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बाबू जी, मोदी साहब ने हम सबके लिए ऐसे घर बनवा दिए हैं कि विश्वास ही नहीं हो रहा ये हमारे लिए हैं। आज तक तो बेघर ही थे। सरकारी जमीन पर बनी झोपड़ी में ही पैदा हुए और झोपड़ी में ही रहकर जीवन की सांझ बेला तक पहुंचे हैं। अब इस उम्र में पक्का घर मिला है तो ऐसा लग रहा है कि मानो जीवन तर गया। सपने में भी नहीं सोचा था कि इस जीवन में पक्के मकान में रहने का सौभाग्य प्राप्त होगा। आप देख रहे हैं कि हम लोगों की क्या स्थिति है। ऐसा मकान बनाने में तो हमारी कई पुश्तें खप जातीं, फिर भी शायद ही ऐसा घर बना पातीं। हम सब मोदी जी का दिल से शुक्रिया करते हैं।'
यह कहना था लगभग 80 वर्ष के बुजुर्ग मुखई का। मुखई जयापुर गांव की मुसहर टोली के रहने वाले हैं। उसी जयापुर के जिसको प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक सांसद के नाते गोद लिया है और आदर्श ग्राम बनाने का संकल्प व्यक्त किया है। यह गांव बनारस शहर से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर है।
प्रधानमंत्री द्वारा गोद लेने के बाद ही इस गांव में विकास की कई योजनाएं शुरू की गई हैं। सबसे पहले दिसम्बर, 2014 से गांव के बाहर खेतों के बीच स्थित मुसहर टोली के लोगों के लिए पक्के मकान बनवाने का काम शुरू किया गया। यहां 14 परिवार रहते हैं। इन सबके लिए अलग-अलग 14 मकान बनवाए गए और उन्हें उन परिवारों को सौंपने की प्रक्रिया चल रही है। हर मकान में एक कमरा, एक रसोई घर, एक स्नानघर, एक शौचालय, एक 'वॉश रूम' और आंगन हैं। छत पर हर घर के लिए अलग-अलग सौर ऊर्जा के संयंत्र और पानी की टंकियां लगी हैं। पानी के लिए 'ट्यूबवेल' की सुविधा है।
पानी और बिजली की सुविधाओं से युक्त घर मिलने की बात पर ही गांव के एक अन्य निवासी जीतू चहक उठते हैं। वे हमें छत पर ले गए और सौर ऊर्जा के संयंत्रों और पानी की टंकियों को दिखाते हुए कहने लगे,'हम लोग बहुत गरीब हैं। कभी सोचा ही नहीं था कि पक्के मकान में रहेंगे। वह भी बिजली की रोशनी और पानी के नल की सुविधाओं के साथ। मोदी जी की वजह से हमें छत मिल रही है, यह हमारे लिए बहुत बड़ी बात है।'
गांव के युवा 18 वर्षीय सोनू का भी हौसला बढ़ गया है। उसने कहा, 'घर तो मिल रहा है, लेकिन यहां तक आने के लिए कोई सीधा रास्ता नहीं है। गांव में प्रवेश करने के लिए हम लोगों को कई किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। हम लोगों के लिए रोजगार का साधन भी हो जाए तभी इन घरों में रहने का मजा है।' लगभग 70 वर्षीया सरस्वती देवी भी अपने बच्चों के रोजगार के लिए चिन्तित हैं। उन्होंने कहा, 'हम लोगों के पास एक गज भी जमीन नहीं है। परिवार के सभी लोग खेतों में काम करते हैं और पेट पालते हैं। यह काम तब तक हो सकता है जब तक शरीर में ताकत है। इसके बाद हम लोगों का क्या होगा? मोदी जी हमारे बच्चों को रोजगार दिला दें।'
जयापुर गांव 7 टोलों में बंटा हुआ है। यहां की आबादी 4200 है और 2000 मतदाता हैं। प्रधानमंत्री ने जब से इस गांव को गोद लिया है तब से यहां के निवासी बड़े खुश हैं। जयापुर में चारों ओर नरेन्द्र मोदी की जय-जयकार हो रही है। हो भी क्यों नहीं? आज जयापुर देश-दुनिया में चर्चा का केन्द्र बना हुआ है। इसके पीछे नरेन्द्र मोदी ही हैं। जयापुर की पंचायत के प्रतिनिधि नारायण पटेल ने बताया, 'प्रधानमंत्री द्वारा इस गांव को गोद लेने के बाद यहां यूनियन बैंक, सिंडीकेट बैंक और भारतीय स्टेट बैंक की शाखाएं खुली हैं। डाक घर और आंगनबाड़ी केन्द्र भी खुले हैं। गांव की गलियों में सौर ऊर्जा वाली बत्तियां लगी हैं। पक्की सड़कें बन रही हैं। हर परिवार के लिए शौचालय बन रहे हैं, जिनकी संख्या 450 है। पेयजल के लिए 2 लाख लीटर क्षमता वाली पानी की टंकी बनाई जा रही है।'
गांव से बनारस तक के लिए बस सेवा भी शुरू की गई है। प्रतिदिन यह बस राजा तालाब (बनारस) तक जाती है। बस का किराया आमतौर पर वसूले जाने वाले किराए से आधा रखा गया है। इससे गांव के लोगों की एक बड़ी समस्या हल हो गई है। बनारस जाने-आने वाले छात्र हों या फिर मजदूरी करने वाले ग्रामीण, इन सबको इस बस सेवा से बड़ा लाभ हो रहा है। खासकर गांव की महिलाएं और छात्राएं इस बस सेवा से खुश हैं। उन्हें बनारस जाने-आने में बड़ी सुविधा हो गई है। गांव में स्वास्थ्य केन्द्र भी शुरू हो गया है। इन सुविधाओं से जयापुर के लोग तो बहुत खुश हैं, लेकिन आसपास के गांवों के लोग नाराज हैं। कई ग्रामीणों ने बताया कि प्रधानमंत्री ने जयापुर का उद्धार कर दिया अब उनके संसदीय क्षेत्र के अन्य गांवों का भी भला हो जाए तो आनंद आ जाए!
बदली सूरत घाटों की
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल से बनारस के घाटों की भी सूरत बदल गई है। पहले घाटों पर इतनी गन्दगी होती थी कि बदबू के मारे लोग नाक ढककर गंगा जाते थे। अब स्थिति बदल गई है। घाट साफ-सुथरे हो गए हैं। बनारस में पर्यटकों की संख्या भी बढ़ी है। नाविक तक, ओमप्रकाश निषादराज कहते हैं, 'प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अस्सी घाट पर खुद फावड़ा चलाकर सफाई अभियान शुरू किया था। उसका असर भी दिखने लगा है। घाटों की गन्दगी की वजह से पहले पर्यटक यहां पर आना पसन्द नहीं करते थे। पुरोहित से लेकर नाविक सभी परेशान थे। सबकी आमदनी घट गई थी। अब बड़ी संख्या में पर्यटक आने लगे हैं। हम सबकी आमदनी बढ़ी है।' एक अन्य नाविक पप्पू का भी कहना है,'प्रधानमंत्री के कारण बनारस के लोगों में गंगा सफाई को लेकर जागरूकता बढ़ी है। पहले लोग कूड़ा सीधे गंगा जी में फेंकते थे। अब किनारे रख देते हैं। बाद में उसे दूसरी जगह ले जाया जाता है। बनारस के घाटों पर नाविकों की संख्या लगभग 40 हजार है। नाव चलाना हमारा खानदानी काम है। पिछले कुछ वर्षों से हमारा काम मंदा हो गया था। हम लोग और कोई काम ढंूढने लगे थे, पर अब दूसरे काम की जरूरत नहीं है। इन दिनों काम अच्छा चल रहा है।'
अस्सी घाट पर तैनात सफाईकर्मी मनोज का भी मानना है कि अब लोग घाट को साफ-सुथरा रखने में मदद कर रहे हैं।
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में राजनीतिशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. के.के. मिश्र भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के काम से सन्तुष्ट हैं। वे कहते हैं, 'मोदी जी के स्वच्छता अभियान से बनारस के घाटों पर वषोंर् से जमी मिट्टी हट गई है। घाटों पर मिट्टी के ढेर रहने से गंगा नदी मार्ग बदल रही थी। धारा घाटों से दूर हो रही थी। इससे कई तरह की समस्याएं पैदा हो रही थीं। घाटों के साफ हो जाने से गंगा प्राचीन मार्ग पर लौट आई है। इससे घाटों की रौनक बढ़ गई है। पहले केवल दशाश्वमेध घाट पर ही आरती होती थी, अब दो दर्जन से भी अधिक घाटों पर आरती होने लगी है। इससे पर्यटकों की संख्या भी बढ़ने लगी है। प्रधानमंत्री काशी की प्राचीन परम्परा को सहेजते हुए उसके विकास में लगे हैं। लोग उम्मीद कर रहे हैं कि प्रधानमंत्री की पहल से बनारस दुनिया में आकर्षण का केन्द्र बनेगा।'
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्राध्यापक प्रो. आद्या प्रसाद पाण्डेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा बनारस के विकास के लिए उठाए जा रहे कदमों से सहमत हैं। वे भी मानते हैं कि पहले की अपेक्षा अब घाटों की चमक-दमक बढ़ी है। उन्होंने यह भी कहा कि यदि बनारस के घाट पूरी तरह साफ हो जाएं तो बनारस आने वाले पर्यटकों की संख्या चार गुना बढ़ जाएगी। भारत कला भवन (बीएचयू) के डॉ. आर.पी. सिंह कहते हैं, 'प्रधानमंत्री मोदी से केवल बनारस ही नहीं, बल्कि पूरे भारत को काफी उम्मीदें हैं। अभी तक ऐसा कोई कारण नहीं दिखता कि लोगों की उम्मीदें पूरी नहीं होंगी। प्रधानमंत्री दिन-रात काम में लगे हैं। उन्हें समय तो देना ही पड़ेगा।'
रपट/ एक बदलाव बना मिसाल
जयापुर से पूछो
इस साल का कमाल
सपने में भी नहीं सोचा था कि इस जीवन में पक्के मकान में रहने का सौभाग्य प्राप्त होगा। ऐसा मकान बनाने में तो हमारी कई पुश्तें खप जातीं। तब भी शायद ही ऐसा घर बना पातीं। हम सब मोदी जी का दिल से शुक्रिया करते हैं।
—मुखई, जयापुर निवासी
हमने कभी सोचा ही नहीं था कि पक्के के मकान में रहेंगे। वह भी बिजली की रोशनी और पानी की सुविधाओं के साथ। मोदी जी की वजह से हमें छत मिल रही है, यह हमारे लिए बहुत बड़ी बात है।
—जीतू, जयापुर निवासी
घर तो मिल रहा है, लेकिन यहां तक आने के लिए कोई सीधा रास्ता नहीं है। गांव में प्रवेश करने के लिए हम लोगों को कई किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। हम लोगों के लिए रोजगार का साधन हो जाए तभी इन घरों में रहने का मजा है।
—सोनू, जयापुर निवासी
पहले की अपेक्षा अब घाटों की चमक-दमक बढ़ी है। यदि बनारस के सभी घाट पूरी तरह साफ हो जाएं तो बनारस आने वाले पर्यटकों की संख्या चार गुना बढ़ जाएगी। मोदी जी बनारस को बदलने में लगे हैं।
—प्रो. आद्या प्रसाद पाण्डेय, प्राध्यापक, बीएचयू
घाटों की गन्दगी की वजह से पहले पर्यटक यहां पर आना पसन्द नहीं करते थे। पुरोहित से लेकर नाविक तक, सभी परेशान थे। सबकी आमदनी घट गई थी। अब बड़ी संख्या में पर्यटक आने लगे हैं। हम सबकी आमदनी बढ़ी है।
—ओमप्रकाश निषादराज, नाविक
बनारस के घाटों पर वषोंर् से जमी मिट्टी हट गई है। घाटों पर मिट्टी के ढेर रहने से गंगा नदी मार्ग बदल रही थी। धारा घाटों से दूर हो रही थी। इससे कई तरह की समस्याएं पैदा हो रही थीं। घाटों के साफ हो जाने से गंगा प्राचीन मार्ग पर लौट आई है। इससे घाटों की रौनक बढ़ गई है।
—प्रो. के.के. मिश्र, विभागाध्यक्ष, राजनीति शास्त्र विभाग, बीएचयू
जल शव वाहिनी की सुविधा
बनारस के दो घाटों (हरिश्चन्द्र और मणिकर्णिका) पर दिन-रात शवों का अन्तिम संस्कार होता है। ये दोनों घाट शहर के बीचोंबीच हैं। बनारस को मोक्ष नगरी कहा जाता है। इसलिए बनारस के आसपास के नगरों और कस्बों से यहां निरन्तर शव आते हैं। एक शव के साथ काफी लोग होते हैं। इस कारण बनारस में यातायात जाम की समस्या सदैव बनी रहती है। इसको ध्यान में रखते हुए 4 जल शव वाहिनियों की व्यवस्था की गई है। बनारस स्थित प्रधानमंत्री कार्यालय के प्रभारी शिवशरण पाठक कहते हैं, 'नगर के दोनों ओर 2-2 शव वाहिनियां तैनात की गई हैं। एक शव वाहिनी में एक साथ 25-30 लोग बैठ सकते हैं। जब भी बाहर से कोई शव लाया जाता है, उसे शव वाहिनी के जरिए हरिश्चन्द्र या मणिकर्णिका घाट पर पहुंचाया जाता है। इससे शहर में लगने वाले यातायात जाम से कुछ छुटकारा मिला है। साथ ही लावारिस लाशों का विद्युत शवदाह गृह में नि:शुल्क अन्तिम संस्कार करने की व्यवस्था की गई है। पहले लावारिस लाशों को पुलिस वाले गंगा जी में बहा देते थे। इससे भी गन्दगी बढ़ती थी।'
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