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धोडाला। पूरा का पूरा सत्र धो डाला। देश के करदाताओं की गाढ़ी कमाई पर चलते लोकतंत्र के मंदिर में मर्यादाओं और परंपराओं को धो डाला। संसद का शीतकालीन सत्र जिस काम के लिए आहूत किया गया था उसे राजनीतिक अखाड़ेबाजी का मैदान बना डाला गया। 23 दिनों के सत्र में राजग सरकार ने विकास की पटरी पर आगे बढ़ने के लिए जिन जरूरी विधेयकों और प्रस्तावों को संसद के पटल पर रखकर अमल में लाना था वे पेश नहीं हो पाए। केवल और केवल इसलिए क्यों कि देश की सबसे पुरानी पार्टी होने का दंभ भरने वाली पार्टी ने महज 3 दिन थोड़ी देर के लिए चुनिंदा प्रस्तावों पर चर्चा इसलिए ही होने दी क्योंकि देशभर में उसकी फजीहत हो रही थी। इस सत्र में सरकार की तरफ से 16 विधेयक आने तय थे, पर विपक्ष के हंगामे और कांग्रेस की न्यायपालिका के अपमान की हद तक जाने वाली बयानबाजियों के बीच जितना वक्त मिला उसमें से लोकसभा में13 विधेयक ही पारित हो पाए। इनमें से भी महज 9 राज्यसभा की देहरी तक पहंुचे और पारित हुए। जो बेहद महत्वपूर्ण जीएसटी विधेयक इस सत्र में पारित होना था वह भी शोर-शराबे के चलते आगे नहीं बढ़ पाया। हालांकि भारत के शीर्ष उद्योगपतियों, वित्त विशेषज्ञों, वाणिज्य विशेषज्ञों और नीति-निर्धारकों ने जीएसटी को एक महत्वपूर्ण विधेयक बताते हुए इसको तुरंत पारित किए जाने की पैरवी की थी। और भी अनेक महत्वपूर्ण संसदीय कार्य संसद में कांग्रेस के लगभग असंसदीय व्यवहार के चलते पटल पर आने की राह तकते रह गए। क्या पिछले लोकसभा चुनावों में जनता द्वारा नकार दी गई कांग्रेस को अभी तक वह जख्म साल रहे हंै? जाहिर है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में वर्तमान राजग सरकार के दो अंकों में विकास दर ले जाने के हर प्रयास में रोड़ा अटकाया गया।
केन्द्रीय मंत्री वेंकैया नायडू ने संसद के वर्तमान सत्र के समापन के ठीक बाद इस बात को अपने चुटीले अंदाज में कुछ यूं कहा-'मुख्य विपक्षी दल लोकसभा चुनावों में हुई अपनी हार को अभी तक भूल नहीं पाया है। राजग सरकार ने कोई गलत काम नहीं किया है जबकि पिछली कांग्रेसनीत सरकार के दामन पर कोयला घोटाले, 2जी, राष्ट्रमंडल खेल घोटाले और दूसरे कई घोटालों के दाग हैं। साफ है कि विपक्ष के पास कोई जायज मुद्दा नहीं है और वह बेवजह संसद में बाधा डालता रहा है।' नायडू ने बिना लाग-लपेट के कहा कि राज्यसभा में आंकड़ों के कारण कांग्रेस सदन को जड़ किए रही। सरकार को देश के लिए जो काम करने हैं उसमें बाधा डालकर कांग्रेस देश की जनता को छल रही है। उन्होंने कहा कि संसद के इस सत्र के शुरू होने से पहले ही शायद मुख्य विपक्षी दल ने तय कर लिया था कि चाहे जो हो जाए, संसद नहीं चलने देनी है। उदाहरण देते हुए उन्होंने मानसूत्र सत्र का जिक्र किया जो पूरी तरह धो डाला गया था। देशवासी संसद में बार-बार अड़चनें डाले जाने से तंग आ चुके हैं और किसी तरह का सुधार चाहते हैं ताकि इस तरह के विशुद्ध राजनीतिक एजेंडों पर कोई दल संसद की कार्यवाही में बाधा न डाल पाए। यहां उल्लेख आया है तो बता दें कि राज्यसभा की भूमिका को लेकर देश में थोड़े-बहुत पैमाने पर एक विमर्श चल रहा है।
वैसे विडम्बना तो है। लोकसभा का सदन उन जनप्रतिनिधियों से बनता है जो सीधे देश की जनता द्वारा आम चुनाव में चुने जाते हैं। जबकि राज्यसभा आम चुनाव से गठित होने वाला सदन नहीं है। राज्यों के जनप्रतिनिधि राज्यसभा सदस्यों का चयन करते हैं। यानी राज्यों में जिस दल की ज्यादा सरकारें होंगी राज्यसभा में सदस्य भी उसी दल के ज्यादा होंगे। केन्द्र में सरकार भले किसी दल की हो या लोकसभा में सांसद भले किसी दल के अधिक हों। लोकसभा को निचला सदन और राज्यसभा को ऊपरी सदन कहा जाता है। कोई भी विधेयक अधिनियम बनने से पहले लोकसभा के पटल पर रखा जाता है, फिर वहां विस्तृत चर्चा-बहस के बाद पारित होने पर ऊपरी सदन के अनुमोदन के लिए जाता है। राज्यसभा की मुहर लगे बिना कोई विधेयक अधिनियम नहीं बन सकता। वर्तमान राज्यसभा में नम्बरों के खेल में कांग्रेस का पलड़ा भारी है इसीलिए कोई विधेयक देश के विकास के लिए कितना ही महत्वपूर्ण क्यों न हो, कांग्रेस उसे इसलिए राज्यसभा में लटकाए रखना चाहती है
यहां यह बताना जरूरी है कि इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय वित्त संस्थाओं ने मोदी सरकार के तहत देश के विकास की पटरी पर तेजी से बढ़ने के तमाम आकलनों का निचोड़ निकालते हुए घोषणा की है कि वित्त वर्ष 2015-16 में भारत में विकास दर 7.4 का आंकड़ा छू लेगी यानी हमारी अर्थव्यवस्था बेहद मजबूत मानी जाने वाली चीन की अर्थव्यवस्था को पीछे छोड़ देगी। विश्व में आज बाजार मंदी के दौर से गुजर रहा है। स्टील, सीमेंट, प्लास्टिक, इमारती सामान और घरेलू उपयोग की चीजों के दाम नीचे आ गए हैं। वजह है इनकी मांग में आ रही कमी। इससे वैश्विक बाजार में अफरातफरी का माहौल है। पैसा नहीं आ रहा है। उद्योगपति सांसत में हैं। लेकिन ऐसे माहौल में भी अगर भारत आर्थिक प्रगति की राह पर बढ़ रहा है, नए प्रतिमान गढ़ रहा है तो यह भारतीय नीतियों और उत्पादों की साख की बदौलत है। दुनिया के दस तेजी से बढ़ते देशों की सूची में भारत की बढ़ती 'ब्रांड वैल्यू' इस बात की तस्दीक करती है। भारत आज उसकी सातवीं पायदान पर है। भारत ब्रांड का सिक्का दुनिया में अपनी धाक जमा रहा है। जाहिर है, ऐसे में भारत की तमाम पार्टियों को देश की सबसे बड़ी पंचायत में बैठकर इस दिशा में मिलकर काम करना चाहिए। पर ऐसा हो रहा है क्या?
संसद के शीतकालीन सत्र का कांग्रेस के अडि़यल रवैए से जैसा हाल हुआ है उससे तो ऐसा होता नहीं दिखता। आंकड़े खुद बोलते हैं। 16 विधेयक पारित होने थे, जबकि ऊपरी सदन में काफी हो-हल्ले के बीच 9 ही पारित किए जा सके। क्या विकास के लिए जद्दोजहद करता देश अपने माननीय प्रतिनिधियों का यह महंगा हल्ला -हंगाामा बर्दाश्त कर सकता है? संसद की एक मिनट की कार्यवाही पर 29 हजार रु. खर्च होते हैं। इस हिसाब से काम के कुल 112 घंटों में से सोनिया-राहुल ब्रिगेड ने 55 घंटे बर्बाद किए। यानी देश को 10 करोड़ रु. का घाटा हुआ। एमिटी गु्रप ऑफ स्कूल के सलाहकार श्री बी. एन. वाजपेयी तो रोष में आकर कहते हैं कि सांसदों को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए। इस तरह से संसद की कार्यवाही न चलने देना देश को आर्थिक नुकसान पहंुचाना है, जनता के पैसे को बर्बाद करना है। संसद के आखिरी दिन देशभर में बढ़ते गुस्से को भांपते हुए कांग्रेस ने किशोर न्याय विधेयक में संशोधन पारित होने दिया। इस पर नई दिल्ली में वरिष्ठ पैथोलॉजिस्ट डॉ. पद्मनाभन कहते हैं कि अगर यह कानून पहले पारित हो गया होता तो शायद निर्भया कांड का वह नाबालिग अपराधी छूट न गया होता।
लेकिन देश में विभिन्न राज्यों के बीच व्यापार की सुगमता के लिए लाया गया जीएसटी विधेयक (गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स विधेयक-2014) लंबे अरसे से टाला जाता रहा था और इस सत्र की समाप्ति पर भी अधर में ही लटका रह गया। कहने की जरूरत नहीं कि मझोले उद्योगों, जिनको इस विधेयक से ज्यादा लाभ मिलने की उम्मीद थी, को उदास चेहरे लिए अब अगले सत्र का इंतजार करने को मजबूर होना पड़ा है। जीएसटी कानून बना तो पूरे भारत में उत्पादों और सेवाओं पर एक समग्र अप्रत्यक्ष कर का प्रावधान हो जाएगा। यह कर उत्पाद या सेवा के खरीदे या बेचे जाने वाले स्थान पर ही लगेगा। यानी केन्द्र या राज्य सरकारों की ओर से कोई कर नहीं लगाया जाएगा। यह जीएसटी अप्रत्यक्ष करों में एक बड़े सुधार की ओर बढ़ते कदम के तौर पर देखा जा रहा है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 19 दिसम्बर, 2014 को यह विधेयक पहली बार सदन के पटल पर रखा था। यह संविधान (122वां संशोधन) विधेयक है। लेकिन अगर ऐसे महत्वपूर्ण विषयों पर संसद में एक राय न बन पाए, या सदन में बाधाओं की वजह से देर में देर की जाती रहे तो क्या सरकार के पास और कोई रास्ता नहीं है जिससे इसे देश के हित में लागू किया जा सके?
इस पर जीएसटी के समर्थन में प्रस्ताव पारित करने वाली एक संस्था भारतीय वित्त सलाहकार समिति ने उद्योगपतियों, उद्योग परिसंघों और वित्त विशेषज्ञों का एक सेमिनार नई दिल्ली में 22 दिसम्बर को किया था। इस मौके पर आश्चर्यजनक रूप से तकरीबन सभी वित्त विशेषज्ञों ने सरकार द्वारा लाए गए इस विधेयक पर खुशी तो जाहिर की लेकिन विपक्ष को भी इसके रास्ते में अड़चनें डालने के लिए खूूब कोसा। इसमें सवाल उठा कि अगर किसी एक सदन की कार्यवाही में बाधा डालकर इसे रोकने की कोशिश की जाती हो तो क्या सरकार के पास कोई और तरीका नहीं है जिससे ये पारित कराया जाए? इस पर सेमिनार में मौजूद केन्द्रीय ऊर्जा राज्य मंत्री पीयूष गोयल का कहना था कि चूंकि यह संविधान संशोधन विधेयक है इसलिए संसद का संयुक्त सत्र बुलाकर इसे पारित नहीं कराया जा सकता। उन्होंने बताया कि मौजूदा सत्र में इसे तीन बार चर्चा की सूची में शामिल किए जाने के बावजूद कांग्रेस ने सदन की कार्यवाही बाधित करके इसे पारित नहीं होने दिया। चार्टर्ड अकाउंटेंट डॉ. राकेश गुप्ता जीएसटी पारित न होने देने पर कांग्रेस की भर्त्सना करते हुए कहते हैं कि यह सब कांग्रेस और उसके साथी दलों की मिलीभगत का नतीजा है कि जीएसटी विधेयक लटका रह गया। इससे व्यापार और प्रशासनिक सहूलियत मिलेगी इसलिए इसे जल्दी पारित होना चाहिए।
जीएसटी के अलावा इसी सत्र में लोकपाल और लोकायुक्त संशोधन विधेयक, बिजली संशोधन विधेयक, उच्च शिक्षा एवं शोध विधेयक, खाद्य सुरक्षा एवं मानक संशोधन विधेयक और विमान अपहरण निरोधी विधेयक भी पारित नहीं हो पाए। कांग्रेस की इस हरकत को देश देख रहा था कि कैसे दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा एक आर्थिक घोटाले में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी को अदालत में पेश होने का समन भेजने के मुद्दे पर कांग्रेस ने सीधे केन्द्र सरकार पर बदले की राजनीति करने के आरोप लगाने शुरू कर दिए। कांग्रेस बड़ी सहजता से यह भूल गई कि न्यायालय केन्द्र सरकार नहीं चलाती, न्यायपालिका के काम में सरकार का कोई दखल नहीं है, और कि न्यायालय किसी व्यक्ति को तभी समन भेजता है जब उसको लगता है किसी मामले में उसे बुलाकर पूछताछ करनी चाहिए। बस इसीलिए डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी की नेशनल हेराल्ड मामले में सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर करीब 5 हजार करोड़ रुपए की धोखाधड़ी के आरोप लगाने वाली अपील पर कार्रवाई करते हुए अदालत ने 19 दिसम्बर को दोनों को पेश होने को कहा था। इतने से ही कांग्रेसी सांसद बौखला गए और संसद की कार्यवाही नहीं चलने दी। सुप्रसिद्ध समाज सेविका डॉ. लक्ष्मी गौतम सवाल खड़ा करती हैं कि चुने जाने के बाद जनप्रतिनिधि जन सरोकारों को भूल क्यों जाते हैं? सत्र के आखिरी दिन अपने भाषण में सभापति हामिद अंसारी ने आहत स्वर में कहा कि सदन का 237वां सत्र विधायी कार्यों के लिहाज से बिल्कुल अनुत्पादक रहा। सांसद अपने अंदर झांकें और देखें कि क्या वे अपने विधायी कार्योंं का निर्वहन कर रहे हैं? वेंकैया नायडू तो कहते हैं कि सदन की कार्यवाही ठप किए जाने पर सांसदों के वेतन में भी कटौती क्यों न हो?
इससे पहले हम मानसून सत्र का हाल देख चुके हैं जब कांग्रेस ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के इस्तीफे की मांग पर संसद ठप कर दी थी। तब इस संबंध में प्रधानमंंत्री मोदी की पीड़ा एक कार्यक्रम में उनके एक वक्तव्य में झलकी थी। मोदी ने कहा था कि सांसदों को ध्यान रखना चाहिए कि उनके इस व्यवहार को सब देख रहे हैं। लोग सांसदों और संसद से बहुत अपेक्षाएं रखते हैं। लेकिन जनता को आधार बनाकर की जाने वाली राजनीति के लिए यह आकांक्षाएं भी शायद सियासी बिसात का मोहरा ही हैं। आकांक्षाएं जिससे हैं, होती रहें, विकास का पहिया ठिठके तो ठिठका रहे, समय का सत्यानाश हो तो होता रहे। जनता नाराज हो तो होती रहे।
आलोक गोस्वामी
शीतकालीन सत्र में पारित हुए विधेयक
1. अप्रेंटिसशिप संशोधन विधेयक, 2014
2. श्रम कानून (रिटर्न भरने व हाजिरी रजिस्टर रखने से छूट) संशोधन विधेयक, 2011
3. दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टेब्लिशमेंट संशोधन विधेयक, 2014
4. आईआईआईटी विधेयक, 2014
5. केंद्रीय विश्वविद्यालय संशोधन विधेयक, 2014
6. संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश संशोधन विधेयक, 2014
7. टेक्सटाइल अंटरटेकिंग्स (राष्ट्रीयकरण) कानून संशोधन विधेयक, 2014
8. मचेंर्ट शिपिंग दूसरा संशोधन विधेयक, 2013
9. मचेंर्ट शिपिंग संशोधन विधेयक, 2013
10. स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर विधेयक, 2014
लंबित विधेयक
इनके अलावा लोकसभा में लोकपाल और लोकायुक्त संशोधन विधेयक, बिजली संशोधन विधेयक, जीएसटी (संविधान में 122वां संशोधन) विधेयक, नागरिकता संशोधन विधेयक पेश हुए पर पारित नहीं हो पाए। उच्च शिक्षा एवं शोध विधेयक (2011), कोयला खदान (राष्ट्रीयकरण) संशोधन विधेयक (2000), खाद्य सुरक्षा एवं मानक संशोधन विधेयक और एंटी हाइजैकिंग संशोधन (2010) विधयेक समेत छह विधेयक राज्यसभा से वापस लिए गए।
विपक्ष किसी न किसी विषय पर संसद की कार्यवाही को बाधित करना ही चाहेगा। कांग्रेस के मात्र 44 सांसद होने के बाद भी देश की जनता को संकेत देना चाहती है कि इतनी कम संख्या होने पर भी उसकी दखल बरकरार है। लेकिन सत्ता पक्ष की जिम्मेदारी बनती है कि वह विशेष रणनीति के तहत विरोध के बावजूद महत्वपूर्ण विषयों से जुड़े विधेयक पारित करा ले। भविष्य में केन्द्र सरकार को प्रयास करना होगा कि विपक्षी दलों से सामंजस्य बढ़े ताकि संसद की कार्यवाही सुचारू रूप से चले।
-पंकज वोहरा, प्रबंध संपादक, द संडे गार्जियन
शीतकालीन सत्र में कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों की मिलीभगत के कारण जीएसटी विधेयक पारित नहीं हो सका। केन्द्र सरकार राष्ट्रीय हित और सरलीकरण को ध्यान में रखते हुए इस विधेयक को लाना चाहती है। कांग्रेस वैसे तो इस विधेयक के पक्ष में आने का संकेत देती है, लेकिन संसद में विधेयक के विषय पर विरोधाभास शुरू कर दिया जाता है।
—डॉ. राकेश गुप्ता, चार्टर्ड अकाउंटेंट व पूर्व सदस्य, आयकर अपीलीय अधिकरण
हमें अपने पेशे को ईमानदारी से निभाना चाहिए। संसद में जिस तरह से विभिन्न राजनीतिक दलों के सांसदों ने विरोध कर राज्यसभा की कार्यवाही को बाधित किया उसमें उनका बर्ताव बचपने वाला रहा। संसद की कार्यवाही में बाधा पहंुचाना देश के धन और जनता की मेहनत की कमाई का सीधे-सीधे नुकसान है। वोट की राजनीति से ऊपर उठकर देशहित में सांसदों को आगे काम करना चाहिए।
—बी. एन. वाजपेयी, सलाहकार, 'एमेटी ग्रुप ऑफ स्कूल'
हम लोग पांच साल में एक बार अपना मत देकर सांसदों को संसद में भेजते हैं, लेकिन वहां जाकर सांसद जनता और देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी को बिल्कुल भूल जाते हैं। जिस तरह से संसद की कार्यवाही को बार-बार कांग्रेस और दूसरे दलों ने बाधित किया उससे साफ दिखाई दिया कि इन सभी का जनता के हितों से कोई सरोकार नहीं है। देश और जनता के हितों के लिए योजनाएं बनाने वाले संसद में एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने में समय खराब कर रहे हैं।
—हरि किशन, सब्जी विक्रेता, दरियागंज, दिल्ली
संसद में विपक्षी दलों ने ध्यान भटकाने के लिए अनावश्यक मुद्दों पर समय बर्बाद कर दिया। दिल्ली में मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव के कार्यालय पर सीबीआई की छापेमारी हो या फिर नेशनल हेराल्ड मामले की सुनवाई, जानबूझकर ये दोनों मुद्दे उठाकर संसद की कार्यवाही बाधित की गई। जीएसटी जैसा महत्वपूर्ण विधेयक पास न होने देना कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों की ही मिलीभगत है।
—अनिल सहगल, अध्यक्ष, नेहरू प्लेस इम्प्रूवमेंट वेलफेयर एसोसिएशन
खजाने को चूना
26 नवंबर को संसद का शीतकालीन सत्र शुरू हुआ था, जो 23 दिसंबर को समाप्त हो गया। इस पूरे सत्र में राज्यसभा को काम के लिए जितना समय मिला उसमें आधे से भी कम समय काम हो पाया। इस दौरान लोकसभा में 13 विधेयक पारित किए गए वहीं राज्यसभा ने 9 विधेयक ही पारित किए। पिछले वर्ष संसद में लाया गया जीएसटी विधेयक इस बार भी राज्यसभा में पारित नहीं हो सका। उधर बीमा कानून संशोधन विधेयक (2008) और कोयला खदान संशोधन विधेयक (2014) जैसे महत्वपूर्ण विधेयक भी राज्यसभा में पारित नहीं हो पाए। राज्यसभा में विपक्ष की रुकावटों की वजह से 55 घंटे बर्बाद हुए जबकि इस सत्र में काम करने के लिए112 घंटे दिए गए थे। संसद की कार्यवाही को चलाने के लिए आम नागरिक की गाढ़ी कमाई का एक बड़ा हिस्सा खर्च होता है। आंकड़ों के अनुसार 29 हजार रुपये प्रति मिनट का खर्चा आता है संसद पर। इस सत्र में संसद ठप रहने की वजह से राजकोष को 10 करोड़ रु. का नुकसान हुआ है।
पारित हुआ किशोर न्याय विधेयक
लोकसभा में काफी पहले पारित हो चुका किशोर न्याय विधेयक आखिरकार 22 दिसंबर को राज्यसभा में पारित हो गया। निर्भया कांड के बाद से यह विधेयक लगातार चर्चा में रहा है। अब राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद जब यह कानून का रूप ले लेगा। इसके कानून बनने पर हत्या, बलात्कार, तेजाब के हमले जैसे गंभीर अपराधों में 16 से 18 वर्ष के नाबालिग आरोपियों पर भी बालिगों वाले कानून के तहत आम अदालतों में मामला चल सकेगा। इसके अन्तर्गत 16 से 18 वर्ष के नाबालिग के लिए अधिकतम 10 वर्ष की सजा का प्रावधान किया गया है। जबकि मौजूदा कानून के तहत 18 वर्ष तक के नाबालिग को अधिकतम तीन वर्ष की सजा देने का ही प्रावधान है। इसी का परिणाम यह हुआ कि निर्भया कांड का नाबालिग अपराधी मात्र तीन वर्ष की सजा काटकर रिहा हो गया।
जब कोई 'प्रोफेशनल', चाहे वह अधिवक्ता हो या डॉक्टर, वह डिग्री लेने के समय शपथ लेता है कि आज से वह अपने कार्य को पूरी निष्ठा के साथ करेगा। अधिकतर लोग इस शपथ को निभाते हैं। लेकिन हमारे जनप्रतिनिधि अपनी शपथ को भूलकर देश की जनता को मूर्ख बनाकर उस शपथ का अपमान करते हैं। सत्ता में आने के बाद अधिकांश लोग अपने वायदे भूल जाते हैं।
—सार्थक चतुर्वेदी, अधिवक्ता, सर्वोच्च न्यायालयजनप्रतिनिधि चुने जाने से पहले सांसद समाजसेवा के वादे करते हैं, लेकिन जैसे ही
जीतते हैं उसके बाद सदन में अपने स्वार्थों को लेकर बेवजह हंगामा करने लगते हैं। पूरे पांच वर्ष में इनका सामाजिक सरोकार न के बराबर ही रहता है। हम क्यों ऐसे लोगों को चुनें, जो देश की प्रगति में बाधा उत्पन्न करते हैं।
—डॉ. लक्ष्मी गौतम
संस्थापक, कनकधारा फाउंडेशन
संसद में सांसदों का बर्ताव काफी दुर्भाग्यपूर्ण रहा। ये लोग अपने जनता के प्रति दायित्व को भूलकर अपने-अपने हितों को साधने में जुट जाते हैं। महत्वपूर्ण विषयों से इनका कोई सरोकार नहीं रह जाता है। निर्भया कांड के बाद से किशोर न्याय कानून में बदलाव की मांग की जा रही थी। अब निर्भया कांड में लिप्त नाबालिग सुधार गृह से बाहर हो गया। यदि यह समय रहते कड़ा कानून बनता तो निश्चित ही वह अपराधी आसानी से बाहर नहीं आ पाता।
—डॉ. ठाकुर पद्मनाभन
पैथोलॉजिस्ट, दिल्ली
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