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भारत-नेपाल सीमा पर स्थित बहराइच (उ.प्र.) से लगभग 8 कि़ मी़ दूर स्थित सुरम्य चित्तौरा झील के तट पर एक सप्ताह से चल रहा महाराजा सुहेलदेव विजयोत्सव धूमधाम से सम्पन्न हो गया। 5 से 10 मई तक आयोजित इस उत्सव के दौरान श्रीराम कथा और विचार गोष्ठी हुई, तो कवि सम्मेलन और महायज्ञ ने भी लोगों को आकर्षित किया। विभिन्न कार्यक्रमों से हिन्दुओं में अपूर्व ऊर्जा और उत्साह का संचार देखा गया।
उल्लेखनीय है कि 11वीं शताब्दी में सम्राट सुहेलदेव का शासन बहराइच-श्रावस्ती में रहा था। इसी समय देश पर यवनों का आक्रमण प्रारम्भ हो गया। चारांे ओर विनाश की विभीषिका दिखाई पड़ रही थी। भारत पर महमूद गजनवी का शासन था। सम्पूर्ण भारत को दारुल इस्लाम में बदलने की आकांक्षा लेकर विक्रमी सम्वत् 1058 से 1084 के बीच गजनी के आक्रांता महमूद गजनवी ने 17 बार भारत पर आक्रमण किए। हिन्दुओं के श्रद्धा केन्द्रांे, अनेक महत्वपूर्ण मंदिरों को ध्वस्त करते हुए कृष्ण जन्म भूमि (मथुरा) व सोमनाथ मंदिर (गुजरात) को लूटने के बाद सम्वत् 1087 में उसकी मृत्यु हो गई। महमूद गजनवी के अधूरे सपनों को पूरा करने और भारत की समृद्धि को लूटने की कामना लेकर उसके भांजे सैयद सालार मसूद ने एक विशाल सेना लेकर अपने पिता सालार साहू के साथ सम्वत् 1088 में भारत पर आक्रमण किया। इस्लाम न स्वीकारने वाले लोगों की हत्या और मंदिरों को तोड़ता हुआ सालार मसूद ने बहराइच पर आक्रमण कर दिया।
बहराइच-श्रावस्ती के पराक्रमी राजा सुहेलदेव ने 21 प्रमुख राजाओं के साथ मिलकर सालार मसूद की सेना से पांच दिनों तक बहराइच जिले के पयागपुर क्षेत्र में युद्ध किया। महाराजा सुहेलदेव ने विक्रमी सम्वत् 1091 में ज्येष्ठ मास के पहले रविवार को आक्रांता सैयद सालार मसूद को उसकी 1 लाख 30 हजार सेना के साथ मौत के घाट उतार दिया। महाराजा सुहेलदेव के इस प्रबल पराक्रम का ही परिणाम था कि अगले लगभग 200 वर्ष तक किसी भी आततायी का भारत पर आक्रमण करने का साहस नहीं हुआ। सालार मसूद की मृत्यु के लगभग 300 वर्ष बाद एक और आक्रांता फिरोज तुगलक ने बालार्क ऋषि के आश्रम को ध्वस्त कर और सूर्यकुण्ड मंदिर को पाटकर यहां सालार मसूद की दरगाह बनवाई तथा सालार मसूद को गाजी की उपाधि दी। तब से आजतक इस स्थान को लेकर निरंतर जुबानी संघर्ष चलता आ रहा है। सालार मसूद की दरगाह आज भी भारत की स्वतंत्रता और हिन्दुओं की आस्था के लिए चुनौती ही नहीं, बल्कि गुलामी का भी प्रतीक है।
महाराजा सुहेलदेव सेवा समिति बहराइच, उत्तर प्रदेश के तत्वावधान में प्रतिवर्ष यह विजयोत्सव मनाया जाता है। इस वर्ष कलश यात्रा से शुरू हुआ यह कार्यक्रम महायज्ञ की पूर्ण आहुति के बाद सम्पन्न हुआ।
ल्ल सचिन श्रीवास्तव
विद्या भारती की साधारण सभा संपन्न
पिछले दिनों राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में विद्या भारती की साधारण सभा बैठक आयोजित हुई। इसमें विद्या भारती से जुडे़ प्रतिनिधियों और शिक्षाविदों ने भाग लिया। सभा में संगठन की रूपरेखा, कार्यक्रम, नीति निर्धारण, राष्ट्रीय एवं वैश्विक शिक्षा के विषयों पर चर्चा हुई। सभा के उद्घाटन सत्र को सम्बोधित करते हुए विद्या भारती के संरक्षक पद्मश्री ब्रह्मदेव शर्मा 'भाई जी' ने कहा कि शिक्षा के मूल में देश की संस्कृति हो। समाज चेतना को जगाकर राष्ट्रीय शक्ति को खड़ा करने की आवश्यकता है।
विद्या भारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. गोविंद शर्मा ने कहा कि भारत की शिक्षा में राष्ट्रीयता आनी चाहिए। इसके लिए व्यापक विचार-मंथन किया जाना चाहिए। राजस्थान क्षेत्र के अध्यक्ष श्री मनोहर लाल कालरा ने मेवाड़ के इतिहास से परिचित कराया। महामंत्री श्री रामेंद्र राय ने वार्षिक प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। संगठन मंत्री श्री प्रकाश चंद्र ने बैठक की प्रस्तावना पर प्रकाश डाला। विद्या भारती के अखिल भारतीय उपाध्यक्ष डॉ. डी. रामकृष्ण राव ने कहा कि आज समरसता के भाव को चिन्तन के धरातल से व्यवहार में लाने की जरूरत है। इस अवसर पर विद्या भारती की पांच आधारभूत पुस्तकों का लोकार्पण राजस्थान सरकार के शिक्षा मंत्री श्री वासुदेव देवनानी ने किया। उन्होंने शिक्षा नीति में भारतीय विचार एवं भारतीय दर्शन को सम्मिलित किए जाने पर जोर दिया।
साधारण सभा के समापन सत्र को सम्बोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह श्री सुरेश सोनी ने कहा कि समाज में संगठन का काम बढ़ना चाहिए। विद्या भारती के पदाधिकारी अन्य शिक्षण संस्थाओं से संवाद करंे, ताकि अनुभवों को साझा किया जा सके और शिक्षा के क्षेत्र में नए आयाम स्थापित हो सकें। उन्होंने यह भी कहा कि विद्या भारती के विद्यालयों में आधुनिक तकनीकी का उपयोग किया जाए, ताकि समय एवं परिस्थितियों के साथ समाज को कुछ अच्छा दे सकें। विद्या भारती के अखिल भारतीय सह-संगठन मंत्री श्री काशीपति ने कार्यकर्ताओं का आह्वान किया कि समाज की सृजन-शक्ति खड़ी हो। इस दिशा में विद्या भारती के कार्यकर्ताओं को योजनापूर्वक आगे बढ़ना चाहिए। ल्ल प्रतिनिधि
विद्या भारती के विद्यालयों का बेहतरीन प्रदर्शन
पिछले वषार्ें की तरह इस वर्ष भी ओडिशा की मैट्रिक परीक्षा में विद्या भारती के विद्यालयों के बच्चों ने शानदार प्रदर्शन किया है। इस बार इन विद्यालयों के बच्चों ने पुराने सभी कीर्तिमान तोड़ दिए। सरस्वती शिशु विद्या मंदिरों का संचालन करने वाली व विद्या भारती से संबद्ध शिक्षा विकास समिति से प्राप्त जानकारी के अनुसार इस वर्ष सरस्वती शिशु विद्या मंदिरों के 13,939 बच्चे मैट्रिक की परीक्षा में बैठे थे, जिनमें से 99. ़57 प्रतिशत यानी 13,880 छात्र-छात्राओं को सफलता मिली। इनमें सरस्वती शिशु विद्या मंदिर, जाजपुर नगर के छात्र शुभ्रजीत स्वाईं ने 585 अंक प्राप्त कर नया कीर्तिमान बनाया है। ब्रह्मपुर स्थित नीलकंठ नगर विद्या मंदिर के 135 छात्रों ने ए-1 श्रेणी प्राप्त की है। सरस्वती शिशु विद्या मंदिरों के 723 छात्रों को ए-1, 3959 छात्रों को ए-2, 4326 को बी-1, 2785 छात्रों को ई श्रेणी प्राप्त हुई है। पिछले दिनों 2015 की मैट्रिक परीक्षा में एक से दस स्थान तक प्राप्त करने वाले छात्रों का शिक्षा विकास समिति, ओडिशा की ओर से अभिनंदन किया गया। ल्ल समन्वय नंद
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