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नाम : नृपाली पटेल न्यूजर्सी
अमरीका
क्या हैं : अध्यापक
संस्कृति सूत्र : संस्कारशाला से सम्बद्घ
परिवर्तन का क्षण
पुरखों की किताबें पलटना
कहते हैं बचपन में बच्चों को जो संस्कार दिए जाते हैं उनका असर जीवन-पर्यन्त रहता है। इसकी उदाहरण हैं हरारे (जिम्बाब्वे) में जन्मीं नृपाली पटेल। उन्होंने इंग्लैण्ड में उच्च शिक्षा प्राप्त की है और इन दिनों अमरीका में शोध करने के साथ-साथ पढ़ाती भी हैं। उनके पूर्वज वर्षों पहले भारत से जिम्बाब्वे गए थे, लेकिन उन्होंने अपने बच्चों को भारतीय संस्कृति से दूर नहीं होने दिया। नृपाली पटेल को उनके माता-पिता ने ऐसे संस्कार दिए कि मात्र 13 वर्ष की उम्र में ही पढ़ाई के साथ-साथ अध्यात्म की ओर उनका झुकाव हो गया। यही अध्यात्म उन्हें दोबारा पुरखों की भूमि भारत तक खींच लाया। वह कहती हैं, 'उस समय मैं जिम्बाब्वे में रहती थी एवं मेरी आध्यात्मिक जिज्ञासाओं का समाधान स्थानीय हिन्दू लोगों द्वारा हो जाता था। किन्तु जब मन में सवालों का उमड़ना और तेज हुआ तो मैंने भारतीय अध्यात्म से सम्बंधित पुस्तकें पढ़ीं, तब मुझे समझ में आया कि मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है! अध्यात्म में मैं जितनी डूबती गई, मुझे उतना ही आनन्द मिलता गया। सनातन संस्कृति ने मुझे समर्पण का वास्तविक अर्थ समझाया। मैं अनुभव करती हूं कि कोई व्यक्ति अपनी चेतना का स्तर ऊंचा उठाकर ही दूसरे की सोच को बदल सकता है। अध्यात्म में रुचि बढ़ने के बाद नृपाली ने अमरीका में चल रही बाल संस्कारशाला के लिए पाठ्यक्रम बनाने में भूमिका निभाई। पूरी जिम्मेदारी और गहराई से निभाई उनकी यह भूमिका नई पीढ़ी में भारतीय संस्कारों की नींव रख रही है। उसके संचालन में भी योगदान दे रही हैं। आज इस संस्कारशाला में 2000 से अधिक बच्चों में भारतीय संस्कार जमाने-जगाने और इस देश की वैश्विक मूल्यों वाली सनातन संस्कृति से जोड़ने का कार्य हो रहा है। इन बच्चों के परिवार वाले भी हिन्दुत्व की ओर झुक रहे हैं। संस्कारशाला से जुड़े लोग दिन-रात लोगों को यह समझाने में लगे हैं कि शान्ति के लिए भारतीय संस्कृति से जुड़ो।
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