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आज भारत एक संभावनाओं का देश है। जिस तरह सभी उन्नत देश भारत के साथ संधि और मैत्री के इच्छुक हैं, इतना तो स्पष्ट है कि सारी दुनिया अब भारत से एक वैश्विक भूमिका की अपेक्षा करती है। भारतीय मूल के उद्योग व्यावसायिक दृढ़ता तथा संस्कृति के कारण जहां पिछले डेढ़-दो दशक में अपनी पहचान बना रहे थे, वहीं अंदरूनी नकारात्मकता देश को भीतर से खोखला किये जा रही थी। मीडिया और समाज की चर्चा में केवल भ्रष्टाचार, प्रदूषण, अपराध आदि सुनने को मिलता था, मानो आशावाद के लिए कोई जगह ही नहीं बची थी।
आज परिदृश्य बदल चुका है। समाज में सकारात्मक ऊर्जा प्रत्यक्ष है। अब चर्चा संभावनाओं पर होती है। आशा का माहौल है, उत्सुकता है। उतावलापन भी है कि अच्छे दिन बस एकदम आ जाने चाहिए। यहां तक कि निराशावादी लोग भी इसी बहस में जुटे दीखते हैं कि संभावनाएं वास्तविकता पर खरी उतर पायेंगी या नहीं!
आखिर, दृष्टिकोण सकारात्मक हो तो संभावनाएं असीम हो ही जाती हैं।
वर्तमान सरकार ने अपना दृष्टिकोण सकारात्मक रखा है, जनसंख्या का ही मुद्दा ले लीजिये। पहले चर्चा में यही सुनने को मिलता था कि भारत दुनिया का सबसे बड़ी आबादी वाला देश है। बात होती तो जनसंख्या विस्फोट की होती, जनसंख्या नियंत्रण की होती, कभी किसी ने जनसंख्या का मूल्यांकन देश की संपत्ति के रूप में किया ही नहीं! इतनी बड़ी आबादी मानो एक बोझ लगती थी, शर्मिंदगी का कारण प्रतीत होती थी। अब हमारे ध्यान में लाया गया कि भारत में दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी है। बताया गया कि यह युवा संख्या देश की सबसे बड़ी शक्ति है। प्रगति और विकास की तरफ ले जाने में इस युवा शक्ति की सबसे बड़ी भूमिका रहने वाली है। यह दृष्टिकोण गर्व का एहसास दिलाता है, संभावनाओं के प्रति आशा जगाता है।
अब सवाल है कि इस युवा संख्या को समर्थ कैसे बनाया जाये।
सामाजिक जीवन के हर पहलू पर मजबूत होना आवश्यक है। हर क्षेत्र के लिए योजनायें लागू हो रही हैं- अर्थ प्रबन्धन, शिक्षा, रोजगार, महिला सशक्तिकरण, स्वास्थ्य, स्वच्छता, आधारभूत सुविधाएं। चूंकि हर पहलू एक दूसरे से जुड़ा है इसलिए किसी एक को नजरंदाज नहीं किया जा सकता।
ढीली विकास दर, भारी महंगाई और उत्पादन में कमी के दौर से उबरते हुए राजग सरकार ने ‘मैक्रो-इकोनॉमिक फंडामेंटल्स’ को मजबूत किया है। अर्थव्यवस्था अब एक तेज रफ्तार विकास पथ पर चल रही है। भारत की सकल घरेलू उत्पाद विकास दर कुलांचे भर कर 7.4 प्रतिशत हो गई, जो दुनिया की सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अधिक है। विनिर्माण उद्योग पर खास जोर देने के साथ ही औद्योगिक उत्पादन सूचकांक पिछले साल की नकारात्मक वृद्धि के मुकाबले इस साल 2.1 प्रतिशत की दर से बढ़ा।
सरकार ने निवेश का प्रवाह बढ़ाने के लिए दोबारा संरचनागत और वित्तीय सुधार शुरु किया है। ‘एफडीआई इक्विटी इन्फ्लो’ ने भी 40 प्रतिशत की उछाल दर्ज की है। हाल ही में सरकार ने 15 प्रमुख क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) संबंधी नियमों में ढील देने की घोषणा की। व्यापार एवं उद्योग जगत के प्रतिनिधियों ने सरकार के निर्णय का एक स्वर से स्वागत किया और उम्मीद जताई कि इससे आर्थिक सुधारों को गति मिलेगी एवं देश के आर्थिक विकास की रफ्तार में भी तेजी आएगी।
एफडीआई संबंधी घोषणा से जिन क्षेत्रों को लाभ पहुंचने की उम्मीद की जा रही है उनमें कृषि एवं पशुपालन, वृक्षारोपण, खनन, रक्षा, प्रसारण, विमानन, निर्माण क्षेत्र, ‘कैश-एंड-कैरी’ थोक कारोबार, एकल ब्रांड खुदरा व्यापार, निजी क्षेत्र की बैंकिंग और विनिर्माण क्षेत्र हैं।
विभिन्न ‘मूल्यांकन एजेंसी’ और ‘आर्थिक पंडितों’ ने अनुमान जताया है कि अगले कुछ वर्षों में भारत का विकास तेजी से होगा। मूडीज ने हाल में भारत की रेटिंग को ‘स्थिर’ से उन्नत करके ‘सकारात्मक’ कर दिया। भारत में आर्थिक सुधार की दिशा में एक के बाद एक उठाए गए विभिन्न कदमों का अंतरराष्टÑीय मुद्राकोष (आईएमएफ) ने भी समर्थन किया है। इस वैश्विक वित्तीय संगठन का कहना है कि भारत का सुधार कार्यक्रम सही दिशा में चल रहा है।
वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को लागू करने हेतु संविधान संशोधन का जो विधेयक संसद में प्रस्तुत किया गया है वह अति महत्वपूर्ण है। जीएसटी के माध्यम से एक अप्रैल 2016 से एक उपाधि अप्रत्यक्ष कर प्रणाली लागू की जाएगी। इससे करों की एक भ्रामक सूची और उसके प्रभावों को खत्म करते हुए एक एकीकृत और साझा घरेलू बाजार तैयार होगा।
देश में गरीबों के लिए पांच करोड़ मकान बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। आशा है कि एफडीआई से भवन निर्माण क्षेत्र को ताकत मिलेगी और निर्माण की गतिविधियां तेज होंगी। इंजीनियरिंग के क्षेत्र में विदेशी निवेश के साथ-साथ उच्च तकनीक आने की भी उम्मीद की जा रही है जिसके कारण भारत भविष्य में उच्च तकनीक उद्योग के क्षेत्र में एक निर्यातक देश के रूप में उभर सकता है। रक्षा के क्षेत्र में भी ऐसी ही आशा की जा रही है।
भारत के मानव संसाधन को सशक्त बनाना अति महत्वपूर्ण है। इसके लिए उसकी शिक्षा, सुरक्षा और योग्यता की ओर विशेष ध्यान देना होगा। राजग सरकार शिक्षा तथा कौशल विकास को बहुत बढ़ावा दे रही है। साथ ही शिक्षा की गुणवत्ता और उसकी पहुंच बढ़ाने के लिए कई विशिष्ट उपाय भी शुरू किये हैं।
सरकार की योजनायें स्पष्ट रूप से सही दिशा में केन्द्रित हैं, किन्तु उनका धरातल पर शीघ्र अतिशीघ्र उतरना आवश्यक है।
भारत को ‘मैन्यूफैक्चरिंग हब’ बनाकर करोड़ों लोगों को रोजगार देने के लिए सरकार ने मेक इन इंडिया जैसी महत्वाकांक्षी योजना शुरू की है। इसे सफल बनाने के लिए जरूरी है कौशल (हुनरमंद श्रमशक्ति)। कौशल के बिना पूंजी निवेश और आर्थिक सुधार भी निरर्थक साबित होंगे। न केवल श्रमशक्ति हुनरमंद होनी चाहिए, बल्कि नियंत्रण स्तर पर प्रतियोगी भी होनी चाहिए।
सशक्त युवा शक्ति
इसलिए मेक इन इंडिया की सफलता के लिए सरकार ने एक और महत्वाकांक्षी योजना शुरू की है – स्किल इंडिया।
भारत के पास सवा सौ करोड़ की विशाल मानवशक्ति है, जिसमें से 65 प्रतिशत आबादी 35 साल से कम उम्र वालों की है। इस युवाशक्ति में बड़ी तादाद शिक्षितों की है। लेकिन कौशल के बिना शिक्षा तब अधूरी रह जाती है जब रोजगार नहीं दिला पाती। नई पीढ़ी के समक्ष अक्सर यह स्थिति आती है कि उनकी शिक्षा का आधुनिक उद्योगों की जरूरतों के साथ तालमेल नहीं हो पाता। एक तरफ समाज और उद्योग हुनरमंद कर्मचारियों का अभाव महसूस करते हैं, तो दूसरी तरफ युवक अच्छी उपाधि लेकर भी बेरोजगार रह जाते हैं। इस विडंबना से बाहर निकलना आवश्यक है।
सीआईआई की ‘इंडिया स्किल रिपोर्ट-2015’ के मुताबिक, हर साल 1.25 करोड़ युवा शिक्षा पूरी कर रोजगार बाजार में आते हैं। इनमें से सिर्फ 37 प्रतिशत को ही रोजगार मिल पाता है। हालांकि यह आंकड़ा पिछले साल के 33 प्रतिशत से ज्यादा है, पर यह गति काफी नहीं है। कौशल विकास की गति में कई गुना तेजी लानी होगी।
शिक्षा व्यवस्था की इस मूलभूत कमी को दूर करने के लिए ही ‘स्किल इंडिया मिशन’ शुरू हुआ। स्किल इंडिया बनाने के अपने इरादे के तहत मोदी सरकार ने अलग मंत्रालय बनाया है। ‘नेशनल स्किल डेवलपमेंट मिशन’ भी गठित किया है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना तीन वर्षों में दस लाख ग्रामीण युवाओं को प्रशिक्षित करेगी।
‘अप्रैंटिसशिप’ कानून में संशोधन के जरिए अब प्रशिक्षण के अवसरों में बढ़ोतरी का रास्ता साफ किया गया है। सरकार अगले ढाई वर्षोँ में 50 प्रतिशत ‘स्टाइपेंड शेयर’ करके एक लाख ‘अप्रैंटिसशिप’ को समर्थन देगी। सरकार की योजना मौजूदा 2.9 लाख के मुकाबले अगले कुछ वर्षों में 20 लाख से अधिक अप्रैंटिश देने की है। राष्टÑव्यापी अवसर उपलब्ध कराने के लिए ‘नेशनल करियर सेंटर’ की शुरुआत हुई जो एक स्थान पर सभी आॅनलाइन सेवाएं मुहैया कराने का काम करेगी।
स्किल इंडिया मिशन का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि भारत विश्व की मानव संसाधन राजधानी के रूप में उभरने की क्षमता रखता है। यदि लोगों को सही ढंग से प्रशिक्षित किया जाये, तो भारत अकेला ही विश्वभर को 3-4 करोड़ योग्य कार्यबल उपलब्ध करा सकता है। कई विकसित देश हैं जिनके पास संपत्ति तो है लेकिन पर्याप्त मानव संसाधन नहीं है। अगर भारत में उपयुक्त कौशल का विकास हो तो देश निकट भविष्य में उन देशों की जरूरतों को पूरा करने की स्थिति में हो सकता है। उन्होंने कहा, ‘भारत के लोगों के पास अपार क्षमता है और सदियों पहले पूरी दुनिया ने इसे स्वीकार किया। हम हुनर को भूल गये हैं। हमें उसे फिर से हासिल करना है। भारत की युवाशक्ति ही भव्य एवं दिव्य भारत का निर्माण कर सकती है।’
महिला सशक्तिकरण का महत्व समझते हुए, सरकार बेटियों के सशक्तिकरण और उत्थान के लिए कई योजनाएं चला रही है। बेटियों के हालात में सुधार लाए बिना और बेटियों को पढ़ाए बिना विकास कर पाना संभव नहीं है।
0-6 साल की उम्र के बीच प्रति 1000 लड़कों के अनुपात में लड़कियों की संख्या के रूप में परिभाषित शिशु लिंग अनुपात (सीएसआर) में वर्ष 1961 से लगातार गिरावट आ रही है। वर्ष 1991 में लड़कियों की संख्या जहां 945 थी वहीं 2001 में यह घटकर 927 और 2011 में 918 हो गई जो एक चिंता का विषय है। अनुपात में गिरावट महिलाओं के प्रति भेदभाव की ओर संकेत करती है।
बालिकाओं के अस्तित्व को बचाने, उनके संरक्षण और सशक्तिकरण को सुनिश्चित करने के लिए समन्वित और सम्मिलित प्रयासों की आवश्यकता है जिसके लिए सरकार ने ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ पहल की घोषणा की है। ‘बेटी बचाओं बेटी पढ़ाओ’ योजना का उद्घोष स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 जनवरी 2015 को पानीपत हरियाणा में किया। उन्होंने इस संदर्भ में ‘बेटा-बेटी, एक समान’ का नारा भी दिया।
‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ कार्यक्रम एक राष्टÑीय अभियान के रूप में कार्यान्वित किया जा रहा है। सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में से उन 100 जिलों का चयन किया जा रहा है जहां बाल लिंगा अनुपात सबसे कम है। फिर वहां विभिन्न क्षेत्रों पर ध्यान केन्द्रित कर कार्य किया जाएगा। यह महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और मानव संसाधन विकास मंत्रालय की संयुक्त पहल है। इस अभियान का मुख्य उद्देश्य है 1. कन्या भ्रूण हत्या की रोकथाम, 2. बालिकाओं के अस्तित्व को बचाना और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना और 3. बालिकाओं की शिक्षा और भागीदारी सुनिश्चित करना। देश के सामने एक बहुत जटिल समस्या यह है कि विद्यालय स्तर पर ही बड़ी तादाद में लड़कियां बीच में ही पढ़ाई छोड़ देती हैं। यह सरकार के लिए एक चुनौती है। लोग लड़कों की तुलना में लड़कियों पर कम ध्यान देते हैं। सरकार इसका समाधान निकालने के लिए संवेदनशील है,और इस दिशा में गंभीरता से काम कर रही है।
आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग की महिलाओं को शिक्षा और उद्योग शुरू करने हेतु बैंक ऋण आसानी से मिलें इसके लिए भी सरकार ने नई योजनाएं और सुविधाएं सुनिश्चित की हैं।
जैसे शरीर को स्वस्थ सुदृढ़ बनाने हेतु अलग-अलग अंगों की चिंता करने के बजाय पूरे शरीर का उपचार किया जाता है, वैसे ही राष्टÑ का भी समग्र विकास आवश्यक है। संतोष का विषय यह है कि मौजूदा सरकार इसी सोच के साथ आगे बढ़ती दिख रही है। इसके परिणाम भले ही थोड़ी देरी से दिखें, पर निश्चित ही बढ़िया होंगे। भारत अब तीसरी दुनिया का देश नहीं, तेज गति से बढ़ता हुआ विकासशील देश है। यदि कदम इसी रफ्तार से बढ़ते रहे तो फिर से विश्वगुरु बनना निश्चित है।
आभा खन्ना
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