पुस्तक समीक्षा-क्या सार्वभौमिक धर्म संभव है ?
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पुस्तक समीक्षा-क्या सार्वभौमिक धर्म संभव है ?

by
Oct 26, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 26 Oct 2015 14:05:34

 

‘एक सोच धर्म की’ एक अच्छी पुस्तक है लेकिन अजीब भी है। किताब हाथ में लेते ही सबसे पहले पाठक लेखक का नाम ढूंढता है लेकिन उसे पूरा पढ़ जाने पर पता नहीं चलता कि पुस्तक का लेखक कौन है। मुखपृष्ठ से इतर अंदर संपादकों के तौर पर तीन और लोगों के नाम हैं। हिन्दी अनुवाद का श्रेय डॉ. राजीव कुमार शर्मा को दिया गया है । पर हर जगह लेखक नाम का जीव गायब है। इस खामी के बावजूद यह पुस्तक सरल भाषा में धर्मों के बारे में दिलचस्प जानकारी देती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शब्दों में कहा जाए तो विभिन्न धर्मों के मुख्य पहलुओं का सुस्पष्ट वर्णन और विश्लेषण करती है। इस पुस्तक में रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद जैसे हमारे भारतीय संतों और महान दार्शनिकों के उन सबसे मौलिक विचारों का संग्रह है जो समकालीन भारत के लिए प्रासंगिक हैं। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने संदेश में कहा है-धर्म की अवधारणा और उसके विभिन्न आयामों पर युगों-युगों से अनगिनत महापुरुषों, ज्ञानियों और विद्वानों ने अपने-अपने तरह से विचार व्यक्त किए हैं। भारत की सोच सदा ही यही रही है कि एक ही सत्य को विद्वानों ने अनेक प्रकार से व्यक्त किया है। धर्म की यात्रा अनंत है और इस पर किए लेखन की यात्रा भी अनंत है। इस यात्रा में श्री जगदीश उपासने, प्रो.जे़ एस ठाकुर और जीडी सिंह द्वारा संपादित यह पुस्तक महत्वपूर्ण कड़ी है।

पुस्तक की विशेषता यह है कि इसमें स्वामी विवेकानंद की नरेंद्र से स्वामी विवेकानंद बनने की आध्यात्मिक यात्रा का बहुत दिलचस्प विश्लेषण किया गया है। किस तरह जीवन और जगत के प्रति जिज्ञासा, निरंतर साधना, भारत भ्रमण के दौरान देश की गरीबी और अज्ञान देखकर विह्वलता, सत्य के प्रति गहरी प्यास और उनके गुरु रामकृष्ण देव के आशीर्वाद ने उन्हें भारत ही नहीं विश्व का महान चिंतक बना दिया। उनके चिंतन की मुख्य विशेषता है उनकी अद्वैत दृष्टि। हम सभी में ईश्वर है और हम सभी ने अपने ईश्वरीय स्वभाव को खोजने के लिए जन्म लिया है।

इसके अलावा संपादकों ने स्वामी विवेकानंद के सार्वभौमिक धर्म के संबंध में विचारों को एकसूत्र में पिरोने का प्रयास किया है। स्वामीजी ने सार्वभौमिक धर्म के बारे में अपने विचार अनेक अवसरों पर अलग अलग दृष्टिकोणों से व्यक्त किए हैं। जैसे विश्व के सभी धर्म एक दूसरे के पूरक हैं, धर्म महसूस करने का नाम है,तथा मानक व्यक्ति को चार भागों में वर्गीत किया जा सकता है।, इत्यादि को प्रमुखता से इस पुस्तक में सम्मिलित किया गया है। विश्व के सभी धर्म भी एक दूसरे में निहित हैं और इसी तरह सभी धर्मों के मध्य सार्वभौमिकता स्थापित की जा सकती है। पुस्तक में भारत के प्राचीन दर्शन,अन्य धर्मों के दर्शन,स्वयं की यात्रा, पुनर्जन्म, मृत्यु का भय, कर्म का सिद्धांत ज्ञान की प्राप्ति के मार्ग,आत्मा का अमरत्व, ईश्वर संबंधी प्रारंभिक विचार और धीरे-धीरे इसके विकास पर लेखक ने अधिकार के साथ लिखा है। यह भी बताया गया है कि धर्म के तीन प्रमुख तत्व हैं दर्शन, पौराणिक साहित्य और कर्मकांड। यह तत्व हर धर्म में होते हैं। ईश्वर वह डोर है जो इन सभी मोतियों में से होकर गुजरती है और हर मोती कोई धर्म या संप्रदाय है। इस प्रकार धर्म और संप्रदाय भिन्न मोतियों की तरह हंै और ईश्वर वह कड़ी है जिससे होकर सारे मार्ग निकलते हैं मगर अधिकतर लोग उससे पूरी तरह अनिभिज्ञ हैं।

पुस्तक की भूमिका में संपादकों ने धर्म का निचोड़ बताते हुए लिखा है ‘सभी धर्मों का सारतत्व है ईश्वर को जानना, उसे आत्मा में महसूस करना, उस सर्वोच्च अज्ञात सत्ता के साथ अपने अंदर सुसंगति कायम करना, और अंतत: ईश्वर के साथ एकाकार हो जाना। हरेक धर्म किसी महान सत्य की किसी विशेषता का प्रतिनिधत्व करता है जिससे उसका मूलरूप बनता है। सभी धर्म अलग अलग मतों, दृष्टिकोणोंऔर वैचारिक परिपक्वता के विभिन्न स्तरों से सत्य को देख रहे हैं। ये सभी एक दूसरे के पूरक हैं, विरोधाभासी नहीं। सच्चाई यह है कि ये सभी शाश्वत धर्म के विभिन्न चरण हैं।’

पुस्तक में कई सूक्तियां तो अद्भुत अंतर्दृष्टि देनेवाली हैं- रामकृष्ण ने पाया कि समस्त धर्मों में एक समान विचार है वह है। ‘मैं’ नहीं ‘तुम’ और जो कहता है ‘मैं नहीं’, ईश्वर उसका ह्दय भर देता है। हमारे अंदर यह मैं जितना छोटा होगा उतना ही ईश्वर हमारे अधिक निकट होगा। और एक ऐसा ही सुंदर उद्घरण है-जब कमल पुष्पित होता है तो मधुमक्खियां स्वयं ही शहद की तलाश में पहुंच जाती हैं। अत: अपने चरित्र के कमल को पूर्ण पुष्पित होने दो, परिणाम खुद ब खुद पीछे आएंगे। सबसे पहले चरित्र निर्माण करो यही सबसे प्रमुख कर्त्तव्य है जो तुम्हें करना चाहिए। लेखक ने ज्ञान प्राप्ति के तीन माध्यम बताए हंै-सहज प्रवृत्ति, विचार शक्ति और प्रेरणा। इसी संदर्भ में ही उन्होंने ध्यान, कर्म और पूजा समर्पण की भी सुंदर व्याख्या की है। उन्होंने यह भी बताया है कि इस प्रकार मनुष्य निष्काम कर्म,ईश्वर प्रेम और ज्ञान के माध्यम से स्व-अनुभूति कर सकता है। स्व-अनुभूति ही ईश्वर अनुभूति है। इस संदर्भ में मन पर नियंत्रण की विधियों और ज्ञान प्राप्त करने में इसके महत्व का सुंदर प्रतिपादन किया है।

विभिन्न धर्मों की आध्यात्मिक अवधारणाओं और धर्म के मर्म को उसकी परिपूर्णता में समझने की दिशा में यह पुस्तक अच्छा प्रयास है। स्वामी विवेकानंद का वैश्विक धर्म का सपना अभी भी दूर का सपना ही लगता है। धर्मों में आदान प्रदान और सहयोग बढ़ने के बजाय टकराव ही बढ़ रहा है। ऐसी स्थिति में -एक   सोच धर्म की -जैसी पुस्तकें सार्वभौमिक धर्म के लिए जमीन बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है।

पुस्तक का नाम

एक सोच धर्म की

संपादन : जगदीश उपासने

प्रकाशक : मौसम बुक्स, जे के जैन ब्रदर्स, की एक इकाई सुल्तानिया रोड, मोती मस्जिद के सामने, भोपाल-462001

मूल्य -449/- रु.

पृष्ठ – 232

समीक्षक:सतीश पेडणेकर

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