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महाराष्ट्र में पहली भाजपा शासित सरकार की कमान युवा मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस के हाथों में है। पिछले कुछ समय से उनकी सरकार अपनी उपलब्धियों के बजाय, मीडिया जनित विवादों के कारण अधिक सुर्खियों में रही है। अब जबकि मुख्यमंत्री अपने कार्यकाल का एक वर्ष पूरा करने जा रहे हैं, फड़नवीस के अनुसार उनके पास इस बारे में उत्सव मनाने का समय नहीं है। बल्कि वह आमजन के बीच अपनी सरकार की उपलब्धियों के बारे में संवाद स्थापित करने पर जोर देते हैं। प्रस्तुत हैं पाञ्चजन्य व ऑर्गनाइजर के साथ उनकी बातचीत के मुख्य अंश :
* सबसे पहले इस पद पर एक वर्ष पूरा करने की बधाई और भावी यात्रा के लिए शुभकामनाएं!
बहुत-बहुत धन्यवाद!
* आपकी यात्रा एक स्वयंसेवक से अभाविप के कार्यकर्ता के तौर पर और फिर भाजपा नेता व अंतत: महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में रही है। इस यात्रा के जरिये आपने प्रशासनिक व्यवस्था को कितना आत्मसात किया। हालांकि, सिद्घांतों की बात करना हमेशा आसान होता है, लेकिन शासन-तंत्र के व्यावहारिक रूप के साथ आप उन्हें किस हद तक जोड़ने में सफल रहे हैं ?
चूंकि मैंने शुरुआत एक सामान्य कार्यकर्ता के रूप में की थी, इसलिए मैं जमीनी सच को अच्छी तरह समझता हूं। कुछ फैसलों का लोग क्या मतलब निकालते हैं, उन्हें भी जानता हूं। लेकिन एक निश्चित विचारधारा पर चलते हुए, आपकी सोच-समझ में स्पष्टता बनी रहती है और मार्ग में कोई अवरोध नहीं आता। और अंतत: आपकी सोच या सिद्घांत ही आपका मार्गदर्शन करते हैं। सौभाग्यवश, मैं उस विचारधारा से आता हूं जहां किसी भी निर्णय को तब तक अंतिम नहीं माना जाता, जब तक यह परख न लिया जाए कि वह राष्ट्र और समाज के हित में होगा या नहीं। इसका मुझे सबसे अधिक लाभ हुआ है। इसी की मदद से मैंने सही समाधान के मार्ग को पहचाना है। आप मेरे फैसलों और फाइलों पर मेरी टिप्पणियों के आधार पर इसकी जांच कर सकते हैं।
* पिछले एक वर्ष की अपनी सफलता या असफलता का आकलन कैसे करेंगे?
हमारे सामने बड़ी चुनौतियां हैं। पंद्रह वषार्ें तक राज्य व्यवस्था कुछ इतने खराब दौर से गुजरी थी कि महाराष्ट्र में सरकार की संचालक शक्ति का अर्थ ही 'सत्ता का दुरुपयोग' हो गया था। विकास के एजेंडा और शासनतंत्र को सुचारु बनाए रखने की बजाय, समूची व्यवस्था 'पैसे' व 'सत्ता' के ईद-गिर्द घूम रही थी। हमारा राज्य, जिसे प्रत्येक मोर्चे पर नंबर एक होना चाहिए था, देश के कई अन्य राज्यों से पीछे पहुंच चुका था। अत: प्रतिदिन एक नई चुनौती की तरह था। आज राज्य पर ऋण और अन्य जरूरी खचार्ें के कारण आर्थिक बोझ बहुत ज्यादा है, जिस कारण नई शुरुआतों की गुंजाइश नहीं बन रही थी। इन विपरीत परिस्थितियों के बावजूद, हम पिछले एक वर्ष में कई नए कार्य करने में सफल रहे हैं। जब हमने सत्ता संभाली थी, 24,000 गांव सूखे की चपेट में थे। पिछली सरकार ने पांच वर्ष के अरसे में 8000 करोड़ रुपये वितरित किए थे, जबकि हम एक वर्ष में इतनी ही राशि 1 करोड़ से ज्यादा किसानों के बीच वितरित करने में सफल रहे हैं। इस वर्ष हम सूखे से निपटने के लिए सक्रिय कदम उठा रहे हैं।
हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि जलयुक्त शिविर (प्रत्येक गांव के लिए जल इकाई) के रूप में रही है। हमने इस योजना की शुरुआत सहभागिता के आधार पर की थी, और 6200 गांवों में 24 टीएमसी जल क्षमता को स्थापित करने में सफल रहे हैं। इसके जरिये 6 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि की सिंचाई हो सकेगी। इस योजना के लिए 1400 करोड़ रुपये व्यय किए गए हैं, लेकिन सबसे जरूरी तथ्य यह है कि इसके लिए लोगों ने 300 करोड़ रुपये का सहयोग दिया। पिछली सरकार द्वारा 5 वषार्ें में 15000 करोड़ रुपये खर्च करने के बाद भी उसे यह उपलब्धि हासिल नहीं हो सकी थी। आगामी वर्ष में हम 5000 गांवों को इस योजना का लाभ पहुंचाने का प्रयास करेंगे। हमारा पक्का विश्वास है कि जब तक महाराष्ट्र में कृषि का स्थायी विकास नहीं होगा, राज्य का समग्र विकास संभव नहीं है। हमें मराठवाड़ा जैसे क्षेत्रों में भी सकारात्मक असर देखने को मिल रहे हैं, जहां लंबे समय से सूखे का दौर रहा है। किसानों को केवल वर्षा के आसरे नहीं छोड़ा जा सकता। सच यह है कि इस योजना को अभूतपूर्व सहयोग प्राप्त हुआ है, और प्रतिदिन मुझे विभिन्न वगार्ें के लोगों से करीब 1 करोड़ रुपये की राशि प्राप्त होती रही है। मुझे इस बात का बेहद संतोष है कि कार्यकाल के पहले वर्ष में ही हम सबसे बड़ी चुनौती का जवाब देने में सक्षम बन सके हैं। इसके अलावा, सिंहस्थ कुंभ की सफल व्यवस्था, मराठवाड़ा में रेलवे परियोजनाओं की शुरुआत इस वर्ष की अन्य उपलब्धियां रही हैं।
*इस लोकप्रिय सहभागिता को हासिल करने में क्या विशेष सरकारी प्रयास रहे हैं?
मेरे विचार में हमारी सरकार इस व्यवस्था में लोगों का भरोसा फिर से स्थापित करने में सफल रही है। मैं खुद हरेक जिले में गया हूं। समूचे प्रशासन का ध्यान पूरी तरह इस योजना पर रहा है। अण्णा हजारे और राजेंद्र सिंह राणा जैसी प्रतिष्ठित हस्तियों ने लोगों को इसका हिस्सा बनने को प्रेरित किया। राजेंद्र सिंह जी महाराष्ट्र में ही रहे और 18 जिलों में घूमे। स्टॉकहोम में आयोजित इंटरनेशनल वाटर कॉन्फ्रेंस में उन्होंने इसे आमूलचूल परिवर्तन करने वाली योजना बताया। जिस दिन मैंने इस योजना की घोषणा की थी, मैं नहीं चाहता था कि यह सरकारी योजना ही बनी रहे, बल्कि मैंने इसकी परिकल्पना एक लोक अभियान के रूप में की थी और सौभाग्य से यह आज का सच है। जैसे-जैसे आमजन को इससे नतीजे मिलने शुरू हुए, योजना में उनका भरोसा और शिरकत स्वत: ही बढ़ती गई।
*यदि यह आपकी सबसे बड़ी उपलब्धि है, तो असफलताएं क्या हैं, या वे क्षेत्र जिनके लिए आप पहले वर्ष में बड़े फैसले नहीं ले सके ?
सच कहूं तो ऐसा कोई क्षेत्र नहीं बचा है जिस पर पहले वर्ष में हमने कोई शुरुआत न की हो; फर्क सिर्फ इतना है कि प्राथमिकताओं के कारण प्रत्येक क्षेत्र के कार्य भिन्न चरणों में हैं। उदाहरण के लिए, औद्योगीकरण एक क्षेत्र है जहां हम बड़े निवेश ला सकते हैं। निवेश के मामले में राज्य फिर से देश में शीर्ष पर पहुंच चुका है। फोक्सकोन जैसे अंतरराष्ट्रीय ब्रांड का महाराष्ट्र में निवेश करना देश में इलेक्ट्रॉनिक्स के निर्माण और रोजगार की दिशा में क्रांतिकारी कदम साबित होगा। मुझे पूरा विश्वास है कि जिस तरह चीन दुनिया में निर्माण का केंद्र रहा है, आने वाले वषार्ें में भारत और महाराष्ट्र इस क्षेत्र में अग्रणी रहेंगे। इसके लिए हमने व्यापार क्षेत्र को सुगम बनाने के लिए कई कदम उठाए हैं। हालांकि, मुझे यह मानना होगा कि इस बारे में हमारे निर्णय राज्य के लोगों तक संप्रेषित नहीं हो सके हैं और इसके लिए हमें काम करना होगा। इसलिए मेरे विचार में कार्यकाल के एक वर्ष को उत्सव मनाकर नहीं बल्कि संपर्क साध कर मनाना चाहिए। संपर्क उस सच को प्रेषित करने का कि हमने क्या किया है और आने वाले वषार्ें में हम क्या करने जा रहे हैं।
* आपने व्यापार को सरल बनाने की बात की। मौजूदा सच यह है कि उद्योग मुंबई-पुणे-नासिक के त्रिकोण तक ही सीमित है। नौकरशाही की अड़चनों को कम करने के बावजूद, व्यवसाय-जगत बुनियादी ढांचे का विकास चाहता है, जो विदर्भ और मराठवाड़ा जैसे क्षेत्रों में बेहद कमजोर है। इस बारे में आप क्या कर रहे हैं?
हमने इस दिशा में पहले प्रयोग अमरावती में किए जहां हमने एकीकृत टेक्सटाइल पार्क विकसित किया था। अभी से वहां दस कंपनियां पहुंच चुकी हैं। हाल में रेमंड्स भी वहां एक इकाई लगाने पर राजी हुई है। इसी तरह की पहल 10 कपास उत्पादन वाले क्षेत्रों में भी की गई हैं, जो औद्योगिक त्रिकोण से बाहर हैं। यह उद्योग किसानों के लिए भी लाभकारी होगा। कृषि और उद्योग एक साथ विकास करेंगे। जहां तक व्यापार को सरल बनाने की बात है, केंद्र के आकलन में महाराष्ट्र का स्थान आठवां है। ऐसा इसलिए क्योंकि श्रम विभाग से जुड़ी 40 मंजूरियां अभी तक डिजिटल मंच पर उपलब्ध नहीं हैं। हम इस दिशा में भी काम कर रहे हैं। प्रसंगवश, बुनियादी ढांचे से जुड़े मानकों में केंद्र की सूची में महाराष्ट्र का स्थान पहला है। हाल में लाइव मिंट के एक अध्ययन में महाराष्ट्र को इससे जुड़े 5 शीर्ष पुरस्कार भी मिले हैं। दरअसल, अपने फैसलों को ऊपर से नीचे तक ले जाने के लिए समय लगता है, और हम इस बारे में प्रयासरत हैं।
ल्ल विधानसभा में स्पष्ट बहुमत नहीं है। गठबंधन के साझीदार सहयोग नहीं कर रहे हैं। आप इससे कैसे निपटेंगे?
सच कहूं तो गठबंधन के साझीदारों से हमें कोई समस्या नहीं है। मंत्रिमंडल के अधिकांश निर्णय सर्वसम्मति से लिए जाते हैं और शिव सेना उसमें बराबर शामिल होती है। कुछ मुद्दों पर मतभेद हो सकते हैं, लेकिन ऐसा तो पार्टी के भीतर भी होता है और उन्हें विमर्श के जरिये सुलझाया जा सकता है। हम एक साथ 25 वषार्ें से काम कर रहे हैं, एक दूसरे के स्वभाव और प्रकृति से परिचित हैं, इसलिए हम इतनी अच्छी तरह से साथ चल पा रहे हैं।
* हालांकि, सरकार के प्रति धारणा बेहद साफ है, फिर भी यह सोचा जा रहा है कि निर्णय लेने की रफ्तार धीमी है। महाराष्ट्र का नाम राष्ट्रीय मीडिया में कई विवादों के कारण उछलता रहा है। चाहे वह गोमांस पर प्रतिबंध हो, धार्मिक असहिष्णुता हो या पाकिस्तान के बारे में शिव सेना का रुख हो।
देखिए, छद्म-धर्मनिरपेक्ष मीडिया इस तरह के आधारहीन मुद्दों को उछालता है। हमने कभी गोमांस पर प्रतिबंध नहीं लगाया बल्कि यह विवाद हमारे ऊपर थोपा गया था। पिछली सरकार ने सनातन संस्था पर प्रतिबंध लगाने के लिए केंद्र के पास सिफारिश भेजी थी, जो तीन वषार्ें तक पुख्ता प्रमाण की कमी के कारण लंबित पड़ी रही थी। किसी ने इस बारे में बात नहीं की थी। गोवध पर 25 राज्यों में प्रतिबंध है, तो महाराष्ट्र का ही नाम क्यों लिया जाता है ? सच यह है कि हमने गोवध पर हाल में रोक लगाई है, लेकिन राज्य के निर्देशक सिद्घांतों के अनुसार इसे वषार्ें पहले लागू किया जा चुका था। इसका धर्म से कोई संबंध नहीं क्योंकि यदि मवेशियों की संख्या में कमी आती है, तो राष्ट्रीय स्तर पर कृषि उत्पाद में कमी आती है। अगर दादरी जैसी कोई दुर्भाग्यपूर्ण घटना महाराष्ट्र में होती तो मीडिया मुझे सूली पर टांग देता, लेकिन वहां राज्य सरकार से किसी ने सवाल नहीं किया। तो जब तक ये छद्म-धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण बने रहेंगे, ऐसे आधारहीन आरोप भी लगते रहेंगे और भाजपा सरकार को निशाने पर लिया जाता रहेगा। राज्य में कुछ तत्व हैं जिनके अनुसार निर्णय असरकारी तरीके से नहीं लिए जाते हैं। वहीं मेरी भी चुनौती है कि हमारी निर्णय क्षमता भारत के कई अन्य राज्यों की अपेक्षा बेहतर और तेज हुई है।
* पिछले वर्ष सत्ता संभालने के बाद आर्गनाइजर से बातचीत के दौरान आपने कहा था आपके शासन में एकीकृत मानवतावाद और अंत्योदय की झलक देखने को मिलेगी। आपके अनुसार इसमें कितनी सफलता मिली है?
हमारे सभी निर्णय एवं प्रयास इसी दिशा में अग्रसर हैं। सभी निर्णयों के पीछे समग्र विकास और हाशिये पर पड़े तबकों को मुख्यधारा से जोड़ने की ही मंशा है। एक वर्ष बाद जब हम अपना 'रिपोर्ट कार्ड' सौंपेंगे, तो आपको उसमें एकीकृत मानवतावाद की छवि साफ नजर आएगी। *
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