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जब अशोक जी ने मेरे कंधे पर हाथ रखकर कहा, 'हम सब मिलकर भव्य राम मंदिर बनाएंगे, हम सब मिलकर हिन्दू राष्ट्र का पुनरुत्थान करेंगे,' तब मैं 36 वर्ष का था। 1992 में अयोध्या, गुजरात से विश्व हिन्दू परिषद के युवाओं के साथ गया था। अशोक जी के हाथ में ताकत थी, आत्मविश्वास उनकी आंखों में झलक रहा था। तब वे 66 वर्ष के थे। इसके कई वर्ष पहले से 10 वर्ष की आयु में ही मैं रा.स्व.संघ से जुड़ गया था। मैं ही नहीं, लाखों युवाओं को प्रेरणा देकर अशोक जी ने मां भारती की, हिन्दुओं की सेवा में तत्पर किया।
भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर अयोध्या में रामजी के जन्म स्थान पर ही बने, यह उनका केवल स्वप्न नहीं था, यह उनका अदम्य विश्वास था, उनके जीवन की अटूट प्रतिबद्धता थी। दिन-रात उसी पर अशोक जी कार्य करते रहते थे। संघ के प्रचारक, स्वयंसेवक संगठनात्मक कुशलता सीखते हैं और कार्य, आंदोलन, सेवा इन सभी में नियोजन और अनुशासन ये सभी ऐसे व्यक्तित्व का अविभाज्य अंग होते हैं। अशोक जी भी ऐसे ही थे। आजकल ही नहीं, तब भी, जब टीवी, इंटरनेट, सोशल मीडिया का चलन नहीं था, यही होता था कि किसी बड़े कार्य करने वाले व्यक्तियों के विषय में संकुचित, अधूरी जानकारी के आधार पर या सरकारी दबाव में सकारात्मक कम और उलटी-पुल्टी खबरें चलाकर उनकी छवि मलिन करने का काम चलता ही रहता था। अशोक जी इस सबसे कभी प्रभावित नहीं हुए। राम मंदिर के अतिरिक्त अशोक जी ने कई महान कार्य इस देश के लिए किये।
'धर्म संसद' की अनोखी संकल्पना अशोक जी ने विकसित की। देश-विदेश के साधु-संतों को राष्ट्र कल्याण और हिन्दू राष्ट्र के एक समर्थ सूत्र में एक करना कोई आसान काम नहीं था। अशोक जी ने धर्म संसद खड़ी की। आगे उसकी व्याप्ति और महत्व ऐसा बढ़ता गया कि अनेक विषयों पर धर्म संसद का एक शब्द, एक प्रस्ताव आदेशयुक्त दिशा का स्वरूप लेने लगा। अशोक जी ने एक बार मुझे कहा,'इंग्लैंड में प्रधानमंत्री, अमरीका में राष्ट्राध्यक्ष जब शपथ लेते हैं तब 'गॉड' के नाम पर लेते हैं और उस समय उनके पेरिस के फादर मंच पर या उनके साथ पोडियम के निकट उपस्थित होते हैं। फिर भी विश्व में ये देश 'सेकुलर' कहलाते हैं। कभी हमारे देश में ऐसा होगा कि हमारा धर्म इस देश की राजनीति की दिशा तय करेगा और जब देश के प्रमुख शपथ लेंगे तब हमारे धर्म के प्रमुख उसी सम्मान से उनके साथ आशीर्वाद देते हुए होंगे? ऐसा होगा ही।' उनकी यही अदम्य आशा उनके लिए और इस देश के हिन्दुओं के लिए प्रेरणास्रोत थी।
सरकार ने जब रामेश्वरम में रामसेतु तोड़ने का प्रकल्प घोषित किया, तब अशोक जी को धक्का लगा था कि ऐसी दुष्टतापूर्ण योजना कोई बना ही कैसे सकता है! संघ के मार्गदर्शन में तब विश्व हिन्दू परिषद ने रामेश्वरम में रामसेतु बचाने का देशव्यापी आंदोलन चलाया। सरकार को निर्णय बदलना पड़ा। उस शांतिपूर्ण आंदोलन के दौरान कई राज्य सरकारों ने पुलिस द्वारा कार्यकर्ताओं पर निर्मम लाठियां चलवायीं। इस कारण अशोक जी सरकारों पर बहुत कुपित हुए थे। अशोक जी अपने विचारों पर कायम रहते थे और मनोबल बढ़ाते रहते थे। एक बुद्धिमान अभियंता का, जो जानेमाने व्यवसायी परिवार से हो, उस समय देश के लिए सब कुछ त्यागकर निकलना, विशेषकर जब वे युवा थे,कोई आसान काम नहीं था। अशोक जी का दृढ़संकल्प उनकी शक्ति थी जो आगे जाकर विश्व हिन्दू परिषद की प्रेरणा बनी। उनके कहने से दो-ढाई दशक पहले जब मैं अपनी अच्छी खासी कैंसर सर्जरी की प्रैक्टिस और परिवार-घर-अस्पताल छोड़कर निकला, तब मेरा पुत्र केवल 7 वर्ष का था। ऐसे अनेक युवाओं को अशोक जी ने प्रेरणा दी थी।
सामाजिक समरसता से ही देश आगे बढ़ेगा यह अशोक जी का विश्वास था। छुआछूत मुक्त भारत का जो स्वप्न गुरु गोलवलकर जी, स्वामी चिन्मयानंद जी, श्री आप्टे जी आदि ने देखकर विश्व हिन्दू परिषद की स्थापना 1964 में की थी, उस स्वप्न को पूर्ण करने हेतु अशोक जी ने कई मंदिरों में सभी जातियों के प्रवेश का अभियान चलाया। उस समय यह बहुत कठिन था, लेकिन अनेक गांवों में जाकर अनेक लोगों से मिलना, बात करना ऐसे सभी अथक प्रयास अशोक जी करते रहे।
1995 में कश्मीर में अलगाववादियों ने अमरनाथ यात्रा बंद करने की धमकी दी। अशोक जी के नेतृत्व में विश्व हिन्दू परिषद ने उस दहशत का मुकाबला किया। 1992 के राम मंदिर आंदोलन के पश्चात जब केंद्र में नयी सरकार आयी, तब अशोक जी आनंदित थे। उनके जीवन का स्वप्न पूर्ण होगा, अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनेगा ऐसी आशा लेकर उन्होंने देशभर में प्रवास किया। उसके पश्चात जो हुआ ही नहीं उसके लिए उनके मन में दु:ख था, लेकिन वे कभी हारे नहीं ! सभी का मनोबल बनाकर रखा और 2 वर्ष पहले उनकी वही आशा फिर से जग गयी। उनकी वृद्ध आंखों में आशा की एक उज्जवल किरण चमकी और उस ऊर्जा ने उनके व्याधिग्रस्त वृद्ध शरीर में भी शक्ति भर दी। फिर से देशभर में प्रवास कर उन्होंने नयी सरकार बने इस पर काम किया। जब नयी सरकार बन गयी, तब अनेक हिन्दुओं के साथ अशोक जी की भी वही अदम्य आशा जग गयी कि अब अयोध्या में राम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर अवश्य बनेगा। इसी आशा से आज भी उनका हृदय सभी हिन्दुओं में धड़कता होगा। राह देखना अदम्य आशा का स्वभाव होता है। इस प्रयास में निराशा के झटके भी लगते हैं, किन्तु हम सभी का उत्तरदायित्व है कि अशोक जी का वह जीवनस्वप्न पूर्ण करें।
हमारे करने के लिए अनेक कार्य हैं। समाज में करोड़ों बच्चे, परिवार अच्छे स्वास्थ्य और शिक्षा से वंचित हैं, उन्हें सुविधाएं प्राप्त करवाना संस्कार और संस्कृत एवं वेद का सुलभ भाषा में प्रसार प्रचार करना इत्यादि। अशोक जी ने गोवंश बचाने हेतु देशभर में गोरथ आयोजित किये थे-उनका कार्य आगे ले जाना होगा। अविरल निर्मल गंगा हेतु एक दशक पहले ही अशोक जी के नेतृत्व में विश्व हिन्दू परिषद ने 'काशी से गंगा सागर' तक यात्रा निकाली थी जिसमें गंगा किनारे बसे गांवों के लोगों को गंगाजी को निर्मल रखने के उपाय समझाए गए थे। यह कार्य भी आज हम सभी की राह देख रहा है। युवाओं को जोड़ने हेतु आरम्भ हुए बजरंगदल और दुर्गावाहिनी पर भी आज दायित्व है कि सभी कायोेर्ें को आगे ले जाएं।
अशोक जी का शरीर आज भले हमारे बीच में नहीं है, लेकिन उनके द्वारा जलायी गई प्रेरणा की ज्योति उनके जैसी अदम्य आशा लेकर हर हिन्दू में प्रकाशित होती रहेगी। 2020 में जब विश्व हिन्दू परिषद 75वीं वर्षगांठ मनाएगी, तब उनके सभी स्वप्न पूर्ण कर कई वर्ष आगे चल पड़ी होगी विश्व हिन्दू परिषद! चलें, हम सभी के प्रेरणा-गुरु अशोक जी को साष्टांग प्रणाम कर धर्मपथ पर आगे बढें। -डॉ. प्रवीण तोगडि़या
(लेखक विश्व हिन्दू परिषद के अन्तरराष्ट्रीय कार्याध्यक्ष हैं)
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