की जरूरत है। आज जो मुल्ला-मौलवी आतंकी घटनाओं में मुसलमान का नाम आते ही भड़क उठते हैं उन्हें गलत रास्ते पर जा रहे मुसलमानों को इस्लाम के बारे में बताना चाहिए।
—प्रमोद प्रभाकर वालसंगकर, दिलसुखनगर,हैदराबाद (आं.प्र.)
ङ्म भारत तो वर्षों से इस्लामिक आतंक से त्रस्त रहा है। अगर आज से 50 वर्ष पहले की ही बात करें तो भारत ने विश्व मंच पर एक नहीं अनेक बार इस्लामिक आतंकवाद से पूरे विश्व को अवगत कराया है। लेकिन तब विश्व के देशों ने इसे अनुसना करके यह भी कहा कि भारत की यह स्वयं की समस्या है। पर पहले अमरीका और अब पेरिस हमले के बाद विश्व को मानना पड़ा कि यह समस्या केवल भारत या कुछ देशों की नहीं है बल्कि, यह समस्या विश्व की है। खैर, देर आए, दुरुस्त आए।
—रामदास गुप्ता, जनता मिल (जम्मू-कश्मीर)
अलगाववाद की फसल
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की असलियत से अवगत कराने वाली रपट 'दरार का गढ़' समाज को चिन्तित करने वाली है। आज जब पूरी दुनिया सनातन संस्कृति को अपनाकर इसका अनुसरण कर रही है तब राजधानी में स्थित इस विश्वविद्यालय में देश और समाज तोड़ने का षड्यंत्र रचा जा रहा है। और जो अपने आपको प्रगतिशील और देश का बड़ा हितैषी कहते हैं वे अब कहां हैं? या फिर यह सब इन प्रगतिशीलों की शह पर तो नहीं हो रहा? आज यह प्रश्न इन लोगों से पूछे ही जाने चाहिए। क्योंकि विश्वविद्यालय का एक उद्देश्य होता है कि वह ऐसे विद्यार्थियों को तैयार करे जो पढ़ने के बाद देश व समाज के सर्वांगीण विकास के लिए कटिबद्ध हों। समाज का उत्थान करते हुए राष्ट्र के सजग प्रहरी की भूमिका निभाएं।
—उदय कमल मिश्र, सीधी (म.प्र.)
विकृत मानसिकता
लेख 'भाड़े के बुद्धिजीवी' पढ़ा। देश के अधिकतर राज्यों में गो मांस पर प्रतिबंध लगाने से सेकुलर रुदन शुरू हो गया। यहां तक कि कई सेकुलरों द्वारा इसको लेकर भड़काऊ बयान भी दिए गए। लेकिन उनको पता होना चाहिए कि गो मांस खाने वालों की विकृत मानसिकता भारतीय संस्कृति से मेल नहीं खा सकती। इसलिए उनके रुदन को समझा जा सकता है। ये वे लोग हैं, जो 90 करोड़ हिन्दुओं की भावनाओं का ख्याल नहीं रखते हैं और पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर गो मांस का कारोबार करते हैं। जब कोई इसका विरोध करता तो तारह-तरह के आरोप लगाने लगते हैं। उन्हें हिन्दुओं की भावनाओं का ध्यान रखना चाहिए और इससे बचना चाहिए।
—राममोहन चन्द्रवंशी, टिमरनी, हरदा (म.प्र.)
जात-पात से ऊपर उठें!
कुछ ताकतें हिन्दू धर्म में जात-पात का जहर घोलकर लोगों को आपस में लड़ा रही हैं। 'फूट डालो और राज करो' की नीति आज भी इस देश में कुछ लोगों द्वारा चलाई जा रही है। इसी का परिणाम है कि हम आपस में ही लड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं। अब जातिवाद को छोड़कर देश के उत्थान के लिए आगे आना होगा क्योंकि न तो यह स्वयं के हित में है और न ही देशहित में है। स्वयं भगवान राम ने शबरी के यहां जूठे बेर खाए थे। हमें इस बात का भान रखना होगा और जात-पात से ऊपर उठना होगा।
—होरीलाल कनौजिया, इंदिरानगर, नासिक (महा.)
बढ़ती ख्याति
आज देश में नरेन्द्र मोदी सरकार की ख्याति चहुंओर फैल रही है। अधिकतर देश भारत के साथ कदमताल मिलाने के लिए आतुर दिख रहे हैं। वहीं देश की अर्थव्यस्था में लगातार सुधार हो रहा है जो कांग्रेस के समय एकदम रसातल में पड़ी थी। विश्व की नामचीन बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत में निवेश कर रही हैं। यह सब नरेन्द्र मोदी सरकार की बढ़ती ख्याति और कार्यशैली का ही परिणाम है।
—आनंद मोहन भटनागर, लखनऊ (उ.प्र.)
देवतुल्य व्यक्तित्व
हम सबके प्ररेणास्रोत श्री अशोक सिंहल अब हमारे बीच नहीं हैं। वह प्रखर राष्ट्रभक्त एवं संगठन के कुशल शिल्पी थे। श्रीराम मंदिर आंदोलन में उनकी तेजस्विता व योजनाबद्ध कार्यशैली देखते ही बनती थी। उनके अथक परिश्रम का ही परिणाम था कि देश के सभी साधु-संत एक साथ इस आन्दोलन के दौरान सड़कों पर उतर आए थे। परिणामस्वरूप यह विश्व का एक अनोखा आन्दोलन बन गया था। नि:संदेह अशोक जी आध्यात्मिक शक्ति से ओतप्रोत थे। उनके व्यक्तित्व में एक चुम्बकीय आकर्षण था। जो भी उनसे एक बार मिला उन्हीं का हो गया। ऐसे युगपुरुष का जाना राष्ट्र के लिए अपूरणीय क्षति है। लेकिन उनके द्वारा दिखाए गया मार्ग हम सभी को सदैव प्रेरणा देते रहेंगे।
—डॉ. सुभाष चन्द्र शर्मा, मुजफ्फरनगर (उ.प्र.)
ङ्म देश में हिन्दू धर्म, हिन्दू संंस्कृति और हिन्दू समाज की बात को डंके की चोट से रखने वाले अशोक के जाने से संपूर्ण भारत द्रवित हुआ। अशोक जी ने हिन्दुत्व को विश्व में एक नई पहचान दिलाई। उनके विराट व्यक्तित्व से प्रेरणा लेकर लाखों कार्यकर्ता तैयार हुए हैं और ध्येय पथ पर बढ़ रहे हैं। केन्द्र सरकार को उनके राम मंदिर निर्माण के सपने को पूरा करना चाहिए।
—कमलेश कुमार ओझा, पुष्पविहार (नई दिल्ली)
पुरस्कृत पत्र
सत्य के शत्रु
अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर पूरे देश में खूब हो-हल्ला हुआ। देश के तथाकथित साहित्यकारों ने अपने तमगे लौटाये। अपने गलत तर्कों को कुतर्कों के साथ सही साबित करने की भरपूर कोशिश की और बिहार चुनाव तक एक सोची-समझी रणनीति के तहत पूरा नाटक बड़े ही अच्छे तरीके से चला।
यह बात सत्य है कि 'अभिव्यक्ति की आजादी' हमारा संवैधानिक अधिकार है और इस आजादी के तहत बोलने से हमें कोई नहीं रोक सकता। लेकिन इस आजादी का यह बिल्कुल भी मतलब नहीं कि हमें यह हक मिल गया कि हम जो भी चाहे वह बोलें और जो चाहें लिखें, अभिव्यक्ति की आड़ में अपनी नैतिक, सामाजिक, जिम्मेदारियां भूल जाएं। लेखक-साहित्यकार समाज का आइना होते हंै, जो समाज में होने वाली हर गलत बात का अपनी लेखनी से विरोध करके समाज को सही रास्ता दिखाते हैं। आइने का मतलब जैसा हो वैसा दिखना चाहिए। यानी रत्तीभर भी पक्षपात नहीं।
लेकिन शायद यह सब कहने की बात रह गई है। अपने को प्रगतिशील साहित्यकार कहने वाले लेखकों ने इन सब बातों को किनारे रखा और पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार को घेरने की पूरी कोशिश की। और कुछ हद तक वे अपने मंतव्य में सफल भी हुए। लेकिन इससे साहित्यकारों ने अपनी गरिमा गिराई है। वहीं दूसरी ओर इन साहित्यकारों को सदैव हिन्दू धर्म में ही खामियां दिखाई दीं। इन्होंने हिन्दू धर्म और देवी-देवताओं पर पता नहीं क्या-क्या लिखा। और हिन्दू समाज शान्त रहा क्योंकि वह उदारवादी है। लेकिन जब उनके किसी गलत काम पर समाज विरोध करता है तो लेखक और साहित्यकार चिल्ला उठते हैं और कहते हैं कि अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोटा जा रहा है। अगर ये लेखक और साहित्यकार इतने ही सत्य के पक्षधर हैं तो कभी ईसाई मत और इस्लाम की कुरीतियों और उनके द्वारा किए जा रहे गलत कायोंर् को क्यों नहीं उठाते? क्यों लंबे-चौड़े लेख अखबारों में नहीं लिखते? तब इनकी लेखनी को सांप सूंघ जाता है।
—अनिल कुमार श्रीवास्तव
70, आर,कटघर,बरेली(उ.प्र.)
दुखी केजरीवाल
छापा पड़ा पड़ोस में, दुखी केजरीवाल
ना जाने क्यों हो रहा, उनका ऐसा हाल।
उनका ऐसा हाल, जांच को हो जाने दो
पानी है या दूध, सामने सब आने दो।
कह 'प्रशांत' जिनकी बातों में दम ना होता
गाली सबसे अधिक, वही बन्दा है देता॥
– प्रशांत
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