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* क्या मजहबी असहिष्णुता से उपजे हिंसक वातावरण में कला माहौल को बेहतर बनाने में मददगार हो सकती है?
ऐसी परिस्थिति में कला मरहम की भूमिका निभा सकती है। इंडियन स्पिरिचुअल आर्ट एक झरोखा है जिसके माध्यम से हम ऐसा माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं जहां लोग एक-दूसरे को आदर दें, आपसी समझ बढ़े, सामाजिक सौहार्द बने।
* पश्चिम में भातीय कला को किस नजर से देखा जाता है?
भारत आमतौर पर हर जगह छाप छोड़ रहा है इसलिए भारतीय संस्कृति की यूरोप और अमरीका में स्वीकार्यता बढ़ती जा रही है। जहां तक भारतीय आध्यात्मिक कला का सवाल है तो जैसे-जैसे लोग भारतीय आध्यात्मिकता की ओर आकर्षित होते जाएंगे वैसे-वैसे इसका विस्तार होता जाएगा।
* कलात्मक अभिव्यक्ति के लिए आस्था का कितना महत्व है?
यह सवाल संस्कृति, पंथ और आध्यात्मिक रुचि से जुड़ा है। ऐसे बहुत से चित्रकार हैं जो जन्म, शिक्षा और आस्था से मुस्लिम हैं, नमाज पढ़ते हैं वगैरह। लेकिन इसके साथ ही काफी आध्यात्मिक और खुले विचारों के हैं तथा दूसरी आध्यात्मिक परंपराओं से निकट व्यवहार रखते हैं। कर्नाटक के कमाल अहमद ऐसे ही चित्रकार हैं जो कृष्ण कथा की बहुत कलात्मक चित्रकारी करते हैं। इस्लाम में दिव्यता को आकार देने की मनाही है इसलिए वे दूसरी आध्यात्मिक परंपरा के माध्यम से ऐसा करते हैं।
* क्या नास्तिक अच्छा चित्रकार हो सकता है?
नास्तिक मतलब 'मैं ईश्वर में विश्वास नहीं करता'। इसकी जगह मैं मानवतावादी शब्द इस्तेमाल करता हूं। तथाकथित नास्तिक इंसान में विश्वास करते हैं। आखिर हममें से हर एक आध्यात्मिक है। भक्ति और आध्यात्मिकता, दो अलग स्तरों पर हैं। ऐसे कलाकार है जो बहुत हुनरमंद हैं, जिनमें भक्ति का गहन भाव है, उन्होंने गजब के चित्र बनाए हैं। प्रस्तुति : स्वदेश
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