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दल्ली में बढ़ते प्रदूषण पर लगाम लगाने की बात हो या फिर उत्तर प्रदेश में लोकायुक्त की नियुक्ति का मामला। दोनों ही मामलों में जब विधायिका और कार्यपालिका अपने कामों का सही से निर्वाह नहीं कर सकी तो न्यायपालिका को आगे आकर निर्णय देना पड़ा। दिल्ली में घातक स्तर पर पहुंच चुके प्रदूषण पर काबू पाने में नाकाम रहने पर सर्वोच्च न्यायालय ने स्वयं से पहल करते हुए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में 31मार्च 2016 तक महंगी डीजल कारों के पंजीकरण पर रोक लगा दी। साथ वाहनों से वसूले जाने वाले पर्यावरण क्षतिपूर्ति शुल्क को भी न्यायालय ने दोगुना कर दिया है। अब दिल्ली में प्रवेश करने वाले खाली वाहनों को 700 और 1300 की दर से पर्यावरण शुल्क देना होगा। जबकि सामान से लदे वाहनों से दोगुना शुल्क वसूला जाएगा। वहीं उत्तर प्रदेश में न्यायालय द्वारा आदेश दिए जाने के बाद भी लोकायुक्त नियुक्त न किए जाने पर अदालत ने सख्त टिप्पणी करते हुए स्वयं से लोकायुक्त नियुक्त कर दिया।
देश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि सर्वोच्च न्यायालय ने स्वयं पहल करते हुए किसी राज्य में लोकायुक्त इदकी नियुक्ति की है। न्यायालय ने उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह को उत्तर प्रदेश का लोकायुक्त नियुक्त किया है। लोकायुक्त नियुक्त करने के साथ न्यायालय ने इस मामले में टिप्पणी की कि संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों से न्यायालय की अपेक्षाएं और उम्मीदें बेकार रहीं। उन्होंने उस पर ध्यान नहीं दिया। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के पालन में संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों का नाकाम रहना बेहद अफसोसजनक है।
न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह आदेश उत्तर प्रदेश लोकायुक्त की नियुक्ति की मांग वाली महेंद्र कुमार जैन की याचिका का निपटारा करते हुए सुनाया। न्यायालय ने बार-बार आदेश दिए जाने के बावजूद प्रदेश में लोकायुक्त नियुक्त नहीं किए जाने पर नाराजगी जताई।
याचिका पर सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार के अधिवक्ता कपिल सिब्बल और एडवोकेट जनरल विजय बहादुर सिंह ने कहा कि लोकायुक्त के नाम पर विचार के लिए एक और दिन दिया जाए। पांच नामों का एक पैनल तैयार किया गया है, लेकिन मुख्यमंत्री, नेता विपक्ष और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के बीच किसी एक नाम पर सहमति नहीं बन पाई। तीन नामों पर मुख्यमंत्री और नेता विपक्ष सहमत हैं लेकिन मुख्य न्यायाधीश ने किसी पर अपनी सहमति नहीं दी है। इस पर पीठ ने नाराजगी जताते हुए कहा कि पहले ही काफी समय दिया जा चुका है। संवैधानिक पदों पर बैठे हुए लोग आदेशों का पालन नहीं कर रहे हैं। न्यायालय ने कहा कि हमें अपना आदेश लागू कराना आता है। इसके बाद न्यायालय ने प्रदेश सरकार से पांच नामों का पैनल मांग लिया। आधा घंटे बाद न्यायालय की कार्यवाही फिर से शुरू हुई। न्यायालय ने सूची में दिए गए नामों से वीरेंद्र सिंह को लोकायुक्त चुन लिया। इसके बाद पीठ ने राज्य सरकार को नियुक्ति का आदेश जारी करने और न्यायालय में 20 दिसंबर तक अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है। न्यायालय ने अपने आदेश में पूरे मामले की पृष्ठभूमि दर्ज करते हुए कहा कि अप्रैल 2014 में छह माह में लोकायुक्त नियुक्ति का आदेश दिया गया था। उसका पालन नहीं हुआ। अवमानना याचिका दायर होने पर पिछली जुलाई में न्यायालय ने अवमानना याचिका निपटाते हुए 30 दिन में नियुक्ति का आदेश दिया। गत चार दिसंबर को एक और अवमानना याचिका पर सरकार को नोटिस जारी किया। इससे पहले जुलाई में जारी नोटिस का मुख्य सचिव ने जवाब तक नहीं दिया। ऐसे में न्यायालय संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत प्राप्त शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए लोकायुक्त नियुक्त करने आदेश दे रहा है। प्रतिनिधि
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