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पीओके में बढ़ती बेचैनी

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Nov 9, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 09 Nov 2015 12:53:34

अंक संदर्भ-  18अक्तूबर, 2015
आवरण कथा 'कांपा पाकिस्तान' से स्पष्ट होता है कि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में पाकिस्तान के खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों से वह बौखला गया है। इस विरोध को दबाने के लिए  वह विश्व मंच पर कश्मीर का राग अलापता है। लेकिन वस्तुस्थिति यह है कि पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर में उसके खिलाफ निरन्तर प्रदर्शन हो रहे हैं। यहां के लोग पाकिस्तान से आजादी की मांग कर रहे हैं। लंबे अर्से से पाकिस्तानी सेना इन निरीह लोगों पर जुल्म करती आ रही है। यहां के लोग स्वतंत्रता चाहते हैं और तमाम तरह की उपेक्षा में अपना जीवनयापन कर रहे हैं। पाकिस्तान के हुक्मरान यहां के नवयुवकों को बलपूर्वक आतंकी प्रशिक्षण शिविरों में धकेल रहे हैं। पाक का यह षड्यंत्र दशकों से चला आ रहा है।
—कृष्ण वोहरा, जेल मैदान, सिरसा (हरियाणा)

आज पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर की स्थिति यह है कि यहां के लोग एक तरीके से गुलामी का जीवन जी रहे हैं। लेकिन इस बार पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर के बाशिन्दों ने पाक का विरोध करके करारा जवाब दिया है। दुर्भाग्य की बात है कि भारत का सेकुलर मीडिया जब भी कश्मीर में देश के खिलाफ कोई प्रदर्शन होता है तो उसे बड़ी ही प्रमुखता से छापता और दिखाता है। पर जब पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर में पाकिस्तान के खिलाफ विरोध होता है तो उसे दबाने का काम करता है। यह सेकुलर मीडिया का असली चेहरा है। आजाद कश्मीर में पाकिस्तान के भय का ही यह प्रमाण है कि वह इस क्षेत्र पर पकड़ बनाए रखने के लिए चीन को स्थान दे रहा है।
—हरिओम जोशी, चतुर्वेदी नगर, भिण्ड (म.प्र.)

    इस अंक में प्रकाशित सामग्री पाकिस्तान के कारनामों की पोल खोलती है। पाकिस्तान का एकमात्र उद्देश्य किसी भी तरह से भारत को परेशान करना है और इसके लिए वह हरदम तैयार रहता है। पहले पाकिस्तान की चाल को कश्मीरी जनता नहीं समझती थी। अनेक प्रकार के लालच में आकर वह भी उनके हां में हां मिलाकर भारत का विरोध करती थी, लेकिन अब कुछ दिनों में इस कार्य में परिवर्तन आया है। इसकी शुरुआत पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से हो चुकी है। आज वहां के निवासी पाकिस्तान से आजादी की मांग कर रहे हैं। भारत को ऐसी स्थिति में एक निर्णायक कदम उठाना होगा।
—शशिकान्त त्रिपाठी, तिवारीपुर, गोरखपुर (उ.प्र.)

    पिछले दिनों भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने कहा था कि अगर अब पाकिस्तान ने कोई आतंकी घटना  करने की हिम्मत भी की तो इस बार पाकिस्तान बलूचिस्तान प्रान्त को भी खो देगा। वास्तव में अजीत डोवाल ने एक ऐतिहासिक घटनाक्रम को उभारकर पाकिस्तान की दु:खती रग पर हाथ रख दिया है। बलूचिस्तान भारत का ही अंग रहा लेकिन सेकुलर सरकारों की नासमझी भरे फैसले के कारण 1947 में भारत विभाजन के समय पाकिस्तान के कब्जे में चला गया। खौर, पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर में पाक के खिलाफ उठते स्वर भारत के लिए एक अच्छा संकेत है।
—डॉ. सुशील गुप्ता,, सहारनपुर(उ.प्र.)

    पाकिस्तान की फौज पाकिस्तानी कब्जे वाले अधिकृत कश्मीर में विरोध में उठते स्वरों को दबाने के लिए अत्याचार करती है। अनेक धमकियां देकर उनको डराया जा रहा है। लेकिन इन सभी धमकियों के बाद भी वहां के लोग पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाकर अपनी स्वतंत्रता की मांग कर रहे हैं। इस घटना से पाकिस्तान का एक और चेहरा विश्व स्तर पर उजागर हुआ है।
—रामदास गुप्ता, जनता मिल (जम्मू-कश्मीर)
सेवा करने का जज्बा
रपट 'फुटपाथ पर स्कूल से संवरते जीवन' से प्रेरणा मिली। यह बिल्कुल सत्य है कि लोग नौकरी से सेवानिवृत्त होने के बाद अपने को वृद्ध मान लेते हैं और नीरस होकर बाकी का जीवन काटते हैं। लेकिन इसी में से कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो फिर से किसी लक्ष्य को पाने के लिए समाज सेवा का बीड़ा उठा लेते हैं और पूरे मनोयोग के साथ सामाजिक कार्य में लग जाते हैं। समाज के लिए ऐसे लोग प्रेरणा रूप में होते हैं।      
—देशबंधु, उत्तम नगर (नई दिल्ली)

कट्टरता छोड़ उदारता लाएं
लेख 'इस्लामबाद का हत्यावाद' कट्टर इस्लाम की हकीकत को उजागर करता है। केन्या के वेस्ट गेट हत्याकांंड में जब 67 लोगों की निर्मम हत्या को एक मौलवी ने सही ठहराया तो फिर इस मजहब के संबंध में कुछ कहने को बचता ही क्या है। दुनिया के उन मुसलमान देशों को देखें जहां हिन्दू या अन्य मत-पंथ के लोग अल्पसंख्यक हैं। वे यहां खौफ और दहशत में अपना जीवन काट रहे हैं। पर कभी-किसी को उनकी परवाह नहीं होती। विश्व की बात को एक बार दरकिनार भी कर दें तो देश में ही जिन राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक हैं, वहां के हालात सामान्य हैं क्या? जहां तक भारतीय संस्कृति का सवाल है तो भारतीय संस्कृति ने सभी का सम्मान किया है। रसखान, रहीम, कबीर, जायसी से देश प्रेरणा लेता है। क्या यही उदारता इस्लाम में आ सकती है? जिस दिन भी उसमें ऐसी उदारता आ गई उस दिन चहुंओर शान्ति ही शान्ति होगी।
—मनोहर मंजुल, पिपल्या-बुजुर्ग, प.निमाड (म.प्र.)
आस्था से खिलवाड़
इससे ज्यादा दुर्भाग्य और क्या होगा कि देश में 90 करोड़ से ज्यादा हिन्दू हैं, उसके बावजूद उनके आस्था केन्द्रों पर सवाल उठाए जाते हैं। हिन्दुओं के लिए गाय माता के समान है। उसे पूजा जाता है। लेकिन कुछ सेकुलर मजहब विशेष को खुश करने के लिए गोमाता की सामान्य पशु से तुलना करते हैं और उसके मांस को खाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। पर उनकी कभी उनकी हिम्मत नहीं हुई वे हिन्दुओं के आस्था केन्द्रों को छोड़कर अन्य मत-पंथ के आस्था केन्द्रों पर सवाल उठाएं और उनका अपमान करें? शायद वे ऐसा कभी भूलकर भी नहीं करेंगे-क्योंकि हिन्दू सहिष्णु है, सब कुछ सहन कर लेता है। पर अन्य मत-पंथ अपने आस्था केन्द्रों पर बिल्कुल हमले स्वीकार नहीं करते बल्कि प्रतिकार करते हैं। बिहार में वोट पाने के लिए लालू ने यदुवंश का अपमान किया है। असल में वह केन्द्र में सत्तारूढ़ सरकार के कार्यों से बौखलाए हुए हैं, इसलिए इस प्रकार के बयान दे रहे हैं।
—अश्वनी जांगड़, महम, रोहतक (हरियाणा)
     देश के अधिकतर राज्यों में गोतस्करी पर प्रतिबंध है। फिर एक वर्ग इस प्रतिबंध को मानने से इंकार करता है और खुलेआम मांस बिक्री और बीफ खाने की वकालत करता है। हद तो तब हो जाती है, जब पश्चिम बंगाल के एक मंत्री बीफ पार्टी का आयोजन कर उसमें खुलेआम बीफ खाकर हिन्दुओं को चिढ़ाता है। क्या देश ऐसे लोगों से शान्ति और सदभावना की आशा रखता है? जिन लोगों को देश के 90 करोड़ से ज्यादा हिन्दुओं की भावना से कोई मतलब नहीं, उनसे क्या उम्मीद रखी जा सकती है।
—राममोहन चन्द्रवंशी, टिमरनी, जिला-हरदा (म.प्र.)

जातिवाद का जहर
देश के राजनीतिक दल वोट पाने के लिए जात-पात को समाप्त करने के बजाय बढ़ावा देते हैं। वह यह कभी भी नहीं सोचते कि जाति व्यवस्था समाप्त कर हर देशवासी का विकास हो। लेकिन वे ऐसा इसलिए नहीं करेंगे क्योकि उन्हें तो वोट लेने हैं और वोट के लिए वे समाज लड़ाने से लेकर देशविरोधी बयान देने तक में कोई परहेज नहीं करते। ये सभी नेता जाति व्यवस्था को समाप्त करने का शोर तो खूब मचाते हैं पर स्वयं चुनावी सभाओं में जाति की खाईं खोदते हैं। अब जनता को ही उनके कारनामों को समझना पड़ेगा, क्योंकि ये समाज और देश के विकास के लिए कार्य नहीं करते बल्कि स्वयं के विकास के लिए कार्य कर  रहे हैं।     
    —रमेश गोयल, झांसी (उ.प्र.)

सेवा के बाने में कन्वर्जन
देश में ईसाई मिशनरियां कन्वर्जन के कार्य में लगी हुई हैं, यह आज किसी से भी छिपा नहीं है। देश के अनेक राज्यों में मिशनरियों की गतिविधियां सेवा की आड़ में संचालित हैं। मिशनरियां सेवा करने के बाद इन्हीं लोगों को बहला-फुसला लेती हैं और कन्वर्ट कर देती हैं। कन्वर्ट होने के बाद यही हिन्दू अपने धर्म की आलोचना और दूसरे मत-संप्रदाय का यशोगान करते हैं। इससे एक बात जरूर स्पष्ट हो जाती है कि जिस व्यक्ति का कन्वर्जन कुछ वर्ष पहले ही हुआ होता है उसकी जीवन पद्धति और संस्कार में मिशनरियां कैसे जहर घोल देती हैं, अंदाजा लगाया जा सकता है। उनके अंदर कूट-कूटकर हिन्दुत्व के विरोध का स्वर भरा जाता है। यहां की संस्कृति और सभ्यता को दुत्कारा जाता है। ये सब मिशनरियां देश में अनेक स्थानों पर कर रही हैं। ईसाई मिशनरियों का सेवा कार्य सराहनीय है। कई स्थानों पर उनके द्वारा लोगों की सेवा की जाती है, यह सत्य है। पर यह भी सत्य है कि देश के पूर्वोत्तर में अंधाधुंध बढ़ती उनकी आबादी उजागर करती है कि मिशनरियां हिन्दुओं को लक्षित करके कन्वर्जन कर रही हैं। साथ ही वनवासी प्रदेशों में फैलते उनके पैर देश को आगाह करते हैं कि अगर इनकी गतिविधियों पर नजर नहीं रखी गई तो वनवासी क्षेत्रों में रहने वाली आबादी इनके झांसे में आकर कन्वर्ट हो जाएगी और देश के नए दुश्मन तैयार हो जाएंगे। वहीं उन हिन्दुओं को भी विचार करना होगा जो कुछ लालच और स्वार्थ में अपने को कन्वर्ट करा लेते हैं। लेकिन उन्हें गर्व होना चाहिए कि उन्होंने इस महान संस्कृति में जन्म लिया। केन्द्र सरकार को देश में ईसाई मिशनरियों की गतिविधियों पर पूरी नजर रखनी होगी।
—राकेश जोशी
 506,सेक्टर-58, फरीदाबाद (हरियाणा)
अब भी बाकी कोई शंका
मियां मुशर्रफ ने कही, बिल्कुल सच्ची बात
कश्मीरी आतंक में, पाकिस्तानी हाथ।
पाकिस्तानी हाथ, प्रशिक्षण हम देते हैं
उनकी सभी जरूरत को पूरा करते हैं।
है 'प्रशांत' क्या अब भी बाकी कोई शंका
आतंकी की अब तो, फूंक दो जाके लंका॥     
-प्रशांत 

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