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भारत को 2008 की मुंबई की घटना ने इस तथ्य के प्रति जागरूक करा दिया कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरों का थल आधारित होना जरूरी नहीं होता। कई वषोंर् से, हम अपनी सीमाओं को सुदृढ़ करने में व्यस्त रहे, पाकिस्तान और बंगलादेश के साथ लगती अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर कंटीले तार डालते रहे। हालांकि यह पहल तुच्छ या अप्रासंगिक नहीं है, लेकिन यह सुरक्षा तैयारियों में एक महत्वपूर्ण दुविधा पर प्रकाश डालती है, वह यह कि हम अक्सर बीते हुए कल की लड़ाइयां लड़ रहे होते हैं।
पाकिस्तान स्थित उग्रवादियों और आतंकवादियों की भारत में, विशेष रूप से पंजाब और बाद में जम्मू-कश्मीर में प्रवेश करने की क्षमता ने हमें अपनी थल सीमाओं को असुरक्षित छोड़ने के खतरों के प्रति सतर्क कर दिया। मुंबई की घटना के बाद, भारत सरकार ने तटीय सुरक्षा को बढ़ने पर ध्यान केंद्रित किया है, जो मुख्य रूप से समुद्री पुलिस के बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाने, और उच्च गति नौकाओं आदि की खरीद में राज्य सरकारों की सहायता करके किया जा रहा है। समुद्री प्रक्षेत्र जागरूकता (एमडीए) के भाग के रूप में नौसेना सभी समुद्री हरकतों की सही समय पर एक बहुत व्यापक ट्रैकिंग और निगरानी कर रही है।
इस बात को अक्सर याद नहीं किया जाता है कि भारत की पूर्वी समुद्र तटीय सीमा सुंदरवन से कन्याकुमारी तक नहीं जाती है, बल्कि वास्तव में इससे एक हजार किलोमीटर पूर्व में है। अंदमान और निकोबार द्वीप समूह उत्तर से दक्षिण तक 800 किलोमीटर में फैले हुए हैं। पूर्वी द्वीप और उत्तर में लैंडफिल द्वीप म्यांमार के कोको द्वीप से मात्र 20 किलोमीटर दूर हैं। ग्रेट निकोबार द्वीप का सबसे दक्षिणी बिन्दु सुमात्रा (इंडोनेशिया) में बांदा आइच से लगभग 140 किलोमीटर दूर है, और मलक्का जलडमरूमध्य जाने वाले मुख्य नौवहन मार्ग से सिर्फ 30 किलोमीटर दूर है। लगभग एक तिहाई वैश्विक व्यापार, वैश्विक तेल प्रवाह का एक चौथाई और चीन के तेल आयात का का दो-तिहाई से अधिक हिस्सा इन जलडमरूमध्यों से होकर गुजरता है।
यहां 572 द्वीप, टापू और चट्टानें हैं। जनगणना में 36 आबाद द्वीपों को सूचीबद्घ किया गया है, लेकिन ऐसे बसाहट वाले द्वीपों में से करीब आधे में केवल एक पुलिस चौकी या वन विभाग की चौकी है। हवाओं और समुद्री हालातों के कारण, ज्यादातर बसाहट द्वीपों की पूर्वी दिशा में है और उत्तरी, मध्य, दक्षिणी और लिटिल अंदमान और ग्रेट निकोबार के अच्छे खासे हिस्से में मानव उपस्थिति बिल्कुल नहीं है। और न ही इन क्षेत्रों तक भूमि मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है।
द्वीपों की जनसंख्या, जो प्रत्येक दशक में लगभग 50 प्रतिशत की दर से बढ़ रही थी, अब लगभग 4 लाख पर स्थिर हो चुकी लगती है। 2004 की सुनामी का मुख्य केंद्र ग्रेट निकोबार के काफी करीब था, और इस द्वीप समूह को, विशेष रूप से आदिवासी बहुल निकोबार द्वीप समूह को भारी जनहानि का सामना करना पड़ा था। कचल सरीखे द्वीप लगभग एक तिहाई छोटे हैं, जहां टेक्टनिक विचलन के परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर सिकुड़ाव हो रहा है। निकोबार के लोगों के लिए सुनामी का भौतिक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव विनाशकारी रहा है, जिन्होंने समुद्र में नौका उतारने में काफी नाटकीय स्तर की कमी कर ली है। नए सिरे से विचार करें, तो सारा पुनर्निर्माण कराने के सरकार के फैसले ने, जिससे बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता में बहुत बड़ी प्रगति हुई है, निकोबार के लोगों को अपने जीवन और अपनी सामाजिक पूंजी का पुनर्निर्माण करने के अवसर से वंचित कर दिया है।
निकोबार के लोगों ने सुनामी के बाद उपकरणों की आपूर्ति की तरह की सहायता की मांग की थी, जिससे वे अपने घरों, गांवों और अपनी आम सुविधाओं का पुनर्निर्माण कर सकें। लेकिन सरकार ने उन्हें अस्थायी निवासों में रखा और उन्हें उदारतापूर्वक भत्ते दे दिए, और पुनर्निर्माण का कार्य भारतीय मुख्य भूमि से लाए गए ठेकेदारों और मजदूरों के जरिए कराया गया।
अंदमान की आबादी अत्यधिक मिली जुली है। हालांकि यहां तीन सामान्य कालेज और एक इंजीनियरिंग कालेज है, लेकिन स्कूलों से निकले दर्जनों हजार बच्चे उच्चतर अध्ययन के लिए मुख्य भारत भूमि जाते हैं। रोजगार के अवसरों के अभाव में, विशेष तौर पर उन लोगों के लिए जिनके पास पेशेवर योग्यता होती है, छात्र वापस नहीं आते। इसके बजाय, वहां द्वीपों में मजदूरों का आगमन होता है, क्योंकि उच्च प्रति व्यक्ति आय का अर्थ मजदूरों की कमी होना होता है।
भारत में सेनाओं की एकमात्र संयुक्त कमान इन द्वीपों में ही है़ जिसमें तीनों सेनाएं बारी-बारी से कमांडर-इन-चीफ का पद संभालती हैं। पोर्ट ब्लेयर में रक्षा संपदाएं अपेक्षाकृत सघन हैं। कार निकोबार में न्यूनतम परिसंपत्तियों के साथ एक एयर फोर्स स्टेशन है- यहां सुनामी के दौरान भारी संख्या में लोग हताहत हुए थे और यह अपने बुनियादी ढांचे का धीरे धीरे पुनर्निर्माण कर रहा है। दिग्लीपुर (उत्तरी अंदमान) और कैम्पबेल बे (ग्रेट निकोबार द्वीप) में हवाई पट्टियां हैं, जिन्हें बड़े विमानों के लिहाज से समुन्नत करने की आवश्यकता होगी। नौसेना ने कैम्पबेल बे को एक नौसैनिक वायु अड्डा घोषित कर दिया है, लेकिन वर्तमान में यह वास्तव में एक इच्छा मात्र है। पोर्ट ब्लेयर के ठीक बाहर एक सैनिक प्रतिष्ठान मौजूद है।
अंदमान निकोबार कमांड (एएनसी) जिस सबसे बड़ी चुनौती का सामना कर रहा है, वह यह है कि एक संयुक्त कमान होने के नाते यह किसी की भी जिम्मेदारी नहीं है। अगर एक पल के लिए तटरक्षकों को छोड़ दें, तो तीनों सेनाओं में से कोई भी इसे अपनी योजना के अभिन्न अंग के रूप में नहीं देखता है। इसलिए जहाज, विमान, बटालियनें, तोपखाने- जैसी संपत्तियां एएनसी को स्थानांतरित करने में एक अनिच्छा निहित रहती है। एएनसी एकीकृत मुख्यालय की जिम्मेदारी है, लेकिन वह अब भी प्रारंभिक चरण में ही है। शुद्घ परिणाम यह है कि हालांकि एएनसी द्वारा तैयार की गई अधिग्रहण की योजना को सरकार ने अनुमोदित कर दिया है, लेकिन संपत्तियों का वास्तविक प्रवाह प्रारंभिक चरण में ही है और अंदमान निकोबार कमांड को ठीक से लैस होने में लगभग एक दशक लग जाएगा। यह तथ्य रक्षा तैयारियों की स्थिति दर्शाता है कि मलेशियाई एयरलाइंस का एमएच 370 विमान इन द्वीपों के हवाई क्षेत्र के ऊपर से गुजरा था, और मुख्य द्वीप के काफी करीब पहुंचा था, लेकिन इसका पता नहीं लगाया जा सका था, क्योंकि मुख्य ट्रैकिंग स्टेशनों को रात में बंद कर दिया जाता है।
इस बिंदु को इस तथ्य के आलोक में समझा जाना चाहिए कि इस द्वीप समूह का विशेष आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड)1,80,000 वर्ग किलोमीटर तक है, जो भारत के 6 लाख वर्ग किलोमीटर ईईजेड का लगभग एक तिहाई है। हाल के वषोंर् में, म्यांमार के मछुआरों ने समुद्री खीरे निकाले, जो आकर्षक चीनी बाजार में बेचे जाते हैं। कभी-कभी तो 1000 से अधिक म्यांमार के मछुआरे सुनवाई से गुजर रहे होते हैं, या उसकी प्रतीक्षा में हिरासत में होते हैं, जिनमें से कई बार-बार के अपराधी होते हैं। अक्सर मलेशिया, आस्ट्रेलिया और अन्य देशों तक पहुंचने की कोशिश कर रहे बेताब रोहिंग्या अंदमान तट पर पहुंच जाते हैं।
हालांकि अभी तक इनमें से किसी ने भी राष्ट्रीय हितों या सुरक्षा के लिए कोई खतरा पेश नहीं किया है। लेकिन हमें इन द्वीपों की सुरक्षा और विकास की चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए किसी घटना के घटने का इंतजार नहीं करना चाहिए। रक्षा मंत्रालय को संपदाओं के अधिग्रहण तथा हस्तांतरण को प्राथमिकता देनी चाहिए, ताकि कमांड को न्यूनतम ढंग से कार्यात्मक बनाया जा सके। मुख्य अंदमान समूह को छोड़कर, अधिकांश अंतरद्वीपीय यात्रा जहाजों द्वारा होती है। इसमें अपर्याप्त निवेश हुआ है, जिसके परिणामस्वरूप अक्सर जहाज की उपलब्धता की कमी के कारण संकट पैदा हो जाता है।
इन द्वीपों की स्थिति मुख्य नौवहन मागोंर् के इतने करीब होना एक और अवसर प्रस्तुत करता है। सरकार को राष्ट्रीय हित में आर्थिक विकास को सक्रिय रूप से आगे बढ़ाना होगा। इस सबका सकल परिणाम यह होगा कि इन द्वीपों को एक आर्थिक परिक्षेत्र में बदलने और उसे एक मजबूत रक्षा प्रतिष्ठान से पुष्ट करने से न केवल भारत का बाहरी घेरा मजबूत होगा, बल्कि इससे भी अधिक महत्वपूर्ण है कि यह भारत को अपनी शक्ति व्यापक हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में जताने में सक्षम बना देगा।
(लेखक अंदमान- निकोबार द्वीप समूह के मुख्य सचिव रहे हैं।)
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