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क्या कारण है कि हिंदी के समाचार पत्र 22 मार्च के संस्करणों में पूरे पेज पर हाशिमपुरा (मेरठ) दंगों पर न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले पर सवालिया निशान लगाते हैं, अशिष्ट रूप से न्यायालय को कठघरे में खड़ा करते हैं ? यह वही मीडिया है जो विदेशी फंड पर पलता है, वामपंथियों, कांग्रेसियों, तीस्ता जावेद सीतलवाड़, संजीव भट्ट जैसों की निराधार बातों को उछालता है।
तुफैल चतुर्वेदी
अभी मेरठ दंगे का चर्चित हिस्सा बने हाशिमपुरा पर न्यायलय का फैसला आया है। न्यायालय ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया है। अंग्रेजी मीडिया, विदेशों से चंदा खाने वाले हिन्दू विरोधी एन. जी. ओ़, मुस्लिम वोटों के लिए जीभ लपलपाने वाले राजनेता एक से बढ़ कर एक मरकट-नृत्य में संलग्न हो गए हैं। मेरे विचार से इस विषय की चर्चा करने के साथ इसी तरह के दंगे और उस पर बरसों चले हाहाकार की समवेत् चर्चा उपयुक्त रहेगी। 2002 में गोधरा में ट्रेन जलाने के बर्बर, पैशाचिक हत्याकांड के कारण उपजे आक्रोश से गुजरात के दंगे हुए। इन दंगों में प्रशासन, पुलिस प्रशासन पर मुसलमानों के प्रति दुर्भावना रखने और हिन्दुओं के पक्ष में होने के आरोप लगाये गए। आइये, तत्कालीन घटनाक्रम को एक बार दैनंदिन रूप से याद कर लिया जाये।
साबरमती एक्सप्रेस की बोगी नंबर एस-6 में विश्व हिन्दू परिषद् के कार-सेवक यात्रा कर रहे थे। 27 फरवरी 2002 की सुबह 7.30 बजे के लगभग इस बोगी को निशाना बनाकर गोधरा के मुसलमानों द्वारा हिन्दू विरोधी नारों के बीच आग लगा दी गई। आग लगाने वालों की संख्या 1500 के करीब थी। इस अग्निकांड में 69 से अधिक लोग जला कर मार दिए गए, जिनमें अधिकांश महिलाएं और बच्चे थे। कोई हिंदू यात्री बोगी से बाहर न निकल पाए इसीलिए योजना के अनुसार, उन पर पत्थर भी बरसाए जाने लगे। गुजरात पुलिस ने भी अपनी जांच में ट्रेन जलाने की इस वारदात को आई़ एस़ आई. की साजिश ही करार दिया, जिसका उद्देश्य हिन्दू कारसेवकों की हत्या कर राज्य में साम्प्रदायिक तनाव पैदा करना था।
प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी शाम 4़ 30 बजे गोधरा पहुंचे और वहां जली हुईं बोगियों का निरीक्षण किया। उसके बाद संवाददाता सम्मेलन में नरेंद्र मोदी ने कहा कि गोधरा की घटना बेहद दुखदायी है, लेकिन लोगों को कानून-व्यवस्था अपने हाथ में नहीं लेनी चाहिए। सरकार उन्हें आश्वस्त करती है कि दोषियों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाएगी। उसी दिन गोधरा व उसके आसपास कर्फ्यू लागू दिया गया। राज्य सरकार ने केंद्र सरकार से गुजरात में अर्द्धसैनिक बल की 10 कंपनियां और साथ ही त्वरित कार्य बल की चार अतिरिक्त कंपनियां बहाल करने का अनुरोध किया। दंगा भड़कने से रोकने के लिए सुरक्षा के लिहाज से बड़े पैमाने पर संदिग्ध लोगों को गिरफ्तार किया गया। जिन 217 लोगों को गिरफ्तार किया गया उनमें 137 हिंदू और 80 मुसलमान थे। गोधरा घटना के बाद पहले ही दिन गुजरात के संवेदनशील व अतिसंवेदनशील क्षेत्र में 6000 पुलिस जवानों की तैनाती की गई। स्टेट रिजर्व पुलिस फोर्स की 62 बटालियनें थीं, इसमें 58 स्टेट रिजर्व पुलिस फोर्स और चार सेंट्रल मिलिट्री फोर्स की बटालियनें शामिल थीं। गुजरात की मोदी सरकार ने सभी 62 बटालियनों को संवेदनशील क्षेत्रों में तैनाती के आदेश दे दिए। गोधरा से लौटने के बाद मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने देर रात 11 बजे अपने घर पर वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक बुलाई और कानून व सुरक्षा की स्थिति का जायजा लिया। मोदी ने अधिकारियों से कहा कि सेना के जवानों की मदद भी लेनी पड़े तो लें, लेकिन कानून-व्यवस्था को चरमराने न दें। स्थानीय आर्मी हेडक्वार्टर ने जवाब दिया कि उनके पास सेना की अतिरिक्त बटालियन नहीं है। युद्ध जैसे हालात को देखते हुए सभी बटालियनों को पाकिस्तान से सटी गुजरात सीमा पर लगाया गया है। सेना की बटालियन उपलब्ध न होने के कारण गुजरात सरकार ने अपने पड़ोसी राज्यों-महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान से अतिरिक्त पुलिस बल की मांग की, लेकिन वहां तब की कांग्रेसी सरकारों ने गुजरात की कोई मदद नहीं की।
कांग्रेस और अन्य लोगों की मिलीभगत से बनी सरकार ने 11 मई 2005 को संसद में अपने लिखित जवाब में बताया था कि 2002 के दंगे में 1044 लोगों की मौत हुई थी, जिसमें से 790 मुसलमान और 254 हिंदू थे। गुजरात दंगा पूरे आजाद भारत के इतिहास का एकमात्र दंगा है जिस पर अदालती फैसला इतनी शीघ्रता से आया और इतने बड़े पैमाने पर लोगों को सजा भी हुई है। अगस्त 2012 में आए अदालती फैसले में 19 मुकदमों में 249 लोगों को सजा हुई है, जिसमें से 184 हिंदू और 65 मुसलमान हैं। इन 65 मुसलमानों में से 31 को गोधरा में रेल जलाने और 34 को उसके बाद भड़के दंगे में संलिप्तता के आधार पर सजा मिली है।
तथ्यों से स्पष्ट है कि प्रशासन और पुलिस ने प्राणपण से दंगा रोकने का प्रयास किया और इसी कारण दंगा गुजरात के बहुत छोटे से हिस्से से आगे नहीं बढ़ पाया। इसका एक दूसरा खुला प्रमाण यह भी है कि पुलिस की गोलियों से मुसलमानों की अपेक्षा हिन्दू अधिक मारे गए। यदि पुलिस दंगा रोकने का प्रयास नहीं कर रही थी तो हिन्दू पुलिस की गोलियों से मारे ही कैसे गए? फिर भी रेल में लोगों को जिंदा जला कर मार देने जैसे भयानक काम का पक्ष लेने में अंग्रेजी मीडिया, विदेशों से चंदा खाने वाले हिन्दू विरोधी एन. जी़ ओ़, मुस्लिम वोटों के लिए जीभ लपलपाने वाले राजनेता एक से बढ़कर एक मरकट-नृत्य करते रहे। बरसों गुजरात के प्रशासनिक अधिकारियों पर मुकदमे चले। नरेंद्र मोदी, अमित शाह सहित न जाने कितने भाजपा के नेताओं, हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों के कार्यकर्ताओं पर मुकदमे चलाये गए। अब सवाल उठता है कि विदेशी फंड पर पलने वाले मीडिया, वामपंथियों, कांग्रेसियों, तीस्ता जावेद सीतलवाड़, संजीव भट्ट जैसों की बात यदि सच है तो फिर 254 हिंदुओं की हत्या किसने की थी? लेकिन सांच को आंच नहीं लगती। देर से ही सही नरेंद्र मोदी, अमित शाह सहित कई नेता न्यायिक आयोगों द्वारा मुकदमों से बरी कर दिए गए।
अब उसी तरह के मुस्लिम दंगे पर 28 साल बाद ऐसा ही एक और फैसला आया है। उस घटना को भी जानना ठीक रहेगा। फैजाबाद न्यायालय द्वारा फरवरी 1986 में राम जन्मभूमि पर असंवैधानिक रूप से लगाए गए ताले को खुलवाने का आदेश देने के बाद देश के विभिन्न भागों में दंगे शुरू हो गए। मेरठ में भी मुस्लिम दंगा शुरू हो गया। जिन मित्रों को 'मुस्लिम दंगे' शब्द से विरोध है तो वे कृपया अभी हाल ही में हुए मुजफ्फरनगर के दंगे की जानकारी कर लें। मैं आश्वस्त हूं कि उसकी जानकारी करने के बाद वे मेरे इन शब्दों की सत्यता से परिचित हो जायेंगे। मेरठ में अप्रैल 1987 में दंगा फैलाया गया। प्रशासन ने दंगा दबा दिया। दंगा शांत होने के बाद सुरक्षा बलों की टुकडि़यों को हटा लिया गया। 18 मई को दंगा फिर शुरू कर दिया गया। 21 मई को मेरठ के तब तक शांत इलाके हाशिमपुरा में अपने मुस्लिम मरीज को देखने गए डाक्टर अजय को उनकी कार में ही जिन्दा जला दिया गया और हाशिमपुरा, मलियाना में भी दंगा भड़क उठा। 'नारा ए तकबीर' के नारों के बीच 23 मई 1987 को आरोप लगाया गया कि पीएसी की 41वीं वाहिनी के बल ने हाशिमपुरा में एक मस्जिद के बाहर चल रही सभा से 42 लोगों को पकड़ लिया और उन्हें गोली मार दी। यहां यह प्रश्न उठाया ही जाना चाहिए कि कर्फ्यू लगे क्षेत्र में मस्जिद के बाहर सभा कैसे संभव थी?
पीएसी के 19 जवानों को आरोपी बनाया गया। मुकदमे को वादियों की मांग पर उत्तर प्रदेश से बाहर दिल्ली की तीस हजारी अदालत में स्थानांतरित कर दिया गया। ये लोग 28 बरस तक पेशियां भुगतते रहे। राष्ट्र की सेवा की शपथ लिए सामान्य आर्थिक स्थिति के ये जवान बसों, रेलों में टक्करें मारते पेशियों पर साल दर साल जाते रहे। कलंक के इस दाग को अपने माथे पर लिए दर-दर भटकते रहे। अपने-पराये की संदेहभरी नजरें झेलते रहे। 28 बरस बाद इस घोर कष्टपूर्ण तपस्या का फल आया है और अदालत ने 16 जवानों को बरी कर दिया है। 3 लोग ये बोझ अपने सीने पर रखे संसार छोड़कर जा चुके हैं। इन 16 लोगों में समीउल्लाह नाम का जवान भी है। उस तिरस्कार, अपमान, दर्द की कल्पना करें जो इन 28 वर्ष तक मुस्लिम समुदाय के समीउल्लाह को अपने समाज में झेलना पड़ा होगा।
भारत में न्याय का शासन है। वादियों की मांग पर मुकदमे स्थानांतरित करने के बावजूद आज जब फैसला आ गया है तो प्रेस के महारथी, अंग्रेजी मीडिया, विदेशों से चंदा खाने वाले हिन्दू विरोधी एन.जी.ओ़, मुस्लिम वोटों के लिए जीभ लपलपाने वाले राजनेता अदालत पर भी उंगलियां उठा रहे हैं, नाक-भौं चढ़ा रहे हैं,आंखें दिखा रहे हैं।
क्यों इस अघोरी दल को अभी भी चैन नहीं है? क्या ये वर्ग तभी किसी बात को मानेगा जब उसकी इच्छा पर न्यायालय फैसला देगा? यह भी एक गंभीर विचारणीय बिंदु है। पाकिस्तानी मूल के कनाडा के लेखक, प्रतिष्ठित पत्रकार तारिक फातेह के शब्दों में इसका सबसे बड़ा कारण 'हिन्दू गिल्ट' है। हिन्दू अपने होने से लज्जित हैं। वे अपने से, अपने सत्व से, अपनी चिति से शमिंर्दा हैं यानी लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति भरपूर सफल हुई है। अन्यथा क्या कारण है कि हिंदी के समाचार पत्र 22 मार्च के संस्करणों में पूरे पेज पर न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले पर सवालिया निशान लगाते हैं?
राष्ट्रविरोधी मुस्लिम प्रचार तंत्र को अनर्गल आरोप लगाने के लिए मसाला उपलब्ध कराते हैं? अशिष्ट रूप से न्यायालय को कठघरे में खड़ा करते हैं? न्यायायिक फैसले पर लगभग कोसने, थू-थू करने की शैली में की गयी यह रिपोर्टिंग मैं सर-माथे रख लेता मगर जब विश्व हिन्दू परिषद राम जन्मभूमि को आस्था का विषय कह कर उस पर दृढ़ता दिखाती है तो वह सांप्रदायिक हो जाती है, तो आपको न्याय व्यवस्था की अवमानना करने वाला उद्दंड संवाददाता, संपादक, मालिक क्यों न माना और कहा जाय? आप राष्ट्र के संस्थानों को अपनी मनमर्जी से क्यों हांक रहे हैं? समाज को आपका बहिष्कार क्यों नहीं करना चाहिए? ल्ल
दूरभाष्
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