|
.आदित्य भारद्वाज
ललाइन बड़ी खुश थी। खुशी की बात भी थी आखिर उनका पप्पू अमरीका से मैनेजमेंट का 'शार्टटर्म कोर्स करके प्रकट जो हो चुका था। गली मोहल्ले में पप्पू के यकायक गायब होने के चर्च खूब उड़े थे। ललाइन ने पप्पू को कॉन्वेंट में पढ़ाया लिखाया था। अच्छी तालीम भी दिलाई थी लेकिन फिर भी वह कंपनी का सीईओ नहीं बन पा रहा था। कंपनी के कई पुराने पदाधिकारी कोई न कोई ऐसी बात बोल देते थे कि पप्पू सीईओ बनते-बनते रह जाता। फिर भी ललाइन ने उसे कंपनी में निदेशक का पद दे रखा था। आखिर वह कंपनी की सीईओ जो ठहरीं लेकिन बेटा कई प्रकार के टोटकों और बूटियों के सेवन के बाद भी लल्लू सिद्ध हो रहा था। ललाइन के लाख चाहने के बाद भी वह उतना कामयाब नहीं हो पाया था जितने कामयाब उसके पिताजी थे, दादी थी और परदादा थे। ललाइन ने बड़ी मेहनत की कि बेटा भी बाप और दादी की तरह देश विदेश में नाम रौशन करे, समाज में उसकी पूछ हो लेकिन चाहते हुए भी ऐसा नहीं हो पा रहा था। आखिर जब बहुत कोशिशों के बाद भी बात नहीं बनी तो ललाइन ने ठान लिया कि पप्पू को कोई ऐसा कोर्स कराया जाए ताकि उसकी मैनेजमेंट क्षमता (प्रबंधन कला) विकसित हो और कंपनी के बाकी निदेशक उसे सीईओ (मुख्य कार्यकारी अधिकारी) स्वीकार कर लें। आज पप्पू लौट आया था। हवाईअड्डे पर उसके स्वागत में कंपनी के कई पदाधिकारी पहुंचे थे। उनमें दरबारी और चाटुकार सभी थे। हाथों में गुलदस्ते लिए उन्होंने पप्पू का स्वागत किया। पप्पू ने भाव भंगिमा भी ऐसी बनाई थी मानो वास्तव में वह समझदार हो चुका हो। वैसे भी पप्पू से सीधे कुछ पूछने की हिम्मत तो कोई कर ही नहीं सकता था, भई सीईओ का बेटा जो ठहरा! एक बार उनकी कंपनी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने एक आदेश पप्पू को बिना बताए पास कर दिया था तो पप्पू को इतना गुस्सा आया था कि उसने भरी सभा में उस आदेश को फाड़ कर फेेंक दिया था। हालांकि बाद में पप्पू की काफी फजीहत भी हुई थी लेकिन फिर बात धीरे-धीरे आई- गई हो गई। बहरहाल अब पप्पू कोर्स करके लौटे। डूब के कगार पर पहुंची कंपनी के लोगों को भी थोड़ी उम्मीद बंधी कि शायद अब कंपनी के पुराने दिन लौट आएंगे, वह फिर से घाटे से उभरकर नफे में पहुंच जाएगी। बैठक हुई तो पप्पू ने बड़ा जोरदार भाषण दिया। कुशलता एवं नेतृत्व से कंपनी को उभारने के लिए नई योजनाएं बताईं। कंपनी के निदेशक और पदाधिकारियों ने तालियां बजाकर उनका उत्साहवर्द्धन किया। पप्पू ने कंपनी के पदाधिकारियों को साथ लिया और जहां- जहां कंपनी की ब्रांच घाटे में चल रही थी वहां के ताबड़तोड़ दौरे शुरू कर दिए। एक के बाद एक दौरे कर पप्पू ने जता दिया कि वे कंपनी के पुराने दिन फिर से वापस लौटाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। लगातार घाटे में जाती कंपनी को वह फिर से सबसे बड़ी कंपनी बनाएंगे। कंपनी के पुराने लोगों को भी लगने लगा कि पप्पू कोई न कोई चमत्कार जरूर करेगा। आखिर उसके पिता, दादी और परदादा भी तो कंपनी में टॉप की पोजीशन पर रह चुके थे। आखिर पप्पू में राजशाही वाले गुण तो परिवार के ही हैं। पप्पू की समझदारी के किस्से अखबारों में छपने लगे। सारा मीडिया पप्पू के गुणगान करने लगा। अब सबको लगने लगा था कि पप्पू बाजी मार लेंगे।
एक दिन पप्पू को प्रबंधन कौशल पर 'प्रजनटेशन' देने के लिए जाना था। 'प्रजनटेशन' का विषय था 'आपदा प्रबंधन'। पप्पू पूरी तैयारी के साथ निश्चित 'वेन्यू' पर पहुंचे। उनके साथ कंपनी के पुराने पदाधिकारी व निदेशक भी थे। 'प्रजनटेशन' के बाद सभी आगंतुक अतिथियों को हस्तलिखित कुछ पंक्तियां आपदा प्रबंधन पर लिखनी थीं। सभी ने कुछ न कुछ लिखा, पप्पू की बारी आने वाली थी। पप्पू की सिट्टी पिट्टी गुम थी कि अब क्या किया जाए। पहले तो बोल- बोलकर वह काम चला रहे थे लेकिन यहां तो लिखना था वह भी इतने लोगों के सामने। खैर इसका भी हल था। तत्काल कंपनी के एक खासमखास निदेशक को मामले की जानकारी दी गई। उसने कहा, बाबा टेंशन की जरूरत नहीं ये तो छोटा सा काम है।
निदेशक ने मोबाइल पर संदेश टाइप किया और पप्पू को भेज दिया। पप्पू ने मोबाइल निकाला। कलम ली और मोबाइल से पढ़कर धीरे-धीरे पपुआ शैली में संदेश लिख दिया लेकिन पप्पू ये भूल गए कि उन पर औरों की भी नजरें हैं, भई बाजार में उनके प्रतिद्वंद्वी भी कम थोड़े ही न हैं! प्रेस वालों ने पप्पू की वह फोटो खींच ली और अगले दिन वही फोटो अखबारों की सुर्खियों में थी कि पप्पू को अपने बूते एक छोटा सा संदेश भी लिखना नहीं आता। पप्पू ने अखबारों में फोटो देखी तो बड़े आग-बबूला हुए लेकिन अब किया क्या जा सकता था? अब तो तीर कमान से निकल चुका था। सुनने में आया कि पप्पू अब दोबारा से कोई नया कोर्स करने की तैयारी में हैं, आखिर सीईओ जो बनना है फिर चाहे तरीका कोई भी हो! ल्ल
टिप्पणियाँ