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पाञ्चजन्य के पन्नों से
वर्ष: 9 अंक: 32
20 फरवरी,1956
पटना 'राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने के लिए प्रादेशिक विधान मण्डलों को भंग कर एकात्मक शासन की स्थापना की जानी चाहिए।' ये विचार अ.भा. जनसंघ के संयुक्त मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एक महती जनसभा में कहे। श्री वाजपेयी बिहार प्रादेशिक जनसंघ के प्रतिनिधियों के वार्षिक सम्मेलन में भाग लेने के लिए यहां पधारे थे। श्री वाजपेयी ने इस बात पर दु:ख प्रकट किया कि अंग्रेजों के चले जाने के बाद पिछले सात-आठ वर्षों में संपूर्ण देश में एक राष्ट्रजीवन का निर्माण करने के बजाय हमारे नेताओं ने भाषा और प्रांत के अभिनिवेश को इतना बल दिया कि आज हर एक प्रदेश अपना अलग अस्तित्व कायम रखने के लिए खून की नदियां बहाने को भी तैयार है। जब भारत का विभाजन होने लगा तो कोई आंसू बहाने वाला भी सामने नहीं आया, परन्तु आज बड़े-बड़े कांग्रेस के नेता भी बड़े गर्व से कहते हैं, हम अपने प्रदेश की एक इंच भूमि भी नहीं जाने देंगे।
संकीर्णता का प्रश्न
श्री वाजपेयी ने कहा कि आश्चर्य की बात है कि कश्मीर का एक तिहाई भाग, अपने हाथ से निकल गया है। उसे प्राप्त करने के लिए कोई आन्दोलन करने वाला नहीं। गोआ की स्वतंत्रता के लिए भारतीय जनता को सत्याग्रह करने का अधिकार नहीं और पूर्वी पाकिस्तान से आये हुए विस्थापितों को बसाने के लिए पाकिस्तान से जमीन की मांग करने की हिम्मत नहीं है! परन्तु अपनी नेतागिरी कायम रखने के लिए लोगों को आपस में लड़ाकर देश की राष्ट्रीय एकता को नष्ट करने में न कोई शर्म है और न हिचक। प्रांतीयता और भाषा की संकीर्णता को आज इतना बल मिल रहा है कि कहीं मराठी गुजराती के साथ रहने को तैयार नहीं, तो कहीं सिख हिन्दू के साथ रहने को तैयार नहीं। यह ऐसी बीमारी है, जो राष्ट्र रूपी शरीर को खोखला बना देगी।
एक संस्कृति : एक राष्ट्र
राज्य पुनर्गठन आयोग के प्रश्न पर जनसंघ की नीति स्पष्ट करते हुए श्री वाजपेयी ने कहा कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है और उसकी एक संस्कृति है, एक राष्ट्र है और राज्य भी एक होना चाहिए। अलग-अलग राज्य और विधानमंडल पर करोड़ों रुपए खर्च करने की क्या आवश्यकता है? यह समझ में नहीं आता कि एक प्रदेश में गोहत्या बन्द करने के लिए कानून बनता है, तो दूसरे प्रदेश के लिए क्या वह आवश्यक नहीं? मद्य-निषेध यदि बंबई में जरूरी है, तो दिल्ली में क्यों नहीं?
विलयन का समर्थन
बंगाल-बिहार विलय के प्रश्न पर जनसंघ के नेता ने कहा कि विलयन होना ठीक है, परन्तु वह हृदय से होना चाहिए। एक ओर तो विलयन का प्रस्ताव होता है, दूसरी ओर दो हाईकोर्ट, दो पब्लिक सर्विस कमीशन और दोनों प्रदेशों की संस्कृति की रक्षा के आश्वासन की बात भी की जाती है।
श्री डोगरा जी का उद्घाटन भाषण
भारतीय जनसंघ के प्रधान पंडित प्रेमनाथ डोगरा के महापंजाब सम्मेलन में उद्घाटन भाषण के प्रमुख अंश-
हिन्दू-सिख एक
श्री डोगरा ने कहा कि 'हिन्दू तथा सिख एक ही वृक्ष की दो शाखाएं हैं। सिख पंथ हिन्दुत्व के विशाल परिवार का ही एक अभिन्न अंग है। जब एक हिन्दुत्व का वृक्ष हरा-भरा है, सिख पंथ को कोई खतरा नहीं। किन्तु दुर्भाग्य की बात है कि अकाली नेता अपने राजनीतिक स्वार्थों की सिद्धि के लिए बच्चे को मां की ममता भरी गोद से अलग करने की भूल कर रहे हैं। सिख भाइयों की अदूरदर्शी तथा आत्मघातक नीतियों से सावधान होने की आवश्यकता है।'
पंजाब के सभी राष्ट्रवादियों से अपील करते हुए श्री डोगरा ने कहा कि 'यदि वे समस्त विघटनकारी तत्वों से लोहा लेने के लिए तैयार है तो उनका उद्देश्य अवश्य पूरा होगा। सम्प्रदायवाद तथा राष्ट्रवाद के इस संघर्ष में राष्ट्रवाद की विजय निश्चित है। भारत की एकता तथा पंजाब की समृद्धि का यही मार्ग है।'
निराश्रित भूस्वामियों द्वारा विवश होकर सत्याग्रह
राजस्थान में भूस्वामी आन्दोलन चल रहा है। भारत की सामान्य जनता को इस बात की किंचित भी कल्पना नहीं कि इस आन्दोलन का वास्तविक कारण क्या है।
सभी जानते हैं कि राजपूत लोग सदैव से योद्धा रहे हैं और उनकी जीविका का साधन या तो सैनिक वृत्ति रही है या भूमि। राजपूतों को किसी की चाकरी करना कभी सुहाता नहीं। सैनिक वृत्ति द्वारा धनोपार्जन करना जैसे-जैसे कठिन होता गया, राजपूत लोगों की जीविका कृषि पर ही निर्भर होती गईं।
किन्तु राजस्थान सरकार ने इस तथ्य की उपेक्षा करते हुए 'राजस्थान भूमि सुधार एवं जागीर उन्मूलन' कानून लागू कर दिया। इस प्रकार राजपूतों की जीविका का साधन उनसे छिन गया। वे अपने को साधनहीन तथा लूटा हुआ अनुभव करने लगे। और अंत में उन्हें विवश होकर सरकार के अजनतांत्रिक एवं अनुचित कदम को चुनौती देने के लिए सत्याग्रह का मार्ग ग्रहण करना पड़ा।…
इस प्रकार हजारों राजपूत परिवार तथा अनेक विधवाओं के पास खाने को चार पैसे भी न रहे। शेखावटी, पर्वतसर, डिडवाना तथा दूसरे जिलों में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति मिल सके जिससे दोनों समय भोजन मिल जाता हो, किन्तु इस स्थिति पर विचार करने की सरकार ने कभी जरूरत नहीं समझी है। समझती भी कैसे उसे तो क्रांति की धुन है!
इसके अतिरिक्त राजपूतों को आर्थिक दृष्टि से मोहताज बनाने के लिए उनपर कृषि आयकर जैसे नये कर लगाये जा रहे हैं।…
उपर्युक्त समस्त करणों ने सम्मिलित रूप से भूस्वामियों को सत्याग्रह करने के लिए विवश कर दिया है और सरकार उनके आन्दोलन को पूर्ववर्ती घृणा के वशीभूत होकर निर्दयतापूर्वक कुचलने में लगी हुई है।
दिशाबोध – चरित्र की नींव -श्रीगुरुजी
यदि राष्ट्रभक्ति के आधार पर कोई नौकरी या मान-सम्मान या व्यापार की प्राप्ति न करे और चाहे यह कहे कि मैं व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए कुछ भी नहीं करता हूं, किन्तु अपने भाई को, लड़के-लड़की या दामाद को, पत्नी के भाई को कुछ दिलाने का भाव रखे, तो यह राष्ट्रभक्ति नहीं है।
-श्रीगुरुजी समग्र: खण्ड 2 पृष्ठ 76
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