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अफसोस कि असहिष्णुता के कारण चल रही बेबुनियाद बहस के शोर ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) भारत में लाने की सघन मुहिम को नेपथ्य में धकेल दिया है। मोदी जापान से लेकर दक्षिण कोरिया,जर्मनी, अमरीका,सिंगापुर वगैरह जा चुके हैं। वे जहां भी गए, वहां पर वे उन देशों की शिखर कंपनियों के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों से मिलना नहीं भूले। वे उन्हें भारत में निवेश करने का न्यौता दे रहे हैं। उसका लाभ हो रहा है।
मोदी ने पिछले साल मई में प्रधानमंत्री पद संभाला था। तब से भारत में 1़3 लाख करोड़ की एफडीआई आ चुकी है। पर देखिए कि इतनी भारी-भरकम उपलब्धि की कोई बात ही नहीं हो रही। साफ है कि देश में एक वर्ग इस तरह का भी है,जो सकारात्मक चीजों को लेकर सार्थक बहस करने के लिए तैयार नहीं है।
‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के चलते भारत में आने वाली एफडीआई में तगड़ा इजाफा हो रहा है। इसके फलस्वरूप देश में अक्तूबर 2014 से लेकर अप्रैल 2015 के दौरान पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 48 फीसद ज्यादा एफडीआई आई। ये आंकड़े केन्द्र सरकार के हैं। सबसे महत्वपूर्ण तथ्य ये है कि प्रधानमंत्री मोदी की विदेश नीति में आर्थिक पक्ष खासा अहम है। अब विदेश नीति में व्यापारिक संबंधों पर ज्यादा ध्यान देना अहम हो गया है। बेशक, भारत के लिए इस समय एफडीआई के लिए विदेशी निवेशकों को आकर्षित करना सबसे अहम चुनौती है। बिना एफडीआई के देश में विकास की गति तेज नहीं हो सकती।
मोदी जापान और साउथ कोरिया का भी दौरा कर चुके हैं। जापान ने उनसे अगले पांच वर्षों में 35 अरब रुपए का निवेश करने का वादा किया है तो दक्षिण कोरिया ने 10 अरब रुपये का। वहीं चीन के साथ हमारे सीमा विवाद के चलते भी चीन ने अगले पांच बरसों के दौरान 20 अरब रुपये के निवेश का वादा किया है। यानी वे देश भी आपसी व्यापारिक संबंध मजबूत करने के पक्ष में हैं,जिनके बीच में सीमा विवाद हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि तमाम देशों से निवेश के वादे इसलिए हो रहे हैं क्योंकि मोदी का वादा है कि भारत में निवेश का लाभ होगा। जो भी कंपनी भारत में निवेश करेगी उसके हितों का ध्यान रखा जाएगा। मोदी सरकार की पहल के चलते भारत में निवेश करने को लेकर विश्व की प्रमुख कंपनियां गहरी दिलचस्पी दिखा रही हैं। बीते कुछ समय के दौरान ‘सोशल नेटवर्किंग साइट’ फेसबुक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मार्क जुकरबर्ग, माइक्रोसॉफ्ट के मुख्य कार्यकारी सत्या नडेला और अमेजन डॉट कॉम के मुख्य कार्यकारी जेफ बेजस भारत में थे। सभी ने प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की। सभी ने भारत में निवेश को लेकर रुचि दिखाई है। दुनिया की सबसे बड़ी प्रतिष्ठित कंपनियों के इन प्रमुखों का भारत आना कहीं न कहीं साफ करता है कि मोदी सरकार को लेकर ये सभी उत्साहित हैं और भारत में निवेश के इच्छुक हैं।
इन शिखर कंपनियों के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों के भारत आने को बेहद शुभ संकेत के रूप में देखा जाना चाहिए। इन सभी कंपनियों की कुल आय बहुत बड़ी है। सरकार को कोशिश करनी होगी ताकि इन जैसी विख्यात कंपनियां भारत में तेजी से अपना निवेश करें और उसे बढ़ाएं भी। भारत सरकार को भी इन्हें अपने यहां पर कामकाज करने की बाबत तमाम सुविधाएं देनी होंगी। कारण ये है कि इन मुख्य कार्यकारी अधिकारियों का स्वागत करने के लिए तो पूरी दुनिया पहले से तैयार बैठी है। यह अवसर हाथ से निकलना नहीं चाहिए। हम विदेशी कंपनियों को अपने यहां बुला तो लेते हैं और उसके बाद उनको जमकर रुलाते हैं। इसका एक उदाहरण ले लीजिए। पिछली सरकार के दौर में दक्षिण कोरिया की पास्को स्टील कंपनी का ओडिशा में 52 हजार करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट लटका। हालांकि केंद्र सरकार ने प्रोजेक्ट के लिए सभी तरह की स्वीकृति दे दी पर ओडिसा सरकार ने परियोजना की स्थापना में जरूरी सहयोग नहीं दिया। इसके चलते देश में विदेशी कंपनियों के निवेश को लेकर उत्साह ठंडा भी हुआ। ये सब बंद होना चाहिए।
अच्छी बात ये है कि एफडीआई को लाने के लिए प्रयास हर स्तर पर हो रहे हैं। इसी क्रम में मोदी सरकार ने देश में एफडीआई लाने के मकसद से 15 क्षेत्रों में नियमों में बदलाव करने की घोषणा की है। इसके चलते भारत में निवेश करने वाली कंपनियों को अब ज्यादा कागजी कार्रवाई या कदम-कदम पर सरकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं होगी। हालांकि कुछ राजनीतिक दल सरकार के इस फैसले को कोस रहे हैं। वे कह रहे हैं कि सरकार ने ये कदम विदेशी कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए उठाया है। अब इनकी बुद्धि पर आप तरस ही खा सकते हैं। इनसे कोई पूछे कि अगर हम इन्हें निवेश का बेहतर माहौल नहीं देंगे तो ये कंपनियां हमारे देश में आएंगी ही क्यों। बेशक, नियम आसान होने से एफडीआई बढ़ेगी। सबसे बड़ा क्रांतिकारी कदम है एफआईपीबी यानी ‘फॉरेन इनवेस्टमेन्ट प्रमोशन बोर्ड’ की सीमा को बढ़ाया है। इसके चलते अब पांच हजार करोड़ रुपए तक का निवेश करने वाली विदेशी कंपनी को सरकार से इजाजत लेने की जरूरत नहीं होगी। पहले एफआईपीबी सीमा तीन हजार करोड़ रुपए थी। विदेशी निवेशक 15 क्षेत्रों में सीधे भारतीय बाजार में पैसा निवेश कर सकेंगे। कृषि, रक्षा, विमानन और प्रसारण से लेकर उत्पादन और निर्माण के क्षेत्रों में नियमों को सरल बना दिया गया है।
रक्षा के क्षेत्र में 49 फीसद विदेशी निवेश बिना सरकारी इजाजत के किया जा सकेगा। एफडीआई की आवक बढ़ने से रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। देश में साक्षरता बढ़ रही है। जाहिर है,जो साक्षर हो रहे हैं उन्हें नौकरी चाहिए। एफडीआई इसका जवाब है। इसमें कोई शक नहीं है कि नियमों मे जटिलता के कारण अक्सर विदेशी निवेशक भारत आने में कतराते रहे हैं। संप्रग सरकार की दूसरी पारी के वक्त देश में कारोबार और निवेश का माहौल तलहटी पर चला गया था। तब लगता था कि सरकार से लेकर नौकरशाही तक सब हाथ पर हाथ रखकर बैठ गए हैं। अब हालात सुधर रहे हैं। लेकिन,ये सिलसिला थमना नहीं चाहिए। विवेक शुक्ला
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