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महाराणा प्रताप का नाम असंख्य भारतीयों के लिए प्रेरणा स्रोत है, लेकिन यह बड़े ही दुर्भाग्य की बात है कि इस महान देशभक्त को स्वतंत्रता के बाद इतिहास तथा पाठ्य पुस्तकों में जो स्थान मिलना चाहिए वह नहीं मिला। लेकिन अब समय आ गया है कि आज की युवा पीढ़ी में गिरते जीवन मूल्यों को उभारने के लिए महाराणा प्रताप जैसे शूरवीरों के जीवन चरित्र को पाठ्य पुस्तकों में शामिल किया जाना चाहिए। यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के उत्तर क्षेत्र संघचालक डॉ. बजरंगलाल गुप्त ने कही। वह चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में महाराणा प्रताप की 475वीं जयंती पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।
डॉ. गुप्त ने कहा कि महाराणा ने जब सत्ता संभाली तब आधा मेवाड़ मुगलों के अधीन था और शेष मेवाड़ पर अकबर अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिए प्रयासरत था। लेकिन उन्होंने कभी भी मुगलतंत्र के आगे घुटनों को नहीं टेका बल्कि अपनी भूमि की रक्षा को सर्वोपरि मानते हुए उसके साथ मुकाबला किया और अपनी युद्धनीति द्वारा कई बार अकबर को मात दी। प्रमुख वक्ता के रूप में उपस्थित पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ.बलदेव सिंह ढिल्लो ने महाराणा प्रताप को याद करते हुए कहा कि किसी भी समाज, प्रान्त व देश की उन्नति के लिए उसके गौरवमयी इतिहास को याद रखना बहुत आवश्यक है। क्योंकि यही वह इतिहास है जिससे हमें अपने शूरवीरों और उनकी गाथाओं का बोध होता है और उन्हीं के पद चिन्हें पर चलने की प्रेरणा मिलती है। इस अवसर पर कार्यक्रम में विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े गणमान्य लोग उपस्थित थे। ल्ल प्रतिनिधि
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