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अफगानिस्तान में 26 अक्तूबर को आया भूकंप करीब 400 लोगों की जिन्दगियां लील गया। इस भूकंप की व्यापकता 7.5 मापी गई। यदि यह भूकंप नेपाल की तरह मात्र 15 किलोमीटर गहरा होता तो न जानें कितने लोग काल का ग्रास बन चुके होते। इसका केन्द्र हिन्दूकुश पर्वत श्रृंखला थी।
26 अक्तूबर की दोपहर भारतीय समयानुसार करीब दो बजकर 40 मिनट पर आए इस भूकंप से न केवल वहां, बल्कि पाकिस्तान और भारत की जमीन थर्रा उठी। भूकंप की आहट मात्र से ही घरों और कार्यालयों में काम करते लोग अपनी इमारतें खाली कर सड़कों पर उतर आए। सभी अपने परिजनों की कुशलक्षेम पूछने में जुट गए। इस भूकंप से पाकिस्तान को भी भारी क्षति पहुंची है। पाकिस्तान में करीब 250 लोग मौत का शिकार बन गए। भारत के विभिन्न राज्यों में करीब 40 सेकेण्ड तक जमीन कंपन करती रही। इस दौरान कश्मीर में दो महिलाओं समेत तीन लोगों की मौत हो गई। भारत में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, बिहार, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और दिल्ली प्रभावित रहे। भू वैज्ञानिकों की मानें तो भारतीय प्लेट यूरेशिया प्लेट की ओर बढ़ रही है और इसके लगातार झुकने की स्थिति बनी हुई है। भारतीय प्लेट और यूरेशिया प्लेट की टकराहट के कारण ही हिमालय पर्वत श्रृंखला का निर्माण हुआ था।
हिन्दूकुश हिमालय पर्वत श्रृंखला के पश्चिमी छोर का अंतिम भाग है। इस टकराव के बाद यह घटकर आज गति पांच से.मी. प्रति वर्ष रह गई है, जबकि यह गति पहले 18 से 20 से. मी. थी। वैज्ञानिकों का मानना है कि बार-बार भूकंप भारतीय प्लेट और यूरेशिया प्लेट में टकराव के कारण उत्पन्न तनाव से हो रहे हैं। पृथ्वी की परत में लगातार खिंचाव होने के कारण ऐसा हो रहा है और यह प्रक्रिया निरंतर जारी है। हिमालय जोन में कहीं-कहीं पूथ्वी की ताकतवर परतें टूटने लगी हैं। देखें डॉ. ओम प्रकाश मिश्रा का साक्षात्कार।
यदि नेपाल में गत 25 अप्रैल को आए भूकंप पर गौर करें तो उसकी गहराई जमीन से मात्र 15 किलोमीटर थी और उसकी व्यापकता 7.9 मापी गई थी। जमीन से गहराई अधिक न होने के कारण ही नेपाल में आए भूकंप में विशाल क्षति हुई थी जिसने पूरे नेपाल को ही तहस-नहस कर डाला था। उस समय भूकंप का केन्द्र काठमांडू रहा था और वहां अवसादी शैल होने के कारण अधिक नुकसान हुआ था। इस भूकंप में नेपाल के ऐतिहासिक मंदिर और इमारतें भी ध्वस्त हो गए थे। नेपाल में आए भूकंप में 3.5 अरब की कुल क्षति, 8100 से अधिक लोगों की मृत्यु और उससे दोगुने लोग घायल हुए थे। नेपाल के साथ-साथ उत्तर भारत, तिब्बत, पाकिस्तान, बंगलादेश और चीन भी प्रभावित हुआ था। पड़ोसी देशों में भी करीब 250 लोग मौत का शिकार हो हुए थे। भारत के उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल का क्षेत्र अधिक प्रभावित हुआ था।
उधर भूकंप के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद से बातचीत कर भूकंप के बाद पैदा हुई स्थिति के बारे में जानकारी ली। इसके बाद पाकिस्तान और अफगानिस्तान में रह रहे लोगों की सुरक्षा के लिए प्रार्थना की। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत पाकिस्तान और अफगानिस्तान की हर संभव मदद करने को तैयार है। उन्होंने अफगानिस्तान में स्कूल की इमारत ढहने से मारे गए बच्चों की मृत्यु पर शोक भी जताया।
जलवायु परिवर्तन से बढ़े भूकंप
26 अक्तूबर को हिन्दूकुश पर्वत श्रृंखला में आए भूकंप से अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत की धरती थर्रा उठी। इस भूकंप ने करीब 400 लोगों को लील लिया। भूकंप यह प्रक्रिया निरंतर जारी रहती है और भारतीय प्लेट यूरेशिया प्लेट की ओर बढ़ रही है जिससे यह स्थिति बनी हुई है। इस संबंध में पाञ्चजन्य संवाददाता राहुल शर्मा ने भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के वैज्ञानिक डॉ. ओम प्रकाश मिश्रा से बात की। उनसे हुई बातचीत के अंश प्रस्तुत हैं :
पिछले कुछ समय से देखने में आया है कि भूकंप की बारंबारता बढ़ती जा रही है। इसका क्या कारण है?
बार-बार भूकंप आने का कारण भारतीय प्लेट का यूरेशिया प्लेट से निरंतर बढ़ता टकराव है। हिमालय के आसपास पृथ्वी की परत में तनाव और खिंचाव होने का यह संदेश है। हिमालय जोन में कहीं-कहीं ताकतवर परतें टूटने लगी हैं। भूकंप की व्यापकता इस जोन में अधिक होने का संदेश देती है। भारतीय प्लेट का प्रतिवर्ष 5 से. मी. यूरेशिया प्लेट की तरफ बढ़ना इसका प्रमाण है। भूकंप आने का कोई समय निश्चित नहीं है, बल्कि यह जमीन के नीचे होने वाली तीव्र गतिविधियों के कारण कभी भी हो सकता है। भूकंप जमीन से जितना अधिक गहराई तक जाएगा, उतना ही कम नुकसान होगा। मेरा मत है कि भूकंप एक प्रकार से पृथ्वी का ‘हृदयाघात’ है। भूकंप की तीव्रता अलग अलग-अलग स्थानों पर भिन्न-भिन्न होती है, जबकि व्यापकता हमेशा एक रहती है।
परत टूटने का कारण क्या जलवायु परिवर्तन है?
जलवायु परिवर्तन होने कारण छोटे-छोटे भूकंपों की प्रक्रिया में वृद्वि हुई है, लेकिन ऐसा धु्रवीय क्षेत्रों में हुआ है। ग्लेशियर क्षेत्रों में बर्फ पिघलने के कारण यह स्थिति लगातार बनती जा रही है। हिमालय के हिमनद क्षेत्र पर हो रहे जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए भी अध्ययन किए जाने की विशेष जरूरत है। बर्फ पिघलने से जमीन के नीचे की परत ऊपरी दबाव से मुक्त होने लगती है और इसी के चलते परत टूटने से छोटे-छोटे भूकंप आने लगते हैं। मानसून के कारण प्लेट की गति में भी वृद्धि का संकेत मिला है। इन दोनों का जलवायु परिवर्तन से काफी संबंध है।
ल्ल क्या भुज और नेपाल जैसे भीषण भूकंपों से जान-माल की क्षति कम की जा सकती है?
जहां तक जान-माल की रक्षा का सवाल है तो वह भूकंप से नहीं बल्कि इमारतों के गिरने से होता है। इसके लिए जापान में निर्मित भूकंपरोधी इमारतें और मकान हमारे समक्ष सबसे सुरक्षित उदाहरण हैं। इस तकनीक के जरिये जापान अनेक बार भूकंप आने पर भी अपने देशवासियों की जान-माल की रक्षा करने में सफल रहा है। भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने देश के करीब 30 प्रमुख शहरों में ‘सिस्मिक माइक्रो जोनेशन प्रोग्राम’ शुरू किया है। इसके तहत इन शहरों का विस्तृत अध्ययन करने के बाद ‘बिल्डिंग डिजाइन कोड’ तैयार किए जाएंगे कि किस शहर में किस तरह के भूकंपरोधी मकान और इमारतें तैयार कराई जा सकें। इस क्रम में दिल्ली की रपट तैयार हो चुकी है, जबकि पश्चिम बंगाल के कोलकाता की रपट अंतिम चरण पर पहुंच चुकी है। मैं एक बात स्पष्ट करना चाहूंगा कि दिल्ली या एनसीआर भूकंप पैदा करने वाले क्षेत्र में नहीं आते हैं, जबकि दिल्ली, एनसीआर, मुंबई या समुद्र के निकट वाले क्षेत्र भी किसी नजदीकी भूकंप से प्रभावित होन की आशंका रखते हैं। यमुना क्षेत्र की मिट्टी सामान्य क्षेत्र की मिट्टी के मुकाबले कमजोर होती है। हिमालय जोन में भूकंप आने के कारण दिल्ली-एनसीआर की जमीन कंपन अवश्य करेगी, लेकिन यहां अधिक जान-माल का नुकसान होने की संभावना कम होगी, जब यहां के मकान और इमारतें मजबूत होंगी। भूकंप से बचाव के लिए केवल भूकंपरोधी इमारतों व मकानों का निर्माण ही एकमात्र उपाय है। भारत सरकार इसके लिए प्रयासरत है और योजनाबद्ध तरीके से पृथ्वी मंत्रालय द्वारा इस पर तेजी से कार्य किया जा रहा है।
पाकिस्तान और अफगानिस्तान में आए भूकंप पर मैं सहानुभूति और संवेदना व्यक्त करता हूं। मैंने अफगानिस्तान के राष्ट्रपति मोहम्मद अशरफ गनी और पाकिस्तान के प्रधानंत्री नवाज शरीफ से बातचीत कर भारत की ओर से हरसंभव मदद करने की पेशकश की है। मुझे दोनों देशों में भूकंप से हुई क्षति और लोगों की मृत्यु का बेहद दु:ख है। – नरेन्द्र मोदी, प्रधानमंत्री
अफगानिस्तान और पाकिस्तान में भूकंप से हुई जान-माल की हानि के प्रति मैं संवदेना व्यक्त करता हूं। चीन आपदा प्रभावित दोनों देशों को राहत पहुंचाने में मदद करेगा। —शी जिनपिंग, चीन के राष्ट्रपति
भुज में आए भूकंप के दौरान मैं बैंकर्स कॉलोनी में रहता था। उस दिन सुबह हमारी चार मंजिला इमारत मेरे देखते ही देखते ढह गई। इमारत में रहने वाले 279 लोगों में से कुल 19 लोग ही जीवित बच पाए थे। इस हादसे में मैंने अपनी पत्नी को सदा के लिए खो दिया जिनके साथ छह माह पूर्व ही मेरा विवाह हुआ था। इस भूकंप में मेरे ससुराल पक्ष के अन्य लोग भी मौत का ग्रास बन गए थे, जो कि पड़ोस में ही रहते थे। मरने वालों की संख्या सरकारी आंकड़ों से कहीं ज्यादा थी। – अनिल अश्वनी, पत्रकार
राहुल शर्मा
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