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कांग्रेस सिर्फ संसद में ही बहस से नहीं भाग रही, अब वह समाचार चैनलों में हर रोज होने वाली बहसों से भी भागने लगी है। जनता के हित का कोई भी विषय हो टीवी पर कांग्रेस के प्रवक्ता शोर मचाते मिल जाएंगे। उनकी कोशिश यही रहती है कि इतना जोर-जोर से बोलो कि दर्शक मामले की असलियत समझने न पाए। नेशनल हेराल्ड घोटाले में सोनिया और राहुल गांधी को अदालत के समन के बाद से कुछ ऐसा ही हो रहा है।
जब संसद में बहस ठप कर दी गई तो मानो समाचार चैनलों को मौका मिल गया। ‘एजेंडा’ और ‘फोरम’ जैसे तमाम अनौपचारिक कार्यक्रमों में राष्टÑीय मुद्दों पर बहसें कराई गईं। ऐसे ही एक कार्यक्रम में अरुण जेटली ने नेशनल हेराल्ड और जीएसटी बिल पर कांग्रेस के रवैये की पोल खोलकर रख दी। इसी कार्यक्रम में यह भी देखने को मिला कि ज्यादातर समाचार चैनलों के एंकर कैसे आधी-अधूरी तैयारी के साथ सवाल पूछते हैं। उनके ज्यादातर प्रश्न अफवाह से पैदा ‘ज्ञान’ जैसे मालूम होते हैं। इससे बुरी बात क्या होगी कि नेशनल हेराल्ड से लेकर जीएसटी तक के प्रश्नों के उत्तर से पहले वित्तमंत्री को उन वरिष्ठ पत्रकार महोदय को पहले बुनियादी तथ्य बताने पड़े। कुछ पूर्वाग्रही पत्रकारों और मीडिया संस्थानों को छोड़ दें तो ज्यादातर ने संसद में नए-नए बहानों से हंगामा करने की कांग्रेस की रणनीति की आलोचना की। लेकिन नेशनल हेराल्ड घोटाले में अदालती कार्रवाई को लेकर जिस तरह से सोनिया ने खुद के इंदिरा गांधी की बहू होने की घुड़की दी, उसका मतलब समझने में ज्यादातर अखबार और चैनल नाकाम रहे। नेशनल हेराल्ड घोटाले के पहलुओं पर मीडिया की उदासीनता भी चौंकाने वाली है। गांधी परिवार पर दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों में प्रमुख स्थानों की जमीनें कब्जाने के आरोप लगे हैं, क्या मीडिया को अपनी तरफ से इनकी पड़ताल कराकर जनता तक सच्चाई नहीं पहुंचानी चाहिए थी? या फिर अब भी मीडिया के लिए यह तथाकथित शाही परिवार देश के संविधान और कानून-कायदों से ऊ पर है?
वैसे इस सबके बीच कांग्रेस का दुष्प्रचार तंत्र भी लगातार सक्रिय है। नेशनल हेराल्ड केस में कुछ अखबारों ने झूठे तथ्य छापकर गुमराह करने की कोशिश की। इसी तरह जीएसटी बिल को लेकर कई अखबारों और समाचार चैनलों के जरिए यह बताया जा रहा है कि दरअसल भाजपा ने ही कांग्रेस को विश्वास में नहीं लिया। नवभारत टाइम्स अखबार ने एक रपट छापकर यही बात साबित करने की कोशिश की। ऐसी कई भ्रामक खबरें समाचार चैनलों और दूसरे अखबारों में भी देखने को मिल रही हैं।
इधर दिल्ली में अरविंद केजरीवाल सरकार का दैनिक नाटक जारी है। हमेशा की तरह मीडिया उनके हर ऊ ल-जलूल बयान और हरकत को पूरा महत्व देता रहा। इस बार तो मानो हद ही हो गई। पहले केजरीवाल ने ट्वीट करके कहा कि रेलवे के अतिक्रमण अभियान में एक बच्ची की मौत हो गई। खुद लड़की के पिता ने समाचार चैनलों पर कहा कि बच्ची की मृत्यु अतिक्रमण हटाने से करीब 3 घंटे पहले हो चुकी थी। लेकिन केजरीवाल ने चैनलों को एक लकीर दे दी थी। ज्यादातर चैैनल पूरे दिन इसी लकीर को पीटते रहे कि अतिक्रमण अभियान से बच्ची की मौत हो गई। एक झूठ को इतनी बार बोला गया कि वह कई लोगों को सच जैसा लगने लगा।
दिल्ली सरकार के एक भ्रष्ट अफसर पर सीबीआई ने छापा मारा, उसे बचाने के लिए मुख्यमंत्री केजरीवाल ने ट्वीट किया कि ‘मेरे दफ्तर पर छापा मारा गया है’। बिना कुछ सोचे-समझे ज्यादातर चैनलों पर यह झूठ दिन भर चलता रहा। इतना ही नहीं, केजरीवाल ने प्रधानमंत्री के लिए जिन अपशब्दों और भद्दी भाषा का इस्तेमाल किया वह बिना किसी संपादकीय विवेक के चलाया जाता रहा।
उधर, एनडीटीवी ने उत्तर प्रदेश में पड़े भयानक सूखे पर जमीनी रपट दिखाईं। बेवजह आरोप-प्रत्यारोप के बजाय सीधी ग्राउंड रपट काफी दिन बाद देखने को मिली। अच्छा होता अगर चैनल इस भयानक त्रासदी के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को भी जवाबदेह ठहराने की कोशिश भी करता।
उत्तर प्रदेश में कानून-व्यवस्था का हाल मीडिया की खबरों से गायब रहा। पैगंबर के अपमान के नाम पर राज्य के कई शहरों में हुड़दंग और लोगों को आतंकित करने का खेल चल रहा है। लेकिन खबर राष्टÑीय मीडिया से पूरी गायब है। क्या देश को यह जानने का अधिकार नहीं है कि वे कौन लोग हैं, जो किसी का सिर कलम करने के लिए 50 लाख रुपये का इनाम घोषित कर रहे हैं? इस सारे तमाशे पर उन तथाकथित बुद्धिजीवियों के मुंह सिले हुए हैं, जो कुछ दिन पहले असहिष्णुता के नाम पर आसमान सिर पर उठा रहे थे।
पहले समाचार चैनलों के संवाददाताओं का मजाक उड़ता था क्योंकि वे मृत्युशैया पर लेटे व्यक्ति से भी यह सवाल पूछ सकते थे कि ‘आपको कैसा लग रहा है?’ लगता है आजकल यह सवाल बदल गया है। चेन्नै में बाढ़ के दौरान राहत और बचाव की जानकारी देने के लिए नौसेना प्रमुख जब एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे तो एक संवाददाता ने पूछा कि आपको क्या लगता है कि देश में असहिष्णुता बढ़ रही है? दरअसल, यही वे हरकतें हैं, जिनसे देश का राट्रीय मीडिया जनता की नजरों में खुद को हास्यास्पद बनाता जा रहा है। नारद
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