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पेरियार की नास्तिकता किनारे सेकुलर स्टालिन मंदिरों की शरण में

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Nov 2, 2015, 12:00 am IST
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दिंनाक: 02 Nov 2015 12:03:04

लोकसभा और विधानसभा चुनावों में बार-बार हार का मुंह देखने के बाद तमिलनाडु की धुर धर्म विरोधी पार्टी द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) विधानसभा चुनावी वैतरणी को पार करने के लिए हिन्दुत्व की शरण में आती दिख रही है। पेरियार और अन्नादुराई जैसे हिन्दुत्व विरोधी विचारकों से प्रेरित और हिन्दुओं के लिए अपशब्द बोलने वाले करुणानिधि के नेतृत्व वाली द्रमुक की तमिलनाडु में हालत खस्ता है। मुख्यमंत्री जयललिता की लोकप्रियता इतनी जबरदस्त है कि द्रमुक के लिए उन्हें चुनौती देना मुश्किल हो रहा है। इसलिए अब उसे धर्म और भगवान याद आ रहे हैं। करुणानिधि के बेटे और द्रमुक के भावी नेता स्टालिन ने पार्टी की अनीश्वरवादी विचारधारा से उलट जाते हुए आजकल तमिलनाडु के मंदिरों के चक्कर लगाने शुरू किए हैं। पिछले दिनों स्टालिन ने यहां तक कहा था कि द्रमुक हिन्दुओं की   पार्टी है।

स्टालिन ने हाल ही में तिरुकोष्टियुर मंदिर में अपने द्वारा पूजा किए जाने की वकालत करते हुए कहा कि द्रमुक के 90 प्रतिशत कार्यकर्ता हिन्दू हैं। स्टालिन ने द्रमुक के संस्थापक अन्नादुराई-एक समुदाय के देवता-के नारे का जिक्र किया। लेकिन जानकार लोगों को सत्तर साल पुराना समय याद आ रहा है जब उन्हीं अन्नादुराई ने एक लेखमाला लिखकर दलील दी थी कि ‘हिन्दू धर्म तमिलों के लिए नहीं है। वह तमिलों के लिए बाहरी विचारधारा है। आर्य जाति के आने से पहले हिन्दू धर्म का तमिलनाडु में कोई अस्तित्व नहीं था।’ अपने 24 लेखों में उन्होंने तमिल साहित्य, इतिहास के उद्धरण देकर कहा था कि ‘यह धर्म तमिलों को स्वीकार्य नहीं होगा।’ अन्नादुराई द्वारा राजनीतिक दल द्रमुक की स्थापना करने के बाद भी नई पार्टी की हिन्दू विरोधी नीति बरकरार रही। असल में मशहूर फिल्म अभिनेता शिवाजी गणेशन को तिरुपति मंदिर में पूजा करने के कारण पार्टी छोड़नी पड़ी थी।

द्रमुक के अध्यक्ष करुणानिधि अब तक अन्ना द्रमुक के उन नेताओं की आलोचना करते रहे हैं जिन्होंने किसी मंदिर में जाकर कभी माथा टेका था। वे अब भी दावा करते हैं कि उनकी पार्टी अन्नादुराई और पेरियार के विचारों का अनुसरण करने वाली सच्ची द्रविड़ पार्टी है। पिछले साल विनायक चतुर्थी पर स्टालिन ने फेसबुक पर लोगों को शुभकामनाएं दी थीं। लेकिन करुणानिधि ने उसका समर्थन नहीं किया था इसलिए स्टालिन ने उस संदेश को वापस ले लिया था। इसका मुख्यमंत्री जयललिता ने भी मजाक उड़ाया था। करुणानिधि के बारे में स्टालिन ने बताया कि वे रामानुजम पर एक टीवी सीरियल की पटकथा लिख रहे हैं। रामानुजम ने जातिगत और पांथिक भेदभाव मिटाने के लिए काम किया था। इसलिए वे उस जगह को देखना चाहते थे जिसके बारे में कहा जाता है, वहां खड़े होकर रामानुजम ने गांव के सारे लोगों को अष्टाक्षर मंत्र ‘ओम् नमो नारायण’ दिया था।

वर्तमान में द्रमुक के कोषाध्यक्ष स्टालिन ने बहुत स्पष्ट शब्दों में इस आरोप का खंडन किया कि द्रमुक हिन्दू विरोधी है। लेकिन दूसरी तरफ बहुत सुनियोजित तरीके से यह दिखाने का अभियान भी चलाया जा रहा है कि द्रमुक तो हिन्दू विरोधी है लेकिन पार्टी के नेताओं और       उनके परिवारों की ईश्वर में आस्था है। यहां   तक कि उनकी पत्नी राज्य के सभी मंदिरों में जाती हैं। उन्होंने कभी उनसे नहीं कहा कि वह ऐसा न करें।

अपने चुनाव पूर्व अभियान के दौरान स्टालिन तंजौर के मंदिर में गए। बंगारू अम्मन मंदिर में पुरोहितों ने स्टालिन का स्वागत किया। परंपरागत तरीके से चंदन की माला पहनाई। इसके बाद पुजारियों ने उन्हें अपना मांगपत्र पेश किया जिसमें मंदिर के पुजारियों को राज्य द्वारा मान्यता दिए जाने, उनके लिए कल्याण बोर्ड गठित करने और सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन देने की मांग की गई।

स्टालिन के हाथों में पार्टी की कमान आने के बाद से पार्टी के रुख में परिवर्तन आ रहा है। अपने को पेरियार का अनुयायी मानने वाले करुणानिधि के समय पार्टी अपनी नास्तिक छवि बनाए रखती थी। हालांकि पार्टी के नेता इफ्तार पार्टियों और क्रिसमस समारोहों में जाया करते थे लेकिन मंदिर में जाने पर उन्हें करुणानिधि की फटकार सुननी पड़ती थी। पर पार्टी में स्टालिन का कद बढ़ने के बाद साफ है कि 2016 के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर पार्टी अपनी पुरानी छवि को बदलना चाहती है। स्टालिन अपने चुनाव पूर्व अभियान के तहत पूर्ण कुंभ स्वागत कार्यक्रम करवा रहे हैं। पार्टी के कार्यकर्ता भी मंदिरों में जाने लगे हैं। हाल ही में द्रमुक के विधायक अंबाजगन ने ट्वीट किया था कि उन्होंने हिन्दू मुन्न्नानी द्वारा आयोजित विनायक चतुर्थी के उत्सव में हिस्सा लिया। द्रमुक की नीति में परिवर्तन आने की एक वजह पार्टी के नेताओं का यह मानना भी है कि युवा नास्तिकता के प्रदर्शन को ज्यादा महत्व नहीं देते।  

द्रमुक नेता अपनी निजी बातचीत में कहते हैं कि पेरियार का जमाना अलग था, लेकिन अब उन्हें वर्तमान समय की भावनाओं का ख्याल रखना होगा। अब लोगों को नास्तिकता का सबक देने की जरूरत नहीं है। लोग अब पढ़े- लिखे हैं और हकीकत जानते हैं। इसके अलावा उन्हें अब इस बात का द्रमुक को अहसास हो गया है कि अब कोई भी पार्टी हिन्दुओं की विरोधी बनकर सत्ता में नहीं आ सकती।

दूसरी ओर द्रमुक के विरोधी अब उस पार्टी की नीति का मजाक उड़ा रहे हैं। जयललिता के नेतृत्व वाली अन्नाद्रमुक के मुखपत्र ने द्रमुक अध्यक्ष करुणानिधि का नाम लिए बगैर लिखा है कि रामसेतु विवाद के दौरान हिन्दू संगठनों ने जब रामसेतु को तोड़े जाने का विरोध करते हुए कहा था कि यह सेतु भगवान राम ने बनाया था तो करुणानिधि ने उनसे सवाल किया था कि राम किस इंजीनियरिंग कालेज में पढ़े थे? द्रमुक को हिन्दुओं का मजाक उड़ाने में बहुत खुशी होती थी। वह तिलक लगाने और मंगलसूत्र पहनने का विरोध करती थी, लेकिन अब वही द्रमुक कह रही है कि वह हिन्दुओं की पार्टी है।

द्रमुक के प्रेरणास्रोत माने जाने वाले पेरियार भारत विरोधी, ईश्वर विरोधी, आर्य विरोधी, उत्तर भारत विरोधी, हिन्दू विरोधी, संस्कृत-हिन्दी विरोधी सोच के अगुआ माने जाते थे। वे पहले दक्षिण में ‘द्रविड़नाडु’ और बाद में तमिलनाडु को अलग राज्य बनाने के सबसे बड़े पक्षधर थे। दरअसल पेरियार केवल आर्य और द्रविड़ों में भेद करने वाले नस्लवादी नहीं थे, बल्कि अलगाववादी भी थे। उन्होंने अपनी तरफ से भी देश का विभाजन कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। जून 1940 में उन्होंने कांचीपुरम में प्रस्तावित ‘द्रविड़िस्थान’ का नक्शा जारी किया था, लेकिन उसे अंग्रेजों का समर्थन नहीं मिला। आम तमिलों, कन्नड़, तेलुगु और मलयाली लोगों ने इस अलगाववादी एजेंडे में उनका साथ नहीं दिया। बाद में इसे संशोधित करके उन्होंने अलग तमिलनाडु की मांग की थी। इस मांग के लिए एक बार उन्होंने राष्टÑ ध्वज तिरंगा जलाने, संविधान जलाने के भड़काऊ, देश विरोधी कार्यक्रम करने का भी ऐलान किया था। इसी तरह पेरियार का ‘रेशनलिज्म’ भी अजीब और मनमाना था। वे घोषित तौर पर ईश्वर विरोधी थे, हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियां तोड़ते थे, चित्र जलाते थे मगर इस्लामी और ईसाई आस्था प्रतीकों से उन्हें प्यार था। उनके सामने उनका ‘रेशनलिज्म’ गायब हो जाता था। पेरियार ने द्रविड़ कषगम पार्टी की स्थापना की थी लेकिन कम उम्र की महिला से शादी के सवाल पर उनके अनुयायी अन्नादुराई ने अलग होकर द्रविड़ मुनेत्र कषगम बना ली। वह भी नास्तिकतावाद और हिन्दू विरोध पर आधारित थी, अलग तमिलनाडु की भी मांग करती थी लेकिन तमिलों का खास समर्थन न मिलने पर उन्होंने ये मांग छोड़ दी। उसके बाद करुणानिधि उनकी परंपरा को आगे चलाते रहे। तमिलनाडु में द्रमुक भले ही जीतती रही हो, मगर नास्तिक   और हिन्दू धर्म विरोध का उसका एजेंडा ज्यादा चला नहीं।

आज जितनी पूजा-पाठ और कर्मकांड तमिलनाडु में होता है उतना शायद किसी और राज्य में नहीं होता होगा। राजनीति में अन्नाद्रमुक जैसी द्रविड़ पार्टी उभरी और लगातार चुनाव जीतती रही जिसकी नेता जयललिता मंदिरों में जाती हैं, पूजा-पाठ करती हैं। उनकी ज्योतिष में भी आस्था है। यह इस बात का प्रतीक है कि अब तमिलनाडु की जनता द्रमुक के नास्तिकवाद को गंभीरता से नहीं लेती। इसलिए पेरियार से प्रेरित पार्टी को अब हिन्दुत्व की शरण में आने को मजबूर होना पड़ा है। सतीश पेडणेकर             

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