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पाञ्चजन्य के पन्नों से
वर्ष: 12 अंक: 34
02 मार्च 1959
''नेहरू जी ने विभाजन को मानने का जो अक्षम्य अपराध किया वह हम सभी के मस्तिष्क के खराब हो जाने के कारण हुआ। इस गलती को नेहरू जी को स्वीकार कर लेना चाहिए।''
इन शब्दों में समाजवादी नेता डॉ. राममनोहर लोहिया ने 16 फरवरी को गोरखपुर के टाउन-हाल मैदान में आयोजित एक सार्वजनिक सभा में भाषण करते हुए प्रधानमंत्री पं. नेहरू द्वारा विभाजन के पाप को छिपाने एवं राष्ट्र की भावी पीढि़यों को धोखा देने के कुत्सित प्रयास की घोर भर्त्सना की।
मेरा भी दोष
'गलतियों की स्वीकार करने से मनुष्य नीचे नहीं जाता, बल्कि आगे ही बढ़ता है,' यह कहकर डाक्टर लोहिया ने पं. नेहरू के सामने अपना आदर्श उपस्थित करते हुए जनता के सामने निर्भीकतापूर्वक घोषणा की :
इसमें मेरा भी दोष है। कांग्रेस वर्किंग कमेटी की जिस बैठक में बंटवारे के सिद्धांत को स्वीकार किया गया उसमें समाजवादी पार्टी की ओर से मैं तथा एक अन्य व्यक्ति गए हुए थे। उस समय विभाजन के विरोध में गांधी जी की आवाज का समर्थन करने वाले हम दो ही लोग थे, जिनमें मैं भी एक था। पर मैंने गलती की, क्योंकि मैंने भी केवल कोरा शाब्दिक विरोध ही किया। मुझे उस समय अक्ल नहीं आयी कि मुझे देश की जनता के सामने, जो विभाजन को मानने के लिए तैयार नहीं थी, आकर अपना विरोध प्रकट करना चाहिए था।
अपनी भूल को स्वीकार करते मौलाना और गांधी जी
मौलाना के झूठ का भण्डाफोड़ करते हुए आपने कहा, ''उस ऐतिहासिक बैठक में मौलाना आजाद भी उपस्थित थे। पर आजाद साहब का मुंह ही उस समय बन्द था। सच बात तो यह है कि इसके पूर्व गांधी जी को इस संबंध में नेहरू और पटेल ने कुछ बताया ही नहीं था। गांधी जी ने कहा था 'खैर यदि तुमने बंटवारे के सिद्धांत को मान लिया तो कांग्रेस को तुम्हारी इज्जत करनी है, पर तुम्हें पहले बता देना चाहिए था।'
गांधी जी ने उसे टालने के लिए ही प्रस्ताव रखा कि वायसराय से जाकर कहो कि 'हिन्दू व मुसलमान दोनों बैठकर बंटवारा कर लेंगे उसमें किसी विदेशी की आवश्यकता नहीं।' पर उनकी यह बात भी सुनी नहीं गई।
मुख्य दोषी पं. नेहरू
डा. लोहिया ने मौलाना का खण्डन करते हुए कहा, ''मौलाना आजाद ने लार्ड माउन्टबेटन, सरदार पटेल, गांधी जी तथा जवाहरलाल में बंटवारे का दायित्व बांटने की कोशिश की है, पर अपनी आदत से मजबूर होने के कारण उन्होंने जवाहरलाल को एक बच्चे की भांति दूसरे के बहकावे मेंे आने वाला बताकर मुख्य उत्तरदायित्व से अलग करने का प्रयास किया है। पर नेहरू बच्चे नहीं है वे इस संबंध में बहुत बड़े हैं।
संसदीय मोर्चे पर जनसंघ द्वारा
सहकारी खेती के विरुद्ध प्रबल आक्रमण प्रारम्भ
लोकसभा
इस आक्रमण का श्रीगणेश किया जनसंघ के अ.भा. मन्त्री एवं संसद सदस्य श्री अटल बिहारी जी ने। 17 फरवरी को लोकसभा में सहकारी खेती का विरोध करते हुए आपने कहा कि जो लोग कहते हैं कि किसान को सामूहिक खेती में शामिल होने की छूट होगी वे या तो स्वयं को धोखा देते हैं या किसानों को। भारत का किसान अपनी धरती को प्राणों से बढ़कर प्यार करता है। वह जान दे देगा, जमीन नहीं देगा। जबरदस्ती करनी ही पड़ेगी।
भेदभाव बढ़ता जायेगा
श्री वाजपेयी ने बताया कि इस जबरदस्ती का तरीका यह होगा कि सिंचाई, बीज, कर्जा आदि की सुविधाएं उसी को मिलेंगी जो सामूहिक खेती में शामिल होगा। आपने कहा कि भारत में सामूहिक खेती लोकतंत्र की कीमत पर ही सफल हो सकती है।
एक साथ कई जगह हमला
अगले ही दिन 19 फरवरी को जनसंघ के नेताओं ने उ. प्र. राजस्थान और पंजाब की विधानसभाओं में एक साथ सहकारी खेती के विरुद्ध जोरदार आक्रमण किया।
उ.प्र. विधानसभा
सबसे प्रभावकारी आक्रमण रहा उ. प्र. जनसंघ दल के नेता श्री यादवेन्द्र दूबे का, जिसके बारे में 'टाइम्स ऑफ इंडिया' ने लिखा, ''श्री दूबे ने कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में पारित सहकारी खेती के प्रस्ताव की सबसे प्रभावशाली आलोचना की।'
श्री दूबे ने अनेक उद्धरण प्रस्तुत करते हुए बताया कि चीन और जापान को गए हमारे प्रतिनिधिमण्डलों की रिपोर्टों को पढ़ने से स्पष्ट है कि उन्होंने इस पद्धति को लाभप्रद नहीं पाया।
किसान गुलाम हो जायेगा
आपने सदन को स्मरण कराया कि रूस और चीन दोनों ही अधिनायकवादी देशों में सहकारी कृषि को सम्मिलित खेती के प्रथम चरण के रूप मेंे अपनाया गया। ख्राुश्चेव ने स्वयं स्वीकार किया है कि सहकारी कृषि का विरोध करने के कारण 50 लाख किसानों को जेलों में ठूंसना पड़ा था।
अखण्ड भारत
हमारा स्पष्ट मत है कि हिन्द तथा पाक यह विभाजन पूर्णत: कृत्रिम है। एक दूसरे से संबंधित प्रश्नों का अधूरा समाधान ढूंढने से एक-एक प्रश्न का अलग-अलग विचार करने की दोनों देशों की सरकारों की नीति के कारण ही आज दोनों राष्ट्रों के आपसी संबंध बिगड़े हैं। इस प्रणाली को त्याग कर सभी समस्याओं का सम्यक् दृष्टि तथा खुले हृदय से विचार करना चाहिए। ऐसा करने से भारत और पाकिस्तान के बीच आज पायी जाने वाली विवादपूर्ण समस्याओं का निराकरण होगा और वर्षानुवर्ष दोनों में चली आ रही सद्भावना का फिर से निर्माण होगा। उसी में से किसी ने किसी स्वरूप का हिन्द-पाक महासंघराज्य स्थापित होने की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाएगी।
-पं. दीनदयाल उपाध्याय, विचार-दर्शन खण्ड-3, पृष्ठ संख्या 103
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