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नाम : नाओको फुजीनामी, टोक्यो, जापान
क्या हैं : दुभाषिए का कार्य
संस्कृति सूत्र : वैदिक धर्मशास्त्रों का अध्ययन परिवर्तन का क्षण
2012 में हरिद्वार प्रवास
टोक्यो में रहने वालीं नाओको फुजीनामी की नागरिकता भले जापानी हो लेकिन तेज-तर्रार वैश्विक नागरिक की सभी खूबियां उनमें है। तकनीक और तरक्की के अलग-अलग पहलुओं को समझने वालीं नाओको आज की हर तकनीक से बखूबी परिचित हैं। पेशे से दुभाषिया हैं। उनके कार्य की प्रकृति ही ऐसी है कि वह दुनिया के अनेक देशों के लोगों से मिलती रहती हैं। जीवन में आपाधापी इतनी है कि उन्हें खुद पता नहीं है कि अगले एक घंटे के बाद वह किस शहर में रहने वाली हैं। इस आपाधापी ने ही उन्हें शान्ति की जरूरत अनुभव कराई औश्र वे इसकी तलाश में लग गईं। उन्होंने संसार के अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग मत-पंथों के गुरुओं से शान्ति प्राप्ति का मार्ग पूछा। इस दिशा में उन्हें भारतीय सन्तों से सन्तोषजनक उत्तर प्राप्त हुए। इसके बाद उनके अन्दर भारत और भारतीयता को और ज्यादा जानने की इच्छा पैदा हुई। वह कहती हैं, 'मेरे कुछ दोस्तों ने एक दिन सलाह दी कि भारत जाए बिना भारतीय संस्कृति की सम्पूर्ण जानकारी तुम्हें नहीं हो सकती। उनकी बात मुझे जंंंच गई और मैंने एक दिन नई दिल्ली की उड़ान पकड़ ली। वह वर्ष था 2012। मेरे दोस्तों ने कहा था कि हरिद्वार अवश्य जाना, वहीं तुम्हें सनातन संस्कृति की जानकारी मिलेगी। हरिद्वार का वातावरण इतना अच्छा लगा कि मैंने वहां कुछ समय रहकर वैदिक धर्मशास्त्रों का अध्ययन किया। उन पुस्तकों के ज्ञान से मैं अपने जीवन में बहुत परिवर्तन पाती हूं। जीवन के प्रति मेरी सोच बदल गई है। हमारा जीवन औरों के लिए प्रेरक और अनुकरणीय होना चाहिए।' उनका यह भी कहना है कि हम सब अगर स्वयं को बदल लें, बेहतर बना लें तो समस्त मानव जाति बेहतर बन जाएगी। दौड़-भाग भरी जिन्दगी में लौटने के बावजूद आज वह शान्ति से भरी हैं और अपने आसपास के काफी लोगों को भारतीय संस्कृति और अध्यात्म के सूत्रों से परिचित करा रही हैं। समय और समर्पण के लिए दुनिया में पहचाने जाने वाले जापानियों में आज नाओको की पहचान भारतीय संस्कृति की सुगंध बिखेर रही है। आज वह अपने समाज के लोगों को इसी बेहतर जीवन को जीने के लिए प्रेरित कर रही हैं।
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