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भारतीय मुसलमानों का कट्टरवादी वर्ग भले ही भारत की सहिष्णुता का मुरीद हो या न हो, लेकिन सारी दुनिया के मुस्लिम राष्ट्र भारत के इस सर्वव्यापी गुण की मुक्तकंठ से प्रशंसा करते हैं। न केवल विश्व के समाचार पत्र, बल्कि मुस्लिम जगत के बुद्धिजीवी भी भारत के इस गुण के कायल और प्रशंसक रहे हैं। इन बुद्धिजीवियों का कहना है कि बंगलादेश की लेखिका तसलीमा नसरीन इसका जीवित उदाहरण हैं। किसी भी मुसलमान राष्ट्र ने एक मुसलमान महिला का मुसीबत में साथ नहीं दिया, लेकिन आज भी वह भारत में अपने देश की अपेक्षा सर्वाधिक सुरक्षित है। भारत वह देश है, जहां हनफी विचारधारा के मुसलमान अधिक संख्या में हैं। अब यहां भी जुनूनी मुसलमान वहाबियों की तादाद बढ़ रही है। जिस प्रकार वे आए दिन कोई न कोई कट्टरवादी आन्दोलन चलाते रहते हैं, फिर भी दुनिया के मुसलमानों के लिए सबसे सुरक्षित स्थान कोई है तो वह भारत है। इन बुद्धिजीवियों का यह भी कहना है कि हज यात्रा के अवसर पर भारत अपने नागरिकों के लिए जो सुविधा जुटाता है वह कोई अन्य देश नहीं। भारत में हज कमेटी है, जो प्रतिवर्ष लाखों भारतीयों की हज यात्रा को सुगम बनाने के लिए सभी प्रकार की सुविधाएं जुटाती है। भारत के हर राज्य में हज हाउस हैं। भारत सरकार हाजियों को रियायती दर पर हवाई जहाज का टिकट उपलब्ध कराती है, साथ ही उनके स्वास्थ्य का भी पूरा ध्यान रखती है। इन सुविधाओं को देखकर अन्य हाजी इस बात की प्रार्थना करते हैं कि ए अल्लाह, हमारा दूसरा जन्म हो तो केवल भारत में हो। विश्व के अन्य हाजी भी इन सुविधाओं से प्रभावित होकर यही दुआ करते हैं। अजमेरशरीफ के उर्स के अवसर पर भारत सरकार प्रतिवर्ष विशेष रेलगाड़ियां चलाने की व्यवस्था करती है। शिक्षा हो अथवा स्वास्थ्य की रक्षा भारत में हर वर्ग के लिए जो होती है उसमें भी अनेक स्थानों पर अल्पसंख्यक के नाते मुसलमानों को भारत में अधिक सुविधाएं दी जाती हैं। पोलियो का टीका इसका जीवित उदाहरण है। यहां हर विचारधारा के मुसलमान रहते हैं, लेकिन उनमें टकराव की नौबत कभी नहीं आती। उनका यह गुण भारत की माटी की ही देन है। वे भारतीय मुसलमान, जो विधायक अथवा सांसद बनना चाहते हैं या फिर किसी संवैधानिक पद पर बैठकर भिन्न-भिन्न अवसरों पर दुनिया के सैर सपाटे करते हैं, उन्हें यह लाभ केवल वहां की बहुसंख्यक जनता की हृदय-विशालता और उनके पंथनिरपेक्ष चरित्र के कारण ही
मिलता है।
भारत का मुसलमान यहां जो सुख-सुविधा भोग रहा है, उसकी चर्चा मुस्लिम राष्ट्रों में समय-समय पर होती रहती है। इस बार जब कुछ स्वार्थी लोगों (जिनमें अनेक मुसलमान भी हैं) ने भारत की सहनशीलता पर अंगुली उठाई तो विश्व के अनेक मुस्लिम राष्ट्रों सहित विश्व मीडिया ने यहां के मुसलमानों की कड़ी आलोचना भी की और उन्हें यहां के बहुसंख्यक समाज की अवहेलना करने पर फटकार भी लगाई। कुछ भारतीय मुसलमान हर समय सऊदी अरब की दुहाई देते रहते हैं, लेकिन वहां के मीडिया ने भी उनकी असहनशीलता पर कड़ी फटकार लगाई है। सऊदी मीडिया ने यह भी कहा है कि स्वयं की सरकार की निंदा करना और मिल रहे लाभों के उपरांत भी सरकार के लिए नकारात्मक रवैया अपनाना अमानवीय तो है ही, गैर-इस्लामी
भी है।
सऊदी अरब में ‘सऊदी गजट’ बड़ी प्रसार संख्या वाला दैनिक है। इसने न केवल भारतीय मुसलमानों को लताड़ते हुए संपादकीय और विशेष रपटें प्रकाशित की हैं, बल्कि स्वयं मुस्लिम देशों में मिलने वालीं सुविधाओं से तुलना करके आंखें खोल देने वाले समाचार भी प्रकाशित किए हैं।
सऊदी अरब में खलफ अल अरबी नामक एक प्रख्यात स्तंभ लेखक हैं। खलफ अल अरबी का स्तंभ सऊदी के साथ-साथ अरबी पत्रकारिता जगत में सबसे अधिक पढ़ा जाने वाला स्तंभ है। सऊदी अरब अथवा मुस्लिम जगत में घटने वाली कोई भी घटना हो उस पर खलफ अल अरबी के विचारों की प्रतीक्षा वहां का हर पाठक करता है। इसलिए पिछले दिनों भारत में सहिष्णुता और असहिष्णुता पर जो बहस हुई, उसके संबंध में भी यहां की स्थिति को समझने के लिए हर पाठक बेचैन था।
खलफ अल अरबी ने स्पष्ट रूप से लिखा है, भारत में संकीर्ण और ओछी राजनीति करने वाले लोगों ने सड़क से संसद तक जो हौवा खड़ा किया, वह निंदनीय है। खलफ का कहना है कि कुछ स्वार्थी नेताओं और दुनिया में खून-खराबा करने वाले आतंकवादियों ने जानबूझ कर यहां की सरकार और बहुसंख्यक समाज को निशाना बनाया है। भारत में जो लोग सांप्रदायिकता और अलगाव की दुहाई देकर अपने स्वार्थों की रोटियां सेंकने में सिद्धहस्त हैं, उन्होंने इस प्रकार का वातावरण तैयार करने का असफल प्रयास किया है। जो भारत सरकार उनको सम्मान और सुविधाएं ही नहीं, बल्कि दोनों हाथों से धन और यश देने में आगे रहती है, अफसोस की बात है कि वही सरकार की आलोचना और निंदा करके भविष्य में कुछ और पाने की व्यवस्था कर लेना चाहते हैं। वे बोटी देकर बकरा लेने में सिद्धहस्त हैं। लोकसभा अथवा राज्यसभा में सीट पाने के लिए बेताब रहते हैं। सरकार की आलोचना ही उनके लिए भविष्य का र्इंधन है।
भारत के संबंध में अपने ताजा स्तंभ में वे लिखते हैं, ‘भारत दुनिया का सबसे सहिष्णु देश है। संपूर्ण जगत में भारत से अधिक सहिष्णुता वाला और कोई देश नहीं हो सकता। कोई बताए कि भारत से अधिक सभी मत और विचार के लोग जगत में कहां हैं? दुनिया का शायद ही कोई मत होगा जिसके अनुयायी भारत में न हों। कोई बताए कितने देशों में पारसी और यहूदी हैं? विश्व में जितने पंथ और जितनी विचारधाराएं हैं वे भारत में आपको मिल जाएंगी। पंथों की विविधता ही नहीं, भारत में सौ से अधिक भाषाएं प्रचलित हैं। बोलियों का तो हिसाब ही नहीं। हर दस किलोमीटर पर बोली के साथ-साथ उनके उच्चारण करने के रंग और ढंग भी बदल जाते हैं। सच तो यह है कि भारत विभिन्न बोलियों, भाषाओं और विचारों का संग्रहालय है। भारत में एक-दूसरे से भेंट करने के तरीके भी कितने विचित्र हैं? लेकिन हर स्थान पर चाहे कोई उन्हें जानता हो या अंजाना हो अपने दोनों हाथों को जोड़कर उन्हें स्वीकार कर लेता है। यह मेरा चिंतन ही नहीं, बल्कि जीवन जीने के लिए और अपने हृदय में शांति प्राप्त करने के लिए मनन भी है। सच तो यह है कि उसके जुड़े हुए हाथ ही उसकी एकता, उसके समर्पण और अपने अस्तित्व की चिंता किए बिना किसी और के अस्तित्व की गारंटी है। जियो और जीने दो। ओम शब्द का उच्चारण उसके रोम-रोम में समाई मानवता का प्रतीक है।’
आगे वे लिखते हैं, ‘भारत केवल अध्यात्म का ही प्रणेता नहीं, बल्कि भौतिक वस्तुओं के उत्पादन में भी वह किसी से पीछे नहीं है। भारत सुई से लेकर तलवार तक का निर्माण करता है। मात्र हमारी दुनिया में नहीं, बल्कि परलोक में भी विचरण करता है। देखो न मंगल में कौन चला गया? सितारों से आगे जहां और भी है यह किसने सिद्ध करके बता दिया। मुझे गर्व है कि मैं इस दुनिया में रहते हुए भी भारत से जुड़ा हूं, जहां एक नहीं अनेक मत-पंथ और अनेक भाषाओं के लोग रहते हैं। फिर भी यहां हिंसा को स्थान नहीं, बल्कि अहिंसा को परमोधर्म कहा जाता है। टोलरेंस यानी सहनशीलता को प्रचारित नहीं किया जाता है, बल्कि यह भारतीयों का स्वभाव है। दुनिया में कोई मुद्दा कितना ही बड़ा हो भारत हर स्थान पर सद्भावना का परिचायक है। अपनी धार्मिक भावना को सहअस्तित्व की संज्ञा देता है। वह अपने प्रात:कालीन मंत्र में संपूर्ण जगत के लिए सद्भावना व्यक्त करता है। भारत में सैकड़ों विचारधाराएं हैं। समय-समय पर विभिन्न दर्शनिकों ने अपने आचार, विचार और व्यवहार से हर स्थान पर यही कहा है मैं नहीं तू भी। अब बताइए इस विचार से बढ़ कर भला सहनशीहलता और क्या हो
सकती है?’ मुजफ्फर हुसैन
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